Mysterious nights [part 124]

दोपहर के बारह बजे के लगभग, फोन की घंटी बजी ,रूही भी शायद उसी की प्रतीक्षा में थी ,रूही ने तुरंत ही आगे बढ़कर फोन उठाया - हैलो !

मैम साहब ! मैं धनिया धोबी बोल रहा हूँ ,मैं कपड़े लेने आज नहीं आ पाउँगा ,मेरी बीवी की तबियत बिगड़ गई है ,कल पक्का आ जाऊंगा। 

ठीक है ,निराशा से रूही बोली। मैं भी न... अपने आपको कोसते हुए ,रूही आगे बढ़ी ,क्यों मुझे, उसके फोन की प्रतीक्षा है ? शायद मेरे लिए किसी का, पहली बार फोन आ रहा है, इसीलिए मैं उसके फोन के लिए इतनी उतावली हो रही हूँ ,यही कारण होगा। उसने घड़ी में समय देखा ,बारह बजकर पांच मिनट ही हुए हैं ,जब उसे फोन करना होगा तो कर लेगा ,इतना ज्यादा समय भी नहीं हुआ है ,कोई इतना जरूरी भी नहीं है ,यह सोचकर वो अपने कमरे में जाने लगी। 


तभी फिर से फोन की घंटी बजी,वह दौड़कर फोन उठाने गयी ,उधर से दिनेश की आवाज आई -  बीबी जी !अभी मैं बाजार में ही हूँ ,अभी दोपहर के खाने में समय है ,क्या मैं शाम के लिए भाजी -तरकारी ले आऊं।

मुझे क्या मालूम? झुंझलाते हुए रूही ने कहा , मम्मी से बात करो !

उनको ही तो फोन किया था, आप तो पहले कभी फोन उठाती ही नहीं थीं। तब रूही को अपनी ही गलती का एहसास हुआ और शांत स्वर में बोली - अभी मम्मी से पूछ कर बताती हूं  , कहते हुए उसने तारा जी को आवाज़ लगाई -मम्मी ! दिनेश पूछ रहा है, शाम के लिए सब्जी लेता आये। 

वे अपने कमरे से बाहर निकलते हुए बोलीं  -यह भी कोई पूछने की बात है, उसे तो इस बात पर पहले ही ध्यान देना चाहिए , शाम को खाने में क्या बनेगा ? दिनेश से रूबी ने कह दिया कि हाँ शाम के लिए सब्जी लेता आये , फोन कट जाने के पश्चात तारा जी ने पूछा -क्या उस लड़के का फोन आया था ?

अभी कहां आया है ? 

तो तुम, किससे बात कर रही थीं  ? मुझे तो लगा, उसी लड़के से बात कर रही हो। 

आज तो, आपके ही फोन आ रहे हैं।

 मुस्कुराते हुए उन्होंने पूछा- क्या बात हुई और किसका फोन आ गया ? 

धोबी का फोन भी आया था, और अब दिनेश का फोन आ गया, ऐसा लग रहा था है जैसे आज सभी आपको ही फोन कर रहे हैं। 

रूही की बात सुनकर तारा जी मुस्कुराने लगीं और बोलीं - तुमने आज तक कभी फोन उठाया ही नहीं था , उनके फोन इसी समय आते हैं और आज तो लगता है जैसे, हमारी बिटिया को फोन पर बात नहीं करने देंगे। कोई बात नहीं, चिंता मत करो ! किसी कार्य में व्यस्त होगा, आ जाएगा। 

नहीं, अब मैं अपने कमरे में जा रही हूं अब मैं कोई फोन नहीं उठाऊंगी, आपके लिए ही फोन आ रहे हैं। 

रूही बेटा ! इतनी जल्दी निराश नहीं होते, हो सकता है अबकी बार तो आ ही जाएगा। लगभग 1:00 बजने को जा रहा था,तभी फिर फोन की घंटी बजी तारा जी और रूह वहीं थे ,तारा जी मुस्कुराईं और रूही की तरफ इशारा किया फोन उठा ले। रूही ने फोन उठाया ,उधर की आवाज सुनकर रूही के चेहरे के भाव बदल गए। तारा जी मुस्कुराई ंऔर सोचा, अवश्य ही कोई और होगा। 

हाँ ,हाँ कह दूंगी ,कहकर उसने फोन का रिसीवर रख दिया। 

मुस्कुराते हुए, तारा जी ने जानबूझकर पूछा-क्या इतनी जल्दी बात हो गई ?

