Qbar ki chitthiyan [part 9]

अर्जुन ,राघव और काव्या,गुरुदत्त के पुश्तैनी मंगला गांव में उसकी सच्चाई जानने के लिए जाते हैं ,वहां उसकी बरसों पुरानी हवेली के तहखाने में उतरते हैं , उस तहखाने के अंदर आगे बढ़ते जा रहे थे ,तभी उन्हें दीवार पर कुछ मंत्र दिखलाई  दिए -जिसका अर्थ था ,रक़्त द्वारा ही आगे के द्वार को खोला जा सकता है। इस बात से तीनों परेशान हो उठे।  राघव ने गुस्से से कहा—“ये क्या पागलपन है? किसी की ज़िंदगी की क़ीमत पर हमें ये रहस्य नहीं चाहिए।”लेकिन तभी अर्जुन की जेब में रखी, पुरानी चिट्ठी से जलन होने लगी ,उसने तुरंत ही उस चिट्ठी को जेब से बाहर निकाला ,उस पर शब्द उभरे—“तेरा रक्त ही ये द्वार खोलेगा।”


अर्जुन ने अपनी हथेली परपास ही पड़े पत्थर से,अपनी हथेली पर हल्की सी चोट लगाई और दीवार पर हाथ रख दिया। जैसे ही अर्जुन का रक़्त उस दीवार को लगा, तहख़ाने का दरवाज़ा धीरे-धीरे खुलने लगा । जैसे ही उन्होंने अंदर झाँका ,अंदर का नज़ारा देखकर उनके रोंगटे खड़े हो गए ,चारों ओर बच्चों के खिलौने पड़े थे—जले हुए गुड्डे, टूटी गाड़ियाँ, और ब्लैकबोर्ड पर लिखी अधूरी कविताएँ ! मध्य में एक बड़ा लोहे का पिंजरा था।पिंजरे में सिर्फ़ राख और हड्डियों के टुकड़े पड़े थे।मानो, बच्चों को यहीं कैद करके उनकी बलि दी गई हो।

काव्या की आँखों से आँसू बह निकले,“हे भगवान… ये जगह नरक है।”

अर्जुन ने आस -पास देखा,उसने देखा ,पिंजरे के पास एक मोटी डायरी रखी है ,अर्जुन ने बिना देर किये वो डायरी उठाई ,उसके कवर पर लिखा था—“गुरुदत्त”।

डायरी के पन्ने खोलते ही एक सच्चाई सामने आई—

  • गुरुदत्त सीनियर खुद एक तांत्रिक नहीं था।

  • वह एक बड़े उद्योगपति के लिए बच्चों की आत्माएँ कैद करता था।

  • इन आत्माओं से उस आदमी की “ताक़त” बढ़ती, और उसका कारोबार फैलता।

  • उद्योगपति का नाम था—''महेश्वर प्रसाद।''

अर्जुन की साँस अटक गई।“मतलब… ये सब सिर्फ़ लालच और ताक़त के लिए किया जा रहा था।गुरुदत्त जूनियर अपने पिता का खेल आगे बढ़ा रहा है… लेकिन असली मास्टरमाइंड' महेश्वर प्रसाद' था।”

राघव गरजा—“तो अब अगला कदम साफ़ है, हमें 'महेश्वर' को ढूँढना होगा।”अचानक तहख़ाने की हवा भारी होने लगी ,खिलौने अपने आप हिलने लगे, ब्लैकबोर्ड पर खुद-ब-खुद लिखे शब्द उभरे लगे —“तुम्हें नहीं जाना चाहिए था।”

बच्चों की परछाइयाँ, दीवारों से निकलकर उनकी ओर बढ़ने लगीं, टॉर्च की रोशनी बुझ गई,अंधेरे में सिर्फ़ बच्चों की चीखें गूँज रही थीं।

काव्या ने अर्जुन का हाथ कसकर पकड़ लिया और बोली -“ये आत्माएँ… अभी भी फँसी हुई हैं।”

अर्जुन ने डायरी कसकर पकड़ ली,क्योंकि उसी डायरी में लिखा था -“यही डायरी उनकी मुक्ति की चाबी है।”

तभी अचानक तहख़ाने के दरवाज़े पर ज़ोरदार धमाका हुआ,जैसे कोई उसे बाहर से तोड़ने का प्रयास कर रहा हो।

तब बाहर से ही, एक गहरी और क्रोध में भरी आवाज़ आई—“अर्जुन! वो डायरी, मेरे हवाले कर दे… वरना ये तहख़ाना ही तेरी कब्र बन जाएगा।”वह आवाज़ ,गुरुदत्त जूनियर की थी। 

अर्जुन ने राघव और काव्या की ओर देखा और उसने जबाब दिया -“अब या तो हम यहाँ से सच्चाई लेकर निकलेंगे… या फिर हमेशा के लिए यहीं रह जाएँगे।

 जूनियर की आवाज़ तहख़ाने की दीवारों में गूँज रही थी -“अर्जुन! जो रास्ता तूने चुना है, वो तुझे मौत के अलावा कुछ नहीं देगा। डायरी मुझे दे दे… वरना अभी यहीं सब राख में बदल जाएगा।”

अर्जुन ने ज़ोर से कहा—“ये डायरी अब तेरे पापों का सबूत है,अगर आज मैंने इसे खो दिया, तो कल हजारों और बच्चे तेरा शिकार बनेंगे ,मैं इसे ,तुझे तो किसी भी कीमत पर नहीं दूँगा।”

