Qabr ki citthiyan [part 38]

सरकारी टीम की प्रमुख अधिकारिणी ''नलिनी देशमुख ''साइबर टीम की मुख्य फ़ाइल का पता लगाकर ,रात्रि में ही, रवि और नलिनी, जब दोनों'' ब्लैक हिल'' के पास बने,एक पुराने पुस्तकालय पहुँचे,उनके वहां पहुंचते ही,  वहां का दरवाज़ा अपने आप खुल गया, वे लोग उसके अंदर आये ,उस पुस्तकालय के अंदर धूल भरी अलमारियाँ थीं, जिनमें हजारों पन्ने, सड़े हुए नोट्स, अधूरे उपन्यास पड़े थे।

नलिनी ने एक बंडल उठाया।जिसके कवर पर लिखा था — “लेखक: अज्ञात”उसने पन्ने पलटे —हर पंक्ति अधूरी थी,लेकिन आख़िरी पेज पर लिखा था —“अगर यह कहानी तुम्हें मिले,तो समझो मैं अब भी जिंदा हूँ।”उसके नीचे वही निशान था —'वाच-सत्ता' का चिन्ह।


रवि धीरे से बोला -“यह उसी का काम हो सकता है ,यह वही हस्तलिपि है, जो काव्या की थी।”

नलिनी ने आश्चर्य से कहा - यह कैसे संभव हो सकता है? काव्या तो मर चुकी  है।”

रवि हँसा —“काव्या मरी नहीं थी, नलिनी… वो तो बस कहानी बन गई है।”

उसी पल, कमरे के मध्य में मेज़ पर रखी , एक मोमबत्ती अचानक जल उठी।उसकी लपटें  स्थिर नहीं थी —
वो हिल रही थी, जैसे किसी ने फूँक मारी हो।

काव्या की दीवार पर एक परछाईं बनी —वही चेहरा, वही आँखें,किन्तु अब उसका सम्पूर्ण अस्तित्व स्याही में बदल चुका था, अब वो पूरी तरह स्याही से बनी हुई थी। फुसफुसाहट जैसी ,उसकी आवाज़ आई -“रवि, अब मत खोजो !हर लेखक का अंत उसके शब्दों में लिखा होता है।”

रवि ठहर गया और उसने उस स्याही की परछाई से प्रश्न किया -“काव्या… क्या तुम ही ये ‘अनलिखा नाम’ हो?”

उसकी परछाई हिली और ऐसा आभास हुआ ,जैसे वो मुस्कुरा रही है, वही फुसफुसाहट भरा स्वर उभरा -“नहीं,मैं तो सिर्फ़ उसका हिस्सा हूँ।वो नाम, वो है जो हर कहानी के पहले लेखक ने लिखा था।वो नाम जिसने शब्दों को जीवित किया है।”

तभी कमरे की दीवारों से जैसे स्याही बहने लगी ,हर अक्षर ज़मीन पर गिरकर लहरों में बदल रहा था।
रवि ने देखा, स्याही की सतह पर आकृतियाँ उभर रही थीं —एक प्राचीन ऋषि, तांबे की पट्टिका और वही शब्द —“कथा।”

वाच-सत्ता की आवाज़ गूँजी —“जिसने मुझे लिखा, उसका नाम कभी किसी ने नहीं जाना,क्योंकि वो नाम ही मेरी जड़ है।जो उसे बोलेगा, वो कहानी में समा जाएगा।”

नलिनी अब घबराई हुई थी ,तब वो बोली -“रवि ! अब  हमें यहाँ से जाना होगा!”

“नहीं,” रवि ने दृढ़ता से कहा।“अगर हम भागे, तो श्राप फैल जाएगा ,हमें उसे समाप्त करना होगा।”तब वह आगे बढ़ा,स्याही के तालाब के मध्य  में उसे एक धातु का बहुत पुराना जंग लगा हुआ पेन पड़ा मिला —जिस पर बहुत ही बारीक़ कुछ लिखा हुआ था ,रवि ने उसे ध्यान से देखा,उस पर '' वैतान्य ''शब्द  खुदा  हुआ था — उस शब्द को पढ़कर रवि बोला -ये तो वही नाम है , जो हमने काव्या की नोट्स में पढ़ा था।

रवि ने समझ गया  — ये अवश्य ही उस पहले लेखक का नाम होगा किन्तु उसने,जैसे ही उस नाम को  छुआ, नीचे फैली स्याही की सतह में हलचल हुई, उस स्याही के तालाब में एक चेहरा उभरा —वह चेहरा और किसी का नहीं ,'' ऋषि वैतान्य''का था ,अचानक वो चेहरा बोल उठा ,“तुमने मेरा नाम लिखा… अब तुम मेरा रूप बनोगे।”इससे पहले की रवि कुछ समझ पाता ,क्षणभर में ही पूरा कमरा स्याही से भर गया।रवि चीखा — “नहीं!!” किन्तु तभी नलिनी ने उसका हाथ पकड़ लिया और रवि को समझाते हुए बोली -“रवि, सुनो! अगर श्राप नाम से शुरू हुआ है, तो उसे नाम से ही खत्म किया जा सकता है!”

