अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए हम,' पत्र' लिखते हैं। उस पत्र के माध्यम से. हम अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं और उस व्यक्ति को भेजते हैं, जिससे वह हम अपने दिल की बात कहना चाहते हैं। कई बार ऐसा होता है , हम सामने रहकर, अपनी वह भावनाएं उस आदमी के सामने व्यक्त नहीं कर पाते हैं, तब हम' पत्र' का सहारा लेते हैं ताकि हम उसे व्यक्ति को अपनी भावनाओं से अपने विचारों से अवगत करा सकें।' पत्र' एक -दूसरे से जुड़े रहने का माध्यम है, हालांकि आज के समय में पत्र का उतना महत्व नहीं रहा है क्योंकि सभी अपनी भावनाओं को,' इमोजी' के माध्यम से,' लेखन' के माध्यम से, 'रील' के माध्यम से, किसी न किसी रूप में, अपनी भावनाओं को व्यक्त करते रहते हैं।
हमारी कुछ भावनाएं व्यक्तिगत होती हैं, जिनको हम किसी व्यक्ति विशेष के लिए ही व्यक्त करना चाहते हैं या उसे अपने दिल का हाल सुनाना चाहते हैं। पत्र अधिकतर' पारिवारिक 'ही होते थे, वह तब लिखे जाते थे जब बेटा अपनी नौकरी से, अपने घर वालों को लिखता था या फिर पढ़ने जाता है, और हॉस्टल से अपने परिवार को अपना हाल-चाल और पैसे मांगने के लिए पत्र लिखता था। उस पत्र में कुछ भावनाएं होती थीं , कुछ आवश्यकताएं होती थीं, कुछ रिश्तों से दूरी का एहसास होता था।
उस समय में, कुछ' प्रेम पत्र 'भी होते थे वे प्रेम -पत्र जो अधिकतर प्रेमी अपनी प्रेमिका को लिखता है, या कमाने की विवशता के कारण दूर रहने पर पति अपनी पत्नी को लिखता था अथवा पत्नी अपने पति को, अपनी आवश्यकताओं और अपनी इच्छाओं का व्यौरा उसे सुनाती थी। दूर रहने पर, उसकी कमी का एहसास, उसका बिछोह, अपनी भावनाओं में सब उडेल देती थी।
कुछ समय पहले, लड़कियां ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं भी होती थीं, किंतु उन्हें इतना पढ़ा-लिखा दिया जाता था ताकि वह किसी भी परेशानी में अपने मायके वालों को अथवाअपने पति को पत्र लिख सके। कुछ ''व्यक्तिगत पत्र'' ऐसे होते थे , वह छुपा कर रखे जाते थे , इस बात का भय रहता था कहीं कोई, इन्हें देख न ले ,पढ़ ना ले। कुछ व्यक्तिगत भावनाएं लिखी होती थीं। अपने उन पत्रों को बहुत ही, एहतियात से सहेज कर रखा जाता था ताकि वह यादें उनके साथ हमेशा बनी रहे और जुड़ी रहें।
पत्र सहेज कर रखने के कुछ लाभ भी होते थे, तो कुछ हानियां भी थीं -यदि कोई प्रेमिका अपने प्रेमी को पत्र द्वारा अपनी भावनाओं से अवगत कराती थी,कुछ समय के आदान -प्रदान के साथ ,यदि उसका प्रेमी पलट जाता था अथवा लड़की का किसी अन्य स्थान पर उसके परिवार वाले रिश्ता तय कर देते हैं ,तब उसी नायक को कभी -कभी ख़लनायक बनने में देर नहीं लगती थी क्योंकि वही प्रेमी उन पत्रों के माध्यम से उसे डराता -धमकाता है इसीलिए ''पुराने पत्र ''यादों को तो सहेजते थे किन्तु कई बार परेशानी का सबब भी बन जाते थे।
वे'' पुराने पत्र'' उन सुनहरी यादों को स्मरण करा फिर जिंदगी में नवीनता भर देते थे ,उनको पढ़कर ख़ुशी का एहसास होता था। सबसे ज़्यादा हंसी तब आती थी ,जब किसी का पत्र उसके सामने ही पढ़ा जाता था। माँ अपने बेटे के पत्र बड़े ही सहेजकर रखती ,सीमा पर अथवा नौकरी पर गए बेटे की भावनाओं को अपने सीने से लगाकर रखती ,अब उसके पास ,अपने बेटे का साथ तो नहीं ,बस उन पत्र के कागज़ों में सिमटी उसकी कुछ भावनाएं ही तो थीं, जो उसे अपने बेटे के सामीप्य का एहसास दिलाती थीं।
इसी प्रकार प्रेमिका अथवा पत्नी अपने पति की वो निशनियाँ सहेजकर रखती हैं ,कभी दुःखी या परेशान होतीं तो अपना कलेजा निकालकर उस पत्र पर अपने आंसुओं की स्याही का इस्तेमाल करती ,उधर पति की विवशता ,कमाना ,उसका विरह ,पत्नी से दूरी ,सब कुछ यही पत्र तो अपने अंदर समेटे रखते। तब वो ''पुराने पत्र ''ही उन दिनों की स्मृति बन साथ रहते।