अब तक कहानी ने रहस्य, मृत्यु, और पुनर्जन्म के कई परदे हटा दिए हैं — पर अब वह क्षण आने वाला है जब काव्या, आर्या, और वाच-सत्ता का अंतिम मिलन होगा।
कब्र के चारों ओर धुंध छा चुकी थी,रात किसी अनजाने शून्य की तरह फैली हुई थी — न हवा, न आवाज़, न चाँद !मृत्यु के बाद की शांति थी।
सिर्फ़ वही जगह थी, जहाँ कभी “ब्लैक हिल हवेली” खड़ी थी, और अब वहाँ राख के नीचे एक चमकता हुआ निशान था —“K-A”
आर्या जागी — उसे नहीं पता, वो कब सोई थी, या सोई भी थी या नहीं।कब्र के पास उसकी उंगलियाँ मिट्टी में धँसी थीं।उसे महसूस हुआ — जैसे कोई भीतर से उसे पुकार रहा हो।“आर्या…”वो आवाज़ न नर थी, न नारी ,वो शून्य जैसी थी, पर उसमें जीवन की गूँज थी।उसने कब्र की मिट्टी हटाई —नीचे एक पुराना बक्सा था।लौह की परतों पर वही चिन्ह — 'वाच-सत्ता' का प्रतीक।बक्सा खोलते ही नीली लपट उठी।अंदर कुछ नहीं था, सिवाय एक धातु की चिट्ठी के —जिस पर खुदा था —“आख़िरी पत्र — सिर्फ़ उसके लिए जो दोनों है।”
आर्या ने बुदबुदाया — “दोनों…? कौन दोनों?”उसी क्षण, हवा में काव्या की आवाज़ गूँजी —“तुम और मैं।”
आर्या पीछे मुड़ी —उसके सामने धुंध में काव्या खड़ी थी।अब वो न भूत थी, न मानव —एक प्रकाशमय आकृति, जैसे शब्दों से बनी हुई हो।“काव्या…आश्चर्य से आर्या ने उसे देखा ”
“अब मुझे उस नाम से मत पुकारो,” उसने कहा “क्योंकि अब मैं नाम नहीं हूँ। मैं वही बन चुकी हूँ — जिसके लिए ये कहानी लिखी गई थी।”
आर्या ने धीरे-धीरे पूछा —“कहानी के पीछे कौन था, काव्या? यह सब किसने रचा?”
काव्या ने मुस्कराई ।“तुम क्या सोचती हो ?लेखक, मैं थी।पर सच्चाई यह है कि मैं भी किसी की कहानी थी।मुझसे पहले कोई था — जिसने मुझे लिखा।उसने कहा था -कि उसकी मृत्यु के बाद शब्द जिंदा रहेंगे।वही 'वाच सत्ता का पहला लेखक था।”
आर्या की आँखें चौड़ी हो गईं।“तो वाच-सत्ता कोई श्राप नहीं?”
“नहीं,” काव्या ने उत्तर दिया,“वो शब्दों की आत्मा है।हर बार जब कोई लेखक अपने दर्द से कुछ लिखता है,वो आत्मा एक नया रूप लेती है।मैं उस आत्मा की एक परछाई थी…और अब तुम मेरा दूसरा रूप हो।”
आर्या पीछे हट गई।“नहीं! मैं इंसान हूँ, कहानी नहीं!”
काव्या ने धीरे से कहा,“हर कहानी किसी न किसी की साँस से जन्म लेती है।तुम्हारी साँसें अब मेरी जगह ले चुकी हैं।अब आख़िरी पत्र तुम्हें ही पढ़ना होगा।”
आर्या के काँपते हुए हाथ ,चिट्ठी पर गए।जैसे ही उसने धातु की चिट्ठी उठाई,उस पर के शब्द चमकने लगे —“मैं वही हूँ जो लिखता है,मैं वही हूँ जो लिखा जाता है।”
अचानक हवेली के अवशेष से स्याही जैसी लपटें उठीं। चारों ओर दीवारों पर शब्द उभरने लगे —काव्या, रवि, नलिनी, विराज —हर नाम हवा में घुल गया।काव्या बोली,“वो सब मेरे ही अध्याय थे ,पर अब कहानी का अंत तुम्हारे साथ होगा।”
नीला प्रकाश तीव्र होता गया।आर्या ने महसूस किया कि उसकी उंगलियाँ पारदर्शी हो रही हैं।उसकी हथेली पर वही निशान उभर आया — “K-A” —लेकिन इस बार उसके नीचे एक और शब्द खुद गया —'सम्पूर्ण '
काव्या ने आँखें बंद कीं।“श्राप अब समाप्त हो रहा है, आर्या !जब ये चिट्ठी पूरी पढ़ी जाएगी,तो सभी आत्माएँ मुक्त हो जाएँगी —पर कीमत एक होगी…”
“क्या कीमत?” आर्या ने फुसफुसाकर पूछा ।
काव्या की आवाज़ टूटने लगी,“जो कहानी को खत्म करता है,वो खुद कहानी बन जाता है।”
आर्या के चारों ओर हवा घूमने लगी।वो शब्द ज़मीन से उठकर उसके शरीर में समाने लगे —हर अक्षर, हर पंक्ति, हर स्मृति उसकी नसों में उतरती जा रही थी।उसने देखा —रवि की आत्मा, नलिनी की हँसी, विराज का स्क्रीन पर गायब होना,ब्लैक हिल की आग, वो पहली चिट्ठी,और काव्या की कलम गिरना…सब कुछ एक धारा बनकर उसके भीतर समा गया।वो चीखी —“मैं नहीं बनना चाहती, यह कहानी!”
