रत्ना और चिराग़ घर से भाग जाते हैं ,बीच राह में ,दोनों अपने इस क़दम को उठाने के कारण सोचते हैं और इसका कारण उनका प्रेम ही है किन्तु रत्ना अपने परिवार के विषय में सोचकर ,परेशान होती है। चिराग़ तो एक डॉक्टर है ,उसका तो काम भी चौपट हो गया ,अब वो सोचता है- कि अब क्या करना है ?या आगे क्या होगा ?उससे पहले एकांत में वो अपने और रत्ना के विषय में सोचता है , कैसे वो दोनों मिले ? रत्ना अपनी बीमारी के पश्चात कैसे उसे 'धन्यवाद 'करने आती है ?और फिर..... अब आगे -
लता चिराग़ के क्लिनिक पर आती है और उसे बताती है -डॉक्टर साहब , दीदी के पेट में दर्द है ,आपको बुलाया है। हालाँकि ,वो उसे बिना देखे भी दवा दे सकता था किन्तु वो भी तो उसे देखने के लिए मरा जा रहा था और वो सम्मोहन में फंसा ,लता के पीछे चल देता है। उसके घर में ,आज भी पहले की तरह अँधेरा है ,आज उसकी मम्मी भी नहीं दिख रही। जाल के नीचे ,उजाले में खड़े होकर पूछता है- कि मरीज़ किधर है ?लता पहले वाले कमरे की तरफ ही इशारा करती है। वो उधर जाता है ,एक कुर्सी पहले से ही वहां पड़ी थी। पहले की तरह चारपाई पर लेटी थी। मैंने नज़दीक जाकर पूछा -क्या हुआ ?वो बोली -पेट में दर्द है। मैंने उसका वो ,नाजुक़ सा नरम हाथ पकड़ा ,मैं तो डॉक्टर हूँ ,ऐसे न जाने दिन में कितने हाथों को पकड़ता हूँ? ,उनमें महिलाओं के हाथ भी होते हैं किन्तु इस हाथ को पकड़कर मुझे कुछ अलग ही अनुभूति हुई। मेरा दिल धड़क रहा था।
अभी मैंने हाथ पकड़ा ही था ,वो बोली -हाथ में नहीं पेट में दर्द है और मुस्कुरा दी ,मुझे अपनी भूल का एहसास हुआ और बोला -जब तुम्हें पता है ,कहाँ परेशानी है तब कोई चूर्ण अथवा पेट दर्द की कोई भी दवा ले सकती थीं। ऐसे कैसे ले लेती ?डॉक्टर तो आप हैं ,आप ही बतायेंगे न , कि मुझे कौनसी दवाई लेनी है ?मैं बिना डॉक्टर की सलाह के कोई दवाई नहीं लेती। अब रत्ना के चेहरे पर पीड़ा से ज्यादा शरारत नजर आ रही थी।
चिराग़ भी , उसकी हरकतों को देखकर बोला -क्यों ?डॉक्टर दीक्षित को नहीं बुलाया। वो तो आपके पारिवारिक डॉक्टर हैं। रत्ना ने जैसे कड़वा करेला खा लिया हो बोली -डॉक्टर कम ,शैतान ज्यादा है ,बिमारी के बहाने ,अपनी आँखें सेकने आता है। तुम इतनी जल्दी बिमार पड़ती ही क्यों हो ?सुंदर चीजें तो देखने के लिए ही बनी होती हैं। डॉक्टर साहब !मैं कोई वस्तु नहीं ,इंसान हूँ ,जो बीमार है उसने भोला सा चेहरा बनाकर कहा। चिराग़ मुस्कुराया और उसने अपने पास पड़ी ,एक गैस की गोली उसे खाने को दे दी और बोला -पेट से पहले अपने दिमाग़ का इलाज़ करवाइये। गोली खाते हुए वो बोली -क्या मतलब ?
पेट दर्द के लिए मुझे बुला भेजा ,जानती भी हो, मेरा शुल्क कितना है ?वो कृत्रिम क्रोध दिखाते हुए बोली -आपको तो अपने शुल्क की पड़ी है , मेरा कुछ नहीं ,चलो माना मैंने आपको बुला भी लिया तो आप आये ही क्यों ?कह देते ,मरीज़ बैठे हैं या कोई और बहाना भी कर सकते थे ,-जैसे..... .जैसे तुमने मम्मी के न रहने पर, पेट दर्द का बहाना किया ,उसके वाक्य को पूर्ण करते हुए ,चिराग़ ने उसकी आँखों में झाँका। उसके चेहरे पर अपनी नजरें गड़ा दीं। वो उसे इस तरह देखते हुए देखकर ,शर्म से लाल हो गयी और अपनी नजरें झुका लीं। देखा जाये ,तो चिराग़ भी दिल के हाथों खिंचा चला आया था फिर भी रत्ना को परिस्थितियों को समझाते हुए , चिराग बोला - तुम्हें पता भी है ,तुमने इस समय मुझे बुलाकर, क्या गलती की है ?क्या ?रत्ना ने पूछा। पहले तो तुम्हारी मम्मी घर पर नहीं ,दूसरे इस तरह मेरा यहां होना भी ठीक नहीं। वैसे मैं तो डॉक्टर हूँ किन्तु लोग सोचने पर मज़बूर हो जायेंगे- कि इनकी लड़की कुछ ज्यादा ही बिमार रहती है ,या फिर इतने महंगे डॉक्टर का शुल्क कैसे देते होंगे ?इस शहर में और भी तो डॉक्टर हैं ,तुम्हारी मम्मी को पता चलेगा, तो क्या सोचेंगी ?और किस -किस को जबाब देंगी ?
