संपूर्ण ठाकुर परिवार, खेड़ा गांव में, किशोरी लाल सरपंच जी के यहां, उनकी बेटी को देखने जाते हैं। जब उनकी बेटी शिखा को, वहां बुलवाया जाता है तो शिखा की सुंदरता देखकर, सभी का निर्णय 'हाँ' में ही होता है। तेजस'' ने जब शिखा को पहली बार देखा तो देखता ही रह गया।''गौर वर्ण ,हिरणी सी बड़ी -बड़ी आँखें ,लम्बी रेशम सी चोटी ,लाल- काली साड़ी में बला की खूबसूरत लग रही थी।'' तभी ठाकुर हरिराम जी ,तेजस से बोले -यह मुंह खुला क्यों रखा है ? इसे खाना नहीं है, देखना है। उनकी बात का आशय समझ कर सभी हंस पड़े और तेजस भी झेंप गया। देखिए ! सरपंच जी ,आपकी बिटिया हमें पसंद है। यदि आप लोगों को भी हमारा बेटा पसंद है ,तो आज ही बात पक्की कर लेते हैं।
उनकी बात सुनकर सरपंच जी ने शिखा की मां की तरफ देखा, उनका इशारा लड़के लिए उनकी राय जानने का था, शिखा की मम्मी ने भी , हां में गर्दन हिला कर हामी भर दी। तब सरपंच जी बोले -आपकी हाँ है तो हमारी भी हाँ है।
हम लोग ज्यादा दकियानूसी विचारों के नहीं हैं , सबकी सहमति है ,लड़की हमें पसंद है, अपनी बेटी से भी बात कर लीजिए और' तेजस' तुम बताओ ! क्या तुम्हें लड़की पसंद है ?
तेजस ने एक बार फिर से, शिखा की तरफ देखा जो अपनी गर्दन नीचे किये जमीन में देख रही थी और हाथों की उंगलियों में पल्लू को लपेट रही थी शायद वह उसके जवाब के इंतजार में बेचैनी से प्रतीक्षा कर रही थी या फिर उसकी घबराहट भी हो सकती है ,उसको देखकर तेजस को ऐसा लगा। तेजस को तो शिखा देखते ही ,पहली नजर में ही पसंद आ गई थी, न करने का तो सवाल ही नहीं उठता । तब वह कहता है -इनसे भी पूछ लीजिए -इन्हें मैं पसंद हूं या नहीं।
तेजस की बात सुन सभी हंस दिए और सभी एक साथ बोले -'इनसे भी पूछ लीजिये !'
तेजस के इतना कहते ही, शिखा अपनी जगह से उठी और अंदर भाग गई। तेजस ,शिखा को जाते हुए देखता रहा ,उसे लग रहा था -यह बात कहकर मैंने कहीं कोई गलती तो नहीं कर दी। तब सरपंच जी कहते हैं -ऐसी बातें बिटिया अपने मुंह से कहां कहती हैं ? शरमा गई है। जो भी बताएगी अपनी मां से कहेगी। उसका जो भी निर्णय होगा हमें मान्य होगा और उचित मुहूर्त पर हम सगाई लेकर आ जाएंगे।
जी , यह आपने सही कहा , शीघ्र ही हमें कोई अच्छी सी खबर दीजिएगा , हमें भी तो तैयारी करनी होगी।
जी, जी अवश्य हाथ जोड़कर किशोरी लाल जी सम्मान से बोले।
बीजापुर और खेड़ा गांव वैसे ज्यादा दूर नहीं थे ,उनके मध्य में एक गांव और पड़ता था। लड़के वालों के चले जाने के पश्चात, तब गांव के ही एक व्यक्ति ने किशोरी लाल जी को परामर्श दिया। सरपंच जी ! बिटिया का मामला है, इतनी जल्दबाजी मत कीजिए ! पहले लड़के वालों के विषय में पता तो कर लीजिए। आजकल बहुत धोखाधड़ी चल रही है , लोग बोलते कुछ हैं और होता कुछ और है।
जी, आप सही कह रहे हैं , मैंने किसी को पता लगाने के लिए भेजा है, वह कुछ दिनों में, सब कुछ पता लगा कर आ जाएगा। वैसे आप बताइए ! आपको सभी लोग कैसे लगे ?
