दामिनी दर्द से कराह रही थी ,उसकी ससुरालवालों ने, उसे शीघ्र ही अस्पताल पहुँचाया। दामिनी की हालत देखकर उसे तुरंत ही भर्ती कर लिया गया। उसके पति योगेश परेशान से उस अस्पताल में चक्कर लगा रहे थे। उसकी सास अस्पताल के मंदिर में हाथ जोड़कर बैठ गयी और भगवान जी से प्रार्थना करने लगी -हे भगवान !अब तो सबको आस लगी है ,मेरा इकलौता बेटा है ,अबकि बार उसके जीवन में खुशियां भर दीजिये। तभी उनके पास एक छोटी सी लड़की आकर, उनके करीब बैठ गयी ,उन्होंने उसे देखा ,वे उसे पसंद तो नहीं करती थीं किन्तु ऐसे समय में उन्हें उसका आना बुरा नहीं लगा और वे उससे बोलीं -तू किसके साथ आई है ?आ बैठ !और भगवान जी से तू भी प्रार्थना कर.... भगवान जी !मुझे एक प्यारा सा भइया दे दीजिये !
तीन साल की अबोध, निम्मी ! क्या जाने ? दादी उसे किस बात के लिए कह रही है ? भैया तो उसे भी पसंद है , मम्मी, बिमार हैं , तभी तो वे लोग अस्पताल में हैं , दादी के कहे अनुसार निम्मी ने भी, भगवान जी के सामने हाथ जोड़ देती है।
कुछ देर पश्चात ही बच्चे के रोने की आवाज सुनाई देती है। दादी उसे वहीं छोड़कर, उधर चल देती हैं , जिधर से आवाज आ रही थी ,उन्हें यह जानने की जिज्ञासा थी, पोता हुआ है या पोती , एक पोती तो पहले से ही है, दूसरी पोती की तो वह कल्पना भी नहीं कर सकतीं, सब बेचैनी से बाहर खड़े प्रतीक्षा कर रहे थे -तभी अंदर से आकर एक नर्स ने जवाब दिया -बधाई हो ! बेटा हुआ है। सरस्वती ने,खुश होकर भगवान जी को धन्यवाद कहा और उनके हाथ जोड़ दिए।
स्वयं उनका नाम 'सरस्वती' है, ज्ञान की देवी ! किंतु अज्ञानता उनमें कूट-कूट कर भरी है। जब उनको पहली पोती हुई थी, तभी परेशान हो गयीं थीं , और क्रोध से बोलीं -लो, आ गई इंदिरा गांधी ! अब यह आ गई है, तो न जाने कितनी लड़कियों की लाइन लग जाएगी ?बेटी का होना ,उनके लिए माता -पिता का मान कम हो जाना था ,बेटी होने पर उसकी सुरक्षा ,उसके लिए दहेज जुटाना ,उसे पढ़ा- लिखाकर दूसरे घर भेज देना ,इसमें कौन सा मान बढ़ता है ? शर्मिंदा होने के लिए ,माता -पिता के लिए तो बेटी का पिता होना ही बहुत था।
तभी कुछ महिलाओं ने समझाया -सरस्वती जी !आप यह तो शुक्र मनाइये !जच्चा -बच्चा दोनों स्वस्थ हैं ,किसी तरह की कोई परेशानी नहीं है, पहला फल है, बेटा हो या बेटी क्या फर्क पड़ता है ? हम तो यह सोचते हैं, जो भी बच्चा हुआ है ,मां और बच्चा दोनों ही स्वस्थ होने चाहिए।
अभी आपने देखा नहीं, तिवारी जी के यहां, पोती भी हुई है, साथ में बीमारी भी लेकर आई, पता नहीं उसकी पीठ में कुछ अजीब सी बीमारी थी डॉक्टर को ऑपरेशन करना पड़ा पहले तो बड़े ऑपरेशन से वह पोती हुई, उसके पश्चात पोती का ऑपरेशन हुआ उससे तो बेहतर यह है, कि जो भी फ़ल ईश्वर ने दिया है, उसे झोली फैला कर ले लो ! उनकी बातों से सरस्वती को थोड़ी सी राहत तो मिली।
