समीर ने, अपनी बातों से दामिनी को, बहला- फुसला लिया था। उसने, उसके साथ कोई जबरदस्ती नहीं की। दामिनी ने स्वयं ही, समीर की बातों में आकर, अपने को समर्पित कर दिया। मन में अनेक भाव उठ रहे थे विचार आ रहे थे किंतु इससे पहले कि वह कुछ कह पाती, तभी दरवाजे पर आहट हुई। दामिनी ने वस्त्र पहनकर दरवाजा खोला तो दरवाजे पर चाय वाले का लड़का खड़ा था। उसे देखकर, उसे स्मरण हुआ कि सुबह की चाय के लिए उसने, चाय वाले से कह रखा है -कि 8:00 बजे तक चाय पहुंचा देना। दामिनी ने घड़ी में समय देखा, सही समय था। पहले तो उसे देखकर दामिनी, घबराई, फिर उसे बच्चा समझ कर मुस्कुराते हुए बोली -अरे ! तुम आ गए, आज तो मैं भूल ही गई थी।
वह नहीं जानती थी ,जिसे वह बच्चा समझ रही है ,ज़िंदगी की वास्तविकताओं से, वह समय से पहले ही परिचित हो गया है ,उसके लिए शिक्षा की आवश्यकता नहीं पड़ती। समय और ज़िंदगी उसे शिक्षित कर रहे थे। दीदी! आज किसी कार्य में ज्यादा व्यस्त होगीं, जो दरवाजा खोलने में समय लगा, आज कॉलेज नहीं जाना।
चाय की केतली हाथ में लेते हुए ,दामिनी बोली -तुम यहीं रुको ! मैं अभी आती हूँ ,वह नहीं चाहती थी, कि वह लड़का समीर को देखें। किंतु वह लड़का भी कम तेज नहीं था। दामिनी के दरवाजे से हटते ही अंदर आ गया वह कमरा इतना बड़ा भी नहीं था कि कोई उसमें छूप सके। समीर ने भी छुपने का कोई उपक्रम नहीं किया, समीर को देखकर वह बोला -अरे भैया !आप भी यहीं रहते हैं।
हां, कभी-कभी आ जाता हूं।
लड़के ने समीर की तरफ एक नजर डाली उसको देखकर, उसके चेहरे पर एक गहरी मुस्कान आई , इससे पहले कि वह समीर से कुछ और पूछता, तब तक दामिनी केतली खाली करके ले आई। अब तुम जाओ !
जी दीदी ! किसी और सामान की आवश्यकता होगी,तो मुझे बता दीजिएगा ,मैं लेकर आ जाऊंगा और चाय की आवश्यकता तो नहीं है,उसका इशारा समीर की तरफ था।
नहीं है, इसी से ही काम चल जाएगा।
ठीक है ,कहते हुए बाहर निकल गया। चाय वाले की दुकान पर पहुंचकर, चाय वाले ने पूछा-उन मैडम जी ,को चाय दे आया।
हां, दे आया। आज उन्होंने पैसे भी दिए हैं।
परन्तु वह तो कह रही थी -महीने पर हिसाब करूंगी, आज कैसे दे दिए ?
पैसे देकर ,लड़का अपने कार्य में लग गया अब वह अपने साथ वाले से कह रहा था , जिस मैडम को मैं चाय देने गया था ,वह तो कह रही थी -' अकेली रहती हूँ , किंतु उसके साथ एक लड़का और भी था।कहते हुए ,उसकी व्यंग्य भरी मुस्कान,और भद्दे इशारे ने जैसे दूसरे को सबकुछ समझा दिया
क्या बात कर रहा है ?
