Klesh

गिरधारी लाल जी ,जब तो सही -सलामत थे, किन्तु जबसे खेतों से आये हैं ,उनकी तबियत बिगड़ती जा रही है। जा दीपक ! डॉक्टर को बुला ला ,जितेंद्र ने अपने बेटे से कहा। 

जी पिताजी !कहकर जब दीपक आगे बढ़ा ,तब जितेंद्र ने अपने बेटे को आवाज लगाते हुए कहा - इनके घर जाकर भी, इनकी ख़बर इनके घरवालों को दे देना।

 जी..... कहता आऊंगा, कहते हुए दीपक अपनी साईकिल से आगे बढ़ गया।

भाई जी ,अब तबियत कैसी लग रही है ? 


पता नहीं,चक्कर सा आ रहा है ,ला एक बार हुक्का और पिला दे और थोड़ा पानी भी.... 

जी अभी लाया। वैसे ये तो बताइये !आज सुबह कुछ खाया था या नहीं ,त्यौहार का दिन है। गिरधारी लाल जी अब उससे कैसे कहें ?छोटी बहु ने, तो घर में आज सुबह से ही क्लेश कर दिया ,खाने को कहाँ से मिलता ? उस क्लेश से मुक्ति पाने के लिए ही तो खेतों में आ गया था ,मुझे क्या मालूम था ?जब शांति नहीं मिलनी थी ,तो नहीं मिली। वहां जाकर देखा ,खेतों में फसल की गड्डी बनाकर रखी थीं ,छोटे से कहा था -इन्हें धूप में फैला देना, किन्तु उसने भी मेरी कहाँ सुनी ?उन्हें ही उठाकर फैला रहा था। तभी अचानक चक्कर आया ,तो पानी पीया ,थोड़ी चिलम भी गर्म की थी ,तब भी राहत न मिली, तो घर वापस लौटने  की सोची किन्तु हिम्मत जबाब दे गयी। तब गांव का जितेंद्र मिल गया, मेरी हालत देख ,मुझे अपनी बुग्गी [भैंसा गाड़ी ]में बैठा लाया। 

क्या हुआ ? भाई जी क्या सोच रहे हो ?  आपने कोई जबाब नहीं दिया ,जैसे ही वो उनके नज़दीक आया ,उसने देखा ,गिरधारी लाल जी बेसुध पड़े थे। वह घबरा गया और सोचने लगा ,इन्हें कहीं मेरे यहां ही, कुछ हो न जाये ,इसीलिए बेचैनी से दीपक को देखने के लिए बाहर आया ,बुदबुदाया -ये लड़का अभी तक नहीं आया ,कहीं और किसी काम में न लग जाये। 

कुछ देर में ही दीपक गिरधारी लाल जी के परिवार और डॉक्टर के साथ आता दिखलाई दिया ,तब जितेंद्र ने चैन की साँस ली। 

डॉक्टर ने आते ही, गिरधारी लाल जी का मुआयना किया, और उनके घर वालों से और जितेंद्र से पूछा है क्या इन्होंने कुछ खाया है ?

 घरवाले एक दूसरे का मुंह देख रहे थे, क्योंकि वे जानते ही नहीं थे, कि गिरधारी लाल जी भूखे पेट ही  घर से निकल गए थे तभी जितेंद्र बोला -मेरे साथ तो इन्होंने, पानी पिया है और अपने खेत में हुक्का पी रहे थे, इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं जानता।

 डॉक्टर ने जांच करने पर पाया, इन पर तो जहर का असर है , तब उसने, उनके शरीर की, जांच की शायद किसी कीड़े ने काटा हो। उनके हाथ की , उंगलियों में थोड़ा सा खून निकला हुआ था। डॉक्टर ने कहा -मुझे लगता है, इन्हें अवश्य ही किसी जहरीले कीड़े ने काट लिया है, मैं इंजेक्शन लगा देता हूं, इन्हें तुरंत किसी ऐसे व्यक्ति के पास ले जाइए, जो जहर निकालने का कार्य करता है। 

आनन -फानन में ट्रैक्टर तैयार किया गया, और उसमें गिरधारी लाल जी को लिटाया गया। क्षण भर में ही पूरे गांव में यह खबर फैल गई कि गिरधारी लाल जी को, सांप ने या किसी जहरीले कीड़े ने काट लिया है। परिवार के सभी मर्द इकट्ठा होकर,  गिरधारी लाल जी को शहर में दिखाने के लिए ले गए। महिलाएं उदास चेहरे से घर में वापस आ गईं । अब घर में शांति थी, किंतु मन में अभी भी' क्लेश' था।

 शरबती जी को तो, न जाने क्या हो गया था, उनका चेहरा गंभीर और कठोर हो गया था , उन्हें शायद किसी अनहोनी का पूर्वाभास हो गया था। मन ही मन सोच रही थीं -ऐसी दुर्गति से तो वह चला ही जाए, वही ठीक है , आज रक्षाबंधन का त्यौहार है, बेटियों को घर आना होता है। गिरधारी लाल जी जानते थे, कि बेटे तो बेटियों को एक पैसा देने वाले नहीं हैं और वे जो भी लाएगीं , उन्हें भी खा लेंगे, बेटियों को देते हुए जोर पड़ता है इसलिए उन्होंने बेटों पर कभी दबाव नहीं बनाया। अपने खेती की आमदनी में ही, थोड़ा पैसा जोड़कर रखते थे, ताकि बेटी आए, तो वे उसे दे सकें , वे इस घर से खाली हाथ न जाएं  , उन दिनों गांव में बहुत चोरियां हो रही थीं ,इसीलिए उन्होंने छोटे बेटे पर विश्वास करके , वह पैसा उसे दे दिया था और उससे कहा था -जब तेरी बहन आएगी, तो रक्षाबंधन के नाम के यह पैसे उसे दे देना। 

