Qbar ki chitthiyan [part 11]

'महेश्वर प्रसाद'' गरजती आवाज़ में बोला—“आज रात, मेरी ताक़त सौ गुना बढ़ जाएगी,गुरुदत्त भले ही नाकाम रहा… लेकिन मैंने उसकी आत्मा को ही बाँध लिया है और अब उसका बेटा भी मेरी' कठपुतली' बना हुआ  है।”

अर्जुन का दिमाग़ सुन्न हो गया।“मतलब…'' गुरुदत्त जूनियर'' भी'' महेश्वर'' के बस में है।”

राघव ने दाँत पीसते हुए कहा—“ये आदमी इंसान नहीं, राक्षस है ”लेकिन तभी अर्जुन का पैर फिसल गया और ज़मीन पर पड़ा पत्थर खिसक गया जिसके कारण हड़बड़ाहट में आवाज हुई ,जैसे ही उधर आवाज़ गूँजी ,सतर्क महेश्वर ने तुरंत अपनी नज़र घुमाई।


उसकी आँखें सीधे ,अंधेरे में ,झाड़ियों में ,छिपे अर्जुन पर टिक गईं,उसने धीमी लेकिन खतरनाक आवाज़ में कहा—“अरे वाह… मेरे मेहमान आ ही गए।”

चारों ओर बैठे साधक अचानक उठे और उनकी ओर बढ़ने लगे।

राघव ने फुसफुसाकर कहा—“अब हमें भागना ही होगा,इनके हाथ नहीं पड़ना है !”कहते ही तीनों  तेजी से भागते हुए हवेली से निकलने की कोशिश करने लगे,लेकिन अचानक हवेली का गेट अपने आप बंद हो गया, इधर -उधर जाने का भी कोई रास्ता नहीं रह गया था क्योंकि चारों ओर से साधकों ने उनका रास्ता रोक लिया था। 

''महेश्वर प्रसाद''अपने स्थान से उठा और उनकी ओर बढ़ने लगा, गरजकर बोला—“अब तुम सच जान ही चुके हो,इसका मतलब है… अब तुम्हें जिंदा नहीं जाना है। 

हवेली का दरवाजा अपने आप बंद हो चुका था,तीनों ने तेजी से भागने का प्रयास तो किया किन्तु वहीं फंस गए ,भागने के कारण तीनों की साँसें तेज़ हो गईं थीं। उनके चारों तरफ उन्हें साधक घेरे हुए खड़े थे ,काव्या ने डर के कारण अर्जुन की बाँह कसकर पकड़ ली और काँपती आवाज में बोली - “हम… हम फँस गए अर्जुन !”

अर्जुन ने गहरी साँस ली और राघव की ओर देखा ,अब जैसे उसे राघव से ही उम्मीद थी, राघव ने तुरंत बंदूक निकाली और गरजकर बोला—“जो भी सामने आएगा, मैं उसे गोली मार दूँगा।”

राघव के इतना कहते ही, वे साधक डरे नहीं ,वरन तभी उनके चारों ओर खड़े साधक एक साथ मंत्रोच्चारण करने लगे, उनके ऐसा करते ही ,वहां की हवा भारी हो गई,इससे पहले कि देरी हो जाये ,राघव ने जैसे ही निशाना साधा, उसका हाथ अचानक काँपने लगा—मानो कोई अदृश्य शक्ति उसकी उंगलियाँ मरोड़ रही हो।उसने अपने आपको संभालने का बहुत प्रयास किया किन्तु नाकाम रहा “ये… ये क्या हो रहा है?” राघव दर्द से चीखा।

अब महेश्वर प्रसाद धीरे-धीरे आगे बढ़ा और उनके करीब आया ,उसकी आवाज़ गहरी और भयावह थी -“तुम क्या समझते हो ? इस बंदूक को दिखाकर तुम बच निकलोगे। तब वो अहंकार से बोला - ये हवेली मेरी है,यहाँ की दीवारें भी मेरी आज्ञा मानती हैं,”कहकर ठठाकर हंसने लगा। 

कुछ देर पश्चात शांत होकर उसने, उन तीनों पर दृष्टि डाली ,उन तीनों ने देखा -महेश्वर के चेहरे पर अजीब सी शांति थी, लेकिन उसकी आँखें ज्वाला की तरह चमक रही थीं।उसने अर्जुन को देखते ही मुस्कान दी और बोला -“तो तुम हो वो पत्रकार… जिसने मेरे सौदे पर सवाल उठाया था ।”

अर्जुन, इस समय अपने को विवश पा रहा था,उसके साथ काव्या भी थी ,राघव भी इस समय अपने को असमर्थ पा रहा था ,अपने काँपते ह्रदय की धड़कनों को संभालते हुए ,उसने बोलने का साहस जुटाया ,बोला -“ये सौदा नहीं, 'नरसंहार' है।तुमने मासूम बच्चों की बलि दी, उनकी आत्माओं को कैद किया ,तुम इंसान कहलाने लायक नहीं हो ।”

महेश्वर ठहाका मारकर हँसा,और हँसते हुए बोला -“इंसान ! जैसे अर्जुन ने कुछ अजीब शब्द बोल दिया हो ,तब बोला - मैं कब से इंसान हूँ? इंसान तो वो होते हैं जो डर में जीते हैं ,मैंने डर से दोस्ती कर ली है,डर ही मेरी ताक़त है।” 

अचानक हवेली की दीवारें काँपने लगीं,छत से धूल गिरने लगी,चारों ओर से अंधेरा और गहरा हो गया, मानो पूरा आँगन रात के गड्ढे में डूब रहा हो।

काव्या घबराकर बोली—“ये जगह… ये हमें निगल लेगी!”अर्जुन अब क्या होगा ?

