Balika vadhu [84]

सुनीता और उसकी सहायक मित्र, आज की पीढ़ी को लेकर ,कुछ बातें कर रहीं हैं। उसने सुनीता को दामिनी की कहानी भी सुनाई किन्तु सुनीता उससे पूछती है -कि क्या इतनी छोटी बच्चियों का विवाह करना ही, इसका हल है ?अब तक लोग, नारी के अधिकार के लिए लड़ते रहे ,और अब उसका ये परिणाम निकल रहा है। उस विषय को लेकर अपने -अपने आधार पर तर्क करती हैं और अपनी -अपनी बात भी रखती हैं। तभी तारा उनके लिए दो कप चाय रखकर जाती है। मैडम ! आज कैसे समय निकल गया ?अन्य दिनों में तो व्यस्त रहती हैं। 

तारा !आज बच्चे भी कम आये हैं और मौसम भी ठीक नहीं है इसीलिए आज बच्चों को मैंने बिना शोर किये अपनी पसंद की ड्राइंग बनाने को  कहा है सुनीता ने जबाब दिया। 


 और मेरा अभी कोई पढ़ाने का समय नहीं है , ख़ाली घंटा है,कांपी ही जांचनी हैं , तारा उनकी बात सुनकर चली जाती है।

 तब सुनीता कहती है -आजकल हमारी पीढ़ी पर चलचित्रों का भी काफी असर है ,उसी को देखकर लोगों के  रहन -सहन में बदलाव आये हैं। जैसे उस समय, विसंगतियां आईं , ऐसे ही आज भी, कुछ विसंगतियां बढ़ रहीं हैं ,जिसका श्रेय ,इस गांव के लोग शिक्षा को ही दे रहे हैं। न ही बेटियां इतना अधिक पढेंगी या पढ़ने के लिए बाहर जाएँगी और न ही, अपनी सोच को इतना बढ़ा सकेंगी। किन्तु ये कार्य तो बिना पढ़ी -लिखी लड़की भी कर सकती है। 

केेसा कार्य ?मैं कुछ समझी नहीं। 

जैसे दामिनी किसी लड़के के सम्पर्क में आई ,या फिर रामखिलावन की बेटी ने जो भी किया। ये उम्र ही ऐसी होती है। बच्चे का बहकना स्वाभाविक है ,लड़का हो या लड़की ,इस उम्र में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ता ही है। इसको गांव के लोग कैसे रोकेंगे ?

तभी तो शीघ्र ही ,उनका विवाह करा देते हैं।  आजकल के बच्चों का समय पर विवाह न होना ,खुल्मखुल्ला !शारीरिक संबंधों पर चर्चा करना ,विवाह से पहले ही ''लिव इन ''में आ जाना।इन सबका एक कारण यह भी तो है। 

 कहते हैं -जिसकी नजर में खोट होगा ,तो उसकी नजर साड़ी या सूट पहनने वाली पर भी बुरी हो सकती है किन्तु हम एक बार अपने अंदर झांके और कभी कम वस्त्रों में आईने में अपने आपको देखें और पूछें ये पहनावा किसलिए ?अपने व्यक्तित्व को निखारने के लिए या ये तन किसी को दिखाने के लिए पहन रहें हैं, जबकि विदेशी लोग ,हमारी परम्पराओं से प्रभावित हैं तो हम क्यों न अपने व्यक्तित्व को ही निखारने का प्रयास करें। दामिनी की तरह नहीं ,जिसने एक लड़के के लिए ,अपने को बदला बल्कि वह अपनी शिक्षा ,अपने व्यक्तित्व से भी उसे प्रभावित कर सकती थी किन्तु उसे तो उसके रहन -सहन पर टीका -टिप्पणी करने पर ही आत्मविश्वास खो बैठी। उसकी एक प्रशंसा के लिए उसने इतना परिश्रम किया और जब प्रशंसा मिली तो बहक गयी। 

'बदलाव' भी, अच्छा होता है किन्तु कुछ सीमा तक ही बदलाव आना चाहिए। बदलाव से इंसान में आत्मविश्वास को बल मिलता है किन्तु हीनभावना नहीं आनी चाहिए। हर इंसान में ,एक न एक विशेष बात होती है ,बस अपनी उसी विशेषता को निखारने की आवश्यकता है।मान लो , दामिनी बहक गयी थी ,वो सम्भल भी सकती थी ,उसने तो जैसे समीर को ही ,अपने जीवन का उद्देश्य ही बना लिया। तन्वी ने जब उसे उचित सलाह दी ,तो आज वह जिन्दा भी होती और जीवन में आगे बढ़ गयी होती। जीवन में कभी -कभी ऐसे पल भी आ जाते हैं ,जब इंसान कमजोर पड़ जाता है ,बस अपनी उसी कमजोरी पर तो विजय पानी होती है। 

