दयाराम के दिए ,उस पुराने कागज को हाथ में लेते हुए , सुधांशु ने कहा -दयाराम !तुमने यह बहुत अच्छा काम किया , हो सकता है, इस कागज के माध्यम से, हम अपनी समस्या का हल निकाल सकें,लो विकास !जरा, इसकी जाँच करना।
अब इस कागज़ में इतना दम नहीं लग रहा जो ज्यादा समय तक इस जानकारी का बोझ उठा सकें ,बड़े ही एहतियात से पकड़ते हुए ,विकास ने सुधांशु से कहा।
दयाराम ने हाथ जोड़े,' चाय की केतली' और' झूठे कप' उठाकर वहां से चला गया। विकास इनमें से देखो ! उस समय पर कौन-कौन लोग यहां कार्य कर रहे थे ?
इंस्पेक्टर सुधांशु, शेखर और विकास तीनों ही, उस सूची को ध्यान से देखते हैं। जांच पड़ताल के लिए, कुछ नंबर पर फोन भी लगाते हैं।
तब एक नाम पर आकर, उन सब की नजरें टिक गईं , डॉक्टर चंद्रकांत त्रिपाठी ! तब उन्होंने चंद्रकांत त्रिपाठी को फोन लगाया किंतु वहां पर किसी ने फोन नहीं उठाया। यह तो पता लगाना ही होगा, इंजीनियरिंग कॉलेज में, डॉक्टर चंद्रकांत त्रिपाठी का क्या काम और यह किस चीज के डॉक्टर हैं ? विकास तुम दोबारा से फोन लगाओ ! कोई तो फोन उठाएगा।
विकास के ,दोबारा फोन लगाने पर, उधर से किसी लड़की ने फोन उठाया , हेलो ! आप कौन बोल रहे हैं ? उसने सीधे-सीधे प्रश्न किया।
क्या यह नंबर' डॉक्टर चंद्रकांत त्रिपाठी' का है।
जी, किंतु आप कौन बोल रहे हैं ?
मैं कानपुर थाने से विकास बोल रहा हूँ।
शायद ,यह सब सुनकर वह थोड़ा घबरा गयी थी ,कुछ देर वहां शांति रही, तब वो बोली - इस नंबर को अब वो प्रयोग में नहीं लाते हैं , यह मेरा नंबर है।
आप कौन बोल रही हैं ?
मैं 'डॉक्टर चंद्रकांत त्रिपाठी' की बेटी' तान्या' बोल रही हूं।
क्या आप हमें बता सकती हैं , आपके पापा किस चीज के डॉक्टर हैं ?
यह आप कैसी बातें पूछ रहे हैं, जब आपने उन्हें फोन लगाया है तो आप लोगों को पता होना चाहिए।
हमें मालूम नहीं है, तभी तो हम यह पूछना चाह रहे हैं, किसी ने हमें उनका नाम बताया है।
किस सिलसिले में , मेरे पापा, एक मनोचिकित्सा रहे हैं किंतु अब..... अब कहते-कहते हुए थोड़ा रुक गई।
अब क्या ? अब क्या हुआ ? क्या वो नहीं रहे ? एकाएक विकास बोल उठा ,तभी उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और बोला -माफ़ कीजिये ! भावुकता में ये शब्द निकल गए ,मेरे कहने का मतलब था -क्या उन्होंने अब डॉक्टरी छोड़ दी हैं ,अपने शब्दों को साधते हुए पूछा।
जी हां,आप सही समझे !
मैं ,अभी भी कुछ नहीं समझा।
पापा ! बहुत पहले, मानसिक रोगियों का इलाज करते थे , न जाने, अचानक उन्हें क्या हुआ ? उन्होंने सब बंद कर दिया। अब वे एक स्थान पर भी नहीं रहते हैं, वह कहते हैं-'' दुनिया इतनी बड़ी है, लोगों को मेरी जरूरत है। '' यहां रहने से काम नहीं चलेगा।
अब डॉक्टर साहब हमें कहां मिल सकते हैं ?
