Kanch ka rishta [part 4]

ज़िंदगी के झमेलों में फंसकर ,कभी -कभी इंसान आपने आपको भी भूल जाता है ,किन्तु विवाह या फिर कोई ऐसे कार्यक्रम में जिनमें सभी रिश्तेदार और मित्रजन एकत्रित होते हैं। मिलना तो हो ही जाता है किन्तु साथ ही ,अपनी कुछ भूली बातें और यादें स्मरण हो आती हैं। थकने के बावजूद भी ,करुणा में एक नया उत्साह भर गया है। यूँ भी कह सकते हैं -कि ऐसे माहोेल में ,कुछ देर के लिए अपनी परेशानियों और उलझनों को भुला दिया। निधि ने घड़ी में समय देखा तो ,रात्रि के12:00 बज रहे थे। वह जानती है -कल उसकी जिम्मेदारियां और ज्यादा बढ़ जाएगीं। कल और रिश्तेदार भी आएंगे, घर में काम भी होगा। आराम नहीं मिलेगा,रात भर जागेगीं  तो तबीयत भी बिगड़ सकती है। हो सकता है ,कल की रात्रि भी उसे जागना ही पड़ जाए। तब वह संजय से कहती है -बेटा !अब थोड़ी देर ,सब आराम कर लो ! कल के लिए भी तो हिम्मत चाहिए, दिनभर काम भी करना है और रात में जागना भी पड़ सकता है। मनु को भी आराम करने दो !


हमें तो अभी नींद नहीं आ रही है, हम अभी और मस्ती करेंगे, मनु की तरफ देखते हुए बोला - हम इसके विवाह में तो आए हैं, इसके लिए ही सारी रातभर जागरण कर रहे हैं। यही सो जाएगी तो फिर क्या मजा आएगा ?संजय ने जवाब दिया। 

निधि समझ गई, यह पूरी मस्ती में है, यह कहना मानने वाला नहीं है इसीलिए मनु की सहेली को इशारा किया और उसने भी इशारे से ही, निधि को आश्वस्त कर दिया कि वे समय पर, सो जाएंगे। ठीक है, तुम लोग जैसा उचित समझो !कहते हुए ,उठी और बोली - जिसे जहां सोना है ,सो जाना यहां भी सोने का, इंतजाम किया हुआ है। मैं अपने कमरे में जाकर सो रही हूं। इतनी देर तक जागूँगी तो तबियत बिगड़ जाएगी। चलिए ,दीदी !आप भी चलकर सो जाइये  ! जब से आई हैं किसी न किसी कार्य में व्यस्त हैं। कार्य न भी हो तो ऐसे मौकों पर थकावट हो ही जाती है ,थोड़ा आराम कर लीजिए , कल भी,  सारा दिन काम करना ही है। कहते हुए ,करुणा की तरफ, अपना हाथ बढ़ाती है। 

करुणा ,नीचे कालीन पर ही बैठी थी ,इसीलिए निधि का सहारा लेते हुए ,उठ खड़ी हुई। करुणा भी ,अपने को, थका हुआ महसूस कर रही थी, बोली -चलिए ! मुझे भी नींद आ रही है। करुणा मन ही मन प्रसन्न भी हो रही थी, और अंदर ही अंदर एक दर्द दबाये हुई थी। उसे मलाल था, जो कार्य, उन्हें करना चाहिए , जो सम्मान उन्हें देना चाहिए। यह लोग, मेरा कितना ख्याल रख रहे हैं ?

