मध्यम वर्गीय परिवार की पैदाइश होने के कारण उन्हें हर चीज का सही इस्तेमाल करना आता है। मध्यम वर्गीय परिवारों मैं न तो इतनी ग़रीबी रहती है ,कि व्यक्ति भीख मांग ले ,और न इतने अमीर होते है ,कि अपनी मनमर्ज़ी की ज़िंदगी गुज़ार सकें। वो तो अमीरी ग़रीबी के बीच में पिसकर रह जाता है। हमारी ज़िंदगी भी कुछ इस तरह ही गुज़री। एक -एक चीज केपूर्ति लिए दूसरी इच्छा को दबाना या जो पहले आवश्यक है ,उसकी पूर्ति पहले करना। अर्थशास्त्र का नियम यहाँ लागू होता था ,कि आवश्यकताओ की लिस्ट बनाकर हम आवश्यक आवश्यकता को महत्त्व देते थे। इन्ही आवश्यकताओ की खींचतान में कब इक्कीस साल गुजरे ,पता ही नहीं चला और शादी हो गई। शादी के बाद माँ ने सोचा था -कम से कम जीवन में अब सुधार आये ,अच्छे दिन आ जाए ,खुलकर जीवन जी लें
जीवन एक कोरी कल्पना है। हम उसमें जीते तो हैं ,पर उस जीवन में रंग कोई ओर भरता है। हम उस जीवन में रंग भरने की नाक़ाम कोशिश करते है। ज़िंदगी इतनी आसान नही ,जितनी हम समझते हैं। ज़िंदगी कोई चल-चित्र नहीं कि लड़की के बाप ने कहा -कि दस दिन में बीस लाख कमा कर लाओ और हीरो चल पड़ता है ,कमाने के लिए। एन मौक़े पर पैसे कमा कर लाता है।
असल ज़िंदगी तो ओर है ,कि कैसे पारिवारिक जिम्मेदारियां पूरी हो। कल को किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े। किसी से अपमानित न होना पड़े। इसी तरह माँ ने भी नई ज़िंदगी की शुरुआत की पढ़े -लिखे होने के कारण घर के साथ -साथ बाहर भी नौकरी की, लेकिन घर की ज़िम्मेदारी बढ़ने के कारण उस कम पैसे वाली नौकरी को छोड़ना पड़ा। आमदनी कम होने के कारण रसोईघर से लेकर घर के प्रत्येक कार्य अपने हाथों से करती। यह उनका पैसे बचाने का अपना तरीका था ,क्योंकि वो पिता पर अतिरिक्त भार नहीं डालना चाहती थी।
हमारी ज़िम्मेदारी के साथ -साथ खाना बनाना ,बर्तन साफ़ करना, पोंछा लगाना ,कपड़े धोना ,इस्त्री करके रखना ,ख़ुद ही सिलाई करना। कोशिश करती कम से कम ख़र्च में अधिक से अधिक काम हो। इसी जुग़ाड में रहती। शामको हमें पढ़ाती व गमलों की देखभाल करती ,क्योंकि सब्ज़ी भी गमलों में उगाती थी। जिससे तरकारी के पैसों की भी बचत हो। सारा दिन काम में कब निकल जाता पता ही नहीं चलता। अपने लिए भी समय नहीं निकाल पाती , उनके दिन -रात महीने में और महीने साल में गुज़रते गए। इस उम्मीद से कि हमारा भविष्य बेहतर हो सके इस उम्मीद में उन्होंने अपना दिन -रात एक कर दिया। माँ सुन्दर तो बहुत थी ,लेकिन कभी रिश्तेदारी में जाती तभी तैयार होती। तब मैं सोचती ,काश... माँ ऐसे ही रोज़ तैयार होतीं ,वो कभी 'ब्यूटी -पार्लर 'भी नहीं गई। घर पर ही घरेलू सामान प्रयोग करती।
भगवान ने उनकी सुन ली ,पिता का व्यापार बढ़ा। मेरी भी नौकरी लग गयी ,कुल मिलाकर घर की आमदनी बढ़ी। अब हमने माँ से कहना शुरू किया ,कि अब अपने ऊपर काम का अतिरिक्त बोझ न डालें। बाहर भी घूमने -फिरने जाया करे ,लोगों से भी मिला -जुला करें। उन्होंने अपने को काम में इतना झोंक दिया था ,कि उनकी कोई सहेली भी नहीं थी। आस -पड़ोस में मिलना -जुलना शुरू किया।एक दिन पड़ोस की भाभी जी कहने लगी -कि आप भी हमारे साथ किट्टी ज्वाइन कर लें। माँ ने जब हमें बताया ,मैंने जबरदस्ती उनसे हाँ कहलवाया। वे अनमने मन से मान गईं।
