कुछ यादें हैं, धुंधली सी,
कुछ बातें हैं, बिसरी सी,
वो !कभी जिन्दा इंसाँ थी।
वो बेहतरीन ,बेमिसाल थी।
आंगन में उसकी,' पद्चाप' थी।
हंसी से,उसकी घर में बहार थी।
आज तस्वीर में' क़ैद 'हो गयी है।
वो तस्वीर!' गुमशुदा' हो गयी है।
कभी बढ़ाती थी, शोभा ! शयनकक्ष की ,
आज स्टोर में रखी, ग़ुमशुदा सी हो गयी है।
पीढ़ी दर पीढ़ी स्थान अपने बदलती गयी।
वो !भूली -बिसरी कहानी कहाँ खो गयी है ?
कभी करते थे ,उसका अनुसरण !
जिन्दा थी, तो रिश्तों में गुम हो गयी थी।
दिन बदले ,साल बदले ,जीवन गया,
गुमशुदा रही हरदम ,तन्हाइयों में साथ थी।
तू ! कहीं भी रहे ! तेरी परछाइयाँ आज भी साथ हैं।