Rasiya [part 117]

क्या सोच रहे हो ? इंस्पेक्टर तन्मय ने पीछे से आकर ,चतुर के विचारों में खलल डाला। 

कुछ नहीं ,कुछ यादें हैं ,जो स्मरण हो आईं। 

अच्छी या बुरी थीं ,ये तो तुम ही जानते होंगे  ,ये जगह ही ऐसी है ,जहाँ इंसान अपनी सभी परेशानियों से अलग ,उसे अपने विषय में सोचने का मौका जो मिलता है कि वह कब -कब और कहाँ -कहाँ गलत था ? 

तन्मय का व्यंग्य समझते हुए ,चतुर बोला -तू क्या बात रहा है ? भला ,यहाँ कैसे सोचा जा सकता है ? क्या तुझे मैं गलत लग रहा हूँ ?

क्या सही ,क्या गलत ?ये निर्णय तो अदालत ही करेगी। दिन की बात तो नहीं कह सकता किन्तु यहाँ रात्रि में इंसान को नींद कहाँ आ पाती है ,आई भी तो, मच्छर उसे सोने नहीं देते ताकि वह सोच सके मुस्कुराकर तन्मय बोला।  


तू क्या ,मेरी गलती मान रहा है ? मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है। 

ऐसा तू समझता है , किंतु जिसने तेरे साथ यह हरकत की है ,उसकी नजर में तो तू गुनहगार है। उसके साथ तूने ऐसा क्या गुनाह किया है ? जो उसने तुझे इस तरह फंसा दिया। तू बताना नहीं चाहता, तो मत बता ! किंतु वकील साहब आए हैं, उन्हें क्या जवाब देना है ? तुम उस व्यक्ति का नाम मत लो ! बस उसे  केस को समझा दो ! हो सकता है, वह कोई क्लू  निकाल लें।

 यह क्या केस है ? तुमने जमीन खरीदी, तुम अकेले तो इतनी सारी जमीन तो नहीं खरीद सकते, किसी के साथ  मिलकर खरीदी होगी।  

हां, ''सुमित अग्रवाल'' और मैं दोनों ही पार्टनर थे। 

पैसा किसने लगाया था ? जमीन सस्ती थी, मैंने जो पैसा जोड़ा हुआ था, मैंने भी लगाया था ताकि मैं आधे का पार्टनर बन सकूं और जब उसमें से प्लॉट काटे गए ,तब मुझे उसमें से कमीशन भी मिलना था इसलिए मैं रात -दिन उनको बेचने के लिए ,मेहनत कर रहा था। 'सुमित अग्रवाल' ने अपना पैसा तो लगा दिया था किंतु उसके पास इतना समय नहीं था कि वह  इतनी मेहनत करता , उस मेहनत का कार्य, मैं कर रहा था उसे तो अपनी जमीन खरीदने में जो पैसा गया था , वह पैसा उसे लाभ सहित वापस चाहिए था बाकी मेहनत मेरी थी। कुछ लोगों ने प्लॉट खरीदे भी थे ,अच्छा लाभ भी हो रहा था।

 मैंने  भी बहुत पहले, अपने घर के लिए एक सस्ती और अच्छी जमीन खरीद ली थी। 

यह जमीन तुमने कैसे खरीदी ? और कब खरीदी। 

आज से 20 साल पहले, वह मैंने अपने घर के लिए खरीदी थी, वहां मुझे अपना घर जो बनाना था।

 उस समय तो मैंने सुना था कि तुम्हारे पास पैसे नहीं थे ,फिर वह पैसे कहां से आए? तुम तो सुमित अग्रवाल के यहां नौकरी कर रहे थे। इस प्रश्न से, चतुर चुप हो गया। 

बताओ !वह पैसा तुम्हारे पास कहां से आया ? वकील ने पूछना चाहा , यह प्रश्न अदालत में भी उठेगा, तब तो तुम्हें  उन्हें ,वहां जवाब देना ही होगा। 

मेरे पास कुछ आभूषण थे, उनको बेचकर मैंने, वह प्लॉट खरीदा था। 

और वह गहने कहां से आए थे ? वकील की पारखी  नजरों ने उसे घूरा। 

वे गहने मेरी पत्नी के थे,नजरें झुकाकर चतुर बोला।  

क्या तुम्हारी पत्नी ने, आराम से वह गहने दे दिए , वरना औरतें तो गहनें बनवाती रहती हैं और एक भी गहना इधर-उधर हो जाए तो लड़ पड़ती हैं। 

नही, कस्तूरी ऐसी नहीं है। 

आगे बताइए ,आगे क्या हुआ ?

