शिखा, गर्वित के साथ, उस हवेली में पहुंचने में कामयाब हो जाती है, उसका गर्वित से दोस्ती करने का उद्देश्य ही यही था , ताकि वह अपनी भूली बातों को, स्मरण कर सके ,अपने जीवन के उन काले पन्नों को खोलकर फिर से पढ़ सके , ताकि उसे पता चल सके ,उसकी इस हालत का दोषी कौन था ?क्या कारण रहा है ,जो वो इस हालत में पहुंच गयी, किस कारण से वह अपने घर से बेघर हुई ? उसके अपने माता-पिता कहां है ? इस योजना में वह सफल भी रही।
तारा जी,को जब उसकी योजना का पता चला तो उन्होंने,शिखा से मना भी किया था ,उन्होंने उससे कहा था-''क्यों बीती बातों को छेड़ना चाहती हो ? जहां तक मेरा विचार है, दुःख के सिवा कुछ हासिल नहीं होगा। जख्म ही हरे होंगे और दुख देकर जाएंगे।'' किंतु शिखा के मन की जिज्ञासा, इन बातों से संतुष्ट नहीं हुई और उसने , अपने जीवन के उन काले पन्नों को खोलकर पढ़ने का प्रयास किया।
इसके लिए उसने गर्वित का सहारा लिया और वह उस हवेली में पहुंच भी गई और जब वह उस हवेली से वापस आई तो उसकी हालत खराब थी ,दर्द का गहरा साया उसके ऊपर मंडरा रहा था। तारा जी और डॉक्टर साहब, यह सब देखकर घबरा गए। तब उन्होंने उससे यह बात जानने का प्रयास किया, कि उसे क्या हुआ है?
तब उसने बताया -मैं उस हवेली की वही ''अधूरी दुल्हन'' थी,जो फेरों के समय ही विधवा हो गयी थी। किन्तु इन लोगों ने मुझे जबरन ही, अपने अन्य बेटों की 'बिन ब्याही दुल्हन' बनाना चाहा।
उनके मुताबिक हवेली की एकता को बनाए रखने के लिए , एक ही दुल्हन का होना आवश्यक था और अब यह उनके यहां की परंपरा बन गई है। उसकी सास दमयंती भी, उस परिवार की चार पुरुषों की पत्नी बनकर जी रही है और अब वह भी यही चाहती थी कि मैं भी उनके चारों बेटों की पत्नी बनकर रहूं किंतु यह मुझे स्वीकार नहीं था इसलिए मैंने उनसे इनकार किया। तब मेरे साथ रात्रि में किसी ने अनाचार किया, यह किसका कार्य है, यह मैं नहीं जान पाई, मैंने उन्हें अपनी शर्त के शिकंजे में बांधना चाहा ताकि मुझे वहां से भागने का अवसर मिल सके, किंतु ऐसा नहीं हुआ।
एक रात्रि, मुझे तैयार किया जा रहा था, उनके बेटे सुमित की पत्नी बनने के लिए , उन्होंने मेरी शर्त को अपनी बातों से बदल दिया। मैंने कहा- जब आप समाज के सामने, इस रिश्ते को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं ,तभी यह रिश्ता उचित नहीं है किंतु उन्होंने अपना अलग ही तर्क दिया और कहा -'शहर में जाकर तुम्हारा विवाह करवा देंगे किंतु हमारे परिवार की परंपरा है वह तो तुम्हें निभानी ही होगी।'
मैं तैयार हो रही थी, किंतु मन में, बेचैनी- परेशानी बढ़ रही थी ,जो लड़की मुझे तैयार करने आई थी, मैंने उससे भी सहायता मांगी, किंतु उसने तो मुझे इस परिवार का अलग ही रूप दिखला दिया जिससे मैं और ज्यादा परेशान हो गई। घबराहट में मैंने भागने का दृढ़ निश्चय किया। मेरे लिए कमरा तैयार किया गया था किंतु मैंने उसे जाकर भी नहीं देखा फिर सोचा -इन लोगों को दिखाने के लिए कमरे में चली जाती हूँ। मैं इधर-उधर बेचैनी से कमरे में टहल रही थी। मैं घरवालों को दिखाने के लिए दुल्हन बनकर, अपनी सेज पर जा बैठी थी किन्तु वहां से भाग जाना चाहती थी ,काफी रात हो चुकी थी,अभी सुमित भी नहीं आया था क्योंकि वहां पुरुषों में अपनी जीत का जश्न मनाया जा रहा था।
