सुनीता अपने साथ की अध्यापिका से ही बातें कर रही थी,तब इस गांव के लोगों की सोच के आधार पर कहती है -''कि जब बेटियों का समय से ही विवाह हो जाएगा,तो अल्हड़ उम्र में ही उनका, मन नहीं भटकेगा।
यह कैसी सोच हुई? सुनीता पूछती है। मैंने तो कई बार देखा है और सुना भी है, कि शादीशुदा महिलाओं ने भी कई बार'' गैर पुरुषों'', से संबंध बनाए हैं, कारण कोई भी रहा हो, लेकिन मन तो उनका भी भटका। तब बेटियों के लिए ये बंधन तो उचित नहीं है।
यह तो सिर्फ महिला हो या पुरुष उसके चरित्र पर निर्भर करता है, किंतु यहां बेटियों की बात हो रही है जिनको इस गांव के लोग सुरक्षित रखना चाहते हैं। वे नहीं चाहते ,हमारी बेटियों पर कोई कुदृष्टि रखे। औरत का जीवन तो, कष्ट सहने के लिए ही हुआ है। बहुत समय में भी उनको पढ़ाया -लिखाया नहीं जाता था, उनका वह मान सम्मान नहीं था। तब भी औरत जीती थी, और अपने अधिकारों के लिए लड़ती रहती थी। पुरुष कई- कई विवाह कर लेते थे, कई तो समझौता कर लेती थीं और कई लड़ते-लड़ते जान भी दे देतीं थीं।
वह तो मैं भी जानती हूं, किंतु इतना भी जानती हूं, यदि नारी ने आगे पढ़ना और आगे बढ़ना चाहा है। तो कोई भी समय रहा हो ,कोई भी शताब्दी या युग रहा हो, उसने किसी न किसी कार्य में अपना नाम दर्ज कराया ही है। हमारे देश में जब बाहर से विदेशी आए, तब कुछ समय के लिए नारियों की हालत बहुत ही दयनीय हो गई थी। ''पर्दा प्रथा'' का चलन भी तभी चला था, हमारे यहां' पर्दा प्रथा' नहीं थी। तुम देख सकती हो, हमारे यहां किसी देवी, के चेहरे पर पर्दा नहीं होगा बल्कि उसे पति के बाएं ओर सम्मान के साथ स्थान मिलता रहा है। यह तो जब विदेशी शासक हमारे देश में आये ,तब से कुछ प्रथाओं ने भी, हमारे देश में जन्म लिया। मुगलों की गंदी नजरों से बचाने के लिए,' पर्दा प्रथा' का चलन चला। ऐसे में, जब उनके सैनिक सुंदर लड़कियों को उनकी बेटियों को उठाकर ले जाते थे या किसी अन्य विदेशी शासक के सैनिक, बेटियों पर गंदी नजर रखते थे इसलिए उनकी शिक्षा पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया या तो वह घर में ही शिक्षा ग्रहण करती थीं या फिर अशिक्षित ही रहती थीं किंतु उनमें व्यवहारिक ज्ञान अद्भुत था।इन सबके कारण समाज में नारियों के प्रति कई विसंगतियां आ गयीं थीं। जैसे -''बाल विवाह ''सती प्रथा ''या फिर हमारे देश की बहादुर नारियां स्वेच्छा से ''जौहर''कर लेती थीं ताकि वो किसी बाहरी व्यक्ति के हाथ न लगें।
तभी तो हमारे यहां के कुछ समाज सुधारक जैसे कि 'राजा राम मोहन राय ''ने' ब्रह्म समाज' की स्थापना की और समाज में फैली कुरीतियों का विरोध किया। जो चाहते थे, कि नारियों की, उन्नति हो। उनका मान सम्मान पुनः लौट आये और तभी ''बाल विवाह '' विधवा विवाह''सती प्रथा '',बहु विवाह जैसी प्रथाएं समय के साथ ,कुप्रथा में बदल गयी। तब कुप्रथाओं में भी,सुधार की आवश्यकता महसूस हुई।
उस समय ''बाल -विवाह ''इसीलिए तो चला था कि किसी की भी कुदृष्टि में आने से पहले ही ,उसका जीवन सुरक्षित करने के लिए उनका ''बाल -विवाह ''कर दिया जाता था।