गिरधारी लाल जी, बेटे तपेश को वह पैसा देकर निश्चिं त हो गए, जिस दिन रक्षाबंधन आया तो उन्होंने उस पैसे का जिक्र किया और तपेश से कहा -वे पैसे मुझे लाकर दे दे ! ताकि बेटी और दामाद को विदाई के समय दे सको। उनकी बात सुनकर तपेश घर के अंदर गया और कुछ देर पश्चात खाली हाथ वापस आया। क्या हुआ पैसे क्यों नहीं लाया ? गिरधारी लाल जी ने तपेश से पूछा। 

पैसे कहां से लाऊं ? मैंने तो डिब्बे में ,संभाल कर रखे थे, किंतु अब उससे पूछ रहा हूं, तो कहती है -मैंने तो उन पैसों से साड़ी ले ली ! यह बात जब तक तपेश की बीवी को पता चली, तो वह भड़क गई और बोली -मुझे क्या मालूम था ? वे पैसे तुम्हारे नहीं है , मैंने सोचा तुमने खेती की कमाई से होंगे, इसीलिए मैंने साड़ी खरीद ली। 

किंतु बहू !तुम्हें पैसे खर्च करने से पहले पूछना तो चाहिए था,गिरधारी लाल जी ने पूछा ,अब बेटियां घर में आएँगी ,उनके हाथ पर क्या रखेंगे ?तुम लोगों से तो कोई उम्मीद नहीं थी ,तुम्हारे तो अपने खर्चे ही पूरे नहीं होते ,मेहमान और बेटियों के पैसे भी उठा लिये उन्होंने तपेश से कहा। तपेश की बहु वहीं दीवार के पीछे खड़ी होकर कान लगाए, अपने ससुर की बातें सुन रही थी। 

दीवार से बाहर आ ,चिल्लाते हुए बोली -हम अपने पेट पर पट्टी बांध लें ,इसकी धिओं का पेट ही नहीं भरता ,उनके घर में क्या कमी है ?अच्छे से अच्छा खा रहीं हैं ,यहाँ से भी ढ़ो रहीं हैं। 

गिरधारी लाल जी ने ,बहु के तेवर देखे तो वहां से आ गए और तपेश से बोले -तूने इसे इतनी छूट दे रखी है ,इसे छोटे -बड़े का लिहाज़ भी नहीं रहा। अब बेटियां त्यौहार के दिन घर आएँगी ,उनके हाथ पर क्या रखेगा ?आज इस तरह अचानक  किसी से उधार मिलने की भी उम्मीद नहीं ,मैंने इसे पैसे देकर बहुत बड़ी गलती कर दी। सोचते हुए ,दुःखी मन, घर से बाहर निकल गए और खेतों में जाकर काम करने लगे। 

कुछ घंटों के पश्चात, गिरधर जी की लाश, घर के बाहर आ गई , उन लोगों ने बताया -गिरधारी जी को किसी विषैले जीव ने काटा है और वह इतना विषैला था , सपेरे ने भी, उनका जहर निकालने के लिए मना कर दिया। पूरे शरीर में जहर फैल चुका था, यदि शीघ्र ले आते, तो शायद यह बच जाते , घर की महिलाएं गिरधारी जी की मौत पर रोने लगीं। कुछ देर पश्चात त्यौहार मनाने के लिए बेटियां भी आ गई, किंतु उन्हें क्या मालूम था ? उनकी चिंता में ही, उनके पिता की जान चली गई , कौन जाने ? घर के' क्लेश' से मुक्त होने के लिए उन्होंने किसी को कुछ बताया ही न हो, कि उन्हें किसी जीव ने काटा है, क्योंकि यदि कोई का टता है तो इंसान को पता चल जाता है। सरस्वती जी, अपनी बेटियों से बोली -चलो !अच्छा हुआ मुक्त हो गया, कहते हुए उनकी जिंदगी तो बन गई और इस नर्क में, मुझ अकेली को छोड़ गया। 

बेटियां पूछ रही थी -पिताजी को क्या हुआ था ? त्योहार के दिन उन्हें काम करने के लिए क्यों भेजा था ? अनेक प्रश्न उनके मन में थे किंतु ऐसे वातावरण में, कौन उनके सवालों का जवाब दे ? इज्जत की खातिर, एक बाप ने, अपनी जान गँवा दी। मेहमान और बेटियां आएंगे, तो उनका स्वागत कैसे होगा ?इसी चिंता में वह चले गए या फिर घर का ये अपमान और क्लेश उन्हें ले गया।  

इस समय छोटी बहू, जिस दिन यह सब क्लेश पढ़ाया था, वह गाड़ी मार मार कर रो रही थी। सरस्वती जी सोच रही थी - यह इसी का करवाया हुआ क्लेश है और अब दुनिया को दिखाने के लिए, दाढ़ी मार कर रो रही है , जैसे ही इसे, हमारी बड़ी चिंता थी इसके क्लेश ने, त्यौहार का तो सर्वनाश कर ही दिया मुझे भी विधवा बना दिया और अपने जाने, मेरी जिंदगी में क्या भूचाल मचाएगी ? कई बार कई बार लोग, दिखाते कुछ और हैं और होते कुछ और हैं और यदि घर में क्लेश बना रहे, तो सुकून से नए वह आदमी रह पाता है और ना दूसरों को रहने देता है। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post