Besan ke laddu

गुप्ता जी ,शांति से बैठे ,समाचार -पत्र पढ़ रहे थे ,तभी उन्हें कुछ मीठा खाने की इच्छा हुई और अपने बेटे की बहु से बोले - पल्लवी बेटा ! जरा'' बेसन के लड्डू'' तो देना। 

पल्लवी रसोई घर में थी, रसोई घर से बाहर ,झांकते हुए बोली - नहीं हैं , ख़त्म हो गए। 

ख़त्म हो गए ,इतनी जल्दी कैसे समाप्त हो गए ? मैने उस दिन देखा था ,समधिन जी ने बहुत सारे ''बेसन के लड्डू ''भेजे थे।

जी पापा जी ,समाप्त हो गए और अब मैंने उन्हें ,और लड्डू बनाकर देने के लिए मना भी कर दिया  है। 

मना कर दिया ,क्यों ?क्या तुम्हें अच्छे नहीं लगते ? अरे !तुम्हें अच्छे नहीं लगते , हमें तो अच्छे लगते हैं। वो इतने प्रेम से ,मेहनत से बनाकर भेजती हैं ,तुमने मना कर दिया ,ये तो अच्छी बात नहीं है। उन्हें अपनी बहु पर क्रोध आया। 


आपके  कारण ही ,मना किया है ,पल्ल्वी स्पष्ट शब्दों में बोली। 

मेरे कारण ! क्यों ?वो आश्चर्य से बोले -मुझे क्या कोई बीमारी है ?अच्छा -ख़ासा स्वस्थ हूँ ,अभी आठ -दस लड्डू खा सकता हूँ। तुमने मेरे कारण, ऐसा क्यों किया ?क्या मैं जान सकता हूँ ?

अबकि बार पल्ल्वी रसोईघर से बाहर आ गयी और बोली -पापा जी ,आप जानते  हैं ,बेसन के लड्डू बनाने में कितनी मेहनत लगती है ?पहले देशी घी में बेसन भूनना पड़ता है ,कहीं जल न जाये ,उसे चलाते रहना पड़ता है। मम्मी के कंधे भी दुखने लगते थे ,उसे पश्चात बूरा और मेवे मिलाकर ,लड्डू बनातीं हैं ,वो क्यों ,इतनी मेहनत करती हैं ?

क्यों ?गुप्ता जी ,ने उसकी तरफ देखते हए पूछा। 

आज के समय में ,जब आजकल की महिलाओं से ,दो समय की रोटी भी नहीं बनती ,खाना बनाने वाली लगा लेती  हैं ,मेरी माँ इस उम्र में भी ,अपने हाथों से ,'बेसन के लड्डू 'बनाकर ,अपनी बेटी की ससुराल भेजतीं हैं ,उनमें अपनी बेटी के लिए प्यार और उनका आशीर्वाद होता है ,वरना लड्डू तो बाजार में भी मिल जाते हैं। इतनी मेहनत ,इतना जतन कोई ,प्यार में अपनों के लिए ही करता है। 

ये सब बातें ,तुम मुझे क्यों समझा रही हो ? गुप्ता जी ने कुछ भी न समझते हुए ,पल्ल्वी से पूछा। 

पापा जी !उस दिन मैंने आपकी बातें सुन लीं ,जिस दिन आप मम्मी जी से कह रहे थे -'तुम क्यों ?इस चूल्हे -चौके के चक्कर में पड़ती हो। वो हमारी समधिन जी हैं न..... मेहनत करने के लिए ,वे ही  भिजवा देंगी। आपका व्यंग्य मुझे अच्छा नहीं लगा ,माना कि, हम लोग, पैसे से आप लोगों से थोड़ा कम हैं किन्तु व्यवहार और प्रेम में ,इस परिवार से कहीं ऊँचे हैं। मेहनत और प्रेम से ,लोगों के दिलों को जीतना जानते हैं किन्तु जो उसकी क़द्र नहीं करता। इतने बेवकूफ भी नहीं ,कहते हुए पल्ल्वी का चेहरा लाल हो गया। अपनी बेटी के प्यार के लिए ,वो इतनी मेहनत करती हैं ,और मुझसे आप लोग जुड़े हैं ,वही प्यार आपको भी मिलता है किन्तु मैंने महसूस किया ,पैसो के सामने ,प्यार की कोई कीमत नहीं। 

