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 दामिनी के घर के फोन की घंटी लगातार बजती जा रही थी, न जाने, किसका फोन है ? यह सोचकर वे  रसोई से दौड़ती हुई बाहर आई , उन्होंने फोन में नंबर देखा तो पता चला, मम्मी का फोन है , हेेलो- मम्मी ! फोन किसलिए किया , क्या बहुत ही जरूरी कार्य है ?

 कोई जल्दी न हो तो मैं, बाद में आपको फोन करती हूं। 

क्यों, ऐसा क्या कर रही है ? जो तुझे मां से बात करने की भी फुर्सत नहीं है, तेरी आवाज से लग रहा है, तू थोड़ी परेशान है , क्या बात है ? कुछ हुआ है, क्या ?



कुछ भी नहीं, रसोई में कार्य कर रही थी,अनमने भाव से दामिनी बोली। 

 क्या बनाया है ?

 वही रोज का खाना ! दरअसल दामिनी का मन ही नहीं कर रहा था कि वह किसी से बात करें किंतु मम्मी बार-बार उसे कुरेद रही थीं। 

अच्छा, मम्मी ! अभी मैं गैस बंद करके आती हूं और तब आकर बताती हूं, कहते हुए वह रसोई की तरफ गई और कुछ देर बाद वापस आकर बोली -अब बताइये !फोन क्यों किया ?

 क्या मैं अपनी बेटी को फोन नहीं कर सकती ?तू मेरी छोड़ !अब तू बता ! क्या हुआ है, जो तू इतना परेशान हो रही है ?

कुछ भी नहीं, आपकी इसी धेवती की वजह से परेशान हूं। इतने दिनों से एक तो लड़का नहीं मिल रहा है और अब कह रही है कि मुझे विवाह ही नहीं करना है। 

क्यों, ऐसा क्या हो गया है ? मुझे लगता है, तेरी लड़की तेरे हाथों से निकल गई है, अब तेरी इतनी भी नहीं सुनती है,कहीं ऐसा तो नहीं, उसने अपनी पसंद का कोई लड़का देख रखा हो।  

नहीं ,ये बात तो मैंने ही उससे कही थी,तू ही कहीं देख ले तो मुझे डांटते हुए बोली -मैं नौकरी कर रही हूँ ,या लड़के ढूंढती फिर रही हूँ। अब वो मेरी सुनकर भी क्या करेगी ? उसको भी तो परेशानी होती है। 

उसे किस बात की परेशानी है ? आखिर वह चाहती क्या है ? अब क्या कह रही है ?

कह रही है, अब शादी नहीं करूंगी, जब मुझे कमाकर खुद ही खाना है, तो फिर विवाह करके क्या करना है ? लड़के वाले उसका पैकेज देखते हैं। वह कह रही थी- कि लड़के वाले चाहते हैं नौकरी वाली लड़की से  इसलिए विवाह किया जा रहा है ताकि अपना खर्चा उठा सके और घर में भी अपना योगदान दे ,उसका कहना है जब उस लड़के में इतनी क्षमता ही नहीं है, कि वह मेरा खर्चा वहन कर सके तो फिर मैं शादी करके क्या करूंगी ? मुझे तो तब भी कमाकर ही खाना है, उनके साथ चार ख़र्चे औरऔर काम भी मेरे ऊपर बढ़ जाएंगे। 

यह क्या बात हुई ?विवाह का मतलब ही जिम्मेदारियों का बढ़ जाना है ,ये जीवन है ,इससे इस तरह भाग नहीं सकते। क्या वहां दफ़्तर में काम करके अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रही है ,ऐसे ही गृहस्थ जीवन में सब संभालना होता है। मुझे लगता है , तेरी लड़की को, आजकल की हवा लग गई है , हमारे समय में लड़कियां बोलती भी नहीं थी , चुपचाप रहती थीं, माता-पिता ने जैसा कर दिया, वैसा ही ठीक है। 

मम्मी वह भी चुप ही रहती किंतु लड़के वाले ही कहते हैं - लड़के को कुछ देर लड़की से बात करनी है फिर वह पूछता है, तुम क्या पैकेज ले रही हो ? मेरे माता-पिता की जिम्मेदारी उठा पाओगी, दिमाग में यही तो बात आ गई है, कि उनका लड़का तो मेरी जिम्मेदारी भी उठाने के लायक नहीं है, या उठाना नहीं चाहता और वह अपने माता-पिता की जिम्मेदारी भी उठाने के लिए उससे शर्त लगा रहा है।तुम गांव में रह लोगी।  अब आप ही बताओ! क्या इस तरह शर्तों पर जिंदगी कटती है, हमारे समय में दीप्ति के पापा ने, क्या मुझे देखकर कोई शर्त रखी थी, या मुझसे कहा था,' तुम अपना खर्चा स्वयं चलाना, या आपसे पापा जी ने कहा था -कि तुम अपना खर्च करती रहना और मेरे मां-बाप की भी देखभाल करना इसीलिए तो रिश्ते नहीं हो रहे हैं। 