क्या सोच रही हो ? निधि ने पूछा। 

 कुछ नहीं, सोचती हूं कल सुबह ही, उन्हें फोन कर दूंगी कि शादी में शीघ्र आने का प्रयास करना। कभी बच्चे लापरवाही कर दें। 

हां -हाँ सुबह ही फोन कर दीजिएगा, जब होटल में पहुंच जाएंगे तो वहां किसी को किसी से मिलवाने का समय ही नहीं रहेगा ,घर पर कम से कम सब एक दूसरे से अच्छे से तो मिल लेंगे। जान -पहचान भी हो जाएगी। एक कमरे में, बिस्तर लगा हुआ था, आइये  दीदी !हम यहीं  सो जाते हैं। 

ये तो आपका कमरा है ,भइया  आकर विश्राम करने लगे तो बेचारे मुझे सोता देखकर वापस चले जायेंगे ,आप भी न कैसी बातें करती हैं ? इतना बड़ा घर है ,कहीं भी सो जायेंगे। वो तो अपने दोस्तों और अन्य रिश्तेदारों के साथ ही कहीं न कहीं सो जायेंगे। आप आइये !आराम से सो जाइये !कहते हुए निधि ने अपनी अलमारी खोलकर ,एक गाउन स्वयं पहना और दूसरा करुणा को देते हुए बोली -लीजिये !आप इसे पहन लीजिये ,सुबह से साड़ी में लिपटे -लिपटे भी शरीर अकड़ सा गया। अब खुलकर सोने का मन कर रहा है। जम्हाई लेते हुए ,वो तुरंत ही ,बिस्तर पर लेट गयी। 

करुणा ने भी अपनी साड़ी उतारी और....... वैसे तो वह  भी अपने रात्रि में सोने के लिए,कपड़े लाई है किन्तु जब भाभी ने गाउन दिया तो अपना सूटकेस खोलने का आलस कर गयी। निधि ,करुणा के साथ ,जैसा भी अपनेपन  का व्यवहार कर रही है। उतनी ही ,करुणा के मन में कहीं घुटन सी होने लगती। निधि अगले दिन की तैयारी के लिए क्या -क्या करना है ?बता रही थी और करुणा से पूछ भी रही थी किन्तु करुणा तो न जाने कहाँ खो गयी थी ?वो तो शायद अपने मायके में ,अपने माता -पिता के पास पहुंच  गयी थी। पापा !आप चिंता न करो ! मैं सब सम्भाल लूंगी ,अपने पिता को चिंतित देखकर करुणा बोली थी। करुणा ने बिस्तर पर लेटने से पहले, एक बार निधि की तरफ देखा , काफी थकी हुई थी, लेटते ही, न जाने कब उसे नींद आ गई ? उसके खर्राटे की आवाज से ,करुणा समझ गई थी- भाभी, सो गई है। 

कहीं दूसरी जगह जाते हैं तो बड़ा अटपटा सा लगता है, अब अपने-अपने, शयनकक्ष की आदत जो पड़ जाती है, किंतु निधि ने अपने किसी भी व्यवहार से यह नहीं दिखलाया, कि उसे करुणा के आने से प्रसन्नता नहीं हुई। उसका अपनापन देखकर, न जाने क्यों ,स्वयं ही आहत हो रही थी ?

करुणा ने इधर-उधर देखा और धीमी रोशनी के लिए, एक छोटा बल्ब जला दिया और बत्ती बंद करके सो गई, या यूँ  समझो ! सोने का प्रयास करने लगी। कितना अपनापन था ,कितनी खुश होती थी ? जब वह अपने घर जाती थी। उमंग से भर जाती थी, एक दिन तो, यवन से ही कह दिया था -''मेरे पिता, के पास अभी पैसे की कमी है, किंतु दिल बहुत बड़ा है ,अपनी बेटी को कभी कुछ नहीं कहेंगे ! कभी किसी भी चीज की कमी नहीं होने देंगे। हमेशा सबसे पहले, किसी कार्य में भी,अपनी बेटी को ही आगे रखेंगे। किंतु वह सोच , वे  बातें सपने ही बनकर रह गए। क्योंकि जैसा वह सोचती थी-उत्साहित होकर कोई भी कार्य करती थी। ऐसा तो कुछ भी नहीं हुआ, उसे लगा , समय के साथ लोग कितने बदल जाते हैं ?

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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