विधवा विवाह ''पर भी इसीलिए जोर दिया गया ,जो बालिकाएं कम उम्र में ही, विधवा हो जाती थीं ,तब उनको कुदृष्टि से बचाने के लिए ,उन पर नियंत्रण रखे जाते थे। उनके बाल कटवा दिए जाते थे ,ताकि वो सुंदर न लगें ,उनका रूप किसी को अपनी और आकर्षित न कर सके। खाने -पीने से लेकर ओढ़ने -पहनने तक के नियम उन पर लाध दिए जाते थे ,और ये नियम कभी पुरुषों ने नहीं बनाये ,घर की बुजुर्ग महिलाएं ही बनाती थीं ,उनके ही नियम चलते थे। तब भी, बाहर तो क्या परिवार के पुरुषों से भी वो सुरक्षित नहीं रह पाती थी। ये नियम ,कर्म -धर्म नारी के लिए ही बनते थे और नारी ही बनाती थी। उस बेचारी बेवा पर इतने अत्याचार होते ,किसी कैदी की तरह जीवन व्यतीत करती ,तब ये प्रथा '' कुप्रथा'' बन गयी और इसका विरोध किया जाने लगा।
''सती प्रथा '' अथवा' जौहर' भी एक प्रथा ही थी ,जो नारियां विदेशियों से अपने सतीत्व की रक्षा करना चाहती थीं ,तब वे अपने सुहाग के साथ ही स्वेच्छा से ''जौहर ''कर लेती थीं किन्तु यह प्रथा भी ,तब कुप्रथा में बदल गयी ,जब कोई स्त्री ''सती ''होना नहीं चाहती थी ,तब उसको जबरन ही ''सती ''होने के लिए विवश किया जाने लगा था। पति के साथ 'सती 'होना उसकी मजबूरी बन गयी थी।
जिसने ठीक से जीवन ही नहीं जीया,बालपन से ही परंपराओं और रूढ़ियों में बंधती चली गई। जिसने पति का सुख भी नहीं देखा, बहुत सी तो ऐसी होती थी, जिन्होंने पति का मुख भी नहीं देखा होता था, और विधवा हो जाती थी, तब वह अपना वैधव्य जीवन बड़ी कठिनाइयों से व्यतीत करती थी और कभी-कभी, अपनों के हाथों ही, बलात्कार का शिकार भी हो जाती थीं। तब ऐसे में सती प्रथा, को बढ़ावा मिला और उसको भी, उस पर जबरदस्ती थोप दिया गया इसीलिए तो अब नारी की शिक्षा पर, जोर दिया जाने लगा था ताकि वह शिक्षित होकर अपने पैरों पर खड़ी हो और अपने जीवन को संवार सके।
आज की हमारी नारी ने उन्नति की भी है ,और हमारे देश की नारी आज कहाँ नहीं है, राजनीति से लेकर वैज्ञानिक ,पायलेट से लेकर सैनिक तक बनी हैं। एक बात तो मैं भूल ही गयी। देश की आजादी में भी उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। कुछ ने अपने बच्चों को तो कुर्बान किया ही ,कुछ तो स्वयं ही ,अपनी जान की परवाह किये बग़ैर आजादी की अग्नि में कूद गयीं थीं।
वही तो मैं कहना चाहती हूं, आज की नारी,न जाने कैसे कमजोर पड़ती जा रही है ? अन्नपूर्णा, लक्ष्मी, दुर्गा इत्यादि नामों से पुकारी जाने वाली नारी आज पाश्चात्य सभ्यता को अपनाकर, अपना ही शोषण करवा रही है। समय के साथ लोगों के विचार भी बदले हैं। बहुत से उनके इस विचारों को इस बदलाव को, समझ कर उनका साथ भी देते हैं किंतु उन्हें यह समझाने का प्रयास नहीं करते, कि यह हमारी सभ्यता नहीं है, यह हमारी संस्कृति में शामिल नहीं है। उसको पीढ़ियों का अंतर और समय की मांग कहते हुए, रुक जाते हैं। तभी तो आजकल बेटियां पढ़ रही हैं किन्तु साथ ही ,उनके विचारों में, पहनावे में ,यहाँ तक कि खानपान में भी बहुत परिवर्तन आ रहे हैं। उनकी भी क्या गलती है ?
जब आजकल के पढ़े -लिखे लड़के ही, ऐसी लड़की पसंद करते हैं ,जो बाहरी लोगों से हाथ मिलाकर बात करे ,अपने को आधुनिक दिखाने के लिए ,अंग्रेजी में बात करने के साथ -साथ ,उसे पारम्परिक परिधान न पहनकर वह आधुनिक परिधान पहनकर बाहर निकलती है, जिसमें आधा तन दिखता रहता है। जो लड़की साड़ी या सूट पहनती है ,उन्हें तो फिल्मों में भी ,ऐसी लड़की को देखकर'' बहन जी'' कहकर अपमानित किया जाता है।