मैं प्लॉट , और पैसा 'सुमित अग्रवाल 'की पत्नी 'अंजलि अग्रवाल 'को दे देता क्योंकि वही, उस जमीन का हिसाब -किताब रख रही थी। बस, मुझे तो 'सुमित अग्रवाल 'से कागज पर हस्ताक्षर लेने होते थे। वह सभी कागज कहां है ?

वही तो बता रहा हूं, एक दिन कुछ लोग मेरे घर आए ,उस समय मैं अपने घर पर नहीं था , मेरे  घर में छानबीन की, बच्चे इस विषय में कुछ नहीं जानते थे और न ही मेरी पत्नी को कुछ मालूम था, न ही ,मैं उसे कुछ बताता हूं। वह भी कुछ नहीं पूछती , उसे तो सिर्फ समय पर, सामान मिल जाए बस इससे ज्यादा वह कुछ नहीं करती है। सारा दिन बच्चों में लगी रहती है। 

इसका मतलब है, सुमित अग्रवाल ने पैसा लगाया , और तुम उस जमीन को बेचकर ,उसके लाभ को, जो भी हिसाब- किताब था तुम 'अंजलि अग्रवाल' के साथ डील करते थे और सुमित अग्रवाल से, जो भी जमीन बिकती थी उससे हस्ताक्षर लेते थे और एक दिन कुछ लोग आए, जो तुम्हारे घर से, वह महत्वपूर्ण कागज ले गए। जो तुम्हारी बेगुनाही के सबूत थे। क्या तुम उन आदमियों को जानते हो ?

जब मैंने उन्हें देखा ही नहीं ,तो मैं कैसे जान सकता हूं ? कौन थे, किसने भेजा था , मैं कुछ भी नहीं जानता। चतुर परेशान होते हुए बोला। 

इसका अर्थ है , तुम्हें फंसाने के लिए पहले से ही, किसी ने योजना बना ली थी , क्या कोई ऐसी बात थी जिसके कारण, किसी को गुस्सा आया हो, अपना बदला लेने के लिए उसने ऐसा किया हो। तुम्हारी इस योजना को और कौन-कौन जानता था ? हम तीन लोग ही, इसमें शामिल थे-सुमित अग्रवाल, अंजलि अग्रवाल और मैं ! या फिर जिन लोगों से हमने जमीन ली है, और या जिन्हें हमने बेची है।

 ठीक है, कह कर वकील वहां से उठा और आगे बढ़ गया। तभी चतुर ने उसे पीछे से आवाज लगाई - वकील साहब !जल्दी कीजिए मेरी जमानत करवाकर मुझे छुड़वाईये मैं इस तरह कितने दिन और यहां रहूंगा ?

हम अपनी तरफ से प्रयास कर रहे हैं, अभी भी ,तुमसे कुछ छूट रहा हो तो बता सकते हो।  कह कर वकील वहां से चला गया। 

वकील के जाने के पश्चात , तन्मय चतुर से बोला - ये ' सुमित अग्रवाल 'क्या हस्ती है ?

 देखने में सज्जन व्यक्ति हैं ,मैं उनका सम्मान भी करता हूँ और वो बहुत पैसे वाला है। 

 और उसकी पत्नी कैसी है ? उसकी पत्नी सुंदर होने के साथ-साथ, तेज -तर्रार है। 

कहीं ,ये कार्य उसकी बीवी का ही तो नहीं ,ठीक है, मैं उसके घर जाकर देखता हूं, बात करता हूं। वो लोग क्या कहते हैं ? वैसे ये घर तुमने किस पैसे से बनाया ? 

उसका घर बनाना भी एक रहस्य बन गया ,तन्मय की सोच तो सही जा रही है किन्तु अभी भी कुछ प्रश्नों के जबाब अभी बाक़ी हैं ,आइये !आगे बढ़ते हैं -रसिया !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post