Mysterious nights [part 121]

 गर्वित और रूही आपस में, बातें कर रहे थे ,बातों ही बातों में ,रूही को पता चला ,ये लड़का ,उसी हवेली का है और किसी लड़की की तलाश में ही वह, यहाँ' गरबा रास' के लिए आया था। तब गर्वित ,रूही से पूछता है -तुम हवेली की इतनी जानकारी क्यों ले रही हो ? क्या तुम्हारा वहां कोई है ?किसके विषय में जानना चाहती हो ?

 तब रूही ने बताया -मेरी एक सहेली का विवाह बीजापुर गांव में किसी हवेली में हुआ था, इसीलिए जानकारी लेना चाहती थी, किंतु अब इस बात को बहुत दिन हो गए हैं ,अब मुझे उसकी कोई जानकारी नहीं है।


 गर्वित कहता है -यदि उसका कुछ नाम, पता कुछ होता तो मैं, उसके विषय में जानकारी ले सकता था,किन्तु रूही ने उससे आगे कुछ नहीं बताया। बिना नाम के मैं, कोई जानकारी नहीं दे सकता,उसे लगा जब इसकी सहेली का विवाह हो चुका है तो हो सकता है ,इसका विवाह भी हो गया हो, तब रुही से पूछता है -क्या तुम्हारा विवाह हो गया ?

 अब रूही जान गई थी कि यह लड़का हवेली से जुड़ा हुआ है, तभी रूही को लग रहा था जैसे, उसने इस लड़के को भी कहीं देखा है किंतु अभी पूरी तरह से कुछ भी स्मरण नहीं हो रहा था। यह शायद बाबा का ही आशीर्वाद है,जो इतना सब होते हुए भी मैं, सयंम से इसके सामने बैठी हुई हूँ ,उन्होंने कहा था-' कि समय के साथ-साथ, धीरे-धीरे इसे सभी कुछ याद आ जाएगा किंतु रूही में इतना धैर्य नहीं था ,इसीलिए उसने सोचा ,घर बैठे कोई बताकर नहीं जायेगा,स्वयं भी तो प्रयास करना होगा।  अब वह खुद से ही, अपने को समझा पा रही थी कि वह आज यहां क्यों आई है ? रूही को इस तरह शांत और सोचते हुए देखकर गर्वित को और कुछ नहीं सूझा,बोला - ईश्वर ने, तुम्हें फुरसत से बनाया है। 

फ़ीकी मुस्कान के साथ उसे स्मरण हो आया ,उसका चेहरा तो बुरी तरह जल गया था ,बोली - ये मेरे माता -पिता की देन है। 

सही कह रही हो ,इस सुंदरता का श्रेय माता -पिता को तो जाता ही है किन्तु मन की सुंदरता वो तो स्वयं तुम्हारी अपनी है। रूही मुस्कुराकर रह जाती है, तब गर्वित ,रूही की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाता है और पूछता है - क्या तुम ,इस बंदे को अपना दोस्त बनाना चाहोगी। 

रूही ने उसकी तरफ देखा ,हवेली का कोई भी आदमी, मेरी दोस्ती के क़ाबिल कैसे हो सकता है किन्तु यही तो मुझे हवेली के अंदर ले जायेगा ताकि मैं सम्पूर्ण सच्चाई से अवगत हो सकूँ ,तब रूही ने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया ,दोनों ढेर सारी बातें करते हैं ,गर्वित भी ,उसके विषय में जानना चाहता था।  रूही भी, उससे बहुत सारी बातें पूछती है और उसे विश्वास हो जाता है कि गर्वित ही, उसके लिए ,उस हवेली में जाने का माध्यम बनेगा।

 गर्वित भी समझ रहा है कि यह लड़की मुझ पर मोहित हो गई है और मुझे पसंद करने लगी है यह सोचकर मन ही मन खुश हो जाता है। अभी वे लोग, बातें कर ही रहे थे, तभी पारो आकर रूही से कहती है -क्या तुम अब ठीक हो ?

