'' करवा चौथ '' कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि को कृष्ण पक्ष में मनाया जाता है। यह व्रत आध्यात्मिक ही नहीं, भावनात्मक बंधन भी है ,जो पति -पत्नी के प्रेम, विश्वास और समर्पण को दर्शाता है। यह त्यौहार नारी शक्ति और घर की खुशहाली का प्रतीक है। पुराणों में इसका वर्णन है -माता पार्वती ने कठोर तपस्या करके भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया था। सावित्री और सत्यवान की कथा भी, इसका सबसे बड़ा उदाहरण है -'सावित्री ने अपने अटूट प्रेम और भक्ति से यमराज से भी अपने पति को जीवनदान दिलवा दिया था। ' इससे यह स्पष्ट होता है, स्त्री का संकल्प लौकिक सीमाओं को लांघकर अलौकिक को भी प्रभावित कर सकता है।
इस व्रत में उपवास, पूजा और कथा के माध्यम से स्त्री अपने पति के जीवन की सुरक्षा का भार ईश्वर को सौंपती है, और अपना दृढ़ विश्वास ईश्वर के प्रति जतलाती है, ईश्वर उसके सुहाग की रक्षा करेगा। यह स्त्री का 'भक्ति भाव' व्यक्तिगत ना होकर ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ चुका होता है। जिस तरह से,'' सात फेरे लेने के पश्चात, कहते हैं- कि 7 जनमों के लिए यह रिश्ता जुड़ जाता है। इस प्रकार, एक नारी के अटूट विश्वास की भी परीक्षा होती है कि वह अपने भक्ति और श्रद्धा से, ईश्वर से उसे मांग लाती है।
कहते हैं-' यह प्रथा देवी देवताओं की समय से चली आ रही है ,जब देवताओं पर राक्षसों ने, आक्रमण किया था तब सभी देवियों ने, अपने पति की सुरक्षा के लिए, सोलह शृंगार करके, निर्जला व्रत किया था और जब वे लोग जीत कर आए थे, तभी उन्होंने चंद्रमा और अपने -अपने पतियों के चेहरे देखकर, उनकी जीत की खुशी में, वह व्रत खोला था।
कुछ लोगों का कथन है -कि एक' करवा 'नाम की स्त्री थी जो इतनी पवित्र थी, कि वह अपने पति को मगरमच्छ के चंगुल से बचा लेती है।''करवा ''एक मिटटी बर्तन भी होता है ,उस कोरे करवे को पूजा का माध्यम बनाया जाता है। ख़ैर अलग -अलग जगहों पर, इसकी कहानी, कथाएं अलग-अलग हो सकती हैं, किंतु इसका उद्देश्य सिर्फ एक ही है ,वह है- अपने पति की लंबी आयु और सुरक्षा का भार वह ईश्वर को सौंप देती है या यूँ कहें ईश्वर से अपने पति का आजीवन साथ पाने की प्रार्थना करती है। अपनी भक्ति -श्रद्धा से, उसके प्रेम और विश्वास को जीतती है।
कारण कोई भी रहा हो, कहानी कोई भी रही हो किंतु यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, किंतु समय के साथ-साथ लोगों की विचारधारा बदलती जा रही है। आजकल बड़े-बड़े सत्संगों में भी यह कहा जाता है -'कि तुम्हारा व्रत रखने से, क्या पति की उम्र लंबी होगी ? ऐसा नहीं होता है। यह एक तर्कशील मत है -'' विश्वास नहीं, जहां विश्वास होता है वहां तर्क नहीं होता,'' और यदि किसी नारी को विश्वास है कि मुझे अपने पति की सुरक्षा का भार ईश्वर को सौंपना है , तो भला, उसकी बात ईश्वर कैसे नहीं सुनेंगे ? किंतु आज के समय में न ही इतना, विश्वास रहा है न ही वह श्रद्धा भावना रही है ,सुनने में तो आया है -''चाहने वाले को पत्थर में भी भगवान मिल जाते हैं। ''
कलयुग के साथ-साथ,लोगों की सोच में परिवर्तन आया है, अब यह ''करवा चौथ ''एक त्यौहार नहीं ,एक रीति- रिवाज नहीं वरन सजने- संवरने, और अपने लिए जीने का माध्यम बन गया है। पति के प्रति वह प्रेम भाव रहे या ना रहे किंतु उसे यह त्योहार मनाना है, क्यों ?क्योंकि एक यही दिन तो होता है जिसमें वह अपने लिए सजती -संवरती है अब यह त्यौहार उसका सजने -संवरने का माध्यम ''स्व'' के लिए हो गया है ,सजना के लिए नहीं।
आजकल इतनी 'वीडियो' बन रही हैं, उन्हें देखकर तो जो इस, त्यौहार का आध्यात्मिक रूप था, वह धीरे-धीरे विकृत होता जा रहा है। उन्हें देखकर तो यह त्यौहार, एक त्यौहार नहीं, बल्कि एक मजाक बनकर रह गया है। जब आने वाली पीढ़ी ऐसी वीडियो देखेगी, तो उसके मन में इस त्यौहार के प्रति क्या भाव होंगे ? कोई भी इस त्यौहार के महत्व को प्रेम और भक्ति से नहीं देखेगा या समझेगा।
कुछ लड़कियां शौकिया व्रत रखतीं हैं। यह त्यौहार पति-पत्नी के रिश्ते को और मजबूत बनाने के लिए उनके रिश्ते में प्रगाढता लाने के लिए, मनाया जाता है ताकि इस व्यस्त जीवन में कुछ समय या एक दिन उन दोनों का अपना हो किंतु समय के साथ-साथ, अब सोच भी बदलता जा रही है। महिलाओं को, सजने - संवरने, और पति से पैसे मांगने, महंगे से महंगा खर्च करने, का ही स्रोत बताया गया है और पति को दिखलाया जाता है, कि उसे भी पत्नी की भावनाओं की कोई कदर नहीं है , वह भी पैसे के लिए रोता है , वह कितना खर्च कर रही है ?
