Qabr ki chitthiyan [part 47]

रिद्धिमा क़ब्रगाह के ऊपर बनी हवेली,के मालिक की बेटी थी ,उसके दोस्त कबीर, अनाया और दीप्ति उस हवेली में घूम रहे थे ,तभी वे एक ऐसे कमरे की तरफ बढ़ते हैं ,जहाँ किसी का भी जाना वर्जित है। कबीर जैसे ही उधर बढ़ता है ,रिद्धिमा उसे रोकती है ,इससे पहले कि वो अपनी बात पूरी कर पाती, कबीर ने धक्का देकर उस कमरे का दरवाज़ा खोल दिया। 

अंदर…चारों दीवारों पर खून[लाल ] जैसे रंग से लिखे शब्द थे—“सच कभी मरता नहीं…वह बाहर आने का इंतज़ार करता है।”उस कमरे के बीच…अपने घुटनों को पकड़े कोई बैठा हुआ था। अभी वे लोग यही सोच रहे थे कि यह कौन हो सकता है ?धीरे-धीरे उसने अपना  सिर उठाया।


अनाया, दीप्ति और कबीर की साँसें रुक गईं। वहाँ —गौरव था ,जैसी गौरव की तस्वीर उन्होंने देखी थी वह लड़का भी हूबहू वैसा ही था, वैसा ही चेहरा,वैसी ही आँखें, वो ज़िंदा था।वे सभी अचम्भित थे ,कबीर ने धीमी आवाज़ में पूछा—“तुम… कौन हो?”

उस अजनबी के होंठ काँपे ,शायद वो उनकी घबराहट भांप गया था,बिना देरी किये बोला  “मैं… गौरव नहीं हूँ,मैं उसका जुड़वाँ भाई… गौरांश हूँ।”अनाया को लगा,''जैसे ज़मीन उसके पैरों के नीचे से खिसक गई है।''

“जुड़वाँ…?”दीप्ति ने अविश्वास में कहा।

गौरांश उठकर बोला—“हाँ,जिसे सबने मरा हुआ समझा…वह मैं नहीं था और जिसने मारा था—वह वापस आ चुका है।”

कबीर ने काँपते हुए पूछा—“कौन ? कौन है, वह?”

गौरांश ने कमरे की टूटी खिड़की से बाहर की तरफ इशारा किया—“जो अभी भी हवेली के बाहर खड़ा है और जिसे तुम्हारी डायरी ने वापस बुलाया है।”

अनाया, दीप्ति, रिद्धिमा…सब खिड़की की ओर मुड़े।बाहर एक आदमी खड़ा था …और अब धीमे -धीमे हवेली की ओर बढ़ रहा था ,उसकी आँखों में शून्यता थी ।

तब गौरांश बोला —“वह आदमी…''विष्णु रावत'' नहीं है।वह… उसका साया है,जिसे तुम मार नहीं सकते…क्योंकि वह पहले ही मर चुका है।”

हवेली के बाहर खड़ा वह साया…धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था।जैसे हर कदम के साथ उसका आकार थोड़ा और ठोस, थोड़ा और जीवित और थोड़ा और खतरनाक हो रहा हो।कमरे के भीतर मौजूद सभी लोग एक ही दिशा में देख रहे थे—उस खिड़की की ओर,जहाँ से काली आँधियों के मध्य सिर्फ एक ही आकृति स्पष्ट  दिखलाई दे रही थी।

गौरांश की साँसें हल्की-हल्की काँप रही थीं—उस डर से नहीं,बल्कि उसकी  पहचान से,जिसे वह दिल से मिटा नहीं पाया था।

अनाया ने उसकी ओर देखा—“गौरांश… वह कौन है ?गौरांश को चुप देखकर उसने फिर से पूछा -यह साया कौन है?”

गौरांश की आँखें उस धुँधले आदमी पर टिकी रहीं और फिर…उसने वह सच कहा,जो अब तक सिर्फ मौत जानती थी,—“वह वही है…जिसने गौरव को नहीं मारा—बल्कि जिसने गौरव को बचाने की कोशिश की थी।पर…अपनी ही मौत का शिकार हो गया।”

कबीर हक्का-बक्का रह गया।“ह… क्या ?मतलब… वह हत्यारा नहीं था?”

गौरांश ने सिर हिलाया—“नहीं।
वह शिकार था और जो शिकार बनता है…वह साया बनकर लौटता है।”अचानक हवेली की पुरानी दीवारें फिर से कराहने लगीं।दीवारों पर उकेरे गए खून जैसे शब्द अपनी जगह से बहने लगे—धीरे-धीरे…जैसे किसी भूत ने अपनी उँगली उन पर फेरकर उन्हें जगा दिया हो।

अनाया ने चौंककर कहा—“ये… ये क्या हो रहा है?”

दीप्ति ने फुसफुसा कर कहा —“ऐसा लग रहा है… जैसे ये दीवारें सब देख रही हों।”

गौरांश ने दीवारों को छुआ—पुरानी ईंटों की सतह ठंडी नहीं थी—बल्कि गर्म थी।

“यह घर…”उसने कहा,“यह सिर्फ जगह नहीं…यह एक गवाह है।यह जो कुछ जानता है…वह सब दिखाएगा।”

और तभी—दीवारों पर बहते शब्दधीरे-धीरे मिलकर एक वाक्य बने:

“सच लौट आया है,भागना अब संभव नहीं है ।”

कबीर ने घबराकर दरवाज़े की ओर देखा—लेकिन दरवाज़ा…अपने आप बंद हो गया। खिड़की से बाहर देखा तो—वह आदमी अब हवेली की सीढ़ियों पर था।उसका चेहरा धुँधला,आँखें खालीऔर कदम…मानो किसी और शक्ति द्वारा चलाए जा रहे हों।

रिद्धिमा ने गहरी आवाज़ में कहा—“अब वह इंसान नहीं रहा। वह… चेतना है,एक ऐसी चेतना जो अपनी मौत को नहीं भूली।”

कबीर ने उसके बाजू को पकड़ लिया—“रिद्धिमा! तुम ये सब कैसे जानती हो?तुम कौन हो ?”

