Qabr ki chitthiyan [part 50]

अभी वे लोग ,यही सोच रहे थे ,कि हत्यारा कौन हो सकता है ?और दीप्ती से जानना चाहते थे कि उसके साथ दूसरा व्यक्ति कौन था किन्तु दीप्ती उसका नाम लेने से भी ड़र रही थी,इससे पहले कि वो किसी का नाम लेती ,तभी हवेली की दूसरी मंजिल में धमाका हुआ और एक परछाई उन्हें आती दिखलाई दी ,जिसे देखकर अनाया ने धीरे से गौरांश से पूछा—“गौरांश…! वह कौन है ?”

उसे देखकर ,गौरांश की भी आश्चर्य से आँखें फैल गईं—“नहीं…यह असंभव है…”


कदमों की आवाज़ ठीक उनके सामने आकर रुकी और अंधेरे से निकलकर वह आदमी उन्हें दिखलाई दिया—एक लंबा, सफ़ेद दाढ़ी वाला,काली आँखों वाला,सूट पहना हुआ व्यक्ति—जिसे देखकर दीप्ति ने इतनी जोर से चीख मारी कि कमरे की हवा तक काँप गई।“नहीं!नहीं!!ये नहीं हो सकता!!”

कबीर ने काँपते हुए पूछा—“ये… ये कौन है?”

गौरांश की आवाज़ फटी—“यह…वह इंसान है, जिसे गौरव ने देखा था,जिससे वह रात भर भागता रहा…और जिसने—रिद्धिमा के पिता को मारा।”

अनाया धीरे से बोली—“इसका नाम बताओ, गौरांश…!”

गौरांश ने कहा—“वह…रिद्धिमा का असली पिता नहीं…है ,बल्कि उसका सौतेला पिता—''शेखर राजपूत'' है ”रिद्धिमा के पैरों तले से जमीन खिसक गई।

शेखर शांत खड़ा था,उसकी आँखों में डर नहीं—बल्कि घिनौना सुकून था। आख़िर इतनी मेहनत से तुम बच्चों ने मुझे ढूँढ ही लिया,”उसकी आवाज़ बहुत खतरनाक शांति से भरी थी।

दीप्ति जमीन पर बैठ गई।“मैं… मैंने कहा था,न …मैं उसका नाम नहीं ले सकती…”

शेखर ने उसकी ओर देखा,और एक हल्की मुस्कान के साथ कहा -“तुमने सही किया, दीप्ति !अगर तुम नाम लेती…तो तुम ,आज जिंदा नहीं होती।”

अनाया ने फुसफुसा कर पूछा —“ क्या ये आदमी…वही है…जिससे सब डर रहे थे…?”

कबीर आगे बढ़ा—“तुमने गौरव को देखा है, न..... ?उसने ऐसा क्या देखा था ,जो तुमने उसे मार दिया ?”

शेखर ने निर्लज्जता से कहा—“गौरव ने वह देखा जो उसकी औक़ात में नहीं था—मेरे ग़ैरकानूनी धंधे ,मेरे लोग,मेरा पैसा ,मेरी पावर !”उसे सब पता चल गया था ,जो उसे पता नहीं चलना चाहिए था। 

रिद्धिमा की आँखों में आँसू थे ,वो बोली - तुमने…मेरे पापा को क्यों मार दिया…?”

शेखर की आँखों में क्षणभर के लिए भी अपराधबोध  नहीं था ,बोला —“वो उस लड़के को बचाने की कोशिश कर रहा था ,मुझे यह पसंद नहीं आया।”

अनाया चिल्लाई—“तुम दानव हो !”

शेखर हँस पड़ा—“दानव?नहीं…मैं नेता हूँ, अनाया ! और राजनीति में जो सच देख ले…वह कभी ज़िंदा नहीं बचता।”

गौरांश आगे बढ़ा—“ साया ?तुम उससे क्यों डरते हो?”

शेखर पहली बार थोड़ा पीछे हट गया “क्योंकि…”उसकी आवाज़ थोड़ी भारी हो गई,“वह… मेरी गलती है।मैंने उसे मारा ,उसका ख़ून मेरे हाथों पर है। 

”साया आगे आया,कमरा बर्फ़ की तरह ठंडा हो गया। शेखर पीछे हटने लगा—“नहीं…तुम नहीं…यह तुम्हारे लौटने का समय नहीं…”पर साया बिलकुल नहीं रुका,क्रोध से उसकी आँखें जलने लगीं ,उसके चेहरे पर' पहचान का दर्द' और 'बदले की आग' स्पष्ट थी,उसने अपना हाथ उठाया।

शेखर डर से काँप गया,“नहीं… नहीं ! मैंने जो किया… वह मेरे धंधे के लिए उचित था। अब  तुम… तुम इंसान नहीं…तुम कुछ भी नहीं—अब तुम मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते ”साया उसकी ओर झपटा और शेखर चीख उठा और कमरे में हर चीज़ अंधकार में  डूब गई।

कमरे में अंधेरा पसरा हुआ था,इतना गाढ़ा अंधेरा कि जैसे वह सिर्फ रोशनी ही नहीं साँस, धड़कन, उम्मीद—सब निगल रहा हो।शेखर की चीखें कुछ सेकंड तक हवेली में गूँजती रहीं…और फिर अचानक पूरी हवेली खामोश हो गई ,इतनी खामोश मानो, किसी ने समय का गला दबा दिया हो।

कबीर ने हाँफते हुए कहा—“लाइट… कोई लाइट जलाओ !…”

