दयाराम, ईमानदार और मेहनती किसान था किंतु गरीबी से जूझ रहा था। वह चाहता था ,कि बच्चों को अच्छी परवरिश दे , उसकी फसल अच्छी हो किंतु पैसे की कमी के कारण कुछ भी करने में असमर्थ था। खेती के लिए भी अच्छे बीज और खाद की आवश्यकता होती है। तब एक दिन उसे एक व्यक्ति मिला और उसने उसे सुझाया, कि वह बैंक से ऋण ले ले। ऋण लेने के नाम से ही वह परेशान हो गया , क्योंकि ऋण लेना ही नहीं उसे चुकाना भी होता है। तब उस व्यक्ति ने समझाया - पैसा एक साथ इकट्ठा मिलेगा , उससे तुम अब अपनी आवश्यकताएं पूर्ण कर सकते हो , किंतु चुकाना एक साथ नहीं है , उसे धीरे-धीरे चुका सकते हो , ऋण लेकर वह अपने रुके हुए ,सभी कार्य पूर्ण कर सकता है और किस्त के रूप में, बैंक का ऋण भी चुका सकता है। यह बात दयाराम को अच्छी लगी और उस व्यक्ति के कहने पर, दयाराम ने ऋण लेने का मन बना लिया।
दयाराम को पढ़ना लिखना तो आता नहीं था, इसीलिए अपनी सहायता का कार्य भार भी, उसी व्यक्ति को सौंप दिया, किंतु तकदीर का लिखा कौन बाँच सका है ? उस साल फसल ही खराब हो गई ,अब वो परेशान हो गया कि अपना पैसा कैसे चुकाएगा ?जब उसने ,उन्हें अपनी समस्या बतलाई ,तब उन्होंने उस पर किसी भी तरह का दबाब नहीं बनाया,उसे आश्वासन देकर और समझाकर भेज दिया। बैंक वालों के नम्र व्यवहार के कारण, उसे ज्यादा दुख भी नहीं हुआ, कुछ पैसे उसके पास पड़े थे। उन पैसों ने उसे दोबारा साहस दिया ,उसने अपनी नई फसल उगाई। ज्यादातर पैसा तो खेती के आवश्यक कार्य में ही निपट गया। अगले बरस तो उसे बेटी का विवाह करना था , पहले से ही बैंक का चार लाख का ऋण उसके सर पर था। वैसे बैंक वालों की यह सुविधा, दयाराम को अच्छी लगी। उसने सोचा धीरे-धीरे तो पैसा चुका ही देंगे थोड़ा पैसा और ले लेते हैं और थोड़ी फसल से भी आमदनी हो ही जाएगी। सारी बातों को सोचते हुए उसने यह बात, फिर से उस ऋण देने वाले बैंक के कर्मचारियों से बात की।
जिस व्यक्ति ने दयाराम को ऋण लेने का सुझाव दिया था। वह तो न जाने कहां गायब हो गया ? अब दयाराम ने उसकी जरूरत भी महसूस नहीं की क्योंकि दयाराम जानता था अब तो उसे सभी तरीके आ गए हैं ,किससे बात करनी है और बैंक के लोग भी उसे जानते हैं, उन लोगों से भी अच्छी- खासी जानकारी उसे हो गई है।
उसने दयाराम की बात को सुना ,कुछ हिसाब- किताब लगाया और बोला -सोचा तो तुमने अच्छा है दयाराम अब और ऋण लेना सही नहीं है , पहले अपना पुराना ऋण तो चुका दो ! दस लाख में से दो -चार किश्त ही तुम चुका पाए हो। पहले जो दस लाख रुपया तुमने लिया है ,उस रुपये को चुका दो !
उसकी बात सुनकर दयाराम सकते में आ गया और बोला -साहब !यह आप क्या कह रहे हैं ? मैंने 10 लाख का ऋण कब लिया ? मैंने तो मात्र चार लाख रूपये ही लिए हैं।
दयाराम की बात सुनकर वह व्यक्ति भड़क गया, और बोला -मैं क्या झूठ बोल रहा हूं ? यह देखो ,कागजों में लिखा हुआ है ,कि तुमने 10 लाख का कर्जा लिया है और तुम्हारा अंगूठा भी यहां पर लगा हुआ है।
साहब !वह तो मैंने उस आदमी के कहने पर, जैसे भी उसने कहा वैसा ही कर दिया क्योंकि मुझे पढ़ना -लिखना तो आता नहीं किंतु साहब ! मैं सच बोल रहा हूं , मुझे सिर्फ ₹400000 मिले हैं।
तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूं, उस व्यक्ति ने भड़कते हुए कहा , यदि तुम सच बोल रहे हो ,तो इसका अर्थ है ,मैं झूठ बोल रहा हूं, मेरे पास सबूत है , सभी कागज हैं , मैं यहां नौकरी करता हूं। मेरा यही काम है, इस तरह मैं झूठ बोलूंगा , या गलत संख्या भर दूंगा तो मुझ पर कोई विश्वास नहीं करेगा ,हमारे बैंक से लोन लेने कोई नहीं आएगा ?