मैंने इस मौके का लाभ उठाया, और वहां से कुछ कपड़े लेकर, उनकी एक पोटली बनाकर, किसी बैठी हुई स्त्री की तरह बना दिया, ताकि उन्हें लगे, मैं वहां पर बैठी हुई हूं और अपनी चुनरी ओढ़ा दी। मैं दबे कदमों से, कमरे से बाहर निकल गई , मुख्य द्वार से तो बाहर नहीं जा सकती थी, तब मैंने, पीछे के रास्ते से जाना उचित समझा। छत से मैं पीछे नहीं जा सकती थी क्योंकि वो बहुत ऊँची थी। मैं पीछे के हिस्से में , कोई रास्ता ढूंढ रही थी ,एक बार दमयंती ने मुझे इस हवेली से बाहर जाने का गुप्त रास्ता बतलाया था, वही सुरंग का रास्ता मैं ढूंढना चाह रही थी। मुझे बड़ी घबराहट हो रही थी, बाहर मौसम हल्का ठंडा था, किंतु फिर भी मुझे घबराहट के कारण पसीना आ रहा था। मैं शीघ्र से शीघ्र उस स्थान से निकल जाना चाहती थी। तभी अचानक किसी ने मेरे मुंह पर कपड़ा रखा,मैंने उसकी गिरफ़्त से छूटने के लिए संघर्ष किया किन्तु उसकी पकड़ मजबूत थी और उसने ,मुझे उठाकर मेरे कमरे में छोड़ दिया।
जब मेरे चेहरे से वह कपड़ा हटाया , तो मेरे सामने, दमयंती जी के साथ-साथ उनका पूरा परिवार खड़ा था। मेरी कमर की रीढ़ की हड्डी ,बुरी तरह से काँप गई,' जैसे तेज करंट दौड़ गया ,काटो तो खून नहीं ', मेरी यह हालत हो गई थी , मुझे इसका खतरनाक परिणाम में भुगतना पड़ सकता था। मैं मन ही मन सोच रही थी-कि इन लोगों से क्या बहाना बनाऊँ ?
तभी दमयंती बोली -तूने क्या हमें, ''दूध पीता बच्चा समझ हुआ है '', हमारी नजर तेरे एक-एक कदम पर है , तू क्या समझती है? तू, इस हवेली से बाहर निकल सकती है और हमें पता ही नहीं चलेगा। तुझे उस दिन तो समझाया था। हमने ,तुझे इतने सारे मौके भी दिए, किंतु मुझे लगता है, तू सुधरेंगी नहीं , तुझे सुधारने के लिए ही गर्वित में ऐसा किया था लेकिन तुझे तब भी अकल नहीं आई। प्यार से समझा कर तो तुझे बहुत देख लिया, किन्तु तू अब इस हवेली का क्रोध देखेगी और इसकी ज़िम्मेदार तू स्वयं और तेरी ये ज़िद होगी।
मम्मी जी !मैंने कुछ भी नहीं किया है, मैं तो थोड़ी देर के लिए बाहर टहलने गई थी।
तभी तो वह दरवाजा ढूंढ रही थी, वो तो अच्छा है , रामलाल की दृष्टि तुझ पर पड़ गयी,उसने तुझे वहां जाते हुए देख लिया था और उसने तेरा पीछा किया। उसने हमें आकर बता दिया था , हम बहुत देर से तुझे देख रहे थे यदि तेरे मन में कोई पाप नहीं था फिर तू अपनी जगह एक कपड़ों की पोटली बनाकर क्यों गई ? हमें क्या तू बेवकूफ समझती है ? हवेली में हर एक आदमी की नजर तुझ पर है। आज तक तूने हमारा प्यार देखा है , अब तू हमारा क्रोध भी देखेगी कहते हुए ,वो बाहर निकल गई। उसके पीछे ही, दमयंती के चारों पति भी बाहर आ गए किंतु उसके चारों बेटे उसी कमरे में रहे और बोले -तू हम चारों की पत्नी बनकर रहेगी ,हमारे सामने कैसी शर्म ?अपने कपड़े उतार दे !
मैं बहुत रोई ,बहुत गिड़गिड़ाई और उन्हें समझाने का प्रयास किया , किंतु किसी ने भी मेरी एक भी बात नहीं सुनी, तब गौरव बोला - इसीलिए तो मैं उस दिन, इसे इसकी औकात दिखा देना चाहता था किंतु उस दिन यह नशे में थी, किंतु आज नहीं होगी आज यह अपनी आंखों के सामने ही, हमारा प्यार देखेगी, कहते हुए चारों हंसने लगे। गर्वित ने मेरी साड़ी का पल्लू खींचा , मैं चीख रही थी, रो रही थी, उनसे माफी मांग रही थी -मुझे इस तरह बेइज्जत मत करो ! मेरा तो तुम लोगों से कोई नाता भी नहीं है। तुम्हारे भाई से मेरा विवाह हुआ था, मैं उसकी बेवा हूं, उसकी बेवा ही बनकर रहना चाहती थी।
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