इन वीडियो को देखकर तो, ऐसा कहीं भी नहीं लगता, कि इसका कोई परंपरागत आध्यात्मिक रूप भी है। अभी मैंने एक वीडियो देखी जिसमें एक लड़का, लड़की बनकर एक कुत्ते की पूजा कर रहा था, हमारी संस्कृति, सभ्यता के साथ इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है ? जब इस तरह की भावनाएं समाज में प्रबल होगीं , तो कैसे? किसी महिला के मन में, अपने पति के प्रति वह प्रेम, वह विश्वास जागेगा। कि दीपावली से पहले लक्ष्मी के वाहन उल्लू की पूजा होती है ,देख - सुनकर लोग हंसते हैं, किंतु कोई यह नहीं कहता, कि यह हमारी परंपराओं पर सीधा-सीधा प्रहार है।
मुझे तो लगता है ,आने वाले समय में, ये त्यौहार एक मजाक बनकर रह जाएंगे और मजाक बनाने वाले भी अपने ही लोग हैं। हो सकता है, कि यह त्यौहार न भी मनाया जाए क्योंकि आजकल की लड़कियों में, अपने पतियों के प्रति भी वह प्रेम और विश्वास नहीं झलकता है। महिलाओं की विचारधाराएं भी इतनी शुद्ध नहीं रह गयीं हैं कि वह अपने पति की लंबी उम्र की कामना करें ! यदि ऐसा ही होता, तो नीले ड्रम में किसी का पति नहीं मिलता, यदि ऐसा ही होता, तो नई नवेली दुल्हन, हनीमून के बहाने पति को पहाड़ से नीचे नहीं फेंकती।
यह अविश्वास कहां से आया ? जो अपने रिश्तों के प्रति भी प्रेम को नहीं दर्शाता है। रिश्ते शर्तों पर ,डगमगा रहे हैं ,आपस में विश्वास नहीं है ,एक -दूसरे को शक की दृष्टि से देखते हैं। जब ऐसी भावना लेकर जीवन यापन कर रहे हैं तो इस त्यौहार के प्रति क्या रूचि रह जाएगी ?वरना ऐसे त्यौहार, रिश्तों में ताज़गी भरने के लिए एक स्वास्थ्यवर्धक ख़ुराक का काम करते हैं। लोग कहते हैं -''लोग बदल रहे हैं ,उनकी सोच बदल रही है किन्तु आने वाली पीढ़ी को समझाना ,परम्पराओं का सम्मान कराना भी तो हमें ही सिखाना होगा'' किन्तु आजकल बच्चे माता -पिता की सुनते ही कहाँ है ?ये बात अक्सर सुनी जाती है ,सारा दिन फोन में लगे रहते हैं ,तो फिर क्यों न इन वीडियों के माध्यम से ही अपनी इन परम्पराओं ,रीति -रिवाजों से अवगत कराया जाये,उनका मखौल नहीं ,उन परम्पराओं में उनका विश्वास जगे ,प्रेम और श्रद्धा भाव जगे।
जब इन वीडियों को देखते है, कुछ लोगों को तो हंसी आती होगी किन्तु दुःख होता है, किस तरह हमारे त्योहारों का उपहास किया जा रहा है ,एक स्त्री पति की छाती पर चढ़कर चाँद को देखकर व्रत तोड़ रही है ,जिसके लिए व्रत रखा है ,उसके जीवन में उसका कोई महत्व नहीं ,इसे देखकर आने वाली पीढ़ी के मन में इस त्यौहार के प्रति कैसे सम्मान जाग सकता है ?उसी के लिए व्रत रखना है ,उसी को चूना लगा रही है। ये एक यही त्यौहार नहीं हर त्यौहार का इसी तरह मजाक बनाया जाता है और आप और हम देखकर हँसते हैं निकल जाते हैं किन्तु इसका आगे क्या प्रभाव हो रहा है ,क्या किसी ने सोचा है ?
अलौकिक ऊर्जा के प्रति तभी तो विश्वास जागेगा ,जब इहलोक में इंसानों में प्रेम और विश्वास जागेगा।उस शक्ति तक पहुंचने के लिए ,पहले उसकी बनाई रचनाओं ,परम्पराओं में विश्वास जगाना होगा।