मम्मी !!! मुंह बनाते हुए हुई बोली , आपने व्यर्थ में ही, मुझे इस काम में लगा दिया, मुझे लगता है, अब उसका फोन नहीं आएगा। 

मैंने तो यह पूछा ही नहीं, तुम यह बताओ !फोन किसका था ?

 पापा के अस्पताल से था , आज उन्हें आने में थोड़ा देरी हो जाएगी, खाने के समय पर नहीं आ पाएंगे , कोई इमरजेंसी केस आ गया है। 

उनका ज्यादातर ऐसा ही होता है, यह कोई विशेष बात नहीं है, विशेष बात तो यह है कि तुम आज किसी के फोन की प्रतीक्षा कर रही हो और वह प्रतीक्षा करवा रहा है, न जाने कहां व्यस्त हो गया है ?

अब मैं किसी का भी फोन नहीं उठाऊंगी, अब मैं अपने कमरे में जा रही हूं।

 खाने का समय हो गया है, अब तो खाना खाकर ही जाना !

 नहीं, मेरा मन नहीं है। 

हां मन कैसे होगा ? निराशा से जो पेट भर गया है , रूही सीढ़ियों पर चढ़ने लगी, तभी फिर से फोन की घंटी बजी , दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा, और रुही ने इशारे से मना कर दिया ,अब मैं कोई फोन नहीं उठाऊंगी। तब तारा जी ने, फोन उठाया -फिर वही आवाज आई , मेरे फोन की प्रतीक्षा हो रही थी , क्या कर रही हो ? रूही अभी ऊपर नहीं गई थी, जिस सीढ़ी पर खड़ी थी, वहीं से खड़ी होकर यह देख रही थी कि किसका फोन है ? तभी उसकी मम्मी ने इशारा किया कि वह यहां आ जाए और फोन को ले ले ! उसे विश्वास तो नहीं हो रहा था कि यह गर्वित का ही फोन हो सकता है लेकिन उनके इशारे पर वापस आई और फोन ले लिया। फोन लेते ही बोली -तुमने तो 12:00 बजे के लिए कहा था और अब समय देखा है, कितने बजे हैं और स्वयं ही समय बता दिया 2:30 बज रहा है। 

अच्छा, तो इसका मतलब है मेरे फोन की प्रतीक्षा हो रही थी, और बार-बार समय देखा जा रहा था। 

तब रूही को लगा जैसे उसने कुछ गलत बोल दिया है तब बोली - ऐसा तो कुछ नहीं है, लेकिन तुमने कहा था कि 12:00 बजे फोन करूंगा तो इसलिए मैं कहीं जा नहीं पाई, मुझे किसी कार्य से बाहर जाना था। 

तो बाहर आ जाओ !

क्या मतलब ?

अभी तुमने भोजन किया है या नहीं, 

नहीं, अभी तो नहीं किया है, तब तो तुम्हें बाहर तुरंत आ जाना चाहिए। 

क्यों ? क्योंकि मैं तुम्हारी कोठी के बाहर खड़ा हूं  और मैंने भी, भोजन नहीं किया है दोनों मिलकर साथ में भोजन करते हैं, उसकी यह बात सुनकर रूही ने तारा जी की तरफ देखा और रिसीवर पर हाथ रखकर तारा जी से पूछा - खाने के लिए बाहर बुला रहा है। 

तारा जी ने भी इशारे से, उन्हें सहमति दे दी, तब रूही ने फोन पर गर्वित से कहा -मैं आ रही हूं, थोड़ी देर रुको !

आज वह पहली बार, किसी के साथ खाने पर जा रही थी, बहुत अच्छे से तैयार होना चाहती थी लेकिन वह यह भी जानती थी कि वह बाहर खड़ा उसकी प्रतीक्षा कर रहा है , मन में सोचा -क्यों न, उसे घर पर ही बुला लूँ , फिर मन में विचार आया , पहले बाहर ही मिल लेते हैं , घर पर बुलाने का अभी समय नहीं आया है ,यह सोचकर वह तैयार होकर, अपनी कोठी से बाहर निकली , गर्वित अपनी बड़ी सी गाड़ी से बाहर निकला , देखने में किसी राजकुमार की तरह लग रहा था , आज तो बहुत अच्छे तरीके से तैयार होकर आया था। उसे देखकर, रूही को न जाने क्यों थोड़ी घबराहट सी हुई और लगा जैसे मैं इसके सामने अच्छी नहीं लग रही हूं।

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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