Shrapit kahaniyan [part 84]

रमा मन ही मन. सोच कर घबरा रही थी। पहले वह सोच रही थी ,कि अपने मम्मी- पापा को दीपशिखा के विषय में ,सभी जानकारी दे देती हूँ  किंतु उसने सोचा ,कभी दीपशिखा उसके परिवार वालों को ही ना परेशान करने लगे। यही सब सोचकर वो,  रोने लगी। सारी बातें सोच -सोच कर रमा रोए जा रही थी , उसे कोई उपाय नहीं सूझ रहा था , उसे कॉलेज गए हुए भी पंद्रह दिन हो गए थे किंतु दीपशिखा ने उसका पीछा उसके घर तक भी नहीं छोड़ा था। इस तरह डर -डरकर वह कब तक जीती रहेगी ? यही सब सोच रही थी -तभी उसकी मम्मी आती हैं और उसकी हालत देखकर उससे पूछती हैं -तुम इतना क्यों रो रही हो ?

अपने आंसू पोंछते हुए रमा ,अपनी मम्मी से झूठ बोलती है -नहीं ,ऐसी कोई बात नहीं ,मैं रो नहीं रही हूं। 

अपनी मां से भी झूठ बोलती हो , तुम्हारे यह अश्रु ,तुम्हारा ये चेहरा तो झूठे नहीं हैं , पंद्रह दिनों  से कॉलेज भी नहीं गई हो, रमा हाथ पकड़कर अपने सिर पर रखकर कहती हैं - ''तुम्हें अपनी मम्मी की कसम है'' ,तुम्हें सारी बात मुझे सच -सच बतानी होगी। तभी तो हम, उसका कुछ उपाय सोच सकते हैं , मम्मी ने उसे बड़े प्यार से समझाया। 



नहीं, मम्मी !अगर मैंने आपको सब सच बता दिया ,तो वह, आप लोगों को भी मार डालेगी , कहते हुए रमा, फिर से अपनी मम्मी से लिपटकर रोने लगी। उसकी मम्मी ने उसके आंसू पोंछे और उसे अपने से अलग करके, उसके चेहरे पर अपनी नजर गड़ा दीं और बोलीं - तू सब बात मुझे ठीक से बता ! हो सकता है, हम जो भी परेशानी है ,उसका कुछ हल निकाल लें।

 सुबकते हुए, रमा बोली -यदि मैंने आपको कुछ भी बताया तो, वह आप लोगों को भी कुछ ना कुछ कर ही देगी। 

उसकी मम्मी झुंझलाते हुए बोलीं -कौन क्या कर देगी ,ठीक से क्यों नहीं बताती हो ?

घबराते हुए, रमा बोली -वह यहीं आसपास है ,मैंने यदि आपको कुछ भी बताया तो वह सब सुन लेगी वह नहीं चाहती ,कि मैं उसका किसी भी तरह से पर्दाफाश  करुं। 

यह तुम क्या कह रही हो ? हमने तो यहां किसी को भी नहीं देखा , वह कोई भूत है क्या ?जो हमें नहीं दिखाई देती ,तुम्हें दिखलाई  देती है। 

नहीं ,वह भूत नहीं है ,वह जीती -जागती , चुड़ैल के रूप में ,इंसान है , कल रात भी ,वह स्वयं यहां नहीं आई उसने अपने साथियों को भेजा और कहते हुए रमा ने अपने हाथ पर जो निशान थे ,वह अपनी मम्मी को दिखाएं ,उस स्थान पर नील पड़ गये  थे । 

उन्हें देखकर उसकी मम्मी घबरा गई और बोली यह सब तुम्हारे साथ कब हुआ ? तुमने हमें बताया क्यों नहीं ?

मम्मी वह बहुत खतरनाक है , सब को जान से मार देगी। 

रमा की मम्मी को अंदेशा हो गया हो न हो यह कुछ, भूत- प्रेत या फिर काली शक्तियों का कार्य है। तब वह रमा को उठाकर ,अपने घर के मंदिर में ले गईं और बोलीं -''तुम्हें अपने ईश्वर पर विश्वास होना चाहिए , उनकी शक्ति पर विश्वास रखो , यहां वह कभी नहीं आ पाएगी , अब  मुझे संपूर्ण बातें सच सच बताओ ! अपने घर के मंदिर में आकर रमा को भी थोड़ी शांति मिली , उसे भी ऐसे लगा ,जैसे वह भ्रम जाल में फंस गई थी। किंतु अभी भी उसका भय समाप्त नहीं हुआ था। तब उसकी मम्मी ने उसके माथे पर मंदिर में रखी भभूत लगाई ,और उसे  विश्वास दिलाया -ईश्वर से बड़ी शक्ति कोई नहीं है , उन पर अपना विश्वास कायम रखो। 

जब रमा का थोड़ा डर समाप्त हुआ ,तब उसने धीरे-धीरे अपनी मम्मी को कॉलेज की लड़की 'स्वर्ण लता 'की मृत्यु की और' दीपशिखा 'की सम्पूर्ण  बातें बतला दीं। 

जिन्हें सुनकर उसकी मम्मी की आंखें ,फटी की फटी रह गईं ,वो सोच रही थीं  , मेरी बच्ची इतने दिनों से कितनी परेशानी और कष्ट में थी ,मैं समझ ही नहीं पा रही थी ? 

