Woh dostana

बचपन में हमउम्र बन जाते कब ?मित्र !

 रिश्ते का उन्हें पता नहीं ,बने हैं ,कैसे मित्र ?

बचपन की शरारतें , गुड्डा -गुड्डी के खेल,

एक -दूजे के पीछे लाइन ,बना खेलते रेल।

 



 बचपन के वो ! खेल निराले, 

 बीतते थे,दिन कितने प्यारे प्यारे !

पहचान हुई ,जब इस रिश्ते से,

 मित्र बने, कुछ न्यारे - न्यारे। 


साथ खेलते, बातें और शरारत करते  , 

पल में रूठे ,पल में हंसते औ मस्ती करते। 

न कोई संधि,  एक- दूजे का साथ है,करते ,

क्या होता ?मित्र शब्द !झंझट  में न पड़ते। 


वो सावन के झूले !सखियों संग,पैंग जोड़ी !

झूले पर बैठी ,जब दो  सखियों की जोड़ी। 

मिलकर सब दौड़तीं ,लग जाती जब होड़। 

आसमाँ छूने की चाहत ,बैठातीं तब जोड़। 


मित्रों ! का न हो रेला ,

रहे संसार में, चाहे कोई अकेला ?

मित्र शब्द को जाना।

 मित्र हो चाहे एक, हो ,वही नेक !


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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