काव्या ने मुस्कुराते हुए कहा,“तुम्हारे चाहने या न चाहने से कुछ नहीं बदलता, आर्या !क्योंकि कहानी खुद अपना अंत चुनती है ।”
अचानक सन्नाटा छा गया,धुंध ने दोनों को ढक लिया और फिर, सब अंधकार में विलीन हो गया।
सुबह, ब्लैक हिल पर सूरज की पहली किरणें गिरीं ,लोगों ने देखा —जहाँ कभी कब्र थी, वहाँ अब एक काँच का पत्थर था,उस पर शब्द खुदे थे —“कब्र से चिट्ठियाँ”“लेखक: काव्या आर्या”
कोई समझ न सका कि ये नाम कहाँ से आए ?लेकिन हर बार जब हवा चलती,उस पत्थर से एक हल्की आवाज़ आती —“हर अंत एक नई चिट्ठी है…”
लगभग छः महीने पश्चात ,दिल्ली में “इनसाइट पब्लिकेशन” के पुराने ऑफिस में एक नया संपादक आया।नाम — अंशुल मेहरा।पहले दिन उसे एक पैकेट मिला —कोई नाम या पता नहीं था,अंशुल ने वो पैकेट खोला तो अंदर एक डायरी थी ,जिसके कवर पर लिखा था —“कब्र से चिट्ठियाँ – पूर्ण संस्करण।”
अंशुल ने हैरानी से पन्ना खोला,पहले पन्ने पर लिखा था:“यह कहानी वहाँ खत्म होती है जहाँ तुम इसे पढ़ते हो।”
उसने मुस्कुराकर कहा, “कितना दिलचस्प कॉन्सेप्ट है।”लेकिन तभी उसके कंप्यूटर की स्क्रीन अपने आप ऑन हो गई।स्क्रीन पर वही फ़ाइल नाम चमक रहा था —'क़ब्र की चिट्ठियां डॉक्स '
और जब अंशुल ने वह फाइल खोली,तो उसमें पहले से लिखा था —“भाग 41 – नया पाठक।”
अंशुल ने अपने माथे पर हाथ रखा,आश्चर्य से उसके मुँह से निकला “ये क्या… किसने लिखा?”और तभी, पीछे की दीवार पर कुछ उभरने लगा —अदृश्य स्याही में —“हर बार कोई पढ़ता है,कहानी फिर से जन्म लेती है।”कमरे में धीमी हवा चली,डायरी का पन्ना अपने आप पलटा ,अब उस पर लिखा था —“तुम्हारा नाम क्या है?”
अंशुल ने अनजाने में बोल दिया, “अंशुल।”और जैसे ही उसने नाम लिया,स्क्रीन पर शब्द अपने आप बदल गए —“Part 41 – लेखक: अंशुल।”
वो हक्का-बक्का रह गया,कंप्यूटर ने अपने आप रिकॉर्ड करना शुरू किया,उसकी आवाज़, उसकी साँसें, उसके बोल और फिर वही पुरानी आवाज़ —वाच-सत्ता की गूँज —“कहानी अब तुम्हारी है…”
कब्र अब सिर्फ़ ज़मीन में नहीं थी —वो हर दिमाग में थी,हर पन्ने में,हर स्क्रीन में.... वो आत्मा जो कभी काव्या थी,अब अक्षरों में समा चुकी थी।हर बार जब कोई “कब्र की चिट्ठियाँ” पढ़ता,एक नया लेखक जन्म लेता और पुराना — कहानी बन जाता।
वर्ष 2030 में “AI द्वारा दुनिया भर के सर्वर स्कैन किए जा रहे थे,एक वैज्ञानिक ने रिपोर्ट दी —“हर नेटवर्क में एक फाइल बार-बार दिख रही है —नाम:'' क़ब्र की चिट्ठियां डॉक्स ''और हर सिस्टम में अलग ‘लेखक का नाम’।”
मुख्य वैज्ञानिक झल्लाकर बोला,“ये सब डिलीट कर दो !”
टेक्नीशियन ने कहा,-“सर, डिलीट नहीं हो रही ,जैसे ही इसे हम हटाते हैं, एक नई फाइल बन जाती है और नाम भी बदल जाता है।”
“क्या नाम?”“लेखक अनाम , फिर धीरे-धीरे अपने आप टाइप होता है —‘लेखक - तुम ”
उस रात पूरी प्रयोगशाला अंधेरे में डूब गई ,सिस्टम चालू हुआ ,सभी मॉनिटर्स पर वही लाइन टाइप होने लगी —“कब्र की चिट्ठियाँ — कभी खत्म नहीं होती।”और स्पीकर से गूँजी वही जानी-पहचानी फुसफुसाहट —“हर कहानी, अपने पाठक की कब्र पर लिखी जाती है।”
