Mysterious nights [part 129]

 रूही जैसे ही, हवेली के अंदर पहुंची ,उसे ऐसा लग रहा था जैसे बहुत सारे चित्र उसके मस्तिष्क में चलचित्र की तरह घूम रहे हैं, सब कुछ एकदम इतनी तेज़ी से हो रहा था उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था क्या सही है और क्या गलत है ?कुछ स्मृतियाँ जो अभी भी अस्पष्ट थीं, जब वह गाड़ी से उतरी और उसने हवेली के अंदर जाने के लिए चौखट पर आगे कदम बढ़ाया। उसे चक्कर सा आने लगा और सब कुछ उसकी आंखों के सामने घूम गया।

 उसकी हालत देखकर गर्वित ने पूछा - क्या तुम ठीक हो ?



इससे पहले कि वह कोई जवाब नहीं दे पाए वो वहीं पर बैठ गई, सब कुछ उसकी आंखों के सामने चलचित्र की तरह घूम रहा था। धीरे-धीरे वह वहीं गिरकर बेहोश हो गयी, उसकी हालत देखकर, गर्वित ने उसे गोद में उठाया -और दमयंती जी को आवाज़ लगाई - मम्मी !जरा इधर आना ! कहते हुए आगे बढ़ गया। रूही को मेहमान कक्ष में, लेजाकर लिटा दिया , और घर के नौकर से, दमयंती को बुलाने के लिए कहा।

 कुछ देर पश्चात, गहनों से लदी, भारी साड़ी में दमयंती जी आती हैं और रूही को देखकर, गर्वित से पूछती हैं -कौन है ? ये , इसे क्या हुआ है ?

यही तो रूही है ,डॉक्टर साहब की बेटी , मैं नहीं जानता ,इसे क्या हुआ है ? जब यह अंदर आ रही थी,अचानक ही जमीन पर गिर पड़ी , डॉक्टर को बुला लेते हैं। 

नहीं, डॉक्टर की आवश्यकता नहीं है, मुझे लगता है, सफर की थकान होगी, इसके मुंह पर पानी से छींटे  मारो !शायद यह ठीक हो जाए। 

मम्मी !इस तरह कोई ठीक होता है। 

क्या तुम इसे अच्छे से जानते हो ? उन्होंने गंभीरता से गर्वित की तरफ देखते हुए पूछा। 

हां, मैं इसके परिवार और इसे बहुत अच्छे तरीके से जान गया हूं। डॉक्टर साहब ! बहुत अच्छे और भले लोग हैं, उनकी यह बेटी है।

इसके पिता से ही फोन करके पूछ लो !शायद इसे कोई बिमारी रही हो। 

मम्मी !आप ऐसे समय में, ये कैसी बातें कर रहीं हैं ? मुझे डॉक्टर को बुलाने दीजिये। 

तब तक रामदीन पानी लेकर आ गया था ,दमयंती जी ने रूही के मुँह पर पानी से छींटे मारे ,गर्वित डॉक्टर को फोन कर रहा था, तभी दमयंती जी बोलीं -देख ,इसे होश  आ रहा है। 

रूही ने आँखें झपकाई ,उसे अपने ऊपर कई चेहरे नजर आये ,एकदम से जैसे सोते से जागी हो,फुर्ती से उठ बैठी ,उसका तन काँप रहा था। उसकी आंखों में दहशत भरी थी, ऐसा लग रहा था जैसे उसने कोई भूत देख लिया हो। 

गर्वित ने, रूही की हालत को देखकर पूछा -क्या तुम ठीक हो ?रूही ने सिर्फ गर्दन हिलाई , तब गर्वित ने रामदीन से कहा-मैडम के लिए पानी लेकर आओ !