हां, मैंने उस लड़के को वहीं देखा , मुझे लग रहा था, वह रात भर वहीं रहा है।
सब पढ़ाई के बहाने, यही काम करते हैं , मजे ले रहे हैं , उसे भी, शहर की हवा लग गई होगी।
आजकल यही सब तो चल रहा है। एक महीने पहले जिस मकान में,मैं मिठाई और चाय देने जाता था, वहां भी यही सब था। पति-पत्नी की तरह रहते हैं, वैसे कुंवारी और कुंवारे हैं। वह क्या कहते हैं -''लिव इन ''
उसके हाथ पर हाथ मारकर दूसरा बोला -तू तो अंग्रेजी भी सीख गया। पढ़े- लिखो ने अपनी अय्याशी का, यह नया नाम रखा है ,अपनी भौंहें घुमाते हुए बोला।
तू ठीक कह रहा है , इससे लोगों को लगता है, वेश्या के पास नहीं जाते, कोठे पर नहीं जाते। ऐसे ही काम चल जाता है मन करे तो विवाह करो, न मन करे तो रिश्ता तोड़ दो ! यह बढ़िया है। तभी वो गाने लगा -पहले इस्तेमाल करें , फिर विश्वास करें। '' ब्याह करके कौन कष्ट झेले ? जिम्मेदारी उठानी पड़ती है,जब बिन ब्याह के ही, सब काम हो रहे हैं ,तो ओखल में क्यों सिर देना ? जिम्मेदारी भी नहीं उठानी पड़ेगी और तलाक के झंझट से भी दूर.......
तू भी, कोई ऐसी ही पटा ले।
हमारे यहां यह सब नहीं चलता , पहले ब्याह करना पड़ता है ,रीति- रिवाज से विवाह होता है। जिम्मेदारी भी निभानी पड़ती है। सुख-दुख में साथ निभाने का वादा किया जाता है।'' सात जन्मों का बंधन है''जिसमें भगवान और बड़ों का आशीष मिलता है । ऐसी अय्याशी पढ़े -लिखे ही कर सकते हैं और कोई कुछ कहता भी नहीं, सबसे बड़ी बात तो यही है। मेरे पिताजी को पता चल जाए, तो जूते से पिटाई करें।
इसीलिए तो हम गंवार कहे जाते हैं ,मुँह बनाते हुए बोला -हां , यार अभी तो मेरी उम्र ज्यादा नहीं है किंतु हमारे यहां भी, बाकायदा विवाह होता है कम उम्र में भले ही हो जाए किंतु सब कुछ रीति- रिवाज और का यदे से होता है।
इस शहर में, मुझे तो नहीं लगता ,कायदे का किसी को मालूम भी है। खूब पैसे होते हैं और मौज मस्ती होती है। यार ! जिंदगी तो इनकी है। वह मैडम जी ,खूब मज़े से आशिकी कर रही है। हम सोच रहे थे, कि बेचारी अकेली परेशान होगी, तो उनके घर चाय पहुंचा देते हैं।
अरे, यार! हो सकता है, कहीं उसका भाई- वाई आया हो।
न.... न... भाई तो नहीं लग रहा था और जब मैंने दरवाजा खटखटाया, तो बहुत देर तक दरवाजा ही नहीं खोला था।
क्या बात कर रहा है ? वही तो कह रहा हूं जो तू समझना नहीं चाहता कहकर दोनों हंसने लगे।
तभी अपनी भारी आवाज में चाय वाले की आवाज आई, बातें मत बनाओ! जल्दी से अंदर से एक दूध लेकर आओ ! और दुकान खुलने वाली हैं , पंसारी की दुकान से 5 किलो चीनी भी ले आना।
समीर , चाय पी लो ! और अब तुम यहां से जाओ ! उस लड़के ने तुम्हें यहां देख लिया है।
तो वह क्या कर लेगा ? लापरवाही से समीर बोला। यहाँ कोई किसी से कुछ कह नहीं सकता न ही, कोई किसी से मतलब रखता है।
इसका मतलब यह तो नहीं, कि हम इस बात का नाजायज़ फायदा उठाएं।
नाजायज फायदा तो हम उठा चुके हैं, कहते हुए उसने, दामिनी की तरफ आंख मारी।
दामिनी मुस्कुरा दी, सुनो ! मैं यह कहना चाहती हूं, मेरा दूसरा वर्ष आरंभ होने वाला है। तुम्हारी नौकरी भी लगी हुई है , मेरे विषय में अपनी मम्मी से बात करो !
अब क्या समीर दामिनी का कहा मानकर,अपनी मम्मी से बात करेगा या फिर अपनी बातों से दामिनी को बहका लेगा ,क्या दोनों का विवाह हो जायेगा ?क्या ज़िंदगी जितनी सरल नजर आती है ?उतनी सरल है ,इन प्रश्नों का जबाब पाने के लिए आगे बढ़ते हैं।