आजकल बच्चे होने भी, कम तकलीफ देह नहीं है, खर्चा भी बहुत हो जाता है। पहला बच्चा 'बेटा' हो जाता तब बाद में चाहे कुछ भी हो ,चिंता नहीं रहती। तब उन्होंने नजर भरकर निम्मी को देखा था किंतु जब दूसरी बार कामिनी की गोद भरी, तो उनकी पुरानी इच्छा बलवती हो उठी , चलो, भगवान का शुक्र है ! पोता हो गया उनके कलेजे को भी ठंडक मिल गई। उनका परिवार पूरा हो गया।
धीरे-धीरे दोनों बहन- भाई पढ़ने लगे, और आगे बढ़ने लगे किंतु सरस्वती जी की नजरें ज्यादातर अपने पोते पर रहती थीं , वे उससे ही प्यार करती थी और निम्मी से छुप -छुपकर उसे अलग से, कुछ न कुछ खिलाती रहती थीं बल्कि निम्मी को पढ़ने की बजाय अपनी मां के काम में हाथ बटाने के लिए कहती थीं। वह इतना तो जानती ही थी कि जब यह पढेगी, तो इसका विवाह भी करना होगा, उसके लिए दहेज कहां से आएगा ? कभी-कभी उसे डांटने भी लगती और कहतीं -बेटी ,के माता -पिता होने पर ही बेचारों की गर्दन झुक जाती है।
किंतु अब निम्मी बड़ी हो रही थी, एक दो बार दादी को जवाब भी दे देती थी-'' मेरे माता -पिता को मुझ पर शर्मिंदगी नहीं वरन एक दिन गर्व होगा '' कभी पूछती - दादी ! आप भैया में और मुझमें पक्षपात क्यों करती हो ? जैसा भैया है, वैसे ही मैं हूं।
तू उसके बराबर नहीं हो सकती, वह लड़का है, और तू लड़की !
तो क्या हुआ ? आप भी तो कभी लड़की रही होगीं , मम्मी भी कभी लड़की रही होगी, तभी तो इतने अच्छे तरीके से इस घर को संभालती हैं और मम्मी तो नौकरी भी करती है। बात सच्ची और सटीक कहती थी-किंतु सरस्वती जी के विचारों में कोई परिवर्तन नहीं आया।
निम्मी को उसकी मम्मी समझा देती थी - दादी ऐसी ही हैं, तुम उनकी चिंता मत करो ! हम तुम्हारे मम्मी -पापा तुम्हें बहुत प्यार करते हैं, तुम्हें आगे बढ़ना है,'' खूब पढ़ो और आगे बढ़ो !'' मम्मी के इस तरह समझा ने से निम्मी को मनोबल मिलता और एक दिन निम्मी पढ़- लिखकर बैंक में एक बहुत बड़ी अधिकारी बन गई। सभी ने उसका सम्मान किया। उसके हृदय में एक चाहत थी - मुझे देखकर यह भाव दादी के चेहरे पर भी आना चाहिए।अपने सम्मान की वीडियो लाकर उसने घर में चलाई उसे देखकर सभी खुश हुए, उसने दादी की तरफ देखा-' दादी भी वो वीडियो देख रही थीं फिर भी उन्हें लगता था , इसका मान -सम्मान हमारे किस काम का, यह तो कल को विवाह करके अपनी ससुराल चली जाएगी। ससुराल वालों को यह सब नहीं दिखता है। उन्हें तो एक अच्छी बहू चाहिए होती है, जो उनका मान सम्मान करें ! और उनके परिवार को संभाले।
अब सरस्वती जी महसूस तो करती थी कि लड़की होशियार है एक मुकाम पर पहुंच चुकी है , एक दिन उसके लिए अच्छे घर से रिश्ता भी आ गया, और उसका विवाह उस लड़के के साथ हो गया। तब विदाई के समय, निम्मी अपनी दादी से बोली -दादी अब क्या कहोगी ?क्या मेरे लड़की होने पर, अभी भी आपको शर्म महसूस होती है , अपने माता-पिता के लिए अपने परिवार के लिए मैं शर्म नहीं, मैं उनका गर्व हूँ , यह कहकर सम्मान के साथ वह अपनी ससुराल चली गई।