रिद्धिमा ने धीमे, दुखी स्वर में कहा—“मैं…उस रात की आखिरी गवाह  हूँ।वह रात…जिसमें दो लोग मरे थे—
गौरव…और वह साया।”

कमरे में सन्नाटा पसर गया, गौरांश धीरे से आगे आया। उसकी आवाज़ टूटी हुई थी—“उस रात…गौरव ने कुछ ऐसा देख लिया था जो उसे नहीं देखना चाहिए था। वह हवेली के पीछे वाले कमरे में गया था—जहाँ कई बड़े लोग कुछ…ग़लत कर रहे थे। उन्होंने गौरव को देख लिया और उसका पीछा किया लेकिन उसी समय एक और आदमी आया—वह आदमी जो बाहर खड़ा है।”

अनाया ने पूछा—“वह कौन था?”

“वह…रिद्धिमा का असली पिता थे ।”रिद्धिमा ने आँखें नीचे कर लीं।“मेरे पिता…”उसकी आवाज़ काँप गई।“वो उन्हीं लोगों से दूर भाग रहा था।वे  बस गौरव को बचाना चाहते  थे लेकिन जिन्हें अपनी सच्चाई छुपानी थी…उन्होंने उसे मार दिया।”

दीप्ति को जैसे झटका लगा—“मतलब… उसके पिता ही वह साया हैं?”

रिद्धिमा ने आँसू पोंछते हुए कहा—“हाँ,पर वह साया…वापस क्यों आया है ? ये मुझे भी नहीं पता।”

अनाया को अचानक कुछ याद आया,“गौ… गौरांश,” उसने कहा,“तुम्हें लगा, कि गौरव की मौत एक हादसा नहीं थी…तो तुम अब तक कहाँ थे?”

गौरांश ने एक भारी साँस ली—“मैं छिपा हुआ था क्योंकि वे लोग…जिन्होंने गौरव को मारा था—वो मुझे भी मार देते और मेरे पास…एक और डायरी थी।”कमरे में सन्नाटा छा गया।

कबीर ने कहा—“और उसमें क्या लिखा था?”

गौरांश ने सिर झुकाया—“गौरव की मौत नहीं…बल्कि उन सबकी मौत का सच !जो उसकी वजह से होने वाली थी।”

सभी घबरा गए।अनाया ने आवाज़ धीमी करते हुए पूछा—“मतलब?”

“मतलब…वे जान चुके थे कि उनकी सच्चाई कब्र में नहीं दबी रहेगी और उन्होंने एक-एक कर सभी गवाहों को खत्म कर दिया।”

दीप्ति के गले से आवाज़ नहीं निकली “और… तुम्हारी डायरी?”

गौरांश ने कहा—“कब्रगाह के दूसरी तरफ दबी है और शायद…वही ये बताती है -कि वह साया क्यों लौटा है।”उसी पल—ज़मीन इतनी जोर से काँपी कि सभी लोग गिरते-गिरते बचे।लाइट्स झिलमिलाई,टॉर्च बुझ गई, मोमबत्तियाँ बुझ गयीं ।

अंधेरे में सिर्फ एक आवाज़ गूँजी—“कब्र की हर कहानी…अपने सच के लिए लौटती है।”

सबके दिल दहल गए,गौरांश काँप गया—“वह… हवेली के अंदर आ गया है…”

अनाया ने तुरंत टॉर्च दुबारा जलाने की कोशिश की,कबीर ने अपने माथे का पसीना पोंछा।रिद्धिमा ने दीवार पकड़ ली।अचानक—सीढ़ियों से धीरे-धीरे किसी के कदमों की आवाज़ आ रही थी- ।“ठक…”“ठक…”“ठक…”

बहुत धीरे से दीप्ती बोली -शायद कोई ऊपर आ रहा है ,कहते हुए दीप्ति ने अनाया का हाथ पकड़ लिया और फुसफुसाई -“हमें छुपना चाहिए…”

गौरांश ने लंबी साँस ली,“नहीं…वह किसी को मारने नहीं आया है।वह…किसी को खोज रहा है।”

कबीर चिल्लाया—“किसे!?”

गौरांश ने उसकी ओर देखा और बोला—“उसे उस इंसान की तलाश है…जिसने अपने अपराध को कब्र में भी नहीं छोड़ा और वह इंसान…हममें से एक है।”कमरे में बैठे सब लोग एक-दूसरे को घूरने लगे।

अनाया का दिल बैठने लगा—“मतलब…हमारे बीच… कोई अपराधी है?

”गौरांश बोला—“हाँ।”और तभी—वो साया ऊपर की मंज़िल तक पहुँच चुका था ,एकदम सामने दिखाई दिया।वह किसी को नहीं देख रहा था ,उसकी आँखें उन लोगों के चेहरों सिर्फ एक जगह घूमती रहीं, जो उस समय कमरे में मौजूद थे और उसने धीरे से कहा—“जिसे मैंने देखा था…वह यहीं है।”


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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