Khamoshi

दिल में कहने को तो बहुत कुछ है ,
पर क्या करूं ?लब 'ख़ामोश 'हैं। 

इन ख़ामोशियों के साये में ,
पलते हैं ,सारे दुःख -दर्द हमारे 
ख़ामोशियाँ ,तन्हाईयाँ ,रुसवाईयाँ 
ये हैं ,ख़ामोश ज़िंदगी के सहारे।

 
ख़ामोशी दुःख -दर्द छुपा लेती है ,
बिछड़ते रिश्ते ,अपना लेती है।
ग़ैरों के दर्द की दवा बन जाती है ,
टूटे न ये रिश्ते ,ताले लगा लेती है।

ख़ामोश निगाहें, कुछ कहना चाहती हैं । 
तुम्हारी झुकी पलकें , पढ़ना चाहती हैं।
तुम्हारी बेचैनी कुछ   तो समझती हैं।
जो जानते हुए भी ,कहना नहीं चाहती है। 

जुबाँ बस खामोश रह जाती है। 
जब ये ज़िंदगी पर हावी होती है। 
ये ख़ामोशी,पलभर को डरा  जाती है। 
दर्द के गहरे साये में कहीं खो जाती है।  
 
 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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