आज गांव के विद्यालय में ही, होली का आयोजन किया गया। विद्यालय को अच्छे से सुसज्जित करके, वहीं पर लोगों के आने का प्रबंध भी किया गया। वैसे यह कार्य, बहुत पहले से ही गांव की चौपाल पर होता आ रहा था किंतु अबकि बार' प्रिंसिपल साहब' के कहने पर यह आयोजन, गांव के विद्यालय के प्रांगण में किया गया। धीरे-धीरे लोगों ने आना आरंभ कर दिया। प्रबंध अच्छा था लेकिन, वहां के लोग समझ नहीं पा रहे थे कि यह मंच क्यों और किसलिए बनाया गया है ? तब वहां की अध्यापिका ने, आने वाले अतिथियों का स्वागत किया और उन्हें अपना- अपना स्थान ग्रहण करने के लिए कहा गया। जब लगभग सभी अतिथि वहां पहुंच गए , तब प्रधानाध्यापक ने, सभी का आभार व्यक्त करते हुए कहा -
सम्मानीय ,गांव वासियों और प्रिय छात्रों !आप सभी का इस होली के त्यौहार में आने के लिए धन्यवाद ! और आप सभी को होली की बहुत -बहुत बधाई !
आप सभी के मन में एक प्रश्न बार-बार उठ रहा होगा, कि अबकि बार ऐसा क्या हुआ ?जो यह आयोजन विद्यालय में किया गया। यह आयोजन, इस गांव के बच्चों के लिए, खुशखबरी लेकर भी आया है ,आपको बताते हुए , मुझे यह हर्ष हो रहा है कि अब तक हमारा विद्यालय दसवीं तक का ही था, किंतु यह अबकी बार' बारहवीं कक्षा' तक का हो गया है। हमारे परिश्रम और हमारे बच्चों के अच्छे परिणाम के कारण, यह उन्नति हुई है या यह भी कह सकते हैं कि उन्नति की एक शुरुआत हुई है। मैं चाहता हूं कि हमारे गांव के बेटे और बेटियां, पढ़ -लिखकर आगे बढ़े, और अपने गांव का ही नहीं, अपने देश का नाम भी रोशन करेंगे।
प्रधानाचार्य के इतना कहते ही, गांव के लोगों को खुशी हुई और उन्होंने ताली बजाई। तब प्रधानाचार्य जी !ने आगे कहना आरम्भ किया-'' मैं चाहता हूँ ,इस होली के पर्व पर ,हमारे गांव के लिए,यह प्रसन्नता की बात है , गांव के सभी सम्मानित जन , इस बात को समझेंगे। हमारे देश में नारी को सर्वत्र ही सम्मान दिया जाता रहा है, हमारे देश में जो भी कुप्रथाएं थीं ,उनका हमारे देश के समाज- सुधारकों ने डटकर विरोध किया। हमेशा ही नारी उत्थान की बातें की हैं। हमारे समाज में पहले भी कुछ प्रथाएं थीं ,वो उस समय के आधार पर उन लोगों ने जो भी, उचित लगा, किया ,किन्तु उन प्रथाओं के चलते ,कुछ समय पश्चात, उन प्रथाओं ने कुप्रथा का रूप ले लिया। प्रधानाचार्य जी की ये बातें सुनकर सुनीता ने, अपनी सहायक अध्यापिका की तरफ देखा ,जो पहले से ही मुस्कुरा रही थी।
जिनका हमारे देश के' समाज सुधारकों 'ने विरोध किया और उनको बदलने का प्रयास भी किये। ये सब कैसे हो सका ?लोगों की जगरूकता के कारण ,उनकी शिक्षा के कारण ,आज हमारे देश के बच्चे उन्नति कर रहे हैं और मैं चाहता हूँ, हमारे इस गांव के बच्चे -बच्चियां भी उन्नति करें। जब हमारी आने वाली पीढ़ी शिक्षित होगी ,तो इस अज्ञान के अंधकार को जड़ से उखाड़ फेंकेंगी। जिस प्रकार'' होलिका दहन '' में 'भक्त प्रह्लाद'की भक्ति जीती और दुष्ट' होलिका 'किसी अज्ञान की तरह जलकर भस्म हो गयी जो बुराइयों का प्रतीक थी।
