Shaitani mann [part 91]

सम्पूर्ण मंडप फूलों से सजा है ,हर कोई अपने -अपने कार्यों में व्यस्त है। यहाँ  कुछ अजनबी इंसान ही इधर -उधर घूमते काम करते नजर आ रहे हैं। एक सुंदर, सजीला नौजवान, आसपास के वातावरण को देखते हुए आगे बढ़ रहा था। न ही वहां, उसे कोई जानता था और न ही, वह किसी को जानता था। उसे लगता है कहीं वह गलत पते पर तो नहीं आ गया, तब वह किसी से पूछता है -क्या यहां ''संदीप जी'' की बेटी ''शिवानी'' का विवाह हो रहा है। 

जी आप सही कह रहे हैं, यह वही 'मंडप 'है। 



किंतु मुझे तो यहां कोई नजर नहीं आ रहा ,आसपास नजर दौड़ाते हुए वह कहता है। 

 वे सभी लोग तो  शाम को यहां आएंगे, अभी तो अपने घर पर ही हैं। 

अपनी गलती पर स्वयं ही लज्जित हो गया और घर के पते पर रिक्शा कर लिया। रिक्शे को रोककर, पहले घर पर पूछा -क्या यहां परिवार वाले हैं ?हो सकता है ,कहीं और ही हों। 

जी सब यही हैं , उस व्यक्ति ने,उसे कोई मेहमान समझ कर, उसे बताया। 

तब वह अंदर गया, किसी जाने- पहचाने चेहरे को देखने का प्रयास करने लगा, वहां पर कुछ लड़कियां इधर-उधर घूम रही थीं। कुछ बुजुर्ग महिलाएं थीं, जो आपस में बैठी बतिया रही थीं। वह व्यक्ति सोच रहा था मुझे कहां और किधर जाना चाहिए ? तभी एक महिला की दृष्टि, उस पर पड़ी, और प्रसन्न होते हुए बोली -आखिर तू आ ही गया। 

 उसने भी, पलटकर देखा और बोला -मम्मी मैं तो परेशान हो गया , कोई जाना- पहचाना चेहरा नजर नहीं आ रहा। न जाने कौन, किसके रिश्तेदार हैं? कौन हैं , मैं किसी को नहीं जानता। 

जब किसी के यहां आना-जाना नहीं होगा किसी से नहीं मिलोगे, तब ऐसा ही होता है, अपने भी पास खड़े होते हैं ,तो पहचाने नहीं जाते। उनके पीछे खड़ी एक महिला ने कहा। 

तूने ! इसे तो पहचाना या नहीं, नितिन ने न में गर्दन हिलाई। तेरी मौसी ही तो है , उसने झुक कर उनके पैर छुए और' मौसी जी 'को नमस्ते कहा । 

जीता रह !कहते हुए उसके कंधे थपथपाये ,कितना बड़ा हो गया है ? पहचान में ही नहीं आ रहा है, इसे कब देखा था, जब यह आठवीं में पढ़ता था , सोचते हुए उस महिला ने अपनी बहन से पूछा। 

आप भी तो कितनी बदल गई हैं, जब पतली -दुबली थीं अब सेठानी हो गई हैं,नितिन ने अपने को उस वातावरण का एक हिस्सा समझते हुए कहा और हंसने लगा। 

चल ! मुझे नजर लगाएगा, तू भी तो कितना 'स्याना' और' हैंडसम'  हो गया है।  अब इसके लिए भी लड़की ढूंढ लो ! विवाह लायक तो यह भी हो गया है।  

चल, मौसी को ऐसे थोड़ी बोलते हैं, हंसते हुए उसकी मां ने कहा। पद्मिनी अपनी बहन की तरफ देखते हुए बोली -अब बेटी के विवाह से निश्चित हो जाइए और इसके लिए भी लड़की ढूंढना शुरू कर दीजिए ! यह जिम्मेदारी भी आपको ही निभाई है। अच्छा तू बता ! इतनी देर से क्यों आया है ? तुझे तो सबसे पहले और जल्दी आना चाहिए था।

 मैं तो सुबह ही निकल गया था, वह तो मैं मंडप में देखने चला गया कि काम सही तरीके से हो रहा है या नहीं, अपनी बात को बड़ी करते हुए नितिन बोला। 

क्या, तू मंडप में पहुंच गया था ?

