Mysterious nights [part 125]

रूही, गर्वित से मिलती है और उसका कारण तारा जी को भी बताती है,उसकी इस बात के लिए तारा जी भी उसे अपना समर्थन देतीं हैं ,दूसरी तरफ गर्वित भी, अपनी माँ दमयंती को बता देता है ,कि अब शीघ्र ही इस घर की नई मालकिन'' रूही ठाकुर'' होगी ,दोनों ही अपनी -अपनी योजना के तहत ,अपनी -अपनी राह पर निकल पड़ते हैं किन्तु उनकी योजना की, राहें एक -दूसरे से मिलती हैं इसीलिए वे दोनों साथ होते हैं। गर्वित ,रूही को लेने उसकी कोठी पर ही पहुंच जाता है किन्तु अभी रूही ने उसे, अपने घर नहीं बुलाया ,वो जानती है ,उसके माता -पिता उसके साथ हैं किन्तु घर बुलाने से पहले वह ,गर्वित के विषय में ठीक से जान लेना चाहती है। गाड़ी में बैठकर, गर्वित ने रूही की तरफ देखा और बोला - इस गुलाबी सूट में तो तुम, बहुत प्यारी लग रही हो , वैसे तो तुम उस दिन भी, बहुत अच्छी लग रही थीं , किंतु आज यह सादगी तुम पर बहुत अच्छी लग रही है। 


मन ही मन रूही प्रसन्न हुई और बोली -मैं घर पर ऐसे ही, सादे कपड़ों में रहती हूं ,ठीक से तैयार भी नहीं हो पाई ,तुम सीधे मुझे घर पर ही लेने आ गए ,वैसे तुम्हें मेरे घर का कैसे पता चला ?मैंने तो तुम्हें नहीं बताया था कि मैं कहाँ रहती हूँ ? 

हम किसी को चाहें ,और उस तक न पहुंच पाएं ,ऐसा कभी हुआ है ,हमारे लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं, वैसे ये बताओ !डॉक्टर साहब ! कैसे हैं ?

वो ठीक हैं और कैसे होंगे ?अच्छा तो तुमने पापा के विषय में पता लगाया होगा,उनके माध्यम से यहाँ पहुंच गए। 

गर्वित मुस्कुराया, अच्छा बताओ !कहां चलना है ? कहां भोजन करेंगे ?

मुझे नहीं मालूम, तुम जहां ले जाना चाहो ! ऐसा कह कर वह एकदम से चुप हो गई, और मन ही मन घबरा उठी, इससे मेरी मुलाकात एक दो बार ही तो हुई है, और आज मैं, इसके साथ आ गई हूं, मैं यहां आस-पास का इलाका नहीं जानती हूं, न जाने मुझे यह कहां ले जाए ? जोश -जोश में इसके साथ आ तो गई हूँ , कहीं मैंने इसके साथ आकर गलती तो नहीं कर दी,सोचकर वह और अधिक चौकन्नी हो गयी।  

क्या सोच रही हो ?

कुछ नहीं, बातों को जारी रखते हुए, बोली -तुम किसी को फोन करते हो, तो यह भी नहीं पूछते, कि  फोन किसने उठाया है ? सुबह मेरी मम्मी ने फोन उठाया था और तुमने सीधे उन्हें नौकर बना दिया।  

ओह ! वो तो बात ऐसी है , मैं उन्हें, पहचान नहीं पाया। 

पहचानने  के लिए पहले पूछना पड़ता है, कि हम किससे बात कर रहे हैं ? उसे ऐसे ही नहीं कह देते, कि  अपनी मैडम, को फोन दो!वो तो मेरी मम्मी बहुत अच्छी हैं ,उन्होंने बुरा नहीं माना ,वरना वे तुम्हें डांट देतीं। 

 कुछ नहीं यार !उस समय मैं, थोड़ा सा मस्ती में था क्योंकि मुझे इस बात की खुशी थी, तुमने मुझे फोन किया था,वैसे वो मुझसे बड़ी हैं ,कभी भी डांट सकती हैं ,उनके बेटे जैसा हूँ , वैसे जब भी मिलेंगी ,मैं उनसे माफी मांग लूंगा ,तुमने घर के अंदर नहीं बुलाया वरना अभी उनसे क्षमा याचना करता ,कहते हुए गर्वित ने रूही को उलाहना भी दिया।  