हां, मैं ठीक हूं, कुर्सी से उठते हुए रूही ने जबाब दिया ,अब हमें चलना चाहिए।

 पारो ने, गर्वित की तरफ देखा और उससे पूछा  -अब क्या, यहीं रहने का इरादा है, अपने घर जाना है या नहीं। देखो !रात बहुत हो गयी है ,हम तुम्हें अपने घर चलने के लिए भी नहीं कह सकते ,रात्रि में किसी के जवान लड़के को, इस तरह अपने घर ले जाना उचित नहीं है ,कहकर हंसने लगी। 

पारो की बातें सुनकर गर्वित झेंप  गया और बोला -अब मुझे भी चलना चाहिए , चलते-चलते, वह वापस मुड़ा  और रूही से पूछा -अब हम कब मिल सकते हैं ? क्या कल भी आओगी ? कह कर उसने धीरे से, रूही को अपना फोन नंबर दे दिया। 

पारो ने, गर्वित को इस तरह रूही के नजदीक देख, उसकी नज़रें बहुत कुछ समझने लगीं , गर्वित के जाने के पश्चात रूही से पूछा -यह सब क्या चल रहा है ? मैं सही थी, तुम इसी से ही मिलने आई थीं  किंतु रूही  पारो के किसी भी सवाल का जबाब देना नहीं चाहती थी। उसने पारो से कुछ नहीं बताया क्योंकि यदि वह गर्वित के विषय में कुछ बताती है, तो उसे हवेली के विषय में भी, बताना पड़ेगा। इतनी सब जानकारी तो डॉक्टर साहब और तारा जी ने भी, पारों को नहीं बताई थी। हो सकता है, वे, इससे इस बात को छुपाना चाहते हो इसीलिए रूही, चुपचाप गाड़ी में आकर बैठ गई। 

मन ही मन रूही सोच रही थी मैंने हवेली के करीब जाने का, एक पड़ाव तो पार कर ही लिया है ,हो सकता है इसके माध्यम से , यदि यह पड़ाव पूरी तरह से पार हो गया तो मैं हवेली तक भी पहुंच जाऊंगी। यही सब सोचकर ही वह आज दोबारा ''डांडिया रास '' के लिए आई थी। अभी वह यही सब सोच रही थी, तब पारो ने, रूही की तरफ देखा ,उस समय रूही उसे इतनी सीधी भी नजर नहीं आ रही थी, जैसी वो समझ रही थी। रूही को लगा, जैसे कोई उस पर दृष्टि गड़ाए है ,तब उसने गाड़ी के अंदर देखा, सच में ही पारो उसी को देख रही थी ,इस तरह रूही को अपनी तरफ देख मुस्कुरा दी और उसने पूछा -तुम इतना अच्छा ''डांडिया कैसे खेल लेती हो? और वह भी अकेले, तुम तो कह रही थीं - कि मुझे नृत्य आता ही नहीं है। 

रूही ने उसकी मुस्कान का जबाब मुस्कान से दिया और बोली -यह तो मैं भी, नहीं समझ पा रही हूं, मैंने कभी नृत्य ही नहीं किया, जितनी भी बातें मुझे याद हैं , मैंने कभी नृत्य नहीं किया किंतु हो सकता है, जो यादें मिट चुकी हैं, उनमें  पहले कभी नृत्य किया हो, और अचानक ही संगीत की धुन पर मैं, नाच उठी। 

वास्तव में ही तुमने बहुत प्यारा नृत्य किया था , पारो ने उसके नृत्य की सराहना की। 

घर पहुंच कर अचानक ही ,न जाने, पारो को क्या हुआ ? और तारा जी से बोली -आपकी बिटिया ने तो आपके लिए दामाद ढूंढ लिया है। डॉक्टर साहब और तारा जी दोनों, पारो की बात सुनकर एक दूसरे को देख रहे थे, यह अचानक क्या कह रही है ?तब पारो ने बताया - रूही को कल एक लड़का मिला था, देखने से अच्छे रईस खानदान का लग रहा था। उसे नृत्य नहीं आता था और हमारी रूही को भी नृत्य नहीं आता था किंतु दोनों ने आपस में बहुत गुटरगु की । कल तो ये मैडम ! कार्यक्रम में जाने से इनकार कर रही थीं  किंतु तुरंत ही, तैयार भी हो गई क्योंकि इन्हें उस अनजान लड़के से जो मिलना था और उसका असर तो देखिए ! इन्हें  नृत्य नहीं आता था किंतु आज कम से कम 1 घंटा 'डांडिया नृत्य' किया है यह सबको चौंका देने वाली बात थी,यह सब पारो के अंदर का ईर्ष्या भाव था जो रूही की चुगली के रूप में बाहर आ रहा था।  

डॉक्टर साहब और तारा जी ने, रूही की तरफ देखा, जैसे वो पूछना चाहते थे कि यह सब क्या हो रहा है ? किंतु रूही में कोई भी जवाब नहीं दिया और बोली -बहुत देर हो गई है,मैं अपने कमरे में जा रही हूं। 



laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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