इंस्पेक्टर सुधांशु की जाँच -पड़ताल से, डॉक्टर बुरी तरह बोेखला गया और इंस्पेक्टर को अपनी पहुंच की धमकियां देने लगा ,बात को संभालते हुए कहता है -वे बीती बातें हो गयीं ,अब 'गड़े मुर्दे उखाड़ने'' से क्या लाभ ?
डॉक्टर साहब !''हम 'गड़े मुर्दे नहीं उखाड़' रहे हैं,'वो मुर्दे स्वयं ही गवाही देने के लिए उठ खड़े हुए हैं।डॉक्टर की तरफ व्यंग्य से मुस्कुराया और बोला - अभी'' गड़े मुर्दे उखड़े'' ही कहां है ? जब हम''गड़े मुर्दे उखाडेंगे '', तो आप स्वयं ही भाग खड़े होंगे , जो गुनाह आपने किए हैं वो आपके सामने आकर खड़े हो जायेंगे।
यह क्या कह रहे हैं, आप ! क्रोध से, वह कुर्सी से उठ खड़ा हुआ। आपके पास क्या प्रमाण है ? कि मैंने कुछ गलत किया है। प्रोफेसर का मैंने इलाज किया था, अब वह क्या करता है, क्या नहीं ,इससे मुझे कोई लेना -देना नहीं ,उसकी पारिवारिक स्थिति अच्छी नहीं थी, परिवार में '' ग्रह कलेश'' चल रहा था जिसके कारण वह मानसिक रूप से अस्वस्थ रहता था। मैं उसका ही इलाज कर रहा था, इसमें मैं क्या कुछ गलत कर सकता हूं ?
हम तो आपको कुछ कह ही नहीं रहे हैं , बल्कि हमारे पास कुछ हत्याओं के केस आए हैं, जिन्हें हम सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं हमारी परेशानी को तो आप समझ ही सकते हैं। आप अपने केस सुलझाते हैं यानी कि मरीजों को ठीक करते हैं, इसी प्रकार हम भी, अपने केस पर अध्ययन करते हैं और अपराधी को सजा देने का प्रयास करते हैं, यह हमारा कार्य है आप व्यर्थ में ही परेशान हो रहे हैं, कहते हुए इंस्पेक्टर सुधांशु ने, विकास और शेखर की ओर इशारा किया, दोनों ने आगे बढ़कर डॉक्टर को, अपनी हिरासत में ले लिया।
यह देखकर, डॉक्टर हड़बड़ा गया और बोला -यह आप सही नहीं कर रहे हैं।
थोड़ी सी पूछताछ होगी बस, फिर आपको छोड़ दिया जाएगा जब आपने कुछ गलत ही नहीं किया है , तो घबराना कैसा ?
इंस्पेक्टर !!! इंस्पेक्टर!!!यह सब उचित नहीं है, आप मुझे जानते नहीं हैं, मैं कुछ भी कर सकता हूं, जाते हुए डॉक्टर धमकी देता है -मेरे पास बहुत शक्तियां हैं।
मुस्कुरा कर इंस्पेक्टर उसकी तरफ देखे बिना ही कहता है -इसी बात का तो डर है।
नितिन अपने कमरे में बेचैनी से घूम रहा था , उसकी हरकतों के कारण सुमित और रोहित, अब चुप रहते थे। उससे वे कोई ज्यादा वार्तालाप नहीं करते थे।अब तक तो वे अपने को कॉलिज का बड़ा दादा अथवा गुंडा समझ रहे थे किन्तु अब न जाने क्यों ?उन्हें नितिन से भय लगने लगा है। नितिन को बेचैनी से घूमते हुए देखकर, सुमित ने आखिर पूछ ही लिया -क्या बात है ? क्या कुछ हुआ है ? वैसे हम जानते हैं तुम हमें अपना मित्र नहीं समझते हो, हमसे बहुत सी बातें तुमने छुपाई हैं किंतु इतने सालों से हमारे साथ रह रहे हो , तो बिना पूछे हमें भी चैन नहीं आ रहा। क्या तुम्हें कोई परेशानी है ? जो इस तरह बेचैनी से घूम रहे हो।
नहीं, ऐसा कुछ नहीं है, मैं आज एक किताब लेने गया था किंतु मुझे वह'' लाइब्रेरियन'' नहीं मिला।
तुम तो कभी'' लाइब्रेरी'' नहीं जाते हो, तब आज कैसे ? तुम्हारे तो नोटस भी, बन चुके हैं।
