Bhrashtachar

''भ्रष्ट आचरण ''को भी भ्रष्टाचार कहा  जाता है ,लोगों को कहते सुना जाता है, कि समाज में बहुत ही भ्रष्टाचार फैल रहा है। किन्तु ये कोई नहीं सोचता -भ्रष्टाचार किन कारणों से पनपता है ?और उसके ज़िम्मेदार कौन है ?भ्रष्टाचार फैलाने वालो में से हममें से ही ,कोई न कोई होता ही है किन्तु इससे परेशानी हम सभी को होती है। किन्तु इसका क्या कारण है ? कि व्यक्ति अपने आचरण को बदलने के लिए विवश हो जाता है। इन सबमें ,सबसे पहले का कारण तो व्यक्ति का स्वार्थ ही सर्वोपरि है। जब व्यक्ति की इच्छाएँ  अधिक हों और आमदनी  कम, तब व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए घूस लेता है


यानि की रिश्वत। जो कि हमारे समाज के अनुसार ग़लत है किन्तु वो घूस लेता है, क्योंकि हम अपने कार्य को शीघ्र करवाने अथवा पूर्ण करवाने के लिए, उसे घूस का लालच देते हैं। इसके ज़िम्मेदार अकेला वो ही व्यक्ति नहीं वरन हम भी हैं। करें भी क्या ?घूस न दें तो दफ्तरों के चक्कर काटते रहें और यदि वो व्यक्ति बिना घुस लिए कार्य समय पर कर देता है। तो उसे अपनी सीमित आय पर ही पलना होगा किन्तु ये महंगाई किसी की आमदनी नहीं देखती वरन बढ़ती रहती है। आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए, उस व्यक्ति के  लिए घूस से बेहतर विकल्प कोई नहीं। 

इसकी शुरुआत तो विद्यार्थी काल में ही आरम्भ हो जाता है ,जब शिक्षक भी कक्षा में ठीक से न पढ़ाकर ,बच्चों को ''व्यक्तिगत शिक्षा ''के लिए मजबूर करते हैं। बच्चे के जीवन की शुरुआत ही, शिक्षा के व्यवसाय से आरम्भ हो जाती है जिसमें पिसते हैं- वे माता -पिता ,जो अपने बच्चे के सुखी भविष्य की कामना करते हैं। विद्यालयों के इतने व्यय ,इन सबकी पूर्ति के लिए व्यक्ति अपनी सीमित आय को बढ़ाने का किसी भी भ्रष्ट तरीक़े से प्रयास करता है। जिसका बच्चा पढ़ नहीं पाता ,वो पैसे के बल पर ''डिग्रियाँ ''खरीद लेता है। इन लोगों में कुछ पैसेवाले होते हैं, तो कुछ बड़े ओहदे वाले। दोनों ही अपने -अपने बल का भरपूर उपयोग करना चाहते हैं ,क्योंकि वो जानते हैं -जब तक' पैसा 'या 'ओहदा' है ,तभी तक उन्हें पूछा जा रहा है। और वो भी इस स्थिति में, न जाने किस -किसको घुस का  ,लालच देकर आये हैं ?अब उनकी बारी। कई बार व्यक्ति ईर्ष्यां वश भी ''भ्रष्टाचार ''का सहारा लेता है ,जब उसका पड़ोसी ,मित्र अथवा रिश्तेदार उससे अच्छा खाता कमाता है। अपना मान -सम्मान  बढ़ाने के लिए भी ,वो यही रास्ता अपनाता है। 


नेता भी अपने लिए वोट खरीदते हैं  और वो लोग  वोट बेचते हैं ,साधारण तरीक़े से देखा जाये, तो दोनों के ही अपने -अपने स्वार्थ सिद्ध हो जाते हैं किन्तु इस स्वार्थ सिद्धि में न जाने, कितने लोगों की हानि भी होती है? वो ये नहीं देखते। भ्रष्टाचार तो भ्रष्टाचार ही है, चाहे वो किसी भी परिस्थिति में किया गया हो। छोटे लोग छोटे कांड करते हैं और बड़े लोगों के बड़े कांड किन्तु ''दूध का धुला ''कोई नहीं। कोई अपने मान -सम्मान के लिए करता है कोई अपनी आय बढ़ाने के लिए भ्रष्ट होने पर मजबूर हो जाता है।कोई रिश्वत लेते हुए पकड़ा जाता है और रिश्वत देकर ही छूट भी जाता है। कोई एक बोतल शराब में बिक जाता है और ग़लत व्यक्ति चुनकर सत्ता में आ जाता है।  कारण कोई भी रहा हो ,स्वार्थ को छोड़कर ,यदि उस व्यक्ति की समस्याओं का निदान किया जा सके, तो शायद ये ''सामाजिक भ्रष्टाचार ''बंद हो सकता है। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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