Qabr ki chitthiyan [part 48]

हवेली की ऊपरी मंज़िल की टूटी खिड़की से आती हुई हवा,अब एक सामान्य हवा नहीं रही थी। वो ठंडक  ऐसी थी जो माँस ही नहीं, आत्मा तक को जमा दे।साया अब सीढ़ियों के बिलकुल क़रीब था।उसकी धुँधली परछाईं हर कदम के साथ और गहरी,और जीवित होती जा रही थी।

कबीर, अनाया, दीप्ति, रिद्धिमा और गौरांश—सब खामोश खड़े थे ,किसी की भी आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हो रही थी। साया ठीक सीढ़ियों के आखिरी पायदान पर आकर रुका…और उसने सिर उठाया।


उन आँखों में कोई सफेद हिस्सा नहीं था—सिर्फ काले गड्ढे थे ,जो मानो हर व्यक्ति की आत्मा को छूकर यह जानना चाहते हों कि किसका दिल एक भले इंसान जैसा साफ़ नहीं है।गौरांश ने धीमे स्वर में कहा—“अगर हम भागे,तो वह हम सबको और करीब से जाँचने आएगा और उसका पहला शिकार वही होगा ,जिसने सच सबसे ज्यादा छिपाया है।”उस एक वाक्य ने कमरे के तापमान को और नीचे गिरा दिया।

कबीर घबरा गया और उसने रिद्धिमा का हाथ मजबूती से पकड़ा—भय से नहीं, बल्कि इस शक से, कि कहीं वह अकेला न पड़ जाए। उस साये ने जैसे सबकी भावनाएँ पढ़ लीं ,उसने अपना परछाईं जैसा हाथ उठाया और कमरे की ओर इशारा किया—“गुनहगार यहीं है…”

उसकी आवाज़ हवा में कंपन की तरह गूँज रही थी, अचानक हवेली का मुख्य दरवाज़ाअपने आप  खुल गया और बाहर से आती तेज़ हवा ने अपना असर दिखलाया ,दीवारों पर लगे पुराने फ्रेमों को गिराया जिसके कारण काँच का हर टुकड़ा जमीन पर गिरकर ऐसा बजा जैसे कोई पुराना राग, डरावना भूला हुआ राग बजा हो। 

दीप्ति घबरा गई—“क्या—क्या वह हमें बाहर बुला रहा है?”

गौरांश बोला—“नहीं… वह हमें बचा रहा है।”

कबीर चौंक गया—“क्या मतलब ?वह तो—भूत है न..... ?” वो हमें कैसे बचाएगा ?

गौरांश ने साए की ओर देखते हुए कहा—“भूत… वह होता है,जो किसी और की मौत का कारण बने किन्तु  ये ऐसा भूत है,  यह…किसी को बचाने आया है ,यह साया…न्याय चाहता है।”

रिद्धिमा की आँखें भीग गईं—“मेरे पिता हमेशा से ऐसे ही थे,सही को सही और गलत को गलत ,शायद… मौत के बाद भी उनकी वो अच्छाई समाप्त नहीं हुई। 

अनाया ने तुरंत कहा—“तो हमें उस अपराधी को ढूँढना होगा जिसे यह साया खोज रहा है!”

उस साये  ने जैसे उसकी बात सुन ली,उसकी परछाईं थोड़ी और आगे बढ़ी—और कमरे की खिड़कियों के काँच जमीन पर गिरकर चटक  गए।गौरांश अचानक बोला—“उसे उस कमरे में ले चलो !जहाँ पहली मौत हुई थी।”

कबीर ने पूछा—“गौरव वाले कमरे में?”

“हाँ।”

अनाया आगे बढ़ी—“चलो !”

साया धीरे-धीरे उनका पीछा करने लगा ,ऐसा लग रहा था,जैसे वो उस साये को रास्ता दिखा रहे हों और वो भी  चाहता है कि ये सब भी गवाह बनें। एक साथ सभी उस जगह गए ,जहाँ सच दफनाया गया था।

सीढ़ियाँ चढ़ते हुए हर कदम की आवाज़ साए के कदमों की आवाज़ से कई गुना गूँजती, सीढ़ियों को पार करके वे उस कमरे में पहुंच गए जहाँ 18 साल पहले गौरव की मौत का निर्णय हुआ था। वह असामान्य रूप से कमरा ठंडा था।

दीवारों पर खून जैसे निशान ,टूटी मेज़,बिखरे कागज़ और एक पुरानी दरार जो जमीन से शुरू होकर दीवार तक जाती थी।जैसे यही दरार गौरव के आखिरी शब्द अपने भीतर समेटे बैठी हो।कमरे में पहुँचते ही साया पूरी तरह गहरी छाया बन गया। उसकी उपस्थिति इतनी भारी थी कि वहां सांस लेना तक कठिन हो गया।

रिद्धिमा अचानक आगे बढ़ी ,उसकी आँखें आँसुओं से भर गईं,वह बोली —“पापा…आप मुझे सुन सकते हैं?”किसी ने उम्मीद नहीं की थी कि वह सीधा उस साए से इस तरह से बात करेगी।

वो आत्मा ,वो साया—जो कभी उसका पिता था—रिद्धिमा की ओर मुड़ा,कमरे का तापमान एकदम नीचे गिर गया।

रिद्धिमा ने रोते हुए कहा—पापा !मुझे माफ कर दीजिये ,“मैंने आपको मरते देखा था और मैं कुछ नहीं कर पाई।”

कबीर फुसफुसाया—“क्या?रिद्धिमा उस रात वहाँ थी?”