सबसे ज्यादा प्रसन्नता मुझे इस बात की है कि इस गांव की बालिकाएं, अच्छे परिणाम ला रहीं हैं। यह हम सबके लिए गर्व की बात है। जब एक बालिका शिक्षित होती है ,और वो पढ़- लिखकर पराये घर जाती है ,तब एक शिक्षित समाज की स्थापना होती है किन्तु साथ ही ,हमारे लिए यह बेहद ही दुःख का विषय है। कुछ लोग, इन बेटियों को आगे बढ़ाने का साहसिक कदम उठाते हैं ,तो समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो हमारी बच्चियों के भोलेपन का लाभ उठा लेते हैं, तो कहीं हमारी बेटियां जबरन ही उनकी' वासना' का शिकार हो जाती हैं। तब यह कमी कहाँ रही ? कहते हुए कुछ पल के लिए वे रुक गए और गांव के लोगों की तरफ देखने लगे।
हमारी शिक्षा में या हमारी परवरिश में ,कहीं न कहीं तो कमी रही है। सबसे पहले हमें अपने बेटों को ,अपनी माँ ,बहन ,पत्नी के प्रति सम्मान की भावना रखना सिखाना होगा। यह सम्मान और प्रेम भावना के लिए अपने घरों से ही शुरुआत करनी होगी। अपनी बेटियों को शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए ,उन्हें इस तरह की शिक्षा देनी होगी ,ताकि वो किसी भी परिस्थिति में कमजोर न पड़ सकें, आने वाली कठिनाई का डटकर मुक़ाबला कर सकें इसीलिए मैंने सोचा है -उनको आत्मरक्षा के लिए शिक्षा देनी होगी, जिसके लिए हम प्रयासरत हैं। नारी को अन्नपूर्णा ,दुर्गा कहा गया हैं ,इन हमारी बच्चियों में भी किसी न किसी देवी का रूप समाया है।
माना कि होलिका भी एक स्त्री ही थी किन्तु 'होलिका'एक ही थी। उस पर भी अपने भाई का प्रभाव था। इससे पता चलता है ,बुराई के साथ रहने से, बुराई बढ़ती ही है। किन्तु एक सीमा तक, आख़िरकार उसका परिणाम जलकर भस्म होना ही है। मैं आप लोगों का ज्यादा समय नहीं लूंगा,ज्यादा समय न लेते हुए ,हम इस नववर्ष पर प्रेम ,विश्वास और भक्ति का दिया जलाते हुए ,अंधकार ,बुराई और अज्ञान की प्रतीक इस ''होली का दहन ''हमारे सरपंच जी करेंगे और सभी बच्चे और बड़े प्रसाद लेंगे और रंगों से अपने तन को ही नहीं ,सुनहरे भविष्य से मन को भी रंगों से सजा लेंगे ,मैं उम्मीद करता हूँ ,हमारे गांव के बच्चे और बच्चियों के साथ -साथ उनके माता -पिता भी, अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य में ,अपना योगदान देंगे। एक बार फिर से सभी को होली की बहुत -बहुत शुभकामनायें !हाथ जोडकर प्रधानाध्यापक जी बैठ गए।
सरपंच जी उठे और बोले -अब मुझे कहने के लिए कुछ बचा ही नहीं है, हमारे सम्माननीय प्रधानाचार्य जी ने, अप्रत्यक्ष रूप से, हमें बहुत कुछ समझा दिया है। मैं मानता हूं कि वे बहुत कुछ कहना भी चाहते थे किंतु समझने वालों के लिए, इनके यही वाक्य अनमोल हैं हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए , कि ऐसे ज्ञानी गुरु हमारे गांव के विद्यालय के 'प्रधानाचार्य' हैं। इस विद्यालय की शिक्षिकाएं और शिक्षक, सभी पढ़े- लिखे और समझदार हैं। उनके परिश्रम और उनके ज्ञान का लाभ उठाते हुए, हमारा विद्यालय आज उन्नति कर रहा है। और भविष्य में भी, उन्नति करता रहेगा। हो सकता है, बड़ी शिक्षा प्राप्त करने के लिए, हमारे गांव के बालकों को, इस गांव से दूर जाना पड़ता है। यदि यह इसी तरह उन्नति करते रहे, और हमारे बच्चे अच्छे परिणाम लाते रहे तो हो सकता है, हमारे गांव में ही, इतनी तरक्की हो जाए कि यहां के बालक जब पढ़- लिख कर निकले तो इस गांव का नाम हो। मेरी तरफ से भी आप सभी को होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं !
