बलवंत ,वैसे तो अक्सर बाहर ही रहता है ,उसका अपना अखाड़ा है वो वहीँ व्यस्त रहता है। जब दोपहर के खाने पर घर आता है ,तब भोजन के दौरान ,दमयंती शिकायत भरे लहज़े में उससे बताती है - ये लड़की कितनी ज़िद्दी है ?इसे समझाने के लिए मैंने बंदिनी से भी कहा था किन्तु ये अपनी ज़िद पर अड़ी हुई है। आखिर ये चाहती क्या है ?
बच्ची है ,धीरे -धीरे सब समझ जाएगी ,बंदिनी को तो पता चल ही गया कि हम लोग उसका विवाह अपने बेटों में से ही, किसी से करवाना चाहते हैं ,यह सही हुआ ,अब गांव में तो यह बात फैल ही जाएगी कि हम अपनी बहु के साथ कोई अनुचित व्यवहार नहीं कर रहे हैं। बंदिनी को यहाँ इसके काम के लिए रखने का हमारा उद्देश्य भी यही था ,वरना गांव के लोग न जाने, कैसी -कैसी अफ़वाहें फैलाते रहते हैं ? घर में चाहे कुछ भी होता रहे किन्तु बाहर लोगों को पता होना चाहिए कि ठाकुरों का परिवार एक है और घर की बहु -बेटियों का मान रखता है।
लोगों को जो सोचना और समझना है वो तो सोचेंगे ही ,ऐसे दिखावा करने से किसी की सोच नहीं बदलेगी, दमयंती कहती है।
एक तो सभी, हमारे ख़ानदान से जलते हैं ,हमारे पैसे से जलते हैं। हमारे रहन -सहन को देख, सबके दिलों पर'' साँप लौटते हैं। ''तभी तो हमारे किसी भी ख़ानदान से रिश्ते नहीं आये। जो भी रिश्ता आता था ,हवेली में आने से पहले ही लौट जाता था। गांव का कोई न कोई अपनी ईर्ष्या की आग के कारण उसे, हमारी हवेली तक पहुंचने ही नहीं देता था, अपनी मूछों को मरोड़ते हुए बलवंत बोला -वो तो भला हो ,तुम्हारे पिता का ,और हमारे पिता का ,जो एक -दूसरे के दोस्त थे ,दोस्ती के नाते एक -दूजे का सहयोग भी किया। बलवंत की बात सुनकर ,दमयंती के चेहरे पर एक दर्द की लहर आई और चली गयी।
ह्म्म्मम्म ,इसे यहां रहते डेढ़ माह हो गया ,बच्चों को उसके करीब भेजती हूँ किन्तु ठाकुरों का ''खून उबाल तो बहुत मार रहा है.''किन्तु उस एक लड़की को अभी तक तुम्हारे सुपुत्रों में से कोई भी रिझा न सका ।
ये हुनर भी हर किसी में नहीं होता ,वैसे वो तो 'तेजस' की बेवा बनी रहने में ही खुश है ,उसका ये अरमान तो हम पूरा कर देते किन्तु क्या करें ? बेटी तो हमारे कोई है नहीं ,किन्तु बेटों को बेटी देने के लिए भी कोई तैयार नहीं है।
ये तो आपके ख़ानदान ने कर्म ही ऐसे किये हैं ,भगवान की माया भी देखिये !चार भाई तुम थे ,और अभी भी चार भाई ही रह गए। जब इनके पुरखों ने कोई अच्छा कार्य ही नहीं किया तो ये कैसे करेंगे ?शहर में जो होटल है ,वहां रात -दिन पड़े रहते हैं ,क्या मैं जानती या समझती नहीं ?वहां क्या चल रहा है ?इन्हें समझाइये ! एक दिन पुलिस के हत्थे चढ़ गए ,तो जेल में चक्की पिसते नजर आएंगे। एक भी पढ़ -लिखकर आगे बढ़ना ही नहीं चाहता। दोनों छोटों का जीवन मैं संवारना चाहती थी किन्तु अब बड़ों को देखकर वो भी मुझसे'' नजरें चुराने लगे हैं। '' आज एक सप्ताह हो गया ,दोनों होटल में ही पड़े हैं। लड़कियों का नाम सुनते तो उनकी लार टपकने लगती है कहते -कहते दमयंती का क्रोध बढ़ गया।
