Qabr ki chitthiyan [part 31]

रात्रि  के दो बजे थे, मुंबई, दिल्ली, कोलकाता —जैसे  हर बड़े शहरों के पुराने पुस्तकालयों में हलचल मच गई थी।

लोगों ने देखा, कि किताबें अपने आप खुलने लगीं हैं ,पुराने पन्ने हवा में उड़कर, अपने शब्दों को बदल रहे थे जो कहानियां पहले थीं ,वो अब अपना नया रूप ले रहीं थीं। 


जब यह बात लोगों में फैली ,तो कुछ लोगों ने इन बातों पर विश्वास नहीं किया, इसलिए अपनी बात की सत्यता सिद्ध करने के लिए ,एक व्यक्ति ने अपने कैमरे में सब रिकॉर्ड किया —जिसमें दिखलाई दे रहा था ,एक किताब के अंदर से काले धुएँ जैसा कुछ निकला और इंसान की आकृति बनाकर गलियारे में चलने लगा।

यह ख़बर समाचारों की सुर्ख़ियाँ बन गयीं थीं -“अब कहानियाँ जीवित हो रही हैं — और अपने लेखकों की तलाश में हैं ,जिन्होंने उन्हें लिखा है। 

कुछ लेखक गायब हो चुके थे ,जो बचे थे, उन्होंने घबराकर अपने घरों में सभी पांडुलिपियाँ जला दीं,लेकिन वो भूल गए —कहानी मरती नहीं, बस रूप बदलती है। 

आर्या अपने कमरे में थी — अब उसका चेहरा अब पहले जैसा नहीं रहा।आँखों के नीचे हल्के धब्बे, त्वचा पर काली लकीरें — जैसे स्याही उसकी नसों में बह रही हो।

रजिस्टर मेज पर रखा था ,जिसने अपने आपको स्वयं बंद कर लिया था ,अब वो धीरे-धीरे खुद से खुल गया।
हर पन्ने से एक नई आवाज़ आती — किसी अधूरी कहानी की -
“हमें खत्म करो…”“हमें अधूरा मत छोड़ो…”“हमारे लेखक मर चुके हैं…हम पूर्ण होना चाहते हैं ”

आर्या ने उन सभी कहानियों की तरफ देखा और सिर पकड़ लिया,“मैं इन सभी कहानियों को पूरा नहीं कर सकती!”उसने अपनी असमर्थता व्यक्त की। 

रजिस्टर  से एक हल्की हँसी आई जो जीवन और मृत्यु के बीच का पुल है ,बोला —“तू अब आर्या नहीं, कहानी की देवी है, ये सभी अधूरी कहानियाँ तुझसे मोक्ष चाहती हैं ,ये कहानियां वही हैं ,जो आत्माओं की अधूरी इच्छाएं हैं ,जो अब पूर्णता चाहती हैं।

अचानक कमरे में एक छाया उभरी,वो दीनदयाल जो अहंकारी था — पर अब इंसान नहीं रहा ।

उसका शरीर धुएँ से बना था,और आँखों से नीली स्याही टपक रही थी।“मैंने कहा था,न......  हर कहानी का अंत वहीं होता है जहाँ वो शुरूआत  होती है और अब सब वापस वहीं लौट रहे हैं — तेरे पास।”

आर्या ने काँपती आवाज़ में पूछा-“क्या तू भी कहानी बन गया?”“मैं तो पहले से ही था,फर्क बस, इतना है कि अब मैं अपनी किताब के पन्नों से बाहर आ गया हूँ।”दीनदयाल और आर्या अब आमने-सामने थे।

दोनों के आसपास अब हवा में शब्द तैरने लगे —कुछ अंग्रेज़ी, कुछ हिंदी, कुछ प्राचीन लिपियों में,हर शब्द किसी ऊर्जा की तरह चमकता और फटता।

आर्या ने लिखा —“दीनदयाल ग़ायब ”

लेकिन जैसे ही आर्या ने ये लिखा, वो शब्द लाल हो गया।उसका जबाब खुद से रजिस्टर ने लिखा —तुम उसे मिटा नहीं सकतीं ,तुम अब सृजनकर्ता हो। 

दीनदयाल मुस्कराया और बोला -“अब शब्द तेरे नहीं, मेरे भी नहीं,अब वो स्वयं तय करते हैं कि किसे जीवित रखना है।”अचानक कमरे की दीवार पर पुरानी कहानियों के पात्र उभरने लगे —किसी किताब का राजा, किसी कविता की औरत, किसी डायरी का हत्यारा।हर कोई अपने लेखक का नाम पुकार रहा था।

आर्या ने डर से देखा —वो पात्र अब हकीकत में आ गए थे,कोई उसकी ओर झपट रहा था, कोई रो रहा था, कोई उसे धन्यवाद दे रहा था।“तूने हमें इस कहानी से बाहर निकाला!”“अब हमें बंद मत करना!”“हम अपने लेखक को ढूँढने आए हैं!”