अरे ,मैडम !आप दोनों अभी तक यहीं हैं ,मैं इतनी देर से, आप दोनों को यहां -वहां ढूंढ़ रही थी। 

क्यों ?क्या हुआ ?आप दोनों को ''प्रिंसिपल साहब'' ने मीटिंग के लिए बुलाया है। 

तुम चलो !हम आते हैं। 

गांव में अगले दिन कुछ महिला -पुरुष प्रवेश करते हैं ,जो राधा -कृष्ण के भजन गाते व नाचते हुए  जा रहे थे। उनके संगीत में मधुरता और समर्पण भाव था। उनमें कुछ अंग्रेज महिला -पुरुष भी थे। तब वहां खड़े दर्शकों में से एक ने कहा -देखा ,सब अपने मन से अपने अंदर होता है। ये लोग भी तो पश्चात्य सभ्यता में पले -बढ़े हैं किन्तु इन्हे हमारे कृष्णा मोहक लगते हैं। देखो ! किस तरह भक्ति में डूबे हैं  ?और यहीं का पहनावा पहना है। 

तभी तो कहते हैं ,इंसान का जन्म कब और कहाँ हुआ इससे फर्क नहीं पड़ता वरन इंसान की अपनी सोच उसे आगे बढ़ाती है ,उसके व्यक्तित्व को निखारने में उसकी सहायता करती है किन्तु हमारे यहाँ के कुछ लोग ,अपनी संस्कृति को अपनाने में अपमान महसूस करते हैं। जबकि हमें अपनी संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। 

कभी -कभी लगता है ,हम भी कहीं इस सबके ज़िम्मेदार हैं। कई बार चाहे न चाहे  हम अपने बच्चों में कुछ गलत भाव भर देते हैं ,और जब तक हमें इस बात का एहसास होता है बच्चों में विचार पनपने लगते हैं। 

बच्चों के विद्यालय में ,पतंगी कागजों की लड़ियाँ लगाई जा रही हैं। ठंडी हवाएं अपना असर दिखला रहीं हैं। किन्तु बच्चों और बड़ों के उत्साह में कोई कमी नहीं आई है। आज विद्यालय के प्रांगण में ही होली का आयोजन किया जा रहा है। वैसे तो हर वर्ष चौपाल पर ''होलिका दहन ''का आयोजन किया जाता रहा है किन्तु इस वर्ष ,विद्यालय के प्रधानाचार्य जी ने ,सरपंच जी व अन्य आदरणीय जनों को से बातचीत करके होली का एक आयोजन विद्यालय में भी रखवाया है ,ये सब उसी की तैयारियां चल रहीं हैं। 

एक हलवाई लगाकर ',गुंझिया 'और' दही -बड़ों 'के साथ -साथ जलजीरे और कांजी के पानी की व्यवस्था भी की गयी है। गांव के सभी एक -दूसरे से पूछ रहे थे। अबकी बार होली का आयोजन विद्यालय में क्यों किया जा रहा है ?

वह तो तभी पता चलेगा ,सुना है ,प्रिंसिपल साहब !ने सरपंच जी से कहकर यहीं आयोजन करवाया है।सूखी लकड़ियों की बड़ी सी ''होली ''रखी गयी है। 

शाम के समय जब गांव के लोगों ने ,विद्यालय में आना आरम्भ किया ,तो आश्चर्यचकित रह गए। विद्यालय एकदम साफ -सुधरा था। गेरू और सफेद चूने से उसको अच्छे से सजाया गया था। पतंगी कागजों की झालरें लटकी हुई थीं। एक तरफ खाने का सामान ढककर रखा गया था। एक स्थान पर मंच लगा था  जिसके  सामने बहुत सारी कुर्सियां कतार में लगी हुई थीं। कुर्सियों के आगे जमीन पर भी बैठने के लिए दरी बिछाई गयी थी ,जिस पर छात्र भी आराम से बैठ सकें।

तब एक व्यक्ति ने पूछा -आज क्या यहां कोई खेल -तमाशे होने वाले हैं ?

पता नहीं ,आज यहां ऐसा प्रबंध क्यों कराया है ?वो तो यहां बैठकर ही पता चल पायेगा ,कहते हुए वह झट से आगे की कुर्सी पर जाकर बैठ गया।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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