दिल्ली की सर्द भरी रातें,जहाँ दूर -दूर तक कोई इंसान नजर नहीं आता ,दिसंबर के महीने में, सड़कों पर धुंध ही इतनी घनी हो जाती है ,कई बार तो समीप खड़े इंसान को पहचानना भी मुश्किल हो जाता है ,ऐसे में ठंड के कारण लोग वैसे ही, जर्सी -स्वेटर के साथ -साथ टोपी और मास्क भी लगा लेते हैं किन्तु इस समय तो सभी अपने -अपने घरों में दुबके हुए होंगे। ऐसे में न्यूज़ चैनल ''सिटी हलचल'' का सीनियर जर्नलिस्ट अर्जुन सान्याल , अपने दफ्तर के छोटे से केबिन में बैठा हुआ था। उसने घड़ी में समय देखा, रात्रि के 2:00 बज रहे थे, पूरा दफ्तर खाली था, नींद के कारण अर्जुन की आंखें भी थकी हुई लग रही थीं किंतु दिमाग में, एक अज़ीब सी बेचैनी थी, अंदर ही अंदर वो बहुत परेशान था।
पिछले कुछ महीनों से, उसका' करियर ग्राफ' तेजी से नीचे चला गया था।' क्राइम रिपोर्टिंग'का उसे उस्ताद माना जाता था, लोग उसका उदाहरण देते थे, किंतु आज के समय में, उसकी खबरें जिस चैनल पर,सबसे पहले आती थीं,अब काट -छांटकर सबसे आखिर में आती हैं। जब इंसान बुलंदियों को छू रहा हो और अचानक ही नीचे गिरने लगे,तब उसे तो यह उसके जीवन की दर्दनाक घटना ही महसूस होगी। यही बातें उसके लिए बहुत ही परेशानी का सबब बनी हुई थीं क्योंकि उसे लगता था.... कि शहर में जो भी हत्याएं हो रही हैं, उनके पीछे किसी की '' गहरी साजिश'' है किंतु उसके पास कोई सबूत नहीं था। इस कारण वह अपनी बात को किसी से समझा और कह भी नहीं पा रहा था।
उसकी पत्नी' काव्या सान्याल ' अक्सर उससे कहती थी -तुम एक पत्रकार हो, जासूस नहीं हो , क्या तुम्हें यह कार्य भूत - प्रेतों का लगता है ?कि हत्याएं हो रहीं हैं किन्तु प्रमाण नहीं है।
अपनी पत्नी को भी वह क्या जवाब दे ? वास्तव में ही ,उसके पास कोई सबूत नहीं था इसलिए वह मुस्कुरा कर रह जाता है किंतु वह मन ही मन जानता है ,वह जो कुछ भी सोच रहा है ,उसमें कहीं न कहीं, कोई ना कोई तो सच्चाई अवश्य है।
एक रात्रि जब वह अपने केेबिन में बैठा, लैपटॉप पर काम कर रहा था , तभी ऑफिस के दरवाजे पर ठक-ठ क की आवाज हुई, अर्जुन चौंका , इतनी रात्रि में, इस समय कौन होगा ? वह उठा और उसने दरवाजा खोला , तो वहां पर कोई नहीं था। वहां पर सिर्फ एक नीले रंग का पैकेट रखा हुआ था, जिस पर उसके नाम की चिट लगी हुई थी। उस लिफाफे को देखकर, उसके दिल की धड़कनें तेज हो गईं , अनजाने ही सही ,न जाने क्यों उसे डर सा महसूस हुआ। अपने को संयत करके, वह उस लिफाफे को उठाता है और सोचता है शायद कोई 'स्टिंग ऑपरेशन 'का सबूत छोड़ गया होगा।
अपने केबिन में वापस आकर, उस लिफाफे को टेबल पर रखता है, और फिर उसे खोल कर देखता है उसमें भूरे से कागज पर काली स्याही से कुछ लिखा हुआ था -
पहला सच ! कब्र की पहली चिट्ठी !
उसे पढ़कर अर्जुन की रीढ़ की हड्डी में सिहरण सी दौड़ गई, उसने उस कागज को पूरी तरह खोला दिया, उसके हाथ कांप रहे थे, किंतु मन के अंदर बेचैनी थी, आखिर इस चिट्ठी में ऐसा क्या लिखा होगा ?
