''समोसा किंग '' का राज्य अच्छे से चल रहा था ,किन्तु उसको अनेक विदेशी दुश्मनों का सामना करना पड़ा। किन्तु उसने ,उनसे भी हार नहीं मानी ,तब एक नया शत्रु आया ,''सिंघाड़ा राक्षस ''समोसा किंग ''ने उसके साथ विनम्रता से व्यवहार किया किन्तु उसे तो अपनी उपलब्धि पर अहंकार था। उसने ' समोसा किंग ''के सामने अहंकार भरी बातें करनी आरंभ कर दीं। वो बोला - मैं तो पानी में रहकर तपस्या करता हूँ ,वहां रहने वाले जीवों को भी मुझसे हार माननी पड़ती है। अब आगे --
''सिंघाड़ा राक्षस '' अपने अहंकार में बोला -मैंने उस तालाब के सभी जीवों को अपनी बेल की भूल -भुलैया में फंसा लिया ,तब उन लोगों ने हमारे राजा से प्रार्थना की तब जाकर मैंने उन्हें छोड़ा। फिर वो समोसे की तरफ़ घृणा भरी नजरों से देखकर बोला -इंसान तुम्हें गर्म तेल में तलता है ,इसी कारण तुम उनकी सेहत पर भी बुरा असर छोड़ते हो ,तुम उनका स्वाद बढ़ाते हो या उनके स्वास्थय का सर्वनाश करते हो।''समोसा किंग ''नजरें नीची किये ,उसकी बातें सुनता रहा। तब ' सिंघाड़ा राक्षस ''अपना बखान करते हुए बोला -जब मेरी तपस्या पूर्ण हो जाती है ,तब इंसान मुझे तोड़कर अच्छे से धोता है जिससे किसी की सेहत को कोई नुकसान न पहुंचे। और मेरी तपस्या का ही परिणाम है ,'एकादशी 'पर जब देव उठाये जाते हैं तब मुझे ही प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। मेरे सीने को चीरकर जो पवित्र फ़ल निकलता है ,उसे सब प्रसन्न होकर खाते हैं ,इतना ही नहीं ,मेरे उस फ़ल को सुखाकर भी रखा जाता है ,ताकि जो लोग उपवास करते हैं ,उनके भोजन का साधन बनूँ।
उपवास में खाने के लिए अन्य वस्तुयें भी हैं ,जैसे कुट्टू को ही ले लो ,उसकी तासीर गर्म होती है और हर किसी को लाभ नहीं देता। फिर वो इठलाकर अपनी प्रशंसा करते हुए ,बोला -मेरे आटे की रोटियाँ ,पकौड़ियां कभी नुकसान नहीं देतीं वरन मैं उनके पेट को शीतलता ही प्रदान करता हूँ। फिर अपने अहंकार में बोला -अब तो मुझे लगता है कि उस भगवान की मुझ पर अति कृपा है ,इसीलिए तो उसने मुझे मेरी सुरक्षा के लिए दो सींग भी दिए हैं ,अब मैं आ गया हूँ ,तो अब मैं ,तुम्हारे साम्राज्य का नामोनिशान मिटा दूंगा ,हर तरफ मेरा ही जलवा होगा।
'' समोसा किंग '' विनम्रता से बोला -भाई ,इंसान ने मुझे भी बनाया है ,वो मेरे लिए मेहनत भी करता है और जिसके परिणामस्वरूप ,मैं भी उनका स्वाद बढ़ाता हूँ। सिंघाड़ा बोला -स्वाद ,माई फुट !तू सिर्फ़ स्वाद ही बढ़ाता है ,सेहत नहीं।
ये देख भगवान ने मुझे हरे रंग का मजबूत कवच भी दिया है।ये जो मेरा मुकुट है इससे मैं दुश्मन को परास्त कर सकता हूँ , तेरे अंदर मैं अपने ये जो सींग है उन्हें डालूंगा तो तू और तेरा ये राज्य तहस -नहस हो जायेगा। अब तो मेरा ही राज्य होगा ,मेरे स्पर्श मात्र से ही ,तेरा ये शरीर नष्ट हो जायेगा।
अब तो सारे बाजार में सिंघाड़े और उसकी पृथ्वी की दोस्त 'शकरगंदी 'भी उसका साथ दे रही थी। हालाँकि सिंघाड़ा कीचड़ वाले तालाब से निकलकर आता किन्तु नहा -धोकर चमकने लगता ,उसकी दोस्त शकरगंदी वो तो देखने में भी गंदी ही लगती किन