Balika vadhu [82]

तन्वी, के मन में एक बेचैनी थी, वह परेशान थी कि उसकी दोस्त को, न्याय नहीं मिल पाया। वह जानना चाहती थी कि उसके घर वालों ने, कोई भी कार्यवाही  क्यों नहीं की ? इसलिए वह अध्यापिका को बिना बताए ही, दामिनी के घर का पता पूछते हुए ,उसके घर पहुंच जाती है। जहां उसकी मुलाकात दामिनी के पिता और उसकी मां से होती है। जब दामिनी के पिता को यह पता चलता है कि वह दामिनी की सहेली, तन्वी है तो वह क्रोध में उठकर वहां से चले जाते हैं। लगता था, जैसे वे  उसके विषय में कोई बात करना ही नहीं चाहते।


 तब दामिनी की मां तन्वी से कहती है -तुम मुझे बताओ ! मेरी तन्वी वहां क्यों रहती थी ? मेरे मन में भी अनेक प्रश्न है ? किंतु मेरी बेटी के विषय में कोई बात करना ही नहीं चाहता, मैं बहुत ही परेशान थी। मैं जानना चाहती थी, कि आखिर उसके साथ क्या हुआ ? कम से कम वह मुझसे  कुछ तो बताती,फोन पर भी उसने कभी कुछ नहीं बताया , कहते-कहते उसकी मां रोने लगी। 

वह मेरे ही साथ रहती थी, किंतु वह किसी के बहकावे में आ गई थी। 

क्या तुम उस इंसान को जानती हो ? जिसने मेरी बेटी को बहकाया।

 हां, आंटी !मैं उसे जानती हूं, बल्कि आज उसका विवाह भी हो होगा। किंतु अब पुलिस के पास कोई सबूत भी नहीं है और आप लोगों ने भी उसकी कोई रिपोर्ट नहीं की। मैं तो चाहती थी ,कि उसे सख़्त से सख़्त सजा हो। मैंने उससे बात भी की थी।

क्या तुम्हें यह सब दामिनी ने बताया ?

हाँ जी ,मेरी मुलाकात चार दिन पहले ही उससे हुई थी ,वह रो रही थी ,मुझे वो कुछ परेशान लगी ,तब मैंने उससे पूछा -क्या कुछ बात है ?तब उसने मुझे सम्पूर्ण जानकारी दी थी।  

अब क्या हो सकता है ?इसके पिता ने तो मना ही कर दिया इसमें बेटी की और बदनामी होती , यदि वह लड़का उस रिश्ते से ही इनकार कर देता, और कह देता-मैं इसे नहीं जानता ,यह कौन है ?

नहीं, आंटी! ऐसा नहीं होता है, कुछ तो सबूत होते हैं ,अगर पुलिस ठीक से तहकीकात करती, तभी तो  कुछ हो सकता था।मैं स्वयं गवाही देती -उसके बच्चे का बाप वही है। 

ये तुम क्या कह रही हो ? बच्चे का बाप !क्या दामिनी माँ बनने वाली थी ?आश्चर्य से उसकी माँ ने पूछा। 

हाँ , तभी तो वह उससे विवाह के लिए दबाब बना रही थी। 

तन्वी की बातें सुनकर ,उसकी माँ ने सिर पकड़ लिया रोते हुए बोली -वो इतनी बड़ी परेशानी से जूझ रही थी ,हमें कुछ भी नहीं बताया। 

क्या, आप लोगों को ,इस विषय में कुछ भी मालूम नहीं है ,क्या पुलिसवालों ने आपको कुछ भी नहीं बताया ?