गहरी सांस भरते हुए, वह चारपाई पर लेटे और बोले -अब किसी के अंदर झांक कर तो देखा नहीं जा सकता, पैसा तो दिखलाई दे रहा है , किंतु इंसान को बरत कर ही पता चलता है, किसकी कैसी सोच है ? बाहरी आवरण से नहीं पता चलता। मेरा अनुभव तो यही कहता है, पहले अच्छे से जांच- पड़ताल कर लीजिए तब आगे बढ़िएगा, हुक्का पीते हुए बोले।
तभी तो आपसे पूछ रहा हूं, आप अनुभवी हैं,बड़े हैं, इसीलिए तो पूछ रहा था -कि वे लोग, कैसे लगे।
सब ठीक ही है, अच्छा! अब मैं चलता हूं कोई भी निर्णय लेना हो, या कोई भी बात हो तो बताना,जल्दबाज़ी में कोई कार्य मत करना।
कुछ दिनों के पश्चात, उस व्यक्ति ने पता लगाया , ठाकुर अमर प्रताप सिंह, बहुत पुराने रईसों में से हैं ,उनकी पत्नी भी एक उच्च खानदान से थी। उनके चार बेटे थे, एक का विवाह हुआ है बाकी लड़कों के विवाह नहीं हुये या रिश्ते नहीं आए। यह पता नहीं लग पाया। यह पांचो बच्चे, एक ही की संतान हैं। घर में एक ही महिला है, जो विदेश से पढ़कर आई थी अंग्रेजी पढ़ी हुई है। अपनी सास के चले जाने पर,वही इस घर को संभाल रही है।
इन बातों को सुनकर, किशोरी लाल जी को, इसमें कुछ भी गलत नहीं लगा। लगता भी कैसे ? हवेली की बातें हवेली में ही घूमती रहती हैं। हवेली से बाहर जाने का द्वार उन्होंने देखा ही नहीं। किशोरी लाल जी भी हरी झंडी दिखा देते हैं और रिश्ता पक्का कर देते हैं।
शिखा से जब उसकी माँ ने पूछा -तुझे लड़का पसंद तो है ,तो वह चुप रही सोच रही थी -माँ, अपने आप समझ जाएँगी किन्तु वे भी कहाँ मानने वालीं थीं ?बोलीं - लड़का पढ़ा -लिखा है ,अच्छा परिवार है ,तुझे और क्या चाहिए ? गांव में रहे या शहर में , कहीं भी रहना। मन ही मन शिखा सोच रही थी ,न जाने मुझे क्यों बता रहीं हैं ? क्या तुझे और कोई पसंद है ? तुझे हमें पहले ही बताना चाहिए था ,हम उन लोगों को नहीं बुलाते ,अब मना करेंगे तो अच्छा भी नहीं लगेगा मुँह बनाते हुए बोलीं।
आपसे किसने मना करने के लिए कहा ?परेशान होकर शिखा को बोलना ही पड़ा।
तो तुझे लड़का पसंद है ,उसकी तरफ देखते हुए पूछा।
शिखा गर्दन झुकाकर बोली -हाँ !
तब तू पहले क्यों नहीं बोली ?मैं तो परेशान हो गयी थी ,जो तू पहले ही बता देती तो मुझे इतना बोलना नहीं पड़ता।
आप अभी भी बोले जा रहीं हैं ,मैंने तो सुना है ,माँ अपने बच्चों की चुप्पी भी समझ जाती है किन्तु मैं जब तक नहीं बोली -आप समझी ही नहीं।
आँखों में अश्रु भरकर वो बोलीं -मैं तो तभी समझ गयी थी ,जब तू तेजस के पूछने पर भाग गयी थी किन्तु तेरे मुँह से सुनना चाहती थी ,उसके सिर पर हाथ रखते हुए बोलीं -जब तू अपनी ससुराल चली जाएगी ,तब ये माँ किससे इतनी बातें करेगी ,इसीलिए वही कोटा पूरा कर रही हूँ। मैं तो चाहती हूँ ,मेरी बिटिया को इतनी अच्छी ससुराल मिले ,उसे मायके की याद ही न आये। माँ के ये शब्द सुनकर शिखा उनके गले से लिपट गयी।
एक दिन अचानक ही, शिखा के पास एक' कागज का टुकड़ा' आया यह उसकी सहेली परी ने दिया था।
यह क्या है ? शिखा ने पूछा।
खोल कर देख ले ! पता चल जाएगा , हंसते हुए वो बोली।