Sone ke kangan

रति ने बचपन में, अधिकतर अपने आसपास सोने से लधी अपने परिवार की महिलाओं को दिखा , उन्हें देखकर रति को भी लगता था कि वह भी एक दिन इसी तरह सोने के जेवर पहनकर किसी महारानी की तरह लगेगी। इतिहास के पन्नों में भी उसने देखा, पुराने समय में रानी -महारानी सोने जेवरों से लदी होती थीं , तभी से न जाने कैसे रति का भी यह सपना बन गया।  एक दिन वह भी खूब जेवर पहना करेगी, किंतु समय अपनी गति से चलता रहता है और परिवर्तनशील भी है।


 

 वे जमाने धीरे-धीरे बदलने लगे, जैसे-जैसे रति बड़ी हो रही थी, अब सोने के जेवर कम दिखने लगे, किन्तु  उसका सपना अभी भी पल रहा था। जब वह घर की महिलाओं से पूछती - अब वे जेवर क्यों नहीं पहनती है ? तब वो कहतीं- आजकल सोना महंगा हो रहा है , अब इतने जेवर कौन बनवा रहा है ? इस बात से रति को बहुत दुख पहुंचा। उसे लगा शायद, उसका यह सपना कभी पूरा नहीं हो पाएगा।  सपने में भी अक्सर वह  अपने हाथों की सारी उंगलियां में सोने -हीरे की अंगूठियां देखती, गले में नौलखा हार , हाथों में, नगों से जड़ाऊ सोने के कंगन, कानों में बड़ी-बड़ी बालियां ! 

एक दिन उसने अपनी मम्मी से भी कहा -मुझे भी एक सोने की चैन बनवा दीजिए !

तब उसकी मम्मी ने कहा -इतनी महंगाई में सोना कहां खरीद पाते हैं ? अब वे दिन नहीं रहे, खर्चे बढ़ गए हैं, समय के साथ चलना चाहिए। पारिवारिक स्थिति तो तुम देख ही रही हो, आजकल बच्चों की पढ़ाई भी आवश्यक हो गई है, रहन-सहन का तरीका भी बदल गया है, आमदनी का कम और खर्चे अधिक बढ़े हैं। उनकी बात सुनकर, रति मन मसोसकर रह गई क्योंकि उसने अपनी बुआओँ को विवाह से पहले ही ,गले में चैन, और कानों में बालियां पहनते देखा है किंतु उसके लिए उसका सपना उसका सपना ही रह गया।  तब उसने सोचा -विवाह के पश्चात, ढेर सारे गहने  पहनेगी क्योकि उसने देखा था -ससुराल वाले भी अपने घर की बहु को बहुत सारे जेवर चढ़ाते हैं। जितना वो इन सबसे दूर जा रही थी, उसकी चाहत उतनी ही बढ़ती जा रही थी। 

आखिर एक दिन,एक अच्छे परिवार में उसका रिश्ता तय हो ही गया, लड़का भी अच्छी नौकरी करता था ,किन्तु इतने धनाढ्य भी नहीं थे, कि रति के स्वप्न पूरे कर सकें,जब उसके रंग में सामान आया तो जेवर हल्के और कम थे ,रति उदास हो गयी।

 प्रभात को रति बहुत पसंद थी ,उसने रति का उदास चेहरा देखा, तब उसने रति से उसकी उदासी का कारण पूछा -तब रति ने उसे अपने बचपन का सपना बतला दिया, उसकी बात सुनकर प्रभात पहले तो बहुत हंसा और बोला -यह सपना तुम बचपन से पाले हुए हो, उस समय सोना दो या तीन हजार तोला हुआ करता था और आज तीस पहुंच गया है,लोगों के खान -पान रहन -सहन में बदलाव आया है। तुम्हारी तरह ही महंगाई भी तो साथ के साथ बढ़ ही रही है ,कहते हुए हंसा - बचपन के सपने में कितना बचपना है ?उसने रति के चेहरे की तरफ देखा गंभीर होते हुए बोला -ख़ैर कोई नहीं ,मैं तुम्हारे स्वप्न को पूर्ण करने का प्रयास करूंगा ,धीरे -धीरे तुम्हारे सारे सपने पूर्ण कर दूंगा किन्तु एकदम से नहीं ,तुम्हें भी मुझे थोड़ा समय देना होगा। अब जो भी जेवर तुम्हें मिल रहे हैं ,उनका आनंद तो उठा ही सकती हो।वैसे ये बताओ !सबसे ज्यादा किस गहने की इच्छा रखती हो ? 

प्रभात की बातें सुनकर रति प्रसन्न हो गयी ,और बोली -सबसे पहले तुम मुझे सोने के कंगन बनवाकर देना !

ठीक है ,अबसे, तुम्हारे सोने के कंगनों के लिए ,पैसा जोड़ना आरम्भ कर दूंगा ,अब तो खुश !हालाँकि उसकी ससुरालवालों ने भी ,सोने के कंगन दिए थे ,किन्तु जैसे जड़ाऊ कंगन रति चाहती थी ,वो वैसे नहीं थे। विवाह के पश्चात ,दोनों -पति -पत्नी सुख पूर्वक रहने लगे।

अब प्रभात जो भी पैसा बचता रति को दे देता, ताकि उसके लिए' जड़ाऊ कंगन' बनवा सके। उन्हें पैसे जोड़ते लगभग एक वर्ष हो गया अभी तक एक लाख ही जुड़ पाए थे। कई बार कई खर्चों में कटौती भी की ,उस समय उन कंगनों की कीमत तीन लाख थी ,अब तक पोने दो लाख ही जुड़ पाए थे किन्तु अब रति खुश थी अभी थोड़े पैसों की ही कमी है ,उसने और कटौती आरम्भ की ,मायके से जो मिलते उन्हें भी जोड़े लेती। वो रात -दिन उन जड़ाऊ कंगनों को लेकर सपने देखती -'वो अपनी सहेलियों को, मायके वालों को अपने ''जड़ाऊ कंगन'' दिखा रही है और उन कंगनों को देख सहेलियां चिढ जातीं ,घरवालों के आश्चर्य से मुँह खुले रह जाते।''