मैंने, तुम्हें कोई फोन नहीं किया था, वह तो मैं यह जानना चाह रही थी कि तुमने जो मुझे नंबर दिया है वह नंबर सही है या गलत,और रही बात घर के अंदर बुलाने की ,अभी मैं तुम्हारे विषय में इतना कुछ ज्यादा नहीं जानती ,तुम भी मेरे विषय में ज़्यादा नहीं जानते ,जब वो समय आएगा ,घर पर भी बुला लेंगे। 

 हम ठाकुर खानदान से हैं, हमसे कोई ऐसी गलत उम्मीद मत रखना, हम तो न जाने, क्या-क्या सोचे बैठे हैं ? और तुम इन्हीं छोटी-छोटी बातों में अटकी हुई हो, वो तुम्हारी मम्मी थीं गलती से बोल दिया, हम उनसे माफी मांग लेंगे और क्या चाहिए ? अब तो खुश. कहते हुए उसने.... गाड़ी को एक जगह पर रोक दिया।

 बड़ा शानदार होटल था,उस होटल में प्रवेश करने से पहले एक दरबान ने दरवाजा खोला और बड़े ही अदब से झुककर उन दोनों का स्वागत किया,रूही को उसमें प्रवेश करते हुए ऐसा लग रहा था ,जैसे वो कोई राजकुमारी हो और महल में प्रवेश कर रही है। जैसे ही, उन लोगों ने अंदर प्रवेश किया ,उसकी भव्यता देखते ही बनती थी। रूही अपनी याद में आज पहली बार ऐसी जगह पर आई थी ,दिन होने के बावजूद भी वो रौशनी से जगमगा रहा था। 

गर्वित ने किसी को इशारा किया और वो जैसे उसी की प्रतीक्षा में था ,अपने काम पर लग गया। गर्वित एक स्थान की ओर बढ़ चला ,जहाँ पर विशेष रूप से उस स्थान को सुसज्जित किया गया था ,गर्वित ने ,एक मेज की तरफ इशारा किया जो कोने में थी ,आओ !वहां बैठते हैं। रूही को ,आश्चर्य से इधर -उधर देखते हुए उसने पूछा -जगह कैसी लगी ?

बहुत अच्छी है किन्तु मैं यहां पहली बार आई हूँ। 

ह्म्म्मम्म कहते हुए, मुस्कुराया और बोला -मैडम !ये होटल हमारा ही है। 

मतलब !रूही उछली। 

ये होटल ,हमारा है ,ऐसे दो होटल और हैं ,जिन्हें हम लोग मिलकर चलाते हैं , ख़ैर !ये सब छोडो !और अब बताओ ! खाने में क्या लेना पसंद करेंगी ?

जो भी तुम्हारे होटल की सबसे शानदार ,बढ़िया डिश हो, वही मंगा लो !गर्वित ने वेटर को इशारा किया और उससे कुछ कहा ,जो रूही नहीं समझ  पाई किन्तु इतना अवश्य समझ गयी ,ये मुझे प्रभावित करने के लिए ही यहाँ लेकर आया है। रूही ने पूछा -और बताओ !तुम्हारे घर में और कौन -कौन है ?

एक मेरी प्यारी सी माँ है ,तीन भाई और हैं ,पापा और उनके भाई हैं ,हम सब उस प्यारी सी हवेली में रहते हैं। 

तुम अपने भाइयों में सबसे बड़े हो या...... 

सबसे छोटा !उसने रूही की बात पहले ही काट दी ,मैं सबसे छोटा हूँ बाक़ी मेरे भाई मुझसे बड़े हैं। 

क्या तुम्हारे भाइयों का विवाह नहीं हुआ ,भाभियों के विषय में भी तो बताइये !

यह सुनकर गर्वित बोला -यह वेटर भी न जाने कहाँ रह गया ?इतनी देर हो रही है ,खाना लेकर नहीं आया ,मैं अभी देखता हूँ ,कहकर वहां से जाने लगा ,तभी उसे भोजन लेकर आते हुए ,वो दिखलाई दिया और उससे  बोला - कितना समय लगा दिया ?

वेटर मुस्कुराया और धीरे -धीरे प्लेट मेज पर सजाने लगा। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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