Kanch ka rishta [part 60]

किशोर के पास अब कोई उत्तर नहीं था। न ही, कोई प्रश्न था उसके अंदर जो, थोड़ा बहुत साहस था कि वह अपनी और प्रभा की सच्चाई को, करुणा को बता दे ! वह भी जवाब दे गया। 

तीन-चार दिन हो गए थे ,करुणा को समय ही नहीं मिल पाया कि वह प्रभा का हाल-चाल पूछ सके। मात्र एक फोन ही तो रह गया है लोगों से सम्पर्क बनाने का, उनसे मिलने का तो, समय ही नहीं रहा है, थोड़ा बहुत ही समय मिलता है तो इस फोन के माध्यम से संपर्क साध लेते हैं एक दूसरे का हाल-चाल मालूम हो जाता है। आज वह थोड़ा काम से शीघ्र मुक्त हो गई तो उसने सोचा -क्यों न, प्रभा को फोन लगा लूं और पूछ लूं ,उसकी तबीयत कैसी है ?

हेलो ?उधर से आवाज आई, आवाज को न पहचानते हुए ,मैं करुणा बोल रही हूं, प्रभा की सहेली ! तुम कौन ?

नमस्ते आंटी जी ! मैं मनु बोल रही हूं। 



अच्छा ,आज तुम घर आ गई, और बताओ ! तुम्हारे ससुराल वाले सब, परिवार में कैसे हैं ?

वह सब ठीक हैं। 

जरा प्रभा से बात कराओ ! कई दिन हो गए ,उससे बात करने को नहीं मिली, समय ही नहीं मिला। उस दिन बात की थी ,तो थोड़ा परेशान थी। 

वो......  आंटी जी ! कहकर वह चुप हो गई।

 क्यों क्या हुआ ? कहीं गई है, क्या ? कोई बात नहीं ,मैं बाद में फोन कर लूंगी। 

नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। 

तो क्या उसकी तबीयत ठीक नहीं है ?उसे दिन भी मैंने  जब उसे फोन किया था तब थोड़ा, निराश और थकी लग रही थी। मैंने सोचा- थक गई होगी आराम करेगी तो ठीक हो जाएगी। 

जी आंटी जी ! मम्मी कुछ ज्यादा ही थक गई थीं , इसलिए आराम कर रही हैं, और यह उनका आराम कुछ लंबा ही चलेगा, अब वह हमें कभी नहीं मिलेंगी कहते हुए वह रोने लगी।

 क्या कह रही है ? करुणा को तो जैसे विश्वास ही नहीं हुआ, क्या हुआ ? उसे !

पता नहीं ,उन्हें क्या हुआ था ? वह बताती भी तो नहीं थीं , मैंने एक दिन उन्हें फोन किया, उन्होंने फोन नहीं उठाया ,मैंने सोचा- सो रही होगीं , मैंने  फिर रात्रि में फोन किया तब भी फोन नहीं उठाया तब मुझे उनकी चिंता होने लगी। जब मैं घर पर आई, तो देखा ,वह जा चुकी थीं। 

यह कब की बात है ? 

छह -सात दिन हो गए। 

ओह नो ! उस दिन उसने मुझे फोन किया था ,बड़ी परेशान लग रही थी मुझे लगा ही था , उसकी तबीयत ठीक नहीं है और मैंने उससे कहा था -कि तुम आराम करो !मुझे क्या मालूम था ?वह अपनी कहानी सुनाने के लिए ही, मुझे मिली थी और मिली भी तो इतनी जल्दी चली गई। सोचते हुए करुणा रोने लगी और फोन काट दिया। 

शाम को जब किशोर घर पर आए तो, करुणा से पूछा -क्या हुआ ,कैसे उदास हो ?

 नम आंखों से, करुणा ने किशोर को बताया -अब प्रभा, हमारे बीच नहीं रही। 

यह  बात सुनकर, चतुर कुर्सी पर बैठ गया और बोला -यह कब की बात है  ? 

उसी दिन उसने मुझसे बात की थी, अगले दिन उसकी बेटी को पता चला, किशोर मन ही मन सोच रहा था क्या प्रभा का मिलना मात्र एक संयोग था, अभी उसने अपनी बेटी के विवाह में मुझे बुलाया उससे पहले तो उसका करुणा से कोई संपर्क नहीं था ,क्या वह मेरे विषय में सब जानती थी ? हो सकता है, उसने मुझे मेरी बेटी के विषय में बताने के लिए ही, करुणा को अपनी कहानी सुनाई हो ताकि मैं उस कहानी के माध्यम से जान सकूं कि उसकी बेटी का पिता मैं ही हूं। करुणा चाय लेकर आई और किशोर के सामने रखते हुए बोली -क्या सोच रहे हो ?