पल्ल्वी की बात सुनकर ,गुप्ता जी ,थोड़ा गंभीर हो गए ,शांत होकर बोले -बेटा ! यदि मेरे किसी शब्द से तुम्हारे दिल को ठेस पहुंची हो ,तो उसके लिए मुझे दुःख है ,किन्तु मेरा उद्देश्य तुम्हें दुःख पहुंचाना नहीं था। तुम्हारी सास ,ने कभी खाना नहीं बनाया ,नौकरी करती थी ,और जब कभी बनाया ,तो....... कहते हुए ,पीछे मुड़कर देखने लगे ,कही धर्मपत्नी जी तो नहीं सुन रहीं ,आश्वस्त होकर बोले -उससे स्वयं भी नहीं खाया गया। जब तक मेरी माँ जिन्दा थी ,उसने मेरे लिए खाना बनाया ,कभी रसोइये से भी नहीं बनवाया। ऐसा नहीं था ,कि तुम्हारी सास ने कभी , बनाने और सीखने का प्रयास ही नहीं किया ,वो कोशिश तो करती थी , मां से पूछती भी थी किंतु खाने में वह स्वाद नहीं ला पाई , वह भी चाहती थी,कि मेरे हाथ का खाना खाकर , सभी मेरी प्रशंसा करें किंतु नाकामयाब रही। तुम्हारी मां के हाथ के लड्डू, खाकर मुझे अपनी मां के खाने का एहसास होता था , मुझे उनकी याद दिलाते थे, वही प्रेम ,वही मिठास मुझे महसूस होती थी।

 उस दिन भी ,तुम्हारी  सास ने सोचा होगा -वह भी लड्डू बनाए , तब मैंने सः प्रेम , उसे इसीलिए मना कर दिया था आज तक वह खाना ही ठीक से ना बना सकी , लड्डू क्या बनायेगी ? अब तुम तो जानती ही हो , एक पति की परेशानी , वह अपनी पत्नी के बनाए खाने की बुराई भी नहीं कर सकता , तब वह उसे खाना बनाने के लिए, मना तो कर सकता है। एक अच्छा पति होने के नाते, मैंने भी यही किया, इतना सारा सामान व्यर्थ जाता किंतु उन बेसन के लड्डूओं में, तुम्हारी मां के लड्डू जैसा स्वाद नहीं आ पाता , जिनसे मैं ,वंचित  नहीं रहना चाहता था,जो मुझे मेरी माँ के हाथों के खाने का स्मरण कराते हैं। पैसा होना ,एक बात है ,किन्तु अपनों का प्यार और अपनापन अलग चीज है। क्या इस घर में ,कभी भी तुम्हें हमने इस बात का एहसास कराया ?पल्ल्वी की तरफ देखते हुए ,उससे पूछा। 

नहीं ,पापा जी !

तब तुमने ऐसा क्यों सोच लिया ?कि हम अपनी समधिन के प्रति ऐसी, सोच रखेंगे। 

सॉरी ,पापा जी !पल्ल्वी अपनी सोच पर शर्मिंदा होते हुए बोली। 

अब तुम्हारी ''सॉरी ''तभी कुबूल होगी ,जब तक हम अपनी समधिन के हाथों से बनाये ''बेसन के लड्डू ''नहीं खा लेते ,कहते हुए गुप्ता जी हंसने लगे और अख़बार पढ़ने में व्यस्त हो गए। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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