रंजन और शिल्पा के चले जाने के पश्चात, शिल्पा ने एक बार भी नित्या से संपर्क नहीं किया ,बल्कि उसे बुरा लगा ,इतना महंगा उपहार रंजन ने, उसे दिलवा दिया हालाँकि वो उपहार, उसके बॉस को देने के लिए ही था किन्तु तब तक, जब तक उसे यह मालूम नहीं था कि रंजन का बॉस कौन है ? नित्या के उपहार भी ,अच्छे थे किन्तु जब शिल्पा को, नित्या पर क्रोध था ,अथवा ईर्ष्या !और वह यह नहीं चाहती थी, कि फिर कभी वह नित्या से मिले। वह अक्सर रंजन को भी ताने देती रहती थी और पूछती थी- क्या तुम्हें नौकरी करने के लिए यही ऑफिस मिला था ?किसी और जगह नौकरी नहीं कर सकते थे ,जो लड़की हमारे घर रही ,मामा ,मेरी मम्मी से पूछे बग़ैर कोई कार्य नहीं करते ,आज उसका पति, मेरे पति का बॉस बना बैठा है।
यह तुम कैसी बातें कर रही हो ? जिस समय मेरी नौकरी लगी थी, उस समय हमें क्या मालूम था ? प्रमोद और मैं साढु भाई बनने वाले हैं,ये तो अच्छी बात है ,बॉस के साथ -साथ, हम रिश्तेदार भी हो गए ,एक -दूसरे की सहायता भी कर सकते हैं। इसमें तुम्हारा कौन सा अपमान हो गया ? वह अपना काम करता है और मैं अपना काम करता हूं। कहने को वह बॉस है लेकिन कभी भी उसने बॉस जैसा व्यवहार नहीं किया। मुझसे अच्छे से और प्रेम से व्यवहार करता है।
तुम ये बातें नहीं समझोगे ,यही तो कुछ लोगों की पहचान होती है, वह बड़े भी बने रहना चाहते हैं, और अपने से छोटों से, प्यार से काम लेकर, अपना बड़प्पन भी दिखला देना चाहते हैं। तुम इन बातों को नहीं समझोगे, तुम भी तो रिक्शा ही चलाते थे।
यह तुम क्या बातें लेकर बैठ गई हो ? क्या ,यह बात तुम, पहले से नहीं जानती थीं, मैंने पहले ही बता दिया था रिक्शा चलाना मेरी कोई मजबूरी नहीं थी मैं स्वेच्छा से वह कार्य कर रहा था ,एक तरह से आम इंसान बनकर अनुभव ले रहा था।
जैसा मनुष्य कार्य करने लगता है, उसकी सोच भी, वैसी ही होती जाती है, बड़ा कार्य करते, बड़े लोगों में उठते -बैठते तो सोच भी बड़ी रहती किंतु हमेशा छोटा कार्य किया इसीलिए बड़े भी नहीं बन सके।
रंजन शिल्पा को देख रहा था ,विवाह से पहले तो इसने कभी मुझसे, इस तरह की बातें नहीं की, विवाह के पश्चात, तुम कितनी बदल गई हो ? यह सब बातें हम पहले भी जानते थे, तब तो तुमने, मुझसे एक बार भी नहीं कहा ,यदि तुम्हें ,मेरे व्यवहार से और मुझसे कोई परेशानी थी तो मैं विवाह ही नहीं करता। मुझे एक बात बताओ !तुम तो अपने को बड़ा समझती हो ,क्या तुम लोग बड़े नहीं हो। मैं , तुम लोगों के साथ भी तो रहा हूं किंतु वहां मुझे अपनापन और सम्मान क्यों महसूस नहीं होता, इसको तुम क्या कहोगी ? परेशान होकर वह शिल्पा के पास से उठकर अलग कुर्सी पर जा बैठता है ,तब बोला -यार ! कोई अपनी इच्छा से, अपने तरीके से, जी भी नहीं सकता।
रोज-रोज की किच -किच से शिल्पा के तानों से, बार-बार उसके उलाहनों से रंजन भी परेशान हो चुका था।अभी उनके विवाह को छह माह ही बीते थे ,किन्तु उन्हें लगने लगा था ,बरसों से हम इस रिश्ते में बंधे घुट रहे हैं।
मनुष्य भी कितना मतलबी जीव है ? जब तक शिल्पा को कोई लड़का पसंद नहीं कर रहा था, तब तक तो वे लोग परेशान थे और कल्याणी देवी जी को भी लगता था कि इसका रंग -रूप ऐसा है , इसका दर्द स्वयं शिल्पा भी झेल चुकी थी, क्योंकि कुमार ने उससे विवाह करना तो दूर, उसकी दोस्ती भी स्वीकार नहीं की थी।
