आज मौसम कुछ सुहाना है, बाहर कुछ हल्की बूंदा-बांदी भी हो रही है। आज नीलिमा ने अपने बेटे को ,डॉक्टर के दिखाने के बहाने से छुट्टी ले ली है , हालांकि उसे आज आधे दिन की छुट्टी ही मिली है ,किंतु आज कुछ पल वह सुकून से बिताना चाहती है। बेटी तो नौकरी पर चली गई, अथर्व को भी नाश्ता करा दिया, खिड़की के पास बैठी ,नीलिमा सोच रही थी - बच्चे ,भी क्या हैं ? कुछ भी,यूं ही कह देते हैं,'' मम्मा ! आप मानोगे नहीं।'' बेटी के वो शब्द उसे स्मरण हो आए।
किंतु बच्चे ,यह नहीं देखते , कि मम्मा ने क्या-क्या झेला है और क्या-क्या झेल रही है ? आज इसी चंपा के कारण, इनके पिता का साया इनके सर पर नहीं है ,हालांकि वह भी अच्छा इंसान नहीं था किंतु बच्चों के सिर पर पिता का साया तो था। इसके ही ,कारण तो हमें सड़क पर भीख मांगने की नौबत आ जाती। वह तो समय रहते ही ,मुझे उनकी योजना का पता चल गया और मैंने अपने बच्चों को और अपने आप को सुरक्षित किया, किंतु इन सबका कारण कौन रहा? यही तो रही, कहने को तो यह बच्ची थी , किंतु बहुत ही खतरनाक थी। मेरा घर ही बर्बाद कर दिया और अब मुझे,'' जावेरी प्रसाद ''के पैसे के बल पर बर्बाद करना चाहती थी। तभी उसके मन में ,एक विचार कौंधा - हो सकता है ,'जावेरी प्रसाद ' जी मुझे जानते ही न हों। किन्तु यह तो तय है ,'चांदनी 'ही चम्पा है। यह विचार आते ही ,उसके उदास मन में फिर से जैसे, चेतना जाग उठी ,सोच रही थी -जब ईश्वर ने मुझे यहाँ तक पहुंचा दिया है तो सच्चाई तक भी ले आएगा।
मेरा भगवान ही जानता है ,मैं अपनी तरफ से सही हूँ ,किन्तु जो भी मेरे या मेरे बच्चों के मध्य आयेगा और तनिक भी हानि पहुंचाने का प्रयास करेगा, उसके लिए नीलिमा के मन में कोई माफी नहीं है। मैंने इसको छोड़ दिया था, किंतु उसने मुझे दोबारा से छेडा है ,मेरे जख्मों को हरा किया है ,इसका दंड तो इसे भुगतना ही होगा। तभी वह घड़ी में समय देखती हैं, 12:00 बज रहे हैं , अब मुझे तैयार हो जाना चाहिए। बेटे को पड़ोस में छोड़कर, उनके सुपुर्द करके चली जाती है। बेटे को अपने पास रखने के, खाना- पीना लगाकर, ₹5000 रूपये लेते हैं। ले भी क्यों न ? यह शहर ही ऐसा है, यहां तो, इंसानों के समय की और मिट्टी की भी कीमत है। इतना महंगा शहर है ,खर्चा चलाना भी मुश्किल हो जाता है। वह तो अच्छा है ,नीलिमा ने भी, नौकरी कर ली। वह बेटी की कमाई पर निर्भर नहीं रहना चाहती थी।
इसी तरह एक सप्ताह बीता, एक दिन अचानक कल्पना अपने साथ एक लड़के को ले आई और अपनी मम्मी से बोली - मम्मा ,बताओ !यह कौन है ?
नीलिमा को उसका चेहरा कुछ जाना -पहचाना सा लगा ,कहीं तो इसे देखा है ,कौन हो सकता है ?वह सोच रही थी। हो ना हो, यह इसका वही दोस्त हो सकता है, जो हमेशा इसकी, सहायता करता है और अपने दोस्त का घर भी उसने दिलवाया है। यही तो इसके करीब है ,एक दिन बेटी ने बताया था।
क्या सोच रही हैं ? कल्पना बेसब्री से बोली।
कुछ नहीं, बस यही सोच रही थी, इतने दिनों से कह रही थी -तुषार !से मिलवा दे ! किन्तु आज न जाने किसे उठाकर ले आई ,कहते हुए हंसने लगी।
कल्पना उसकी बात सुनकर ,उसके करीब आई ,और बोली -मम्मा !मज़ाक मत करिये ! आपकी मुस्कान कह रही है ,आप इसे पहचान कर भी ,न पहचानने का अभिनय कर रहीं हैं।
जब तुझे मालूम है ,तब ऐसा प्रश्न तूने किया ही क्यों ?
कल्पना खुश हो गई, और बोली - मम्मा ! आपने सही पहचाना, मैंने सोचा -मेरी मां की इच्छा है तो, क्यों न आज उनकी इच्छा पूरी कर दी जाए और तुषार से मिलवा दिया जाए। तुषार ! यही मेरी मम्मा हैं , कहते हुए उसने नीलिमा का परिचय कराया।
तुषार आगे बढ़ा, तो हाथ जोड़कर नमस्ते करके पैर छूने के लिए आगे बढ़ा और बोला -आंटी जी !ये आपकी बहुत प्रशंसा करती है ,मैं तो देखते ही पहचान गया था। आप ही ,इसकी 'मम्मा ' हो सकती हैं।
आओ बैठो ! नीलिमा ने उसे बैठने का आग्रह किया और अपनी बेटी से बोली -पहली बार इसे घर लेकर आई हो, कुछ खातिरदारी करोगी या नहीं।
नहीं आंटी जी मैं, तो खा चुका हूं।
अच्छा !
अब आंटीजी के हाथ से भी खा लेना, किंतु मन ही मन सोच रही थी -मैंने इसे अवश्य ही ,कहीं तो देखा है।यह चेहरा मुझे जाना -पहचाना क्यों लग रहा है ? अपनी भावनाओं को तो व्यक्त नहीं कर पाई किन्तु यह पूछने का प्रयास करती है ,कि बेटे कहां रहते हो ?
जी यहीं ,हॉस्टल में रहता हूँ।
आखिर तुषार की सच्चाई क्या है ? क्या वह वही है जो दिखाना चाहता है ? या कुछ और है , क्या नीलिमा उसे पहचान पाएगी ? आखिर तुषार कौन है ? क्या अपनी बेटी, और तुषार के विवाह के लिए तैयार हो जाएगी ? जानने के लिए पढ़ते रहिए -साज़िशें