8 मार्च 2008 को रोहिणी सेक्टर 15 के पुराने स्कूल में जो आग लगी थी, वह हादसा नहीं था, उसमें बीस बच्चों की मौत हुई थी। उनकी चीखें आज भी, हवा में गूंज रही हैं, उनकी राख़ आज भी जिंदा है, मैं जानता हूं ,यह आग़ किसने लगाई थी ? उसे मैंने अपनी आँखों से देखा है। मैं सच्चाई सबको बता देना चाहता था किंतु उससे पहले ही, मुझे भी जला दिया गया किंतु अब मैं यह सच्चाई, सबके सामने लाना चाहता हूं, और मुझे विश्वास है, तुम इस सच्चाई को सबके सामने लाने में, मेरी सहायता करोगे इसीलिए तुम्हें, मैं यह सच्चाई बतला रहा हूं।
नीचे किसी का कोई नाम नहीं था सिर्फ एक अंगूठे निशान था, वह भी राख से लगा हुआ था जैसे किसी ने राख में लगाकर, अंगूठा लगाया हो। ये कैसी राख़ है ?
उस पत्र को पढ़कर अर्जुन डर गया था क्योंकि वह चिट्ठी क़ब्र से आई थी और उस पर राख़ लगी थी यानि की किसी' मुर्दे की राख़ ' उसे लग रहा था- शायद, यह मुझसे किसी ने मजाक किया है किंतु अगले ही पल उसका दिमाग तीव्र गति से दौड़ने लगा। यह बात तो सही है, 2008 में स्कूल में हादसा हुआ था, अखबारों में छोटी सी खबर छपी भी थी,'विद्युत के शॉर्ट सर्किट' के कारण वह आग लगी थी यदि चिट्ठी में सत्य लिखा है तो फिर उन 20 बच्चों का क्या हुआ,क्या उनकी मौत को छुपाया गया था ?
यह इंसान कौन था ? जिसने उस हादसे को देखा और फिर वह मारा भी गया। इस चिट्ठी को कौन देकर गया होगा ? कहां से आई है, अनेक प्रश्नों में अर्जुन उलझ गया। उसने फिर से वह' नीला लिफाफा' उठाया और उस पर न ही कोई पोस्ट का निशान और न ही कोई स्टाम्प था। ऐसा प्रतीत हो रहा था ,जैसे कोई स्वयं ही उसे दफ्तर के दरवाज़े पर रखकर चला गया हो।
अर्जुन ने वह लिफाफा मेज पर रखा और एक गहरी लंबी सांस लेकर कुर्सी पर बैठ गया, तभी ऑफिस की खिड़की के बाहर, उसे कुछ आहट सी महसूस हुई। बाहर बहुत धुंध थी, उसने खिड़की खोलकर देखा किन्तु कुछ भी स्पष्ट नहीं दिख रहा था ,उसने खिड़की बंद की ,किंतु कांच की खिड़की पर उसे किसी के हाथ की परछाई नजर आ रही थी। उसने दोबारा खिड़की खोली, किंतु ठंडी हवा और खाली सड़क के सिवा वहां कोई नहीं था। उसे ऐसा प्रतीत हुआ ,जैसे कोई उसी कमरे में फुसफुसा रहा है। उसने झट से उस 'नीले लिफ़ाफे' को उठाया किंतु वह खाली था, उसके कानों में आवाज गूंज रही थी -अर्जुन यह तो पहला सच है।
जब अर्जुन अपने घर पहुंचा, तो सुबह के चार बज चुके थे, काव्या ,आधी नींद में ही उठ गई और झल्लाते हुए बुदबुदाई - फिर वही बेवकूफ़ी भरे केस ! प्रत्यक्ष बोली -इतनी देर लगा दी, क्या कोई केस मिल गया है ?
अर्जुन चुप रहा, वह चिट्ठी उसने अपने बैग के, अंदर की जेब में छुपा कर रख दी थी। किंतु काव्या ने देखा, अर्जुन कुछ घबराया हुआ सा है , तब काव्या ने पूछा - तुम्हारे चेहरे पर यह घबराहट क्यों है ? प्लीज !मुझे संपूर्ण सच्चाई बताओ ! तुम्हारे मन में क्या चल रहा है? तुम इतना घबराये हुए क्यों लग रहे हो ?
अर्जुन ने एक पल उसकी तरफ देखा, अब वह उससे, क्या कहे ? एक मरे हुए आदमी की चिट्ठी मिली है और वह चिट्ठी कब्र से आई है, तब वह मुस्कुरा कर बोला -कुछ नहीं बस एक नया असाइनमेंट है।
अर्जुन बिस्तर पर लेट गया था, किंतु अभी भी उसकी आंखों में नींद नहीं थी, उसके दिमाग में बार-बार वही शब्द गूंज रहे थे -
'मैं, कब्र से लिख रहा हूं.'....
उसके मन में,एक नया विश्वास पैदा हो रहा था, यह चिट्ठी झूठ नहीं हो सकती। वह जानता था कि यह कहानी उसे वहीं लेकर जाएगी, जहां उसने कभी जाने का साहस नहीं किया और यही तो उसकी सबसे बड़ी गलती बनने वाली थी।