तब तो कल्याणी जी को लगता था ,चाहे गरीब ही सही, कोई तो इसे पत्नी के रूप में स्वीकार कर ले किंतु जैसे ही रंजन ने विवाह के लिए हामी भरी, इनके तो तेवर ही बदल गए। शिल्पा भी अक्सर रंजन पर हावी होने का प्रयास करती और जब से उसे पता चला था कि नित्या का पति उसके पति से औहदे में बड़ा है। तब से उनके रिश्ते में बहुत बड़ा बदलाव आ गया है।
रंजन भी, उसकी बातों से परेशान रहता। एक दिन अचानक ही रंजन, शिल्पा के लिए उसकी चित्रकारी का सारा सामान उठा लाया और शिल्पा से बड़े प्यार से बोला -तुम्हारे अंदर इतनी सुंदर कलाकार बसता है फिर तुम अपना समय, इस तरह क्यों गँवा रही हो ? क्या तुम भूल गईं ?इस कला ने ही, हम दोनों को मिलाया था। तुम इस कला के लिए जीती थीं,मेरी वो पहली वाली शिल्पा कहाँ खो गयी ? तुम्हें अपने आप को आगे बढ़ाना है। तुम्हारी देश -विदेशों में बड़ी -बड़ी पेंटिंग्स बिकेंगी ,चित्रकला में तुम्हारा नाम शीर्ष पर होगा ,लोग मुझे मेरे नाम से नहीं ,तुम्हारे नाम से जानेंगे। देखो !शिल्पा का पति जा रहा है।
क्या तुम्हें इस तरह कहलवाने में कोई आपत्ति नहीं होगी ?शिल्पा ने पूछा।
नहीं ,शिल्पा का पति कहलवाने में मुझे क्या आपत्ति होगी ? पढ़ा -लिखा हूँ ,मैं उन लोगों में से नहीं ,जो पत्नी को आगे बढ़ते देखना नहीं चाहते ,जब तुम्हारा नाम हो जायेगा ,तब मैं, ये मामूली नौकरी भी छोड़ दूंगा।
इतना सुनते ही शिल्पा भावुक हो उठी और वह भी ,अपने सभी गिले -शिकवे भूलकर,रंजन के दिखाये सपनों में खो गयी। उस दिन दोनों ने ढेर सारी प्यार भरी बातें कीं, मन ही मन शिल्पा ने भी बहुत सुंदर सपने सजा लिए थे ,अब वह सोचने लगी थी -रंजन सही तो कह रहा है, क्यों, मैं व्यर्थ में ही जली-भुनी जाती हूं या परेशान रहती हूं, क्यों न... अपनी कला को एक नया रूप दे दिया जाए। रंजन अब उसके पास बैठकर अनेक बातें करता, और उसके अंदर सकारात्मक विचार भरने का प्रयास करता ताकि वह सुंदर से सुंदर कलाकृति को उभार सके।
कुछ दिनों पहले ,एक दिन रंजन, बाहर घूम रहा था,बाहर क्या घूमना ,घर के झगड़ों से परेशान,उनसे बचने के लिए ,घर से बाहर निकल आया था। घर जाना चाहकर भी घर की ओर उसके क़दम नहीं बढ़ रहे थे। परेशानी में , वह घूमते हुए सड़क पर आ गया था , उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या जिंदगी इस तरह की होती है ? एक पल के लिए भी सुकून नहीं है। क्या विवाह करके मैंने कोई गलत ही कर दी है? इन्हीं परेशानियों में,प्रश्नों में उलझा वो चला जा रहा था।
तभी सड़क के उस पार उसे जानी -पहचानी सी परछाई दिखलाई दी ,ध्यान से देखने पर.... वो परछाई और कोई नहीं , नित्या थी।वह खरीदारी के लिए बाजार आई थी, नित्या को देखकर,जैसे जलते कोयलों में किसी ने ठंडा पानी गिरा दिया हो ,उसे ऐसी राहत का एहसास हुआ, रंजन अपने सब गम भूल गया और खुश होते हुए,सड़क पार करके नित्या के करीब पहुंचा।
नित्या, रंजन को अचानक इस तरह अपने सामने देखकर अचंभित रह गई और उसने पूछा -तुम इस वक्त यहां क्या कर रहे हो ? तुम्हें तो अपने दफ्तर में होना चाहिए।
अब दफ्तर जाने का मन नहीं करता, मन में अजीब सी बेचैनी रहती है, ऐसा लगता है ,जो भी मैं कार्य करता हूं उसका कोई मूल्य नहीं है। मैं अपनी ही नजरों में गिरता जा रहा हूं। पता नहीं, क्या हो रहा है ? तुमने,मुझे जानबूझकर, शिल्पा से मेरा विवाह करवाकर फंसा दिया ,नित्या को दोष देते हुए रंजन बोला।