वह सब तो मैं नहीं जानता ,साहब ! यह बात मैं स्वीकार करता हूं कि मेरे सभी कागज तो आपने ही भरे हैं , उस समय तो मेरे सामने कभी भी 10 लाख का जिक्र नहीं हुआ। आज अचानक इस तरह कैसे चार लाख के 10 लाख बन गए ? आपको यकीन नहीं है ,तो मैं उसे व्यक्ति को ढूंढ कर लाता हूं , जिसने मुझे यह ऋण दिलवाया था।
ठीक है, जाकर उसे ले आओ !और तब मेरे सामने आना , उसने अकड़ कर जवाब दिया और स्मरण रहे, यह 10 लाख तो तुम्हें ही चुकाने होंगे, साथ ही ,उसने चेतावनी भी दे दी।
यह क्या हो गया ? सब कुछ कितना अच्छा लग रहा था ? सोच रहा था ,और ऋण लेकर बेटी का विवाह कर दूंगा। किंतु मेरे नाम पर तो इतना ऋण है ,जितना मैं सोच भी नहीं सकता। इतना पैसा मैं ,कहाँ से लाऊंगा ? बेटी का विवाह कैसे होगा ? कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। दयाराम उस व्यक्ति को ढूंढने चला, उसका भी तो कुछ अता-पता नहीं ,ढूढ़ूं भी तो कहां ? जिस स्थान पर वह मिला था ,उस स्थान पर ही ढूंढने गया किंतु वहां कोई नहीं मिला। आस-पास के लोगों से भी पूछा, उसकी पहचान बताकर जानने का प्रयास भी किया किंतु उसका पता कोई भी नहीं दे पाया, वहां उसे कोई भी नहीं जानता था। हैरान इधर-उधर भटकता रहा। कहां से उस आदमी को लाए , कैसे अपने को सच्चा साबित करें ? सब सोचते हुए ,दयाराम अपने घर वापस आ गया।
अभी तक तो दयाराम बहुत ही खुश घूम रहा था, और आज अचानक उसके चेहरे पर निराशा के बादल छा गए थे, उसके चेहरे को देखकर,उसकी पत्नी ने पूछा - कैसे परेशान हो ?
तब दयाराम ने अपनी पत्नी को संपूर्ण बात बतला दी।
उसकी पत्नी होशियार थी ,वह समझ गई, कि इन्हें इस व्यक्ति ने छला है , और अब इसीलिए वह गायब है , वह भी दयाराम की तरह अनपढ़ तो थी किंतु मूर्ख नहीं थी। उस व्यक्ति के दिए ,धोखे को समझ गई थी। तब उसने दयाराम से कहा-अब वह व्यक्ति तुम्हें कभी नहीं मिलेगा , क्योंकि वह तो तुम्हारे नाम से बैंक से पैसा लेकर रफू चक्कर हो चुका है। यह बात समझ में आते ही, दयाराम को तो जैसे बहुत बड़ा झटका लगा वह समझ नहीं पा रहा था किस पर विश्वास करें ,किस पर नहीं। उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इतना अच्छा बोलने वाला व्यक्ति, सहायता के लिए साथ खड़े रहने वाला, इतना बड़ा धोखा भी कर सकता है।
अब धोखा तो तुम्हें हुआ है , घबराने की कोई आवश्यकता नहीं उसे ढूंढते रहो और अबकी बार फसल आएगी तो थोड़े , पैसे बैंक में भी जमा कर देना, हम तो पहले से ही गरीबी में रहते आए हैं , हमें तो गरीबी में रहने की आदत है।
किंतु यह बात दयाराम को स्वीकार्य नहीं थी। उसका मन नहीं मान रहा था , जो पैसा मैंने लिया ही नहीं उसे मैं क्यों चुकाऊँ ? क्योंकि वह जानता था, पत्नी ने तो कह दिया किंतु जिम्मेदारियां तो मेरे ऊपर हैं, उन उत्तरदायित्वों को मुझे ही पूर्ण करना है। कहां से मैं इतना पैसा लाऊंगा? खेती में पैसे के पेड़ तो नहीं होते वही फसल उगती है, जिसमें साल भर का अपना अनाज भी होता है , जो फसल बेचकर आमदनी होगी , वह तो कर्ज में चली जाएगी ,इतना कर्ज ,तो चुकाने में मुझे वर्षों लग जायेंगे। बेटी का विवाह किस तरह करेगा ? अनेक समस्याएं उसके सामने मुँह बाये खड़ी थीं।