एक दिन अचानक ही रति के ससुर की तबीयत बिगड़ गई, और वह बहुत बीमार हो गए उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। सभी टेस्ट हुए और टेस्ट होने के पश्चात, उन्हें पता चला कि उनका ऑपरेशन होगा और कम से कम ऑपरेशन में तीन- चार लाख का खर्चा आएगा। घर में सभी परेशान थे, प्रभात अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था, अब सारी जिम्मेदारी उसे पर ही आन पड़ी थी, इधर-उधर से, उसने पैसा बटोरना आरंभ किया किंतु इतना पैसा एकदम से कहां से लाये ? कई बार परेशानी में, भोजन भी नहीं कर पाता था।

 उसने रति को, इस विषय में कुछ भी नहीं बताया, वह नहीं चाहता था कि रति भी परेशान हो, किंतु रति भी तो उस परिवार का हिस्सा ही थी, उससे ज्यादा समय तक प्रभात की परेशानियां छुप न सकी, उसने अपनी सास से पूछ ही लिया -कि प्रभात इतने परेशान क्यों हैं ?

क्या तुम्हें दिखलाई नहीं देता ,तुम्हारे ससुर बीमार हैं ?उनका ऑपरेशन होना है ,उनके इलाज के लिए ,तीन -चार लाख रूपये चाहिए, उन्होंने जबाब दिया, उसी कारण से परेशान है।

 जब रति में यह बात सुनी, तो वह एकदम से चुप हो गई , और शाम को प्रभात के आने पर पूछा -क्या तुम मुझे अपना नहीं समझते हो ? क्या मैं इस घर का हिस्सा नहीं हूं ? आपने मुझे क्यों नहीं बताया ? कि आप इस तरह परेशानी में हैं,आपने तो मुझसे कहा था -'कुछ ज्यादा दिक्क्त नहीं है,पापा शीघ्र ही घर आ जायेंगे  किन्तु आपने ये नहीं बताया, आपको पैसों की आवश्यकता है। 

प्रभात ने कहा-मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता था, तुम परेशान मत हो, मैं कहीं ना कहीं से इंतजाम कर लूंगा, मैंने दो-चार दोस्तों से कह रखा है ,उनसे उधार ले लूंगा। वे मेरी सहायता कर देंगे। 

प्रभात की बात सुनकर, रति रोने लगी और बोली -आपने मुझे इतना पराया कर दिया है, आप गैरों से सहायता मांग सकते हैं, किंतु मुझे सहायता की उम्मीद भी नहीं की। 

तुम कहां से सहायता करोगी ? प्रभात ने ही पूछा। 

क्यों ? क्या पापा तुम्हारे ही हैं, मेरे कुछ नहीं लगते हैं , मैं भी तुम्हारी सहायता कर सकती हूँ। मेरे पास भी कुछ पैसे हैं, रति के मुंह से, पैसों की बात सुनकर, प्रभात परेशान होते हुए बोला -वह तुम्हारे पैसे हैं, तुम्हारा सपना पूर्ण करना है। मैंने लोन के लिए भी कह रखा है और अपने दोस्तों से भी सहायता मांगी है। 

इसका अर्थ तो यही हुआ, कि मैं किसी भी लायक नहीं हूं, रति गंभीर होते हुए बोली -मैं भी तुम्हें पैसे दे सकती हूं , वह तुम्हारे पिता ही नहीं, मेरे भी ससुर हैं, ''कंगन'' तो फिर बन जाएंगे किंतु पापा जी के इलाज में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। मैंने और भी पैसे जोड़े हुए हैं, कहते हुए वह अपनी अलमारी की तरफ गई और ₹300000 रुपए उसके हाथ पर लाकर रख दिए, उसने एक-एक पैसा जोड़ा हुआ था, कुछ खुले थे, कुछ बंधे बड़े नोट थे,रति, प्रभात से बोली -ये पापाजी  के इलाज के लिए हैं, आपको किसी से मांगने की जरूरत नहीं है, हां यह अवश्य है, थोड़ी कमी पड़ सकती है क्योंकि मैं इतने ही जोड़ पाई हूं। आजकल लोग गहने , कम ही पहनते हैं ,चोरी- चकारी का डर भी बना रहता है, फिर उन्हें रखने के लिए एक अलग से तिजोरी लेनी पड़ती है। क्यों ?इतने झंझट में पड़ना और यदि तुम्हें मेरा सपना पूरा करना ही है, तो अभी मैं कहीं जा नहीं रही हूं, तुम्हारे साथ ही हूं, यह सपना तो बाद में भी पूरा हो जाएगा किंतु पापा का ठीक होना आवश्यक है। 

प्रभात ने रति के चेहरे की तरफ देखा, और मुस्कुरा दिया, पूरे विश्वास के साथ बोला -तुम्हारे यह पैसे मुझ पर उधार रहे,जब पापा ठीक हो जाएंगे तब मैं, तुम्हारे कंगन अवश्य बनवाऊंगा यह मेरा वादा रहा। 

मेरा' गहना 'तो तुम हो, तुम परेशान हो रहे थे, यदि तुम्हें कुछ हो जाता तो मैं कंगन पहनकर क्या करती ? कहते हुए उसके सीने से लग गई। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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