रामदेव वापस जाने के लिए मुडा ही था तभी एकदम से रूही बोल उठी,-नहीं, मुझे घर जाना है , मुझे घर छोड़ आओ ! उसने एक नजर दमयंती की तरफ डाली और नफरत से अपनी नज़रें घुमा लीं। 

बेटा ! तुम्हें हुआ क्या है? तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं थी तो तुम्हें यहां नहीं आना चाहिए था, हो सकता है, तुमने विवाह से पहले, इस हवेली में कदम रखा है, इसीलिए तुम्हारी तबियत बिगड़ गई है। हर घर- परिवार की कुछ नियम और कायदे होते हैं। तुम्हें अपनी होने वाली ससुराल में विवाह से पहले नहीं आना चाहिए था।

 रूही एकदम से उठ खड़ी हुई, और गर्वित से बोली -तुम, मेरी बात सुन क्यों नहीं रहे हो ? चलो ! मुझे यहाँ वापस जाना है, कहते हुए बाहर की तरफ जाने लगी, उसे किसी की कोई परवाह नहीं थी, कौन, क्या कहेगा, क्या सोचेगा ?बोराई सी बाहर की तरफ भाग रही थी। 

रुको !तो सही , मैं गाड़ी निकाल रहा हूँ ,गर्वित तुरंत गाड़ी की तरफ दौड़ता है , रूही के इस अप्रत्याशित व्यवहार से वह भी अचम्भित था और सोच रहा था -आखिर इसे क्या हुआ है ? रास्ते में भी रूही ने, गर्वित से कोई बात नहीं की, उसने पूछने का प्रयास भी किया लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया।ऐसा लग रहा था ,जैसे वह उसके साथ नहीं कहीं और ही हो ,उसके तन का कांपना अभी बंद नहीं हुआ था। 

रूही ! तुम ठीक हो,क्या तुम्हें ठंड लग रही है ?गर्वित ने जानने का प्रयास किया ,रूही ने उसकी तरफ देखा ,जिसे देखकर वो सहम गया ,रूही की आँखें लाल अंगारे सी धधक रहीं थीं।   

तारा जी और डॉक्टर अनंत ने तो सोचा था, कि ये दोनों गए हैं तो शाम तक ही लौटेंगे, लेकिन दो-तीन घंटे के पश्चात ही रूही उनके सामने खड़ी थी। रूही की हालत को देखकर दोनों हतप्रभ रह गए, उसकी हालत देखी तो पूछा -बेटा !क्या हुआ है ? क्या तुम ठीक हो ?किन्तु तुहि ने कोई जबाब नहीं दिया। 

 उन्होंने गर्वित से पूछा-ये तो तुम्हारे साथ गयी थी, तुमने इसे क्या कर दिया ?ये इस तरह क्यों परेशान है? देखकर तो ऐसा लग रहा है,जैसे यह बीमार हो गई है ,या कोई ड़र !!!

यह बात तो मैं भी नहीं जानता,इसने जैसे ही, हवेली में कदम रखा , यह बेहोश हो गई ,गर्वित ने सही बात बताई और होश में आते ही घर आने की ज़िद की ,तब से न ही कुछ बोल रही है ,न ही कुछ बता रही है।  दोनों आश्चर्य से एक दूसरे का मुंह देखने लगे। आप डॉक्टर हैं, आप ही देख लीजिए आपकी बेटी को क्या हुआ है, यह क्यों बेहोश हुई है ?

अच्छा, बेटा !अब तुम जा सकते हो ? हम इसका ख्याल रख लेंगे। गर्वित के जाने के पश्चात उन्होंने रूही से पूछा -आखिर क्या हुआ था ? तुम इस तरह बीमार सी क्यों लग रही हो ? लेकिन रूही ने कोई जवाब नहीं दिया। वह अभी भी जैसे, कहीं और देख रही है ,सामने क्या हो रहा है ?कोई क्या पूछ रहा है ?उसके कानों में जैसे शब्द पड़ ही नहीं रहे हैं, उसकी आंखों में आंसू थे, और तन काँप रहा था। डॉक्टर साहब ने उसकी हालत देखी और उसके इंजेक्शन लगाया और रुही से कहा- तुम अब अपने कमरे में जाकर आराम कर सकती हो।

 रूही के जाने के पश्चात ताराजी में, डॉक्टर साहब से कहा -आपको ध्यान है, उन महात्मा ने क्या कहा था -जैसे ही यह हवेली की चौखट पर कदम रखेंगी, उसे सब कुछ याद आ जाएगा। मुझे लगता है, इसके साथ ऐसा ही कुछ हुआ है जिसे यह बर्दाश्त नहीं कर पाई ,कहीं इसकी स्मृतियां वापस तो नहीं लौट आई उन्होंने संभावना व्यक्त की।  

हम्म्म्म ऐसा हो सकता है। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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