रत्ना की तो जैसे 'अक़्ल पर पत्थर ही पड़ गए थे। ''उसने तो ऐसा सोचा ही नहीं था ,उसने तो दिल के हाथों बेबस होकर ,उसे बुलाया था। वो उसकी बातों से रुआंसी हो गयी ,उसे लग रहा था ,जैसे -उसने कोई बहुत बड़ी गलती कर दी हो ,चिराग सही तो कह रहा है ,मैंने क्यों इसे बुला भेजा ?लोग देखेंगे तो क्या सोचेंगे ?चिराग़ बोला -अब जो हो गया उसे बदला तो नहीं जा सकता किन्तु इससे पहले की तुम्हारी मम्मी आये या मामा इधर आ जायें ,मैं चलता हूँ और हाँ, इसमें मैंने दवाइयाँ लिख दी हैं ,जब भी पेट दर्द हो तो खा लेना ,कहकर उसने वो पर्ची रत्ना के हाथ में थमा दी और सीधे बाहर आ गया। रत्ना अपने मन में ग्लानि लिए थी, मैंने कितनी बड़ी गलती कर दी ?उसने तो जैसे मेरी आँखें खोल दीं ,वो कितना समझदार भी है ?रत्ना के मन में उसके लिए सम्मान बढ़ा ,और कोई होता तो मौक़े का लाभ भी उठा सकता था किन्तु..... सोचते हुए ,उसने उस पर्ची को खोलकर देखना चाहा ,-कौन सी ,दवाई लिखी है ?
उसे देखते ही रत्ना के चेहरे के भाव बदल गए और वो प्रसन्नता से लगभग चीख़ उठी ,उसमें लिखा था -तुम्हारे कारण, ये डॉक्टर भी बिमार है ,जो तुम्हें देखे बगैर नहीं रह सकता ,प्रेम करती हो, तो रात में दस बजे अपने घर के पीछे की ख़ाली जगह में आ जाना ,मैं वहीं तुम्हारी बेसब्री से प्रतीक्षा करूंगा। उसने उस पर्ची को चूमा और अपनी पुस्तक में छिपा दिया। आज तो जैसे उसके पांव ज़मीन में नहीं पड़ रहे थे ,वो उसकी अक्लमंदी पर मन ही मन नाराज़ भी हो रही थी ,मुझे कितना सताया ?छोडूंगी नहीं उसे। अब तो उसके मन में योजना चल रही थी कैसे और किस तरह उसे बाहर जाना है ?
आज उसकी मम्मी बाहर से आई हैं ,यात्रा की थकान है ,शाम का खाना बड़ी बहन होने के नाते रत्ना ने ही बनाया। सबने खाना खा लिया ,तब वो अपने घर की छत पर टहलने के बहाने गयी ,वो देखना चाहती थी, कि कोई वहां है तो नहीं ,उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। मन ही मन सोच रही थी- किस तरह बाहर जाये ?अभी साढ़े नौ ही बजे थे ,वो अपने कमरे में गयी और बाहर आकर बोली -मम्मी !मेरे से तो एक गलती हो गयी ,कल मुझसे छवि ने बाहरवीं के 'नोट्स 'मांगे थे ,मुझे स्मरण नहीं रहे ,अब दे आऊँ।
मम्मी ने घड़ी में समय देखा ,बोलीं -इस समय अब देर हो चुकी ,कल दे देना। उसने फिर से बहाना बनाया -कल उसका पेपर है। वो बोलीं -उसकी तुझे क्यों इतनी चिंता हो रही है ?पेपर उसका है ,उसे तो परेशानी नहीं ,तू क्यों परेशान है ?वो बार -बार घड़ी देखती और परेशान होती। घड़ी की सुईं हैं कि खिसकती जा रही हैं और उसे कोई भी बहाना नहीं मिल रहा कि वो घर से बाहर जाकर चिराग़ से मिले। वो तो आता ही होगा। उसे इस तरह परेशान देखकर उसकी मम्मी बोलीं -तू कॉपी लता को दे दे ,वो दे आयेगी।