Mysterious nights [part 26]

एक दिन शिखा की सहेली परी, उसके समीप आई और उसे एक कागज़ का टुकड़ा दिया ,जब शिखा ने पूछा इसमें क्या है ?तब परी ने उसके विषय में अनभिग्यता ज़ाहिर की और बोली -यह क्या है ?यदि जानना है तो इसे खोलकर देखना होगा। 

शिखा ने, वह कागज का टुकड़ा खोला तो, उसमें लिखा था -तुम्हें चांद कहूं ! गुलाब कहूं ! मेरी जान कहूं ! कुछ समझ नहीं आ रहा क्या कहूं ?कहीं तुम बुरा न मान जाओ ! अब तो हमारा रिश्ता भी पक्का हो गया है , क्या तुम्हारी इच्छा नहीं होती? कि एक बार मुझसे मिल लो !जब से तुम्हें देखा है, बार-बार देखने की इच्छा होती है किंतु क्या करूं? बेबस हूं। एक बार आकर मिल लो ! लगता है, तुम्हारा ये प्रेम मुझे झुलसा देगा। एक बार अपने प्रेम की पुकार मेरे ऊपर बरसा दो !  मन तृप्त  हो जाएगा। तुम्हारा सिर्फ तुम्हारा-तेजस !

यह तुम्हें किसने दिया ?



काला भूत देकर गया ? हंसते हुए परी बोली। 

बता ना, सच सच बता !

 कोई लड़का आया था, वह तुम्हारा नाम- पता पूछ रहा था , तब मैंने  उससे कहा -मैं उसी की सहेली हूं, तुम मुझे यह पर्ची दे  दो! मैं उस तक पहुंचा दूंगी। पहले तो वह मुझ पर विश्वास ही नहीं कर रहा था किंतु फिर उसने यह पर्ची मुझे थमा दी और बोला -सीधे जाकर उन्हें ही देना, तो तुम्हारी अमानत लेकर आ गई।फिर हँसते हुए बोली -ये तो अच्छा हुआ ,वो मुझे मिल गया ,यदि गांव के किसी चाचा ,ताया को दे देता तो क्या होता ?यह पर्ची उनके हाथ में होती और तू सवालों के कटघरे में ,आँखें छोटी करते हुए बोली।  

तेरा बहुत -बहुत धन्यवाद !तूने मेरी इज्ज़त बचा ली। अब मैं इसका, उसे कैसे जवाब दूंगी ?

इसकी चिंता तू मत कर, वह गया नहीं है, वह जवाब लेकर ही जाएगा। यह बात सुनकर शिखा बहुत घबरा गई और बोली- मैं क्या जवाब दूंगी ? 

ले, अभी तो पूछ रही थी ,जबाब कैसे दूंगी ?अब मैंने बताया तो अब जबाब पूछ रही है।  वह तो तू ही जाने, मुझे तो बस जवाब लिखकर दे दे और मैं उसे दे दूंगी। 

आज तक कभी पत्र लिखा ही नहीं  उसके दिल की धड़कन तेज गति से बढ़ने लगीं, उसे घबराहट होने लगी कि वह इसका क्या जवाब दे ? क्या लिखे ? कुछ समझ नहीं आ रहा था, घबराते हुए चहल कदमी करने लगी फिर पानी पिया और परी से बोली -तू ही कुछ सुझाव दे दे ! क्या लिखूं ?

परी भी नाखून चबाते हुए, सोचने लगी -तब बोली -मैं तो सोच रही हूं, तू उसे मिलने के लिए यहीं बुला ले। 

चल ! यह क्या बात कर रही है ? ऐसा कहीं होता है। 

हां हां आजकल जमाना बदल रहा है, सुना है, शहरों में तो विवाह होने से पूर्व  कई बार मिल लेते हैं। 

यह शहर नहीं है , बेकार में ही, बदनामी हो जाएगी। 

एक बार बुला ले ! उत्साहित होते हुए परी बोली। हम शहर वाले नहीं हैं तो क्या हुआ ? शहर जैसी सोच तो रख सकते हैं, एक बार मिलने से कुछ नहीं होता। 

तू पागल है, मैं उसे यहां कहां बुलाऊंगी ? क्या वह घर पर आ जाएगा ? 

शिखा की बात सुनकर परी हंसने लगी और बोली -तू तो निरी बुद्धू है , भला, होने वाले दूल्हे को, विवाह से पहले घर पर कौन बुलाता है ?