कहते हुए सरपंच जी, होलिका की तरफ बढ़ जाते हैं , शुभ मुहूर्त पर'' होलिका दहन'' होता है, और सभी प्रसाद गृहण करते हैं और आपस में एक दूसरे के गुलाल भी लगाते हैं , इसके पश्चात, हंसी-खुशी के साथ वह कार्यक्रम समाप्त हो जाता है।
छुट्टी के दो दिन पश्चात, प्रधानाचार्य के कक्ष में सुनीता जाती है और कहती है -सर ! हमने आपसे कहा था कि आप'' बाल विवाह ''पर भी, चर्चा करें किंतु आपने उस विषय में तो कुछ कहा ही नहीं।
यह मैं मानता हूं, कि '' बाल विवाह'' नहीं होना चाहिए किंतु इस गांव के लोगों की, जो धारणा बनी हुई है उसको हम इतनी आसानी से, बदल नहीं सकते। यदि मैं, ऐसे समय में, 'बाल विवाह' पर चर्चा करता, तो हो सकता है, जो बात उन्होंने इतने ध्यान सुनी थी, उस पर भी ध्यान न देते। हम गुरु हैं, और इस गांव की शिक्षा का केंद्र यह विद्यालय है। गुरु को इतना ज्ञान तो होना चाहिए कि किस समय पर कैसा ज्ञान देना है ? अभी यह विद्यालय आगे बढ़ा है, हो सकता है ,भविष्य में,'' बाल विवाह ''पर भी चर्चा हो। हम धीरे-धीरे ही, इन लोगों की इस धारणा को बदल सकते हैं। एकदम से कहा जाएगा, तो हो सकता है ,वह लोग विरोध पर उतर आएं। कोई भी प्रथा हो या मान्यता हो, उनमें सहजता से ही परिवर्तन नहीं होता। धीरे-धीरे उनके लाभ और हानी गिनाए जाते हैं। तब लोगों को एहसास होता है, कि हम कहां गलत रहे हैं ? और एकदम से हम यह कह देंगे- कि '' बाल विवाह'' गलत है,तो हो सकता है उनके पुराने जख्म उभर आएं अभी उन्हें आज की पीढ़ी पर इतना विश्वास नहीं रहा है कि यह पीढ़ी आगे बढ़कर, उन्नति करेगी। '' धीरे-धीरे ही बदलाव आता है। आंदोलन करने से या बहिष्कार करने से उन्नति नहीं होती, सिर्फ पक्ष और विपक्ष उभर कर आते हैं , बदलाव नहीं लाते।''
सर !आपने मेरे मन में जो प्रश्न उभर रहे थे ,उनका आपने अच्छा समाधान किया ,आपने सही कहा ,बदलाव आने में समय लगता है।
आप भी ,एक अच्छी जागरूक शिक्षिका हैं ,मैंने उस दिन आप दोनों की बातों को सुना और उन पर गौर किया। तब मुझे भी लगा जो कुछ भी यहाँ हो रहा है ,सही नहीं है ,अब हमें लोगों में जागरूकता लानी होगी।तब धीरे -धीरे लोगों की सोच बदलेगी, कुछ दुर्घटनाओं के कारण इन गांववालों की सोच बदली है ,मुझे डर है ,यदि ऐसे ही हालात रहे तो इस गांव के ही नहीं बल्कि धीरे -धीरे अन्य क्षेत्रों के लोगों की,सोच न बदल जाये। उसमें फिर से समय के साथ परिवर्तन होगा किन्तु इस बात से हम सहमत भी हैं और चिंतित भी हैं जिस प्रकार हालातों से आजकल के बच्चे गुज़र रहे हैं ,उसको देखते हुए लग रहा है ,परिवर्तन की आवश्यकता तो है। बच्चों को शिक्षित किसलिए बनाया जाता है ?ताकि एक स्वस्थ और शिक्षित नागरिक बनें, किन्तु वे क्या कर रहे हैं ? बेटियां घरों में नहीं रहना चाहतीं , अपने तन और अस्मत को व्यापार बनाकर रख दिया है। आजकल की पीढ़ी बिन परिश्रम ही ,शीघ्रता से अमीर होना चाहती है ,जिसके लिए कई बार वो जीवन में गलत निर्णय भी ले लेते हैं। नशा करते हैं ,बेचते हैं। जो बेटियां आगे बढ़ रहीं हैं ,उनका नाम तो होता ही है किन्तु जो शहरी चकाचोंध में उलझकर रह जाती हैं ,वे कहीं की नहीं रह जाती हैं। समाज में बदनामी और रुसवाई के सिवा कुछ हाथ नहीं आता, लोगों की भीड़ में खोकर रह जाती हैं।
