Rasiya [part 29]

आज अचानक न जाने चतुर को क्या हुआ ? उसके मन में अनेक प्रश्न घुमड़ रहे थे, अभी तो जिंदगी सुकून से ही कट रही थी। किंतु जब से उसे पूनिया मिला है, तब से उसके मन में अजीब सी बेचैनी हो गई थी। इस बेचैनी के चलते वह बच्चों को पढ़ाने के लिए देर से पहुंचा। तब उसने कस्तूरी के भाई से, पानी मंगवाया। और कस्तूरी से कुछ ऐसे प्रश्न पूछे जिनको सुनकर, स्वयं कस्तूरी भी हथप्रभ रह गई , अभी उसकी उम्र भी कम थी, उसके आधार पर जिस तरह से, चतुर ने उससे सवाल पूछे थे , उनके लिए अभी वह तैयार नहीं थी। तब तक उसका भाई पानी लेकर आ गया था , कस्तूरी को इस तरह चुपचाप देखकर पूछने लगा -क्या हुआ ?

कुछ नहीं ,तुम्हारी बहन को पढ़ाई के लिए समझा रहा था कि इस तरह लापरवाही से कार्य नहीं चलेगा ,कल को किसी बड़े घर की बहु बनेगी ,तो क्या वो लोग इसे यूँ ही स्वीकार कर लेंगे। जब लड़का पढ़ा -लिखा होगा तो उसे भी पढ़ी -लिखी पत्नी चाहिए ,चाहिए कि नहीं कहते हुए ,उसके भाई से पूछा। 


हाँ -हाँ ,चाहिए ,किन्तु जब दीदी पढेगी ही नहीं तो कोई अनपढ़ लड़का ही ढूंढ़ना पड़ेगा ,कहते हुए ,वो हंसने लगा। 

चुप कर !कहकर कस्तूरी स्वयं भी चुप हो गई , चतुर ने उसके मन में हलचल मचा दी थी। अपनी कॉपी, उसने चतुर के आगे कर दी ,चतुर ने सोचा -कोई सवाल हल किया होगा ,उसने कॉपी देखी तो उसमें लिखा था -तुम कभी भी आना मैं प्रतीक्षा करूंगी ? पढ़कर चतुर ने उसकी तरफ मुस्कुराकर देखा किन्तु कस्तूरी की नज़रें नीचे थीं । 

कस्तूरी के जवाब से चतुर प्रसन्न हो गया, और बोला -मैं शीघ्र ही आऊंगा ,तुम्हें ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। तब तुम अपनी शिक्षा पर ध्यान देना। मैं तुम पर अपना विश्वास बनाकर जा रहा हूं , और तुम्हें लेने आऊंगा। 

यह शब्द , कस्तूरी की मां ने के कानों में भी पड़े। और वह रसोई घर से बाहर निकाल कर आई और बोली -क्या तुम कहीं जा रहे हो ? कहां जा रहे हो ?

उनकी आवाज सुनकर चतुर सकपका गया, वह प्रसन्नता में कुछ उच्च  स्वर में बोल गया, वह भूल गया था कि इस समय वह कस्तूरी के घर में है। तब वह बोला -आंटी जी ,ऐसा कुछ भी नहीं है। 

क्या कुछ भी नहीं है वही तो मैं पूछना चाहती हूं , क्या तुम कहीं जा रहे हो ?

तब वह समझ जाता है कि उन्होंने ठीक से और सही बात नहीं सुनी है , तब वह बोला -अब मुझे अपने घर जाना ही होगा , मेरी गर्मियों की छुट्टियां  समाप्त होने वाली है। मुझे अपने परिवार की भी बहुत याद सता रही है। मेरी मां ,मेरी प्रतीक्षा में होगी इसीलिए मैं इन बच्चों से कह रहा था -अपनी शिक्षा पर ध्यान देना जब कभी इधर आऊंगा तो मिलने आया करूंगा। कोई परेशानी होगी तो ,बता दिया करूंगा। 

क्या तुम्हारा भी कोई घर है ? कस्तूरी की माँ ने आश्चर्य से पूछा। 

हां हां क्यों नहीं, मैं ''चाँद गांव 'का ही तो रहने वाला हूं किसी कारणवश  मुझे यहां आना पड़ गया , अब मुझे जाना होगा इसीलिए बच्चों को समझा रहा था। क्यों ,आपको क्या लगा ?