 तो क्या करूं ? अबोधता से शिखा ने पूछा। 

उसे चाचा की ट्यूबवेल पर बुला ले , वहीं पर मिल लेना, किसी को 'कानो कान खबर 'भी नहीं होगी और बेचारे का दिल भी बहल जाएगा। 

देख ले ! इस बात में कोई परेशानी तो नहीं है , सारी जिम्मेदारी तेरी होगी। 

तेरे लिए इतना तो कर ही सकती हूं , परी बोली -किसी गैर मर्द से मिलने थोड़े ही जा रही है, अपने होने वाले पति से ही तो मिलने जा रही है, बेचारा तेरे दर्शनों का प्यासा है , देवी ! उसकी प्यास बुझाओ ! कहते हुए उसने हाथ जोड़े और हंसने लगी। अब बता, उस दूत से क्या कह दूं ? कब मिलेगी ?

मुझे नहीं पता, घबराते हुए शिखा बोली।अभी भी उसके मन में घबराहट थी ,वह कोई निर्णय नहीं ले पा रही थी।  

उसे परसों दोपहर में ,आने के लिए कह देती हूं, दोपहर में कोई, खेतों पर नहीं जाता या तो सुबह जाते हैं या फिर शाम को, बस वही समय है जब तुम मिल सकती है वरना विवाह के बाद ही मिलना होग और उससे कह देना, हमारे यहां ऐसे लड़कियां नहीं मिलती हैं, यह  कोई शहर नहीं है अब जब भी मिलना होगा तो विवाह के बाद ही मिलना होगा।  

उसकी बात सुनकर शिखा एक बार फिर से ड़र गयी ,जो  हिम्मत की थी ,वह फिर से जबाब देने लगी ,तब परी बोली -मुझे नहीं मिलना है ,कहीं कुछ गड़बड़ हो गयी ,किसी ने देख लिया तो क्या होगा ?

अब क्या हो गया ?शेरनी बनते -बनते 'भीगी बिल्ली ''बन गयी। यह कार्य मैं सिर्फ़ तुम दोनों के लिए कर रही हूँ वरना और कोई होता तो करती नहीं ,एहसान दिखलाते हुए परी बोली। 

तू तो ऐसे कह रही है ,जैसे कोई एहसान कर रही हो।  

 एहसान कर रही हूं तो दिखा भी रही हूं। 

तू चिंता मत कर, अपने देवर से तेरे विवाह की बात करूंगी और तेरे एहसान का बदला अवश्य चुकाउंगी दृढ़ निश्चय से शिखा बोली।

अच्छा ,पहले अपना विवाह तो कर ले ,तभी तो अपने देवर से मेरी बात करेगी ,अभी उन्होंने मुझे देखा ही कहाँ है ?मुझे देख लेते तो तेरी छुट्टी हो जाती ,वो तो तू मेरा शुक्र मना मैं, वहां नहीं थी। अच्छा ,अब जल्दी कर ,कुछ भी लिख दे !जो भी तेरे मन में आये। अब तू उसे पसंद है ,वो तेरे रूप जाल में फंस चुका है ,तू उसे गाली भी लिख देगी ,उसे ख़ुशी -ख़ुशी वो भी मंजूर होगा। 

चुप भी करेगी ,बोले जा रही है ,कुछ सोचने ही नहीं दे रही है परी को डांटते हुए शिखा बोली। एक कागज़ का दुकड़ा उसने भी लिखा किन्तु एक लिफाफे में बंद करके और ठीक से चिपकाकर उसे देते हुए बोली -देख ,तेरे विश्वास पर दे रही हूँ ,इससे पहले की किसी को पता चले ,उसे यहां से शीघ्र ही चलता कर दे। 

बढ़िया ,तेरी डाकिया बन गयी और तुझे मुझ पर विश्वास भी नहीं ,लिफाफ़े को देखकर बोली -क्या मजबूती से बंद किया है ?कहीं कोई पढ़ न ले !क्या लिखा है ?मुझे नहीं बताएगी। 

मुस्कुराते हुए शिखा बोली -तूने ही तो कहा था जो जी में आये लिख दे !

सही है ,हमारे दिन भी आएंगे कहकर वो वहां से चल दी ,तब उसे रोकते हुए शिखा बोली -वो जो भी मेरा संदेश लाया है ,उसे कुछ खिलाया -पिलाया है ,या ऐसे ही भूखा रखा है। 

तू पागल है ,क्या ? मैं भी तो इसी गांव की हूँ ,उसे मेरे साथ देखकर ,मुझसे चार सवाल पूछते इसीलिए उसे गन्ने के खेतों  के पास रुके रहने को कहकर आई हूँ। भूख लगेगी तो वहीं गन्ने खा लेगा ,ये तो तेरे उनको, उसे भेजने से पहले सोचना चाहिए था,कि यहाँ उसकी मेहमान नवाज़ी नहीं होगी। 

    

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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