रिद्धिमा काँपते स्वर में  बोली—“हाँ,मैंने गौरव को भी देखा था,मेरे पिता उसे बचाने के लिए आगे आए थे किन्तु उससे पहले ही ”उसकी साँस टूट गई थी ।“लेकिन मैंने…उन लोगों का चेहरा देखा था जो उन्हें मार रहे थे।”

गौरांश चौंक गया—“तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया?”

रिद्धिमा दर्द में बोली—“क्योंकि तुम भी उन पर शक करते…और उन लोगों ने मुझे धमकाया था,कह रहे थे -''कि अगर मैंने किसी से भी कुछ बोला तो वे तुम सबको भी मार देंगे।”

क्रोध से कबीर की साँसें तेज़ हो गईं—“कौन थे, वे लोग !मुझे बताओ !”

रिद्धिमा ने धीरे से कहा—“उनमें से एक…कबीर के पिता थे।”

कमरा जैसे एकदम खामोश हो गया ,ऐसा खामोश!!! कि साए के अंदर की हवा तक सुनाई देने लगी।

कबीर की आँखों में आँसू थे—“न …नहीं  ये सब झूठ है।”लेकिन उसकी आवाज़ यकीन से ज्यादा डर से काँप रही थी।

साया अचानक कमरे के बीच आ गया ,चारों ओर की हवा घूमने लगी मानो कोई अदृश्य शक्ति18 साल पुरानी एक-एक तस्वीर वापस बनाना चाहती हो और फिर…कमरे की दीवार पर एक अजीब परछाईं उभरी।उस परछाईं में चार लोग दिख रहे थे—गौरव, गौरांश, रिद्धिमा के पिता और… एक आदमी जिसके चेहरे पर हर किसी की नज़र रुक गई।

कबीर ने उस चेहरे को देखा—और पथरा गया।वह आदमी ,उसका अपना पिता था ।

दीप्ति काँप गई—“ये… ये तो वही है!”अनाया ने कबीर का हाथ पकड़ा—“कबीर, तुम्हें संभलना होगा।”

कबीर की आँखें लाल हो गईं—“न… नहीं…मेरे पिता ने कुछ नहीं किया!वे निर्दोष हैं!”

उस साये ने धीरे से कहा—“निर्दोष वह नहीं…जिसे तुमने पिता कहा,निर्दोष वह था ,जो तुम्हारा बुरा नहीं चाहता था।”

गौरांश ने कहा—“कबीर…तुम्हें मानना होगा,तुम्हारे पिता…इस कहानी के' काले सच का हिस्सा' थे।”

कबीर ने सिर जोर से हिलाया—“नहीं!!अगर ऐसा होता तो उन्होंने मुझे इस हवेली से दूर क्यों रखा?क्यों यहाँ आने से मना किया? 

क्योंकि वो डरते थे कि कहीं तुम सच्चाई न  जान जाओ !?”अनाया ने उसकी ओर देखा—“यही तो वजह है, कबीर !वह चाहते थे,कि तुम यह सच कभी न जानो।”

कबीर जमीन पर  बैठ गया,उसका दिल टूट चुका था।साया अब गौरांश और रिद्धिमा की ओरधीरे-धीरे बढ़ा।

अनाया डरकर पीछे हटी—“अब वह क्या करने वाला है!?”

दीप्ति लगभग चीख उठी—“कोई कुछ करो!”

लेकिन गौरांश बोला—“रुको !वह हमें मारने नहीं आया है ।वो  हमें दिखाने आया है कि असली अपराधी कौन है।”

साया बीच कमरे में रुक गया और अचानक उसने अपना अदृश्य हाथ हवा में घुमाया।अंधेरा फैल गया—लेकिन वह अंधेरा वैसा नहीं था जो डर पैदा करे।वह अंधेरा…यादों से बना था और उन यादों से एक चेहरा उभरने लगा—कबीर के पिता का।कबीर की आँखों से आँसू बहने लगे।

साये  ने कहा—“गुनाहगार वही नहीं जो मार दे…गुनाहगार वह भी होता है ,जो मारने वालों के साथ खड़ा हो।”

अनाया, दीप्ति, गौरांश, और रिद्धिमा सब एक-दूसरे की ओर देखने लगे और साये ने आगे जो बताया , उससे सभी चौंक गए —“पर असली नेता…वह नहीं था।”

“फिर… कौन था?”कमरे की हवा तेज़ हो गई।खिड़कियाँ बंद हो गईं।दरवाज़ा लॉक हो गया और साया फुसफुसाया—“जिसका नाम तुम में से किसी ने आज तक लिया ही नहीं…”अचानक जमीन हिली।दीवार पर बनी पुरानी दरार धीरे-धीरे फैलने लगी और फटकर दो हिस्सों में विभाजित हो गई।दीवार के पीछे एक गुप्त कमरा उभरा—जिसमें पूरी तरह अंधेरा था। 

गौरांश ने घबराकर आश्चर्य से कहा—“यह कमरा तो …कभी हवेली में नहीं था।”


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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