अनाया ने काँपते हाथों से टॉर्च का बटन दबाया,शायद टॉर्च बह घबराई थी, बहुत मुश्किल से रोशनी जली।और उस रौशनी में जो दिखा…उससे दीप्ति चीखते-चीखते पीछे जा गिरी।

'शेखर राजपूत',फर्श पर पड़ा हुआ था,उसकी आँखें खुली थीं ,पर उनमें अब कोई चमक नहीं थी ,उसके चेहरे पर उसी तरह की खरोंचें थीं जैसी रिद्धिमा के पिता के शरीर पर मिली थीं।

कबीर फुसफुसाया—“ये… ये तो वैसे ही निशान हैं।”

गौरांश ने सिर हिलाया—“साया ने उसे भी…उसी तरह मारा ,जिस तरह उसे मारा गया था।”

रिद्धिमा धीरे-धीरे आगे बढ़ी, उसका पूरा शरीर काँप रहा था।"ये… यही था, जिसने मेरे पिता को…?"उसकी आवाज़ टूट गई।

गौरांश ने सिर झुका लिया—“हाँ।”

रिद्धिमा ने घुटनों पर बैठकर रोते हुए कहा—“तुम्हें ये सज़ा…बहुत पहले मिल जानी चाहिए थी।”

अनाया ने धीरे से पूछा—“साया… कहाँ गया?”

गौरांश ने चारों ओर देखा—कमरा खाली था,कोई कदमों की आवाज़ नहीं,कोई साया नहीं,वहां कुछ भी नहीं था ,बस एक गंध जैसे पुरानी मौत अभी भी कमरे में मंडरा रही हो।“वह चला गया,”गौरांश ने कहा।

कबीर ने पूछा—“इतनी आसानी से?उसने अपनी हत्या का बदला ले लिया और बस… चला गया?”

गौरांश की आवाज़ गहरी थी—“नहीं,वह इसलिए गया क्योंकि अभी उसके न्याय का एक हिस्सा पूरा हुआ है,पूरा नहीं।”

अनाया ने चौंककर पूछा—“मतलब… अभी कोई और भी…?”

गौरांश ने दीवार पर पड़े उन शब्दों की ओर देखा,जो रह-रहकर बदल रहे थे—“न्याय अधूरा है'' .अचानक दीवारों पर उभरे शब्द एक-एक कर अपनी जगह बदलने लगे।उनका खून जैसा रंग थोड़ा और गहरा हो गया।

दीप्ति ने डरकर कहा—“ये… ये दीवारें फिर ऐसा क्यों कर रही हैं?”

गौरांश आगे आया,उसने अपने हाथ से दीवार छुई और उसी पल दीवार पर बने शब्द जैसे किसी अदृश्य हाथ से फिर से लिखे जाने लगे।नए शब्द बनते गए—“तीन मौतें,!तीन गुनाहगार !एक बचा है।”

कबीर चौंक गया—“तीन मौतें? गौरव… रिद्धिमा के पिता… और शेखर?”

गौरांश ने दीवार पढ़ी—“नहीं,यह कह रहा है कि मौतें तो दो ही हुई थीं,गुनाहगार तीन थे और एक अभी जिंदा है।”

अनाया की आवाज़ काँपी—“मतलब… शेखर अकेला नहीं था।”

गौरांश ने साँस भरी—“हाँ,उसके साथ कोई और भी था,जिसने साए की हत्या में भी, भूमिका निभाई थी।”

दीप्ति चीख पड़ी—“उस रात…मैंने दो लोगों को देखा था !दो लोग भाग रहे थे!”

कबीर ने उसे पकड़ लिया—“कौन ? किसे देखा था, तुमने!?”

दीप्ति ने घबराते हुए आँखें बंद कर लीं—“मैं उसका चेहरा नहीं पहचान पाई ,पर उसकी आवाज़…वह आवाज़ मैंने कहीं सुनी है।”

अनाया ने पूछा—“कहाँ सुनी है? सोचो दीप्ति, सोचो!”

दीप्ति के आंसू बह निकले,“वह आवाज़…यहीं किसी की थी।”

सभी ने एक-दूसरे को देखा,कमरे में जो भी था—उसे महसूस हुआ कि सच अब बिल्कुल पास है, और ये एक बहुत ही डरावना सच होगा।  अचानक नीचे—तहखाने की दिशा से किसी के कदमों की आवाज़ आई।धीमी… भारी… गूँजती हुई क़दमों की आहट !

कबीर चिल्लाया—“उधर कौन है ?”

कोई जवाब नहीं आया ,किन्तु  कदमों की गति बढ़ती गई।

अनाया ने गौरांश का हाथ थामा—“हम… हम नीचे नहीं जाएँगे, ठीक?”

गौरांश ने कहा—“अगर नीचे कोई है जो इन सबका हिस्सा है…तो हम भाग नहीं सकते।”

रिद्धिमा दृढ़ आवाज़ में बोली—“मैं भी साथ चलूँगी,उसने मेरे पिता को मारा है,मैं उसे देखकर रहूँगी।”

कबीर और दीप्ति भी साथ हो गए,सभी ने मिलकर मोमबत्ती उठाई और तहखाने की ओर बढ़े,जैसे-जैसे वे नीचे जाते सीढ़ियाँ और ठंडी होती जातीं,हवा भारी होती जाती और कदमों की आवाज़ अब बिल्कुल पास थी .तहखाने में बहुत अँधेरा था,मोमबत्ती की रोशनी बस कुछ फीट आगे तक ही पहुँच सकती थी।



laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post