हां मैंने सोचा, सब वहीं पर होंगे, आजकल यही होता है, सभी मंडप में ही आ जाते हैं।

वो तो तब होता है ,जब घर दूर हो ,वहां से घर ज्यादा दूर नहीं हैं ,जो भी मेहमान आ रहे हैं ,वो तो वहीं जा रहे हैं ,यहाँ तो बस घर के ही लोग हैं। अच्छा ,चल बता ,तूने कुछ खाया या नहीं। 

कहाँ खाया ?सुबह ही चल दिया था ,इससे पहले कि वह अपनी बात पूरी कर पाता, माँ चली गयी। मन ही मन नितिन सोच रहा था -मना भी कर देता, तब भी खाना पड़ता ,ये मानतीं  ही नहीं ,सोचकर मुस्कुरा दिया। तभी एक लड़की उसे अपनी तरफ आती दिखलाई दी। सिर पर दुपट्टा था ,देखने में पतली -लम्बी ,बाल खुले थे। कोई सजावट नहीं ,साधारण होकर भी खूबसूरत लग रही थी। इससे पहले कि वह उसके विषय में कुछ और सोच पाता ,हाथों में भोजन की थाली लिए उसकी मम्मी प्रकट हुईं और बोलीं - ले ,तेरी दीदी !ही तुझसे मिलने आ गयी।यही ' शिवानी है ',इसी का विवाह है।  तू तो, इसे जानता ही नहीं होगा ,तब मैंने ही इससे कहा -चल !अपने छोटे भाई से मिल ले। 

नितिन को समझ नहीं आया ,क्या कहे ?वो इतनी बड़ी भी नहीं लग रही थी कि आगे बढ़कर उसके पैर छुए ,तब नितिन ने आगे बढ़कर हैलो !कहते हुए अपना हाथ आगे बढ़ाया। उसने भी मुस्कुराकर अपने मेंहंदी से सजे हाथ को आगे बढ़ा दिया और बड़े ही आत्मीयता से पूछा -कैसे हो ?कहते हुए उसे बैठने का इशारा किया। नितिन के  बैठते ही, उसकी मम्मी ने भोजन की थाली उसके आगे रख दी। 

शिवानी भी उसके नजदीक ही सोफे पर बैठ गयी और बोली -पढ़ाई कैसी चल रही है ?

ठीक चल रही है , नजरें नीची करके भी, नितिन की नजर उस पर ही थी ,और मन ही मन सोच रहा था ,क्या लड़कियां बिना साज -सज्जा के भी इतनी खूबसूरत लगती हैं। उसके हाथों में कंगना बंधा हुआ था और बाजु हल्दी के कारण पीले दिखलाई दे रहे थे।

और बताओ !तुम्हारी कौन सी साल है ?

ये आखिरी साल है। आप क्या करतीं है और हमारे होने वाले जीजाजी क्या करते हैं ?

हम दोनों ही ,एक कम्पनी में काम करते हैं ,इन्होंने मुझे देखा और मेरे सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया। 

तब तो ये 'लव मैरिज ''हुई। 

मुस्कुराते हुए बोली - 'लव 'से अरेंज !और तुम बताओ !तुम्हें कोई मिली या नहीं। 

हम आपकी तरह सुंदर थोड़े ही हैं ,जो हमें देखते ही कोई पसंद कर ले,मन एकदम से कसैला सा हो गया।  

लड़के सुंदर नहीं स्मार्ट होने चाहिए ,वो तो तुम हो ,भला तुम्हें कौन मना कर सकता है ?

अच्छा ,अभी मैं चलता हूँ ,कुछ लोगों से जानपहचान भी कर लूँ ,मिलना ही नहीं होता, कहते हुए वह उठ खड़ा हुआ। वैसे वो शिवानी की बातों से बचना चाह रहा था। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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