कुछ नहीं, सोच रहा हूं, बेचारी बच्ची ! बिना बाप के अकेली पली थी, इसका सहारा उसकी मां थी अब वह सहारा भी टूट गया। 

अब इसमें हम कर भी क्या सकते हैं ? हम उसकी मां तो दोबारा नहीं ला सकते किंतु उसे इस बात का एहसास अवश्य दिला सकते हैं कि वह अकेली नहीं है , उसकी मौसी और मौसा उसके साथ हैं। क्या, कल चलेंगे ? उसे  आखिरी विदाई देने, और उसकी बेटी से मिलने। 

किशोर ने चुपचाप गर्दन हिला दी , करुणा के मन में प्रभा की बताई ,कहानी का एक-एक शब्द गूंज रहा था, अचानक ही उसके मन में प्रश्न उठा। कहीं उसका किशोर! मेरा आज का किशोर तो नहीं , इससे ज्यादा वह सोच ना सकी क्योंकि यदि उसकी इस सोच में तनिक भी सच्चाई हुई तो वह बर्दाश्त नहीं कर पाएगी। उस दिन किशोर भी पूछ रहा था , उसका परिवार हुआ, तो वह क्या करेगी ? किसी के लिए कह देना, तो बहुत सरल है, किंतु उस रिश्ते को मानना और निभाना बहुत ही कठिन है और यदि रिश्ते में तनिक भी सच्चाई हुई , तो हमारे इस रिश्ते को टूटने में तनिक भी देर नहीं लगेगी। वह नहीं चाहती मामूली कंकड़ की चोट से ही उनका वह रिश्ता चटक  जाए। 

जब वह दोनों, प्रभा के घर पहुंचे , तो उसकी बेटी लपक कर किशोर के गले मिली और साथ ही, करुणा के भी....... करुणा को कुछ अच्छा नहीं लगा। 

एकांत मिलते ही, मनु ने किशोर से कहा -मम्मी ने मुझे बहुत पहले ही ,सब बता दिया था किंतु कहा था -कि उनका जीवन सुख पूर्वक चल रहा है, हमारे कारण, उनके जीवन में ,किसी भी प्रकार की दरार ना आने पाये। मैं चाहती तो अपने अधिकार के लिए लड़ सकती थी। जबरदस्ती का प्यार और अधिकार मांग सकती  थी किंतु जिस चीज के लिए मेरी मां ने ही लड़ाई छोड़ दी ,तो मैं लड़कर क्या करूंगी ?

किशोर उसका मुंह देख रहा था, बिल्कुल अपनी मां पर गई है, किंतु उस जैसा अल्हड़पन, उसमें नहीं था बहुत ही समझदार बिटिया है , हमारी। जिसने करुणा को इस बात का एहसास भी नहीं होने दिया। 

करुणा ,जो दीवार की आड़ में खड़ी उन दोनों की बातें सुन रही थी वह भी अनजान बनी, अपने उस ''कांच के रिश्ते'' को संभालने का प्रयास कर रही थी , वह जोर -जोर से रो रही थी किन्तु नहीं जानती क्यों ?लोगों ने समझा ,सहेली के जाने का ग़म है। जिसके आर -पार सब कुछ स्पष्ट नजर आ रहा था। किंतु एक अनजानी दीवार, सब ने एक दूसरे के सामने खड़ी कर ली थी ताकि उन  रिश्तों  को कहीं ठेस ना लग जाए।

नमस्कार दोस्तों, पाठको ! यह मेरा उपन्यास' कांच का रिश्ता ' अब समाप्त करती हूं। उम्मीद है ,आपको यह कहानी बहुत अच्छी लगी होगी। अच्छी लगी हो तो ,आप इसे प्रोत्साहन दीजिएगा। अपनी समीक्षाओं द्वारा आगे रचना लिखने में, मेरी सहायता कीजिएगा क्योंकि आपकी समीक्षाओं के माध्यम से ही, मन  को खुशी मिलती है और आगे बढ़ने का बल मिलता है, यदि आप कुछ सुझाव देना चाहे! तो सुझाव भी दे सकते हैं। अब आगे और नई कहानियों  में आपसे फिर से भेंट होगी , धन्यवाद ! 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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