उसने ज़मीन पर पड़ी पुरानी पट्टिका उठाई और कहा -“काव्या ने लिखा था — जो लेखक अपने नाम के बिना लिखेगा, वही इस श्राप को तोड़ेगा!

रवि ने काँपते हाथों से पेन उठाया,तभी स्याही की लहरें उसके चारों ओर घूमने लगीं ,साहस करके वो चिल्लाया —“मैं अपना नाम मिटा रहा हूँ!”

उसने दीवार पर लिखा —“लेखक: कोई नहीं।”जैसे ही उसने आख़िरी शब्द लिखा,पूरा हॉल कांप उठा।लपटें नीली हुईं,स्याही हवा में विलीन होने लगी। शांति छा गई।जब नलिनी ने आँखें खोलीं -कमरा खाली था।स्याही गायब थी,पट्टिका धूल में बदल चुकी थी।सिर्फ़ एक पन्ना पड़ा था,जिस पर लिखा था —

“कब्र की चिट्ठियाँ
लेखक: अनलिखा।”

उसने वह पन्ना उठाया,पन्ना गरम था — जैसे किसी ने अभी लिखा हो।उसे महसूस हुआ कि उसकी उंगलियों पर कुछ जलने लगा है।वही चिन्ह फिर उभरा और उसी क्षण, हवा में रवि की आवाज़ गूँजी —“श्राप खत्म नहीं हुआ, नलिनी…वो बस रूप बदल चुका है।”

अगले दिन सुबह अख़बार की हेडलाइन थी —“ब्लैक हिल ''पुस्तकालय में लगी आग — दो लोग लापता।”पुलिस को राख में एक ही चीज़ मिली —एक डायरी।उसके पहले पेज पर लिखा था —“कब्र की चिट्ठियाँ – भाग 38: अनलिखा नाम”और नीचे —“अगर तुम ये पढ़ रहे हो, तो अब कहानी तुम्हारे भीतर है।”

लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई।दो दिनों के पश्चात , दिल्ली के एक पब्लिशिंग हाउस को एक पैकेट मिला —अंदर वही पांडुलिपि थी —पूरा उपन्यास “कब्र की चिट्ठियाँ”।कवर पर कोई नाम नहीं था।बस यही लिखा था —“लेखक: अनलिखा।”एडिटर ने मुस्कराते हुए कहा -“यह तो कमाल का रहस्य है… चलो ! इसे प्रिंट कराते हैं।”और उसी रात,ऑफिस की लाइट अपने आप झपकने लगी।सिस्टम चालू हुआ।स्क्रीन पर खुद-ब-खुद टाइप हुआ —“भाग 39 – पुनर्जन्म।”

कमरे में धीमी फुसफुसाहट गूँजी —“हर कहानी को पाठक चाहिए,और हर पाठक एक नया जन्म लेता है ”अब इस आधुनिक युग में ब्रह्माण्ड में' श्राप डिजिटल रूप में' दुनिया की नसों में समा चुका है ,अब ये ड़र किसी स्याही, किसी पुरानी कब्र, या किताब में नहीं, बल्कि डेटा, कोड और आवाज़ों में सांस लेता है।जहाँ भय अब किसी इंसान से नहीं, इंसान के बनाए सिस्टम से आता है। “ब्लैक हिल”में लगी आग को,अब तीन महीने बीत चुके थे ,सरकारी रिपोर्ट में लिखा था —“रवि और नलिनी दोनों लापता।पुस्तकालय जलकर राख हो चुका था, किसी के भी शव का पता नहीं चला।”मामला बंद कर दिया गया लेकिन कहानी तब खत्म नहीं हुई थी क्योंकि उस आग से कुछ और भी बच निकला था —एक डेटा फाइल।

दिल्ली में एक “इनसाइट पब्लिकेशन हाउस था ”कंपनी के डिजिटल एडिटर विराज ने उस सुबह अपने सिस्टम में एक ईमेल देखा —कोई भेजने वाला नहीं था। विषय से संबंधित एक लाइन थी —“क़ब्र_की _चिट्ठियां'' वह चौंका।कोई अटैचमेंट बिना सेंडर के कैसे आ सकता है ?फिर भी उसने डाउनलोड पर क्लिक किया।फ़ाइल खुली —पहला पेज वही पुरानी टाइपिंग स्टाइल, वही तरीक़ा , वही शीर्षक:“कब्र की चिट्ठियाँ – लेखक: अनलिखा।”

नीचे लिखा था:“जहाँ कहानी खत्म हुई थी,वहीं से मैं शुरू हो रही हूँ।”विराज हँस पड़ा —“किसी ने हॉरर स्टंट करने के लिए बढ़िया तरीका चुना है।”उसे अंदाज़ा नहीं था — यह हँसी उसके जीवन की आख़िरी बेफ़िक्र हंसी थी।



laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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