हमें गुरु होने के साथ -साथ एक अच्छे नागरिक की तरह ,छोटे -छोटे क़दमों द्वारा ही सही ,बच्चों को जागरूक करना होगा। अच्छा साहित्य पढ़ें ,बल्कि आजकल जो अश्लील चलचित्र या वीडियों बन रहीं हैं ,उनको न देखकर ही उनका विरोध होगा ,जब कोई देखेगा ही नहीं तो बननी बंद हो जाएँगी। आजकल के बच्चों को शिक्षा के साथ -साथ ,योग औरआत्मरक्षा के लिए' जूडो ' इसी तरह की शिक्षा देनी चाहिए। बदलाव तो होगा किन्तु इसकी शुरुआत हमें अपने घरों से और विद्यालयों और अपने आप से ही करनी होगी।
प्रिय पाठकों को नमस्कार ! मैं अपनी कहानी का अंत यहीं करती हूं , समाज में कुछ अच्छा होता है तो कुछ बुराई भी होती है। हो सकता है, हमें जो बुराई लग रही है, वह दूसरे की नजर में अच्छाई हो क्योंकि यह नजर- नजर का फेर है। किंतु मेरा मानना यही है, कि जो अपने लिए परिवार के लिए, समाज के लिए, गलत है वह गलत ही है , उस विषय पर कोई तर्क- वितर्क नहीं होता। कुछ लोगों को, आज भी समाज में फैली बुराइयां नजर तो आती हैं और कुछ दबी -दबी आवाज में विरोध करते नजर भी आते हैं किन्तु उनकी आवाज अथवा सोच कहीं दबकर जाती है। इस उपन्यास को लिखने का उद्देश्य यही था। कुछ गलत तो हो रहा है। हमारे देश में ,दहेज़ के कारण ,लड़कियां जलाई जाती रहीं हैं ,उनके हुनर को पहचानने वाला कोई नहीं था। पैसा ही सर्वोपरि हो गया था ,जिसके कारण उन्हें घर में यानी उनकी ससुराल में उन्हें वह सम्मान नहीं मिलता था जिसकी वह हकदार थीं। कभी-कभी पति से भी अपमान झेलना पड़ता था इसके माता-पिता, अच्छा दहेज दे सकते थे, उनकी बुराइयों को भी स्वीकार कर लिया जाता था। इसी कारण से, बालिकाओं को पढ़ाया जाने लगा ताकि वह अपने पैरों पर खड़ी हो सकें खुद कमायें और सम्मान के साथ जिएं। जिनके माता-पिता पढ़े- लिखे थे उन्होंने शिक्षा के महत्व को समझा और बेटियों को पढ़ाया भी, किंतु वही बात होती है कि अच्छाई के साथ-साथ बुराई भी चली आती है। आज हम जिस दौर से गुजर रहे हैं, उसमें माता-पिता या सास ससुर अपने को असुरक्षित महसूस करते हैं। डरते हैं, न जाने, बहू कैसी होगी ?बेटी बाहर पढ़ने गयी है ,न जाने कैसे रह रही होगी ? महिलाओं के अधिकार के लिए कानून भी बन गए हैं। किंतु अब उनका उन्होंने अनुचित लाभ भी उठाया है। शोषण स्त्री का हो या पुरुष का, दोनों ही मानव जाति के दो पहलू हैं। एक ही गाड़ी के दो पहिए हैं किंतु यहां वह बात हो रही है कि जिसका पलड़ा भारी वही उचित -अनुचित को नहीं देखता। यह तर्क का बहुत बड़ा विषय है इसलिए संक्षेप ही कहना चाहूंगी। अपनी सोच में परिवर्तन लाना होगा ,नारी का दूसरा रूप शक्ति भी है ,वह बना सकती है ,तो बिगाड़ भी सकती है। नारी को इतना डराया दबाया गया ,जिसके कारण अब वह आगे बढ़ तो रही हैं किन्तु कहीं -कहीं लोगों में दबा सा ड़र समाया है।'' प्यार'' और' विश्वास' ये दोनों चीजें डगमगाई सी हैं। बड़ों का सम्मान जैसे कहीं खो गया है। शिक्षित होने के बावजूद भी, घर के लोग उसी प्यार और अपनेपन को तरसते नजर आते हैं। अब आप ही सोचिये !इसका क्या कारण हो सकता है ?यदि पता चल जाये तो, अपने घर से ही एक छोटी सी पहल कीजिये,और समीक्षा द्वारा अवगत कराइये !अपना प्यार बनाये रखें ताकि इसी प्रकार कुछ नया लिख सकूँ , धन्यवाद !
मिलते हैं ,मेरे अगले उपन्यास ''शैतानी मन ''में।