तुम्हें परेशान होने की आवश्यकता नहीं ,तुमने सब संभाल लिया न..... अब ये भी सब संभाल लेगी ,कहते हुए बलवंत ने उसके गालों पर हाथ फेरा और बोला -आज तैयार रहना।
दमयंती ने अपनी आँखें मूँद ली और एक लम्बी और गहरी स्वांस ली, उसके ह्रदय की पीड़ा एक गहरा दर्द बन ,बार -बार उसके चेहरे पर आती किन्तु अब तो ऐसे लगता है जैसे -उस पीड़ा पर उसने ध्यान देना बंद ही कर दिया है। उस दर्द को जबरन दबा देना चाहती है ,उसका मन उससे पूछता है -अब दर्द कैसा ? उसके जीवन में अब क्या कमी रह गयी है ?यह विचार बार -बार उसको समझाता रहता है।
शाम का समय था ,गर्मी बहुत पड़ रही थी ,बाहर भी गर्म हवा बह रही थी कोई भी अपने घर से बाहर निकलना नहीं चाहता था। शिखा ने हवेली से बाहर झांककर देखा ,दूर -दूर तक कोई इंसान तो क्या चिड़िया भी नजर नहीं आ रही थी । अब वह' तेजस' उसके कारण ,बीमार हुआ या ऐसे समय में बारात लेकर उनके घर गया ,इस अपराधबोध से बाहर आ गयी थी। 'तेजस 'का प्रेम भी ,समय के साथ उसे भूलता जा रहा था। अब वह अपने को पहले जैसी शिखा समझने लगी थी ''कुंवारी शिखा '' उसकी सफेद साड़ियां भी ,उसके कमरे से उठा लीं गयी थीं ,अब वो चटक रंग पहनने लगी थी। गर्मी के कारण ,उसकी हालत खराब थी। सोचा - थोड़ा नहा लेती हूँ ,यह सोचकर वह आज गुलाब की पंखुड़ियों से भरे पानी में, नहाने के लिए टब में घुस गयी।
आँखें बंद किये अनेक बातें उसके मानस पटल में घूम रहीं थीं ,वह सोच रही थी - कभी गर्वित -गौरव के व्यवहार को सोचती तो कभी दमयंती को सोचकर ,मन में अनेक सवाल आते और सोचने लगी - कल उनसे सारी बातें स्पष्ट कर लूंगी,आखिर वे क्या चाहती हैं। सुमित और पुनीत दोनों ही लंगूर से कैसे, मेरे इर्द- गिर्द मंडराते रहते हैं ?कोई भी ऐसा नजर नहीं आता जिसको अपने जीवन में संग सोचकर, अपने सपने सजा सकूँ ,इनमें से किसी से विवाह कर सकूँ ,इन सबसे बेहतर तो वो पड़ोस के गांव का' नरेंद्र' ही अच्छा लगता था। एक बार तो मुझसे मिलने ,मेरी एक झलक देखने के लिए, हमारे गांव आ गया था।
नरेंद्र को सोच -सोचकर ,शिखा के चेहरे पर मुस्कान तैर गयी ,जब वो पहली बार हमारे गांव में, अपनी क्रिकेट की टीम लेकर आया था ,सोचते हुए उसने दोनों हाथों से पानी अपनी अंजुली में भरा और उछाल दिया। उस भीड़ में भी , वह मुझे किस तरह देख रहा था ?उसने जब भी मुझे देखा, एक छक्का लगा देता। ऐसा लग रहा था जैसे मैं ही उसके 'किस्मत की चाबी 'बन गयी थी। मैं भी तो कितने जोरों से तालियां बजा रही थी वह तो मेरी सहेली परी ने ही तो मुझे रोका था- कि यह हमारे गांव का नहीं है, जब हमारे गांव की टीम जीतेगी तभी हमें ताली बजानी है।
नरेंद्र की बातें सोच कर, उसका छुप -छुपकर देखने आना, सब कितना अच्छा लगता था ? किन्तु तभी' तेजस 'के साथ रिश्ते की बात होने लगी और बात आई गयी सी हो गयी।क्या आज भी वो मुझे पसंद करेगा ,या मेरी प्रतीक्षा कर रहा होगा ? अब वो मेरी प्रतीक्षा क्यों करेगा ?जबकि उसे मालूम हो गया होगा ,मेरा विवाह हो चुका है, उसका मुस्कुराता चेहरा,अचानक गंभीर हो गया।
तभी उसे एहसास हुआ ,जैसे वहां कोई है अपने विचारों से बाहर आ उसने अपनी आँखें खोल दीं ,आँखें खोलते ही उसकी चीख़ निकल गयी।