Mysterious nights [part 123]

आज प्रातःकाल जब रूही उठी तो प्रतिदिन की तरह ही, वो नहाने के लिए ही जा रही थी ,तभी उनके घर के फोन की घंटी बजी ,तारा जी सोचने लगीं - शायद, डॉक्टर साहब के लिए किसी रोगी का फोन होगा। उन्होंने जैसे ही, फोन उठाया उधर से आवाज आई -और क्या हो रहा है ? सोकर उठ गयीं ,क्या कर रही हो ?रात को मेरी याद तो आई होगी।  

कौन बोल रहा है ?तारा जी क्रोधित होते हुए बोलीं। 

आप कौन बोल रहीं हैं ?उसने पलटकर पूछा। 

तुम्हें इससे क्या ?तुमने किसे फोन किया है ?तारा जी झुंझलाते हुए बोलीं। 


 ज़रा अपनी 'रूही मैडम' को बुलाइये !उनसे कहना गर्वित का फोन है,गर्वित ने सोचा -बड़े घरों में अधिकतर पहले नौकर ही, फोन उठा लेते हैं।  

कौन गर्वित ?

वो मुझे, अच्छे से जानती हैं ,आप उन्हें बुलाइये !

ठीक है ,अभी बुलाती हूँ ,अभी रूही नहाने के लिए अंदर नहीं गयी थी। तभी तारा जी, रूही की तरफ देखते हुए बोलीं -मैड़म !लीजिये आपका फोन है। रूही अपनी माँ का चेहरा देख रही थी ,आज इन्हें क्या हो गया है ?जो इस तरह से बात कर रहीं हैं ,उसने इशारे से पूछा -सुबह -सुबह किसका फोन आ गया ?

होंठ बिचकाते हुए, तारा जी मुस्कुराईं और बोलीं -मैडम !फोन लीजिये !कहते हुए उसको फोन का रिसीवर पकड़ा दिया। आज पहली बार रूही को किसी का फोन आया है , यह कौन हो सकता है ? सोचते हुए रूही ने फोन को कान से लगाया और बोली -हेलो !

 दूसरी तरफ से बड़ी जानी- पहचानी सी आवाज आई - क्या हो रहा है ? कहीं मैंने तुम्हें परेशान तो नहीं कर दिया ? मेरे फोन की प्रतीक्षा हो रही थी, उस आवाज को पहचानकर, तुम !!! कहकर रूही हड़बड़ा गई और सोचने लगी , इसे तो मैंने कोई नंबर दिया ही नहीं था फिर इसने यह नंबर कहां से लिया ? इसने ही, मुझे अपना नंबर दिया था। 

क्या सोच रही हो ? यही न.... तुमने तो कोई नंबर दिया ही नहीं था। अजी ,हमने तुम्हें अपना नंबर दिया था और तुमने, फोन करने का प्रयास भी किया था किंतु उस समय मैं, तुम्हारा फोन नहीं उठा सका, मम्मी से जो, बातें कर रहा था किंतु हम समझ गए, बेताबी दोनों तरफ है। तब रूही को अपनी गलती का एहसास हुआ उसने उस नंबर से, फोन करके यह जानने का प्रयास किया था कि यह नंबर झूठा तो नहीं है, उसे क्या मालूम था ? इस तरह से उसके पास नंबर पहुंच जाएगा क्योंकि रूही के पास अपना कोई फोन ही नहीं था। न ही अभी तक उसके पास किसी का फोन आया है, उसे फोन की आधुनिक तकनीक के विषय में अभी कोई भी जानकारी नहीं थी। गर्वित के नंबर दिए जाने पर, उसने घर में एकांत देखकर, उस नंबर को लगाने का प्रयास किया था , बस यही उससे गलती हो गई।

 बराबर में तारा जी खड़ी थीं, अब वह क्या कहें ? उन्हें देखकर बोली -आप कौन ?मैं आपको पहचानी नहीं। 

अच्छा जी ! अब हम आप हो गए , इतनी जल्दी हमें भुला दिया, तुम्हारा' गर्वित' बोल रहा हूं। 

क्या ?? उसके हाथ से रिसीवर छुटते-छूटते बचा, यह कब हुआ ?