महेश्वर ने हाथ उठाया और साधकों को इशारा किया ,वे एक स्वर में मंत्र पढ़ने लगे—“ॐ कालभैरवाय नमः…”
“ॐ छिन्नमस्तिकाय नमः…”

अचानक ज़मीन पर एक चक्र बन गया—लाल चमकता हुआ, जिसमें अजीब अक्षर खुदे थे,उस चक्र के बीचोंबीच एक पत्थर का दरवाज़ा धीरे-धीरे खुलने लगा—मानो हवेली के नीचे कोई और दुनिया छिपी हो। महेश्वर ने कहा—“क्या तुम सच जानना चाहते हो ?तुम्हें सच जानना है ,तो आओ ! मैं तुम्हें वो दिखलाता हूँ… जिसे देखकर तुम्हारा दिमाग़ ही जल जाएगा।”साधकों ने अर्जुन, काव्या और राघव को पकड़कर उस दरवाज़े की ओर घसीटना शुरू कर दिया। राघव ने छूटने की कोशिश की, लेकिन हर बार कोई अदृश्य शक्ति उसकी ताक़त को चूस लेती,उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था ,जैसे उनके अंदर शक्ति समाप्त हो गयी है वो उनका विरोध करने में अपने को असमर्थ पा रहे थे। 

काव्या चीख़ रही थी—“अर्जुन! कुछ करो!”

अर्जुन की आँखों में डर था, लेकिन उसके भीतर की आग बुझी नहीं थी ,“अगर हमें मरना ही है… तो सच देखे बिना नहीं मरूँगा।”यही विचार उसके मन में घूम रहा था। 

तहखाने के नीचे जो दुनिया थी, वो इंसानी नहीं लग रही थी,उस दरवाजे के दूसरी तरफ सीढ़ियाँ थीं ,उनसे उतरते ही एक लंबा अंधेरा गलियारा सामने आया,दीवारों पर खून से बने चित्र—कुछ देवताओं के, कुछ जानवरों के, और कुछ ऐसे चेहरे जिनमें इंसान और राक्षस मिले-जुले थे। हवा में सड़ांध थी ,हर कदम पर ज़मीन चिपचिपी लग रही थी, जैसे उस पर खून बहा हो।

गहराई में पहुँचते ही सामने आया—एक विशाल हॉल !बीच में बना था लोहे का पिंजरा, और उस पिंजरे में…
दर्जनों बच्चों की आत्माएँ, धुएँ की तरह तैरती हुईं, रोती हुईं दिखलाई दे रहीं थीं। 

काव्या ने चीख़ मार दी।“हे भगवान! ये… ये तो वही बच्चे हैं!”

अर्जुन के होंठ काँपने लगे,“तो सच यह है… ये सब यहीं कैद हैं।”

महेश्वर  ने हाथ फैलाकर गर्व से कहा—“हाँ, ये वही आत्माएँ हैं, जो बलि में दी गईं थीं ,गुरुदत्त सिर्फ़ मेरे लिए रास्ता साफ़ करता था।मैंने इन आत्माओं को कैद किया, और इनके दर्द से अपनी शक्ति बढ़ाई ,हर चीख़, हर आँसू, मुझे और ताक़तवर बनाता है।”

वह अर्जुन की ओर देखकर फुसफुसाया—'' तुम सोचते हो, कि चिट्ठियाँ किसने भेजीं हैं ?गुरुदत्त ने नहीं , …वो तो मेरी चाल थी,मैंने ही तुम्हें यहाँ खींचा… ताकि दुनिया देखे—जो मुझे चुनौती देगा, उसका क्या हश्र होता है ?”

लेकिन तभी बच्चों की आत्माएँ अचानक तेज़ी से काँपने लगीं,उनकी चीख़ें इतनी गहरी थीं कि पूरा तहख़ाना हिलने लगा ,एक आत्मा ने अर्जुन की ओर हाथ बढ़ाया—“हमें… बचाओ…”

अर्जुन की आँखें भर आईं,उसने दहाड़कर कहा—“महेश्वर! तुझे इन मासूमों पर ज़ुल्म करने का कोई हक़ नहीं!”

महेश्वर ! ठंडी हँसी हँसा,“ज़ुल्म? कैसा ज़ुल्म  ?ये तो मेरा सौदा है ,ये आत्माएँ मेरी हैं।”



laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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