कुछ कह नहीं सकती , सन्यासी जो हो गए हैं, कह कर उसने फोन काट दिया।
सर !यह क्या हो रहा है ? मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है , एक मनोचिकित्सक का इस कॉलेज में क्या काम ? उसे यहां क्यों बुलाया गया था ? और आज वह मनोचिकित्सक मुझे लगता है स्वयं ही पागल हो गया है, उसकी बेटी कह रही है -कि अब वह' सन्यासी' हो गया है,वह सही कह रही है या हमें गुमराह कर रही है।
सन्यासी का नाम सुनते ही, सुधांशु के दिमाग की बत्ती जली, किंतु यह बात उसने अपने तक ही सीमित रखी। तब उसने दयाराम को दोबारा बुलवाने के लिए, शेखर को भेजा।
जी साहब !अब मैं आपकी किस तरह से सहायता कर सकता हूँ ?दयाराम ने आते ही पूछा।
क्या तुम किसी '' डॉक्टर चंद्रकांत त्रिपाठी'' को जानते हो ?
जी नहीं ,भला डॉक्टर का उस तहखाने को बनाने में,एक डॉक्टर का क्या काम हो सकता है ?
इस सूची में एक डॉक्टर का नाम, शामिल है , उस समय पर यह यहाँ क्यों आया होगा ? उस समय क्या कोई बीमार था ? दयाराम सोचने लगता है, किंतु उसे कुछ भी याद नहीं आता है कि ऐसा कोई डॉक्टर या कोई ऐसा कोई वहां मरीज था।
तुम क्या समझ रहे हो ? वह बुखार , या खांसी का डॉक्टर नहीं था, वह एक मनोचिकित्सक था विकास ने उसे समझाने का प्रयास किया , जैसे -कुछ लोग, मानसिक रूप से परेशान होते हैं , तनाव होता है,मानसिक चिंता और इस तरह की कई परेशानियां होती हैं।
ओह ! तो आप 'पागल के डॉक्टर' की बात कर रहे हैं, दयाराम जैसे सब समझ गया।
तब तीनों हंसे और बोले- हां हां कभी-कभी पागलों का इलाज भी कर लेते हैं किंतु इस कॉलेज में तो कोई पागल नहीं होगा।
था ,सर ! दयाराम एकदम से बोला।
क्या ?इस कॉलिज में कोई पागल था।
नहीं ,नहीं मेरे कहने का मतलब है ,एक अध्यापक थे ,हमेशा परेशान रहते थे ,कभी -कभी बहुत चिल्लाते भी थे। मजदूरों से भी झगड़ पड़ते थे ,इसी कारण उनकी पत्नी भी उन्हें छोड़कर चली गयी थी।उसके जाने के पश्चात तो वे और भी ग़ुस्सेवाले हो गए थे। हो सकता है ,वो डॉक्टर उन्हीं के इलाज़ के लिए आये होंगे क्योंकि उस तहखाने में जब कार्य चल रहा था ,तब उसकी देखरेख का कार्यभार उन्होंने स्वयं अपने हाथों में लिया था।
ऐसा क्यों ?
ये तो मैं भी, नहीं जानता ,ये उनका कार्य नहीं था ,हो सकता है ,कॉलिज में अपनी अच्छी पहचान बनाने के लिए लिया हो।
अब वो शिक्षक कहाँ हैं ?
उनकी ज़िंदगी में इतना कुछ चल रहा था ,वो परेशान रहते थे,वो तो एक वर्ष पश्चात ही यहां से चले गए।
कहाँ चले गए ?कुछ पता है, शेखर ने पूछा।
अब मैं क्या बता सकता हूँ साहब ! वे नौकरी छोड़कर गए या उनका तबादला हुआ,मैं इतना बड़ा आदमी तो नहीं हूँ, कोई जायेगा तो मुझे बताकर जायेगा ,वो जब मुझे दिखाई नहीं दिए तब मैने एक बार अपने प्रधानाचार्य जी से पूछा था ,कि आजकल प्रताप सर ! नहीं आ रहे हैं। तब उन्होंने कहा था -'वो यहाँ से चले गए। ''कहाँ गए ,क्यों गए ?मैं नहीं जानता ,बस मुझे तो इतना ही मालूम है। हो सकता है ,अब जो प्रधानाचार्य जी हैं ,शायद आपकी कुछ सहायता कर दें।
हम्म्म्म ,गहन चिंतन से सुधांशु बोला -अच्छा दयाराम आज, तुमने हमारी बहुत सहायता की है अब तुम जा सकते हो।
चलो !अब हमें भी चलना होगा ,कल को फिर से इसी नितिन से बात करनी होगी कहते हुए वे लोग चले जाते है।
इंस्पेक्टर सुधाँशु की जाँच -पड़ताल कहाँ तक पहुंची ?क्या वे सही दिशा में जा रहे हैं ?क्या नितिन ही उन लड़कियों का हत्यारा है ?या अभी कुछ राज़ और खुलने बाक़ी हैं ,जानने के लिए आगे बढ़ते हैं।