वे नियत समय पर तैयार हो कर गई। पहली किट्टी पार्टी में से आई ,तो हम उनका मुँह देख रहेथे। वो खुश थी ,आकर हमें सारी बातें बताईं।कैसे वो लोग खेल खेलती हैं ख़ुश होती हैं उनके लिए सब नया -नया था। इस तरह वो हर किट्टी में जानें लगी ,लेकिन कुछ दिन बाद वे उससे बोर हो गईं। हमने इसका कारण पूछा -तो वो बोली उन पार्टियों का कोई उद्देश्य नहीं है। सिर्फ़ पैसे वाली महिलाएं आती हैं ,और तम्बोला खेलती हैं ,जीतती -हारती हैं पैसे की कोई क़द्र नहीं ,नयी -नयी पोशाकों की नुमाइश ,जो पैसा वो उड़ाती हैं। पैसा कहाँ से आता है ,और कैसे उन्हें नहीं मालूम। पार्टी तो उनका समय गुज़ारने का एक ज़रिया है। लेकिन
हमारा पैसा तो मेहनत का है ,न जानें कितने रात -दिन इसे कमाने में गुज़ार दिए ,मै ऐसे हीनहीं बहा सकती।
कुछ दिन बाद माँ ने जाना बंद कर दिया। हमने भी नहीं पूछा। कुछ समय बाद हमारे घर के बाहर एक बोर्ड दिखा। [ hobby classes ]ग़रीब विद्यार्थियों के लिए मुफ़्त शिक्षा। अब हमें माँ के जीवन का उद्देश्य मालूम था।
जीवन एक कोरी कल्पना है। हम उसमें जीते तो हैं ,पर उस जीवन में रंग कोई ओर भरता है। हम उस जीवन में रंग भरने की नाक़ाम कोशिश करते है। ज़िंदगी इतनी आसान नही ,जितनी हम समझते हैं। ज़िंदगी कोई चल-चित्र नहीं कि लड़की के बाप ने कहा -कि दस दिन में बीस लाख कमा कर लाओ और हीरो चल पड़ता है ,कमाने के लिए। एन मौक़े पर पैसे कमा कर लाता है।
असल ज़िंदगी तो ओर है ,कि कैसे पारिवारिक जिम्मेदारियां पूरी हो। कल को किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े। किसी से अपमानित न होना पड़े। इसी तरह माँ ने भी नई ज़िंदगी की शुरुआत की पढ़े -लिखे होने के कारण घर के साथ -साथ बाहर भी नौकरी की, लेकिन घर की ज़िम्मेदारी बढ़ने के कारण उस कम पैसे वाली नौकरी को छोड़ना पड़ा। आमदनी कम होने के कारण रसोईघर से लेकर घर के प्रत्येक कार्य अपने हाथों से करती। यह उनका पैसे बचाने का अपना तरीका था ,क्योंकि वो पिता पर अतिरिक्त भार नहीं डालना चाहती थी।
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kitty party |
भगवान ने उनकी सुन ली ,पिता का व्यापार बढ़ा। मेरी भी नौकरी लग गयी ,कुल मिलाकर घर की आमदनी बढ़ी। अब हमने माँ से कहना शुरू किया ,कि अब अपने ऊपर काम का अतिरिक्त बोझ न डालें। बाहर भी घूमने -फिरने जाया करे ,लोगों से भी मिला -जुला करें। उन्होंने अपने को काम में इतना झोंक दिया था ,कि उनकी कोई सहेली भी नहीं थी। आस -पड़ोस में मिलना -जुलना शुरू किया।एक दिन पड़ोस की भाभी जी कहने लगी -कि आप भी हमारे साथ किट्टी ज्वाइन कर लें। माँ ने जब हमें बताया ,मैंने जबरदस्ती उनसे हाँ कहलवाया। वे अनमने मन से मान गईं।
वे नियत समय पर तैयार हो कर गई। पहली किट्टी पार्टी में से आई ,तो हम उनका मुँह देख रहेथे। वो खुश थी ,आकर हमें सारी बातें बताईं।कैसे वो लोग खेल खेलती हैं ख़ुश होती हैं उनके लिए सब नया -नया था। इस तरह वो हर किट्टी में जानें लगी ,लेकिन कुछ दिन बाद वे उससे बोर हो गईं। हमने इसका कारण पूछा -तो वो बोली उन पार्टियों का कोई उद्देश्य नहीं है। सिर्फ़ पैसे वाली महिलाएं आती हैं ,और तम्बोला खेलती हैं ,जीतती -हारती हैं पैसे की कोई क़द्र नहीं ,नयी -नयी पोशाकों की नुमाइश ,जो पैसा वो उड़ाती हैं। पैसा कहाँ से आता है ,और कैसे उन्हें नहीं मालूम। पार्टी तो उनका समय गुज़ारने का एक ज़रिया है। लेकिन
हमारा पैसा तो मेहनत का है ,न जानें कितने रात -दिन इसे कमाने में गुज़ार दिए ,मै ऐसे हीनहीं बहा सकती।
कुछ दिन बाद माँ ने जाना बंद कर दिया। हमने भी नहीं पूछा। कुछ समय बाद हमारे घर के बाहर एक बोर्ड दिखा। [ hobby classes ]ग़रीब विद्यार्थियों के लिए मुफ़्त शिक्षा। अब हमें माँ के जीवन का उद्देश्य मालूम था।