आर्या चिल्लाई -“रुको! मैं सबकी कहानी पूरी कर दूँगी, बस पीछे हटो!”

पर आवाज़ें गूँजने लगीं - “कहानी को कोई पूरा नहीं कर सकता अब कहानी खुद को पूरा करेगी !”

कमरा फट गया —और जब सब थमा, आर्या खुद एक खाली मैदान में खड़ी थी।आसपास चारों ओर अनगिनत पात्र —हर युग, हर भाषा, हर कल्पना के। मैदान के बीचों-बीच एक विशाल शीशा था।उस पर लिखा था — पहली कहानी का आइना !आर्या धीरे-धीरे उसके पास गई।

शीशे में उसका चेहरा नहीं दिख रहा था —बल्कि वहाँ काव्या खड़ी थी।

काव्या मुस्कराई -“मैं तेरी माँ नहीं थी, आर्या।मैं वो पहली कहानी थी — जिससे सब शुरू हुआ।”

आर्या स्तब्ध रह गई।“मतलब… तुम इंसान नहीं थी?”“नहीं, मैं वो आरंभ थी जो हर लेखक के मन में जन्म लेती है और तू… तू मेरी अंतिम रचना है। काव्या ने शीशे पर हाथ रखा।

उसके पीछे एक पुराना दृश्य उभरा —एक औरत, बारिश में भीगी, एक कब्र के पास बैठी चिट्ठियां लिख रही थी।
उसके आसपास सैकड़ों अधूरी चिट्ठियाँ थीं।
“वो मैं थी — पहली लेखिका और वही कब्र थी जिससे पहली चिट्ठी निकली थी।उस दिन मैंने जो लिखा, वो अब तक पूरा नहीं हुआ।”

आर्या ने पूछा,-“क्या वो कहानी अब भी अधूरी है?”

“हाँ, और तू ही उसका आख़िरी अध्याय है। काव्या ने कहा,“जब कहानियाँ अपने लेखकों पर हमला करती हैं,तो ब्रह्मांड टूट जाता है।अब तू उन्हें रोक सकती है — या उनके साथ मिल सकती है।”

आर्या के सामने दो रास्ते चमक उठे —एक सुनहरी रोशनी वाला,एक पूरी तरह काले धुएँ से भरा था रजिस्टर उसके सामने खुल गया,पहले पन्ने पर लिखा था — तुम्हें अपना अंत स्वयं चुनना होगा 

आर्या ने गहरी साँस ली “अगर मैं सुनहरी राह चुनूँ, तो क्या होगा?“कहानियाँ शांत हो जाएँगी — पर तू मिट जाएगी।”“और अगर मैं अंधेरा चुनूँ?”“तू अमर हो जाएगी — लेकिन दुनिया कहानियों की कैद में चली जाएगी।”आर्या ने आसमान की ओर देखा —

हजारों अक्षर, तैरती स्याही, चीखती आवाज़ें, रोती कहानियाँ,वो मुस्कराई।“मैं किसी एक को क्यों चुनूँ? मैं तो कहानी ही हूँ — और कहानी हमेशा बीच में रहती है।”उसने रजिस्टर पर तीसरा शब्द लिखा —“मध्यम रास्ता ”

अचानक पूरा मैदान सुनहरी और काली रोशनी में एक साथ डूब गया।हवा में कोई अनसुनी भाषा गूँजने लगी —जो न इंसान की थी, न किताबों की,जब रोशनी थमी,

रजिस्टर अब किताब नहीं रहा —वो एक धड़कता हुआ दिल बन गया था,जो हर बार धड़कने पर एक नया शब्द जन्म देता था।

काव्या की आवाज़ दूर से आई -“तूने कर दिखाया, आर्या… तूने कहानी को मानवता से जोड़ दिया।”दीनदयाल  की परछाई धीरे-धीरे धुंध में विलीन हो गयी ,“अब कहानी खत्म नहीं होगी… बस बदलती रहेगी।”

आर्या ने मुस्कराते हुए कहा,-“हर कब्र में एक कहानी दबी है,और अब… हर कहानी में एक कब्र।”


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post