हमारे यह तो कह रहे थे, अपने पति के लिए बोली - कोई गरीब लड़का है ,बेघर है, उसे काम दिया है। उसके लिए दो रोटी भिजवा देना। 

उनकी बात सुनकर चतुर मुस्कुरा दिया। 

सही तो है उन्होंने इसी हालत में मुझे देखा था , कभी उन्होंने मेरे विषय में जानना भी नहीं चाहा और ना ही मैंने बताया। अब इंसान की जैसी हालत होगी दूसरा व्यक्ति तो उसे वैसे ही समझेगा न....... आप लोग बहुत ही अच्छे हैं ऐसे समय में ,आपने मेरा साथ दिया मुझे अपने घर में, पनाह दी और दुकान पर काम  दिया। 

रामप्यारी को कुछ आहट सी महसूस हो रही थी , उसे लगा ,जैसे कोई घर में आया है। घर की दुबारी में किसी की परछाई सी तो दिख रही थी , रामप्यारी ने , अपने स्थान से खड़े होकर ही पूछा -कौन है ? किंतु उधर से कोई आवाज नहीं आई। अरे भाई !कौन है ?बोलता क्यों नहीं ? क्या काम है ? उसे लग रहा था उसके इस प्रकार कहने से वह स्वयं ही उसकी तरफ आएगा। क्योंकि दुबारी  में रोशनी का भी प्रबंध नहीं था। कोई बोलता भी कैसे ? अपनी मां को देखकर तो उसकी हिड़की बंध गई थी, इतने दिनों के पश्चात माँ  को जो देख रहा था। आंसू थे, कि रुक ही नहीं रहे थे। कदम जैसे वहीं  चिपक गए थे। रामप्यारी को लगा, वैसे तो गांव में कोई चोर नहीं आता किंतु आज मुझे अकेली को देखकर, शायद कोई घर में घुस आया है। घर के कोने में रखी उसने लाठी उठाई और उसे ओर चल दी। वहां पर जो भी है ,बाहर निकाल कर चुपचाप आ जाओ ! स्वयं भी मन ही मन घबरा रही थी कहीं उसके पास कोई हथियार न हो ! इतने दिनों से श्रीधर भी, ज्यादातर घर में ही रहते थे। बेटे के वियोग में,रामप्यारी की हालत देखकर, उन्हें डर रहता था कहीं अकेले में से कुछ हो ना जाए। किंतु घर के बहुत से कार्य होते हैं, वे भी  करने होते हैं , आज ही बाहर निकले हैं। 

धीमे कदमों से चतुर आगे बढ़ा , उसकी परछाई देखकर ही, रामप्यारी का दिल हिल गया, उसे लग रहा था जैसे उसका बेटा आ गया , उससे रुका नहीं गया और बोली-चतुर ! चतुर है ,क्या ?

अपने नाम का स्वर सुनकर, चतुर तेजी से आगे बढ़ा , उसका चेहरा देखते ही, रामप्यारी की चीख़ निकल गई और चिल्ला उठी -मेरा चतुर ! तू आ गया , तेजी से आगे बढ़ी, और चतुर के सामने जाते ही, जैसे उसकी चेतना कहीं खो गई। 

चतुर ने तुरंत थी, मां को अपनी बाजुओं में संभाल लिया और उन्होंने पकड़कर, चारपाई तक ले गया। अपनी मां को ,चारपाई पर लिटा कर, चतुर गिलास में पानी लेकर आया , और मां के चेहरे पर छींटे  मारते हुए उठने लगा -मम्मी.......  मम्मी ! उठो ! आपको क्या हुआ ? पानी के छींटों  ने अपना असर दिखाया, रामप्यारी में अपनी आंखें खोलीं -सामने चतुर को देखकर, फिर से आंखें बंद की शायद वह कोई सपना देख रही है। पुनः  तेजी से आंखें खोलकर पूछा -चतुर ! क्या तू आ गया ?

हां माँ , मैं आ गया, रामप्यारी उठी उसे छू कर देखा, और रोने लगी। यह उसके दुख के आंसू नहीं प्रसन्नता के आंसू थे। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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