आजकल लड़कियां ऐसी निकल रही हैं कि सबको डर लगा रहता है। 

यह ड़र क्या लड़कों के लिए ही है ? लड़कियां भी तो डरती हैं, दूसरे घर जाएंगे न जाने ,कैसे लोग होंगे, कैसा व्यवहार होगा ? कुछ लोग तो ऐसे हैं, दहेज की मांग तो नहीं करते हैं किंतु लड़की का पैकेज देख रहे हैं, अधिक से अधिक पैकेज की मांग करते हैं और कबसे कमा रही है ?जबसे लड़की ने कमाना आरम्भ किया ,तबसे उसकी कमाई पर अपना अधिकार समझते हैं। अच्छी सी कंपनी में अच्छी नौकरी चाहते हैं। 

उन लड़कों से यह पूछा जाए, कि क्या उन्हें घर- गृहस्थी में सिर्फ पैसा ही कमाना है। क्या उनके आगे बच्चे नहीं होंगे? उसके लिए तो लड़की को नौकरी भी छोड़नी पड़ सकती है, तब वो क्या करेंगे ?कम से कम लड़का इतना काबिल तो हो, कि यदि वह नौकरी छोड़ दे ! तो वो उसकी और अपने बच्चों की जिम्मेदारी उठा सके। पता नहीं, लोगों को आजकल क्या होता जा रहा है ? जिम्मेदारी उठाने के लिए भी तैयार नहीं है इसीलिए उम्र बढ़ती जा रही है।

 कम से कम लड़के में इतना साहस तो होना चाहिए, यदि लड़की नौकरी कर रही है, यह अच्छी बात है, किंतु यदि किसी कारणवश वह नौकरी उसे छोड़नी पड़ जाती है, तो वह उस लड़की की जिम्मेदारी उठा सके , इसी कारण वह विवाह के लिए मना कर रही है। 

बात तो उसकी भी, अपनी जगह सही है, किंतु बिना विवाह के इस तरह लड़की को, घर पर ही भी तो नहीं रखा जा सकता। 

बस,यही  चिंता तो मुझे खाए जा रही है, क्या करूं ? इसीलिए मैं परेशान थी।अब  आप बताइए !आपने किस लिए फोन किया था ?

 यही पूछने के लिए फोन किया था, क्या कोई लड़का मिला या कहीं बात चली। तूने तो मुझे एक नई बात बता दी, फिर भी बेटा अपनी बेटी को समझा - हम समझते हैं, परिस्थितियाँ बदल रही हैं, तुम कमा भी लेती हो, अकेले जीवन कब तक व्यतीत करेगी ?' चार लोग' क्या कहेंगे ? बेटी की कमाई खा रहे हैं, विवाह तो करना ही होगा।

 दीप्ति,जो पीछे खड़ी अपनी नानी और माँ की बातें सुन रही थी ,आगे आकर उसने, अपनी मम्मी के हाथ से फोन ले लिया और बोली -नानी जी ! ''चार लोगों ने मुझे नहीं पढ़ाया,' चार लोगों' ने मेरी नौकरी भी नहीं लगवाई , वे' चार लोग', मेरे लिए लड़का भी ढूंढ कर नहीं ला रहे हैं , और जब मेरा विवाह हो जाएगा तो वहां भी मुझे और'' चार लोग'' मिलेंगे। जिनसे मुझे ताने सुनने को मिलेंगे , वे 'चार लोग',ही कहेंगे -लड़की कैसी है ? अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पा रही है, नौकरी भी छोड़ दी। सास -ससुर की सेवा नहीं कर पा रही है , मुझे तो लगता है मेरी जिंदगी उन 'चार लोगों' के मध्य ही घूम कर रह जाएगी। 

मुझे उनके लिए जीना है या अपने लिए जीना है, मेरी जिंदगी में जो हलचल चल रही है, उसे वे 'चार लोग' नहीं संभाल रहे हैं, मैं संभाल रही हूं। मैं मानती हूं, हमें उन' चार लोगों' का सम्मान करना चाहिए, हमारे सुख में व्यवधान देकर , हममें बुराई अवश्य ढूंढते हैं, किंतु हमारे लिए सोचते तो हैं। मैं शादी अवश्य कर लूंगी, किंतु वे ''चार लोग'' मेरे लिए ऐसा दूल्हा ढूंढ लाएं जो मुझे चाहे, मेरी नौकरी को नहीं , मुझसे प्यार करें ! मेरा ख्याल रखें ! अपनी कोई शर्त न रखें ! यदि ऐसा दूल्हा मिल गया तो मैं अवश्य शादी कर लूंगी। अब तो खुश !कहते हुए, उस गंभीर वातावरण को हल्का बनाने का प्रयास करते हुए दीप्ती हंसने लगी। 

दामिनी जी भी हंसकर बोलीं -''यह नहीं सुधरेगी।'' देख लो !जैसी तुम्हारी इच्छा कहते हुए ,नानी ने भी फोन काट दिया। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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