बाहर से दरवाज़ा ज़ोर-ज़ोर से बजने लगा ,हर चोट से तहख़ाने की छत काँप रही थी।

काव्या काँपते स्वर में बोली—“अगर ये दरवाज़ा टूटा तो हम बच नहीं पाएँगे।”

राघव ने पिस्तौल निकाली और क्रोध से बोला -“बचेंगे… लेकिन पहले हमें लड़ना होगा।” 

अचानक ज़ोरदार धमाके के साथ दरवाज़ा टूट गया, गुरुदत्त जूनियर अंदर दाख़िल हुआ ,उसकी लाल आँखें , चेहरे पर अजीब-सी हँसी, और हाथ में जलती हुई मशाल ! उसके कदमों के साथ हवा भारी होती जा रही थी।मानो तहख़ाने की हर चीज़ उसकी मौजूदगी से झुक रही हो।“तो… तुम सब मेरी दुनिया में घुस ही आए। आ तो गए हो, किन्तु अब देखो, तुममें से कोइ जिंदा बाहर नहीं जा पाएगा। ”

गुरुदत्त ने मशाल हवा में घुमाई और अचानक एक आग का गोला अर्जुन की ओर फेंका।अर्जुन उस गोले से '' बाल-बाल बचा'', लेकिन दीवार से टकराकर गिर पड़ा।

मौका देखते ही ,राघव ने पिस्तौल चलाई—धाँय! गोली सीधे ''गुरुदत्त ''के सीने पर लगी, लेकिन यह क्या ?उस गोली के लगने से ,उसके शरीर से सिर्फ़ राख झरने लगी।

वह हँसा,और बोला -मूर्खों !“पिस्तौलें आत्माओं की ताक़त पर असर नहीं करतीं।”

फिर उसने अपना हाथ उठाया और पिंजरे की तरफ इशारा किया ,अचानक पिंजरे के पास पड़े, खिलौने हवा में उड़कर राघव पर टूट पड़े।राघव उनसे अपना बचाव करते हुए ,ज़मीन पर गिर गया, पास में पड़े एक पत्थर से उसका माथा टकराया ,जिसके कारण उसके माथे से खून बहने लगा।

अर्जुन ने हिम्मत जुटाई और डायरी उठाकर जोर से चिल्लाया—“यही तेरे विनाश की चाबी है, गुरुदत्त!”कहते हुए ,उसने डायरी का एक पन्ना फाड़कर मशाल की लौ में जला दिया,जैसे ही वह पन्ना जला, हवा में एक चीख़ गूँजी—एक बच्चे की आत्मा अचानक रोशनी में बदलकर गायब हो गई।

गुरुदत्त तड़प उठा।“नहीं! ये मत करना! ये आत्माएँ मेरी शक्ति हैं!”

अर्जुन चीखा—“ये बच्चे, तेरे गुलाम नहीं… अब ये बेबस आत्माएं हैं !जिनका तू अपने स्वार्थ के लिए अनुचित लाभ उठा रहा है और मैं इन्हें मुक्त करके रहूंगा !”जैसे ही एक आत्मा मुक्त हुई, बाकी आत्माएँ भी कांपने लगीं,अब वे भी मुक्ति चाहती थीं। 

वे अब गुरुदत्त के चारों ओर घूमकर, उसे घूरने लगीं,उनकी आँखों में आँसू और गुस्सा था।

गुरुदत्त गरजा—“तुम सब मेरी कैद में हो !मेरा आदेश मानो!”

तुम्हें अब इसकी आज्ञा मानने की कोई आवश्यकता नहीं है ,इसने तुम्हें बंदी बनाया है ,और आज मैं तुम्हें इसके चंगुल से मुक्त करूंगा ,अर्जुन चिल्लाया। 

अब आत्माएँ गुरुदत्त की कोई बात नहीं सुन रहीं थीं,उन्होंने पिंजरे को हिलाना शुरू किया,उन्होंने उसे इतनी जोर से हिलाया ,पिंजरे की लोहे की छड़ों से चिंगारियाँ निकलने लगीं।

यह देखकर काव्या में भी हिम्मत आई और काव्या ने अचानक फर्श से टूटा हुआ, लोहे का सरिया उठाया और गुरुदत्त की ओर बढ़ी।“ तूने मुझे कैद करने की कोशिश की थी… तो अब मैं भी तुझे कैद करूँगी।”उसने पूरी ताक़त से वह लोहे का सरिया गुरुदत्त की पीठ पर दे मारा, गुरुदत्त कराहा और पलटकर उसकी ओर बढ़ा।

अर्जुन ने झट से काव्या को अपनी ओर खींच लिया,गुरुदत्त का हाथ दीवार से टकराया,जहाँ पर कुछ लोहे की कीलें गड़ी हुई थीं ,उन कीलों के कारण , गुरुदत्त के हाथ से खून जैसा काला द्रव्य निकलकर फैलने लगा ।

देखो !अब ये इंसान नहीं रहा, शैतान बन गया है ,अर्जुन ने उसके तन से निकलते, उस काले बहते द्रव्य की तरफ इशारा करते हुए कहा। एक आत्मा, जो अभी हाल ही में मुक्त हुई थी, अर्जुन के पास आई,उसकी मासूम आवाज़ अर्जुन के कानों से टकराई —“डायरी नष्ट कर दो… तभी हम सब आज़ाद होंगे।”

अर्जुन ने तुरंत ही डायरी को आग में झोंक दिया ,उस डायरी के पन्ने जलने लगे,हर पन्ना जलते ही, एक आत्मा मुक्त होती गई।




laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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