तभी दामिनी के पिता, घर में प्रवेश करते हैं, उन्होंने शायद तन्वी की बातें सुन ली थी और वह बोले -हमें कुछ भी नहीं करना है। जिसने अपनी बेटी होकर, हमारी 'नाक कटवा दी'' एक बार भी, अपने परिवार के विषय में नहीं सोचा। अगर वह जिंदा भी रहती तो हम ,उससे कोई मतलब नहीं रखते , क्रोधित होते हुए बोले - जो चला गया, उस बात को किरोदने से कोई लाभ नहीं है ,अब तुम यहाँ से जा सकती हो,क्या  हमारे जख्मों पर ''नमक छिड़कने आई हो'' कहते हुए उन्होंने तन्वी को बाहर का रास्ता दिखाया। 

तन्वी बोली - मैं तो सिर्फ अपनी दोस्त के लिए न्याय चाहती थी। 

न्याय, कभी भी, किसी को नहीं मिलता, वह गुस्से से बोले। हमने अपनी बेटी को पढ़ाया -लिखाया ,क्या हमें न्याय मिला ?उसने न हमारा कहना माना, क्या अपने परिवार का मान -सम्मान बनाए रखा ? किस - किससे  सवाल पूछते फिरेंगे और कौन जवाब देगा ? कुछ सवालों के कोई जवाब नहीं होते और उन्हें कुरेदना अपने ''जख्मों को और हरा'' करना ही है इसीलिए अब तुम अपने घर चली जाओ !उसकी इतनी ही उम्र थी ,उसे जहाँ जाना था ,वहां चली गयी। तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो ! उसके साथ जो होना था हो गया। मरने के पश्चात, हमें उसका जुलूस नहीं निकालना है।  

तब गांव के कुछ मुख्य लोगों ने, मिलकर यह निर्णय लिया, कि अब से अपने गांव की बेटियों को,हम  बाहर पढ़ने के लिए नहीं भेजेंगे और समय पर ही, उनका विवाह कर दिया जाएगा।बात यह नहीं है कि ये सब घटनाएं -दुर्घटनाएं उसी गांव की बेटियों के साथ ही हुई ,देश में न जाने, कितनी ऐसी बेटियां हैं ,जो कभी प्यार में ,कभी आधुनिकता के नाम पर छली जाती हैं ? कुछ शर्म के कारण ,कानून का सहारा नहीं लेतीं तो कुछ,चोट खाकर सबक सीखकर आगे बढ़ जाती हैं, किन्तु वो दर्द उन्हें, जीवनभर सालता रहता है। उन्हें  धोखे का ड़र बना रहता है। यह कानून उन्होंने अपने गांव की बेटियों के लिए बनाया था, न कि देश की बेटियों के लिए, सबको अपने-अपने तरीके से जीने की आजादी है। बच्चे भी अपनी तरीके से जीना चाहते हैं। किंतु हर देश का, गांव का, घर का, कोई न कोई नियम होता है ,जिसको लांघने पर अपना ही नहीं ,अपने घर -परिवार का अनादर होता है ,जीवन तक बर्बाद हो जाते हैं, सुनीता से वह अध्यापिका कहती है।

इस तरह से तो ,लड़कियों को पढ़ने नहीं दिया जायेगा और उन्हें शीघ्र ही गृहस्थी के झंझटों में फंसा देने से  उन बच्चियों के साथ क्या न्याय हो जायेगा ? इतनी मुश्किलों से तो ''नारी शिक्षा''के प्रति लोगों को जागरूक  किया गया। अब उन्हें फिर से उसी अज्ञान की अँधेरी दुनिया में धकेल दिया जायेगा। 

नहीं, ऐसा नहीं है ,आप तो दृष्टि के विवाह में गयीं भी हैं ,चौधरी साहब ने ,भले ही उसका विवाह कम उम्र में क्यों न कर दिया हो ?किन्तु अब उसे यहीं रखकर पढ़ा रहे हैं ,जब तक कि वह बालिग नहीं हो जाती ,तब तक यहीं रखेंगे। उसके पश्चात ,उसे पढ़ा -लिखाकर  उसकी ससुराल में भेज देंगे। 

इससे क्या लाभ होगा ?

इससे ये लाभ होगा ,बेटी अपनी नजरों के सामने पढ़ -लिख लेगी ,उस अल्हड़ उम्र में यदि किसी लड़के का विचार भी उसके मन में आया तो उसे पहले ही बता दिया जायेगा या उसे मालूम होगा कि उसका पति है। इधर -उधर मन भटकेगा नहीं। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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