kuchh is tarah katti jindagi

कुछ तुमने कहा ,
                कुछ मैंने कहा , 
                        बस यूँ ही कट गई ,ज़िन्दगी । 
कुछ मेरे जज़्बात थे ,
               कुछ तुम्हारे। 

   कुछ मेरे पूरे हुए ,
                 कुछ तुम्हारे। 
                          बस यूँ ही गुज़र गई ,जिन्दगी । 
  कुछ तुम्हारी शिकायतेँ ,
                     कुछ मेरी। 
  कुछ तुम्हारी तम्नाये ,
                      कुछ मेरी। 
                 एक दूसरे से उलझते ,,बस यूँ ही गुज़र गई ,ज़िन्दगी । 
 ना तुम पूर्ण हो पाये ,
               ना मैं समझ पायी ,
          इसी समझी ना समझी में ,
                       ना जाने कब कटी जिंदगी। 
 ना जाने कितनी हसरतें ,
                       दफ़न हुईं। 
कुछ तुम्हारी ,कुछ मेरी आहों के बीच ,
                       कभी -कभी नीरस सी कटी ज़िंदगी 
                              फ़िर भी साथ -साथ कटी ज़िन्दगी। 
तुम भी साथ रहे ,
            मैंने भी ना छोड़ा 
                      फिर भी साथ -साथ ,
                                 यूँ गुजारी ज़िन्दगी । 
तुम भी मुझसे शिक़वा करो ,
                         मैं भी शिकायत करुँ। 
बस इस तरह कट जाये ,
                            बाकी ये ज़िन्दगी। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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