जानता हूं, सुमित और रोहित, दोनों एक दूसरे को देखते हैं और सोचते हैं ,यह अभी भी हमें मूर्ख बना रखा है। नितिन को भी चैन नहीं था, उसके मन में बार-बार बेचैनी बढ़ रही थी, आखिर मेरी उम्र का लड़का यहां,'' लाइब्रेरियन'' बनकर कैसे आ सकता है? एक बार मुझे उससे मिल लेना चाहिए। तभी मेरे मन को चैन आएगा। यह भी तो हो सकता है वह कोई और रचित हो, और यह भी हो सकता है, वह वही हो ! और यदि वह वही है, तो इसका अर्थ है वह यहां क्यों आया है ?अपने घर क्यों नहीं गया ?अपने विषय में अपने घरवालों को क्यों नहीं बताया ?यहाँ आकर नौकरी करने की उसकी क्या मजबूरी हो सकती है ?यहाँ आया तो मुझसे क्यों नहीं मिला ?मुझसे छुपकर क्यों रह रहा है ?आखिर वह क्या चाहता है ? और वह जिंदा है। इन सभी सवालों के जवाब तो रचित से मिलकर ही मिलेंगे।
हमें इसकी हरकतों पर नजर रखनी होगी सुमित रोहित से कहता है।
नितिन आज फिर से उसी कॉलेज के पुस्तकालय'' की तरफ अपने कदम मोड़ लेता है वह जानना चाहता है कि आखिर यह' रचित' कौन है ? और अभी कुछ महीना पहले ही आया है उससे पहले तो कोई और था , क्या उसके यहां आने का कोई उद्देश्य हो सकता है ? मन ही मन परेशान होता है और अपनी सिर पर एक हाथ मारता है और कहता है- मैं भी न... कितना मूर्ख हूं, चार वर्षों से यहां रह रहा हूँ और कभी लाइब्रेरी जाकर देखा भी नहीं। नितिन तेजी से पुस्तकालय के अंदर प्रवेश करता है और अपने आसपास देखता है, क्योंकि उसे लग रहा था ,कहीं पहले की तरह ही वह कहीं गायब न हो जाये। जहां पर, किताबें ली अथवा दी जाती है वहां पर उस समय भी, कोई नहीं बैठा था। तब वह किसी से पूछता है -सर ! कहां है ?
वह देखो !उस अलमारी के पीछे हैं, उस छात्र ने उंगली के इशारे से अलमारी के पीछे, खड़े व्यक्ति की तरफ इशारा किया। नितिन लगभग दौड़ते हुए वहीं पहुंच जाता है, और कहता है -हेेलो सर ! किंतु उस इंसान ने अपना चेहरा नहीं घुमाया और पूछा -किस लिए आए हो ?
मुझे एक किताब लेनी है।
जो भी किताब लेनी है यहां ढूंढ सकते हो, उसने अपने को व्यस्त दिखलाते हुए कहा। एकदम से नितिन उसके सामने आ गया, उसने देखा -बड़े-बड़े चश्मे , दाढ़ी बढ़ी हुई थी,शायद इस दाढ़ी को बढ़ाने का उद्देश्य चेहरे को छुपाना ही था। एक गोरा- चिट्टा लड़का जो उन बड़े चश्मा में,से झांक रहा था। नितिन ने उसे चेहरे को ध्यान से देखा, तो देखता ही रह गया, अब तो उसे कोई शक नहीं है -ये उसका दोस्त रचित ही था , आश्चर्य से नितिन ने उसकी तरफ देखा और पूछा - तू ,जिंदा है।
उसने नजरें चुराते हुए ,कहा -तमीज़ से बात करो ! तुम कौन हो ?मैं तुम्हें नहीं जानता।
आखिर रचित का व्यवहार, नितिन से ऐसा क्यों है ? वह तो नितिन का अच्छा दोस्त था। क्या वह वास्तव में ही रचित है , उसका यहां इस लाइब्रेरी में आने का क्या उद्देश्य है ? वह यहां क्यों आया है यदि यहां आया भी है तो अपने मित्र से क्यों नहीं मिला ? उसे पहचानने से इंकार क्यों कर रहा है ? आईये ! इन सभी बातों का जवाब जानने के लिए आगे बढ़ते हैं।