दूसरी तरफ चिराग़ , अपनी पढ़ाई में व्यस्त था, दिन में वह ,अपने पिता के साथ कार्य करवाता था और रात्रि में अपनी शिक्षा का कार्य पूर्ण करता था ,तभी उसे अपने कान में महसूस होता है ,जैसे उससे कोई कह रहा है -चले आओ !चले आओ ! चले आओ ! चिराग पहले तो उस आवाज पर ध्यान नहीं देता , किंतु उसकी लापरवाही का नतीजा यह होता है ,कि वह आवाज बढ़ने लगती है ,तीव्र होने लगती है , उसके सिर में भारीपन आने लगता है , धीरे-धीरे वह सम्मोहित सा हो , घर से बाहर जाने लगता है। जब वह घर से बाहर जा रहा था, तब उसके पिता ने उसे टोका -चिराग !इतनी रात गए कहां जा रहे हो ? चिराग तो अपने वश में ही नहीं था , वह क्या जवाब देता? सीधा चले जा रहा था। पिता ने सोचा ,शायद इसने , मेरी आवाज सुनी  नहीं , फिर सोचा- शायद ,अपने किसी दोस्त से मिलने के लिए ,बाहर जा रहा होगा। बस यही गलती उनसे हो गई। 

अगले दिन जब चिराग का परिवार सो कर उठा , तब घर में चिराग की ढूंढेर मचने लगी , क्योंकि चिराग स्वयं भी जल्दी उठता था, और सबको प्रातःकाल ही उठा देता था , क्योंकि वह बाहर घूमने जाता था और उसके पश्चात आकर, नहा -धोकर थोड़ी देर अपनी पढ़ाई करता था और 9:00 बजे तक पिता के साथ उनके व्यापार में हाथ बटाने के लिए चला जाता था। व्यापार में अगर उसकी आवश्यकता ना हो तो कॉलेज के लिए प्रस्थान करता था। यही उसका दैनिक कार्य था , आज 8:00 बज गए और अभी तक चिराग का कहीं नामोनिशान ही नहीं दिख रहा। न जाने, यह लड़का कहां रह गया ? उसके पिता उसका नाम पुकार रहे थे किंतु वह घर में हो ,तब तो बोले। तभी उन्हें स्मरण हुआ , रात्रि में वह कहीं जा रहा था , मैंने उसे रोका भी था किंतु उसने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया। चिराग की मम्मी , जब वह आ जाए तब उसे मेरे पास भेज देना अभी मैं जा रहा हूं। रात्रि को भी न जाने कहां चला जा रहा था ?मैंने रोका भी था किंतु उसने मेरी बात ही नहीं सुनी ,उन्होंने अपनी पत्नी  को बताया। 



यह आप क्या कह रहे हैं ?वो इतनी रात्रि  को कहां जाएगा ?उससे तभी क्यों नहीं पूछ लिया था? आपने ! उनकी पत्नी ने नाराज होते हुए कहा। 

मुझ पर क्यों नाराज होती हो ? मैंने तो पूछा था ,लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया। मैंने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया , तब मैंने सोचा -उसका कोई दोस्त बाहर खड़ा होगा ,उससे मिलकर आ जायेगा। 

उसे वापस आते हुए आपने देखा था या घर में किसी और ने देखा था ,चिराग की बहन बोली -मम्मी ,मैं तो अपने कमरे में थी ,अपना कार्य करके सो गयी ,मैंने भइया को नहीं देखा। 

अच्छा ,अभी मैं चलता हूं, जब वह आ जाए तो उसे भेज देना कहते हुए ,उसके पापा घर से बाहर निकल गए। अभी घर से कुछ दूरी ही तय कर पाए थे ,तब उन्होंने देखा -कि एक पेड़ के नीचे भीड़ लगी हुई है , उन्होंने अपनी साइकिल से उतरकर एक व्यक्ति से पूछा -भाई ! यहां क्या हो रहा है ?

क्या बताएं ?जी ,पता नहीं, किसका लाल है ? किसी ने बड़ी ही बेरहमी से मारा है। 

देखने के उद्देश्य से ,चिराग के पिता भी उस भीड़ को चीरते हुए ,उधर ही पहुंच गए और जैसे ही उस लाश  को देखा ,वहीं  गश खाकर गिर पड़े। उन्हें इस तरह गिरता देख कर, लोगों ने समझा- शायद ,लाश  की ऐसी हालत देखकर, इनसे  बर्दाश्त नहीं हुआ , कुछ ने कहा - कहीं यह इनका कोई अपना तो नहीं , इस आशंका से , कुछ लोग उनके चेहरे पर पानी छिड़कने लगे , ताकि उन्हें होश आ जाए और पता चले यह शव  किसका  है ?

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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