दिल से दिल को मिलने में समय नहीं लगता..... बस चाहत होनी चाहिए। 

अभी वह कुछ और कहता उससे पहले ही, रूही बोली -देखिए !आप कौन हैं? मैं आपको नहीं जानती अभी मैं नहाने जा रही हूं। 

मुझे लगता है, शायद कोई उधर है, ठीक है, मैं तुम्हें 12:00 बजे फोन करूंगा, तब तो ठीक रहेगा यह कहकर उसने रूही के जवाब की प्रतीक्षा किए बगैर ही , फोन काट दिया। 

मैडम! हमें भी तो पता चले , यह कौन साहब थे ?हँसते हुए तारा जी बोलीं। 

मुझे नहीं मालूम, नज़रें चुराते हुए रूही बोली। 

कहीं यह वही तो नहीं, जिसके विषय में पारो रात बातें कर रही थी, आज तो सुबह-सुबह ही फोन कर दिया। बेटा !तुमने हमें बताया नहीं कि वह कौन है ? तारा जी ने पूछा। 

आकर बताती हूं ,कहकर वह नहाने के लिए चली गई , वहां जाकर उसने अपने हृदय की धड़कनों को शांत किया, मन के अंदर एक खुशी का एहसास हो रहा था चलो !आज मुझे किसी ने फोन किया है पहली बार मुझे फोन आया है। यह तो बहुत ही जल्दी, दिल तक पहुंच गया, कहीं यह मुझसे प्यार तो नहीं करने लगा। वह नहाती जा रही थी और उसके चेहरे की मुस्कुराहट बढ़ती जा रही थी। नहाने के,कुछ देर पश्चात, जब वह बाहर आई तब भी, ताराजी ही उसे दिखलाई दीं। वह समझ गई, कि अब इन्हें सारी बातें बतानी ही पड़ें गी, तब रूही ने पूछा -क्या पार्वती दीदी गई ?

 हां, वह तो बहुत पहले ही निकल गई थी आओ, बैठो !तुम नाश्ता कर लो ! नाश्ता करते हुए नज़रें नीची करके रूही बोली -यह लड़का' बीजापुर' का ही है, उन महात्मा ने बताया था,न....  कि मेरा संबंध बीजापुर की हवेली से है और यह लड़का भी, बीजापुर की हवेली से ही संबंध रखता है क्योंकि ये हवेली के मालिक का पोता है, उसका नाम' गर्वित' है। मैं अगले दिन जानबूझकर इससे मिलने ही गई थी, ताकि मुझे हवेली के विषय में कुछ जानकारी प्राप्त हो सके, यह ज्यादा कुछ तो नहीं बता पाया किंतु मुझे लगता है- यह उस हवेली में जाने का माध्यम बन सकता है। 

कोई बात नहीं बेटा ! हो सकता है, तुम्हारे अतीत की कुछ बातें, इसी तरह तुम्हें मालूम हों , जब हमें पार्वती ने ही सब बतलाया था, तभी हमें लगा था,कि  हमारी बेटी कुछ भी ऐसा गलत कार्य नहीं करेगी, अगर वह ऐसा कुछ कदम उठा रही है, तो अवश्य उसके पीछे कोई बात होगी। रूही के हाथ पर, अपना स्नेह से परिपूर्ण  हाथ रखते हुए ताराजी बोली -अब देखो ! हमारा विश्वास सही निकला। घबराने की कोई बात नहीं है, यदि यह लड़का उस हवेली में जाने का माध्यम बनता है तो अच्छा है। क्या तुम्हें कुछ भी स्मरण हुआ ? इस लड़के को तुमने पहले कहीं देखा है या नहीं।

 हां ,लगता तो है कि देखा है लेकिन कुछ भी याद नहीं आ रहा कब और कहां देखा ? और क्या इसका मुझसे कोई संबंध रहा है ? 

यदि यह उसी हवेली का लड़का है, तो अवश्य ही तुम्हारा संबंध रहा होगा। तुम जैसा उचित समझो !करो ! हम तुम्हारे साथ हैं। 

पापा और दीदी ! 

वह भी तुम्हारे साथ हैं, हंसते हुए ताराजी बोलीं।

दोपहर में, उसका फोन आएगा। 

ठीक है, बात कर लेना ! तुम्हारे लिए एक फोन मंगवा दूँ ? वही बेहतर होगा, तुम्हारे पास, तुम्हारा अपना फोन रहेगा तो तुम कमरे में बैठकर भी, आराम से बातें कर सकती हो , हमारा इस ओर कभी ध्यान ही नहीं गया, तुम्हारे लिए कोई फोन भी नहीं आता था और अब आने लगे हैं ,तो तुम्हारा अपना फोन होना चाहिए कहते हुए मुस्कुराई और उन्होंने किसी को फोन लगा दिया।

 नाश्ता करने के पश्चात, रूही अपने कमरे में चली गई, अपनी मां का इतना सहयोग देखकर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी, ये लोग, मेरे अपने नहीं हैं फिर भी मेरा कितना साथ दे रहे हैं ? शायद मेरे अपने भी मेरे लिए इतना न कर पाते। उनके व्यवहार उनके प्यार के कारण, उसका हृदय उनके लिए नतमस्तक हुआ जा रहा था। 

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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