दिल में कहने को तो बहुत कुछ है ,
पर क्या करूं ?लब 'ख़ामोश 'हैं।
इन ख़ामोशियों के साये में ,
पलते हैं ,सारे दुःख -दर्द हमारे
ख़ामोशियाँ ,तन्हाईयाँ ,रुसवाईयाँ
ख़ामोशी दुःख -दर्द छुपा लेती है ,
बिछड़ते रिश्ते ,अपना लेती है।
ग़ैरों के दर्द की दवा बन जाती है ,
टूटे न ये रिश्ते ,ताले लगा लेती है।
ख़ामोश निगाहें, कुछ कहना चाहती हैं ।
तुम्हारी झुकी पलकें , पढ़ना चाहती हैं।
तुम्हारी बेचैनी कुछ तो समझती हैं।
जो जानते हुए भी ,कहना नहीं चाहती है।
जुबाँ बस खामोश रह जाती है।
जब ये ज़िंदगी पर हावी होती है।
ये ख़ामोशी,पलभर को डरा जाती है।
दर्द के गहरे साये में कहीं खो जाती है।
