pahle ji to lo jindagi

चौरासी लाख योनियो के बाद ये मानुष तन पाया जाता है | ये पढ़ा भी है ,बड़ो ने बताया भी है | इतनी योनियों के बाद जब ये मानव जीवन मिला है ,तो इस जीवन को ठीक तरह से जीते क्यों नहीं ?

ये ईश्वर का
वरदान है ,जो ये जीवन मिला | जीवन की चार अवस्थाएँ और चार आश्रम माने गए हैं | बाल्यावस्था में बच्चा सीखता है | यह अवस्था सीखने में गयी | युवावस्था अपने को सेट करने में कमाने और गृहस्थ जीवन में लगा देता है | ये दो अवस्थाएँ कब निकल गयी , पता ही नहीं चलता | जब वो चालीस या पचास के आस पास आने लगता है , तब उसे अहसास होने लगता है कि  मै ये सब क्यों कर रहा हूँ , किसके लिए उसकी हालत फड़फड़ाते पक्षी की तरह हो जाती है | कि वो सांसारिक कार्य करे किआध्यात्म की तरफ़ जाये |

कुछ लोग सत्संग की तरफ , रुझान करते   है और कहते सुने  जाते है कि कुछ नहीं रखा है, इस जीवन में , कल तो हमे भी जाना है | कोशिश करेगा कि सांसारिक कार्यो में न फँसकर भजन कीर्तन में समय व्यतीत करेगा , योग करेगा | लेकिन ये अहसास उससे पचास के बाद ही क्यूँ होता है ? क्यों भागदौड़ करता है ? क्यूँ साधारण जीवन नहीं जी पाता ? आत्मा रूपी पक्षी क्यूँ फड़फड़ाता है ? क्यों उसे डर है मौत का , या बुरे कर्मो का ? क्यों सहज जीवन नहीं जी पाता ?

 जो परमात्मा ने सुन्दर जीवनात्मा दी है , किसी मकसद से तो दी होगी | जब समय आएगा तो ख़ुशी ख़ुशी उसकी हाजरी बजाना | आराम से चले जाना | तब तक तो शांति पूर्ण इस जीवन को जी लें | मन को शांत रखकर , अपने आगे आने वाली पीढ़ी को कुछ शिक्षा देकर , जब तक जिंदगी है , खुलकर जियो , डर कर नहीं | लेकिन बुरे कर्मो का कोई भागीदार नहीं होता , इसलिए संयमित तरीके से जिओ | जो मरने के बाद भी लोगो की यादो में जिंदा रहो | अपनी चारो अवस्थाओं  का भरपूर उपयोग करो | चारो आश्रमों का भी | इनमे सबसे जिम्मेदार वाला गृहस्थ  आश्रम होता है | उसके कंधो पर तीनो आश्रमों मातृ पितृ व देव ऋण  की जिम्मेदारी होती है | उनका सहयोग करे | अपना ही नहीं दुसरो के जीवन को भी खुशहाल बनाये | न की रो -रोकर दिन गुज़ारे | वहाँ भी जायो तो खुश होकर की जिसके पास हम जा रहे है उससे बिछुड़े  भी न जाने कितने बरस बीत गये , मिलने की इच्छा होगी | अपने प्रिय को जब बुलाना होगा , बुला लेंगे | इतने 
                                                           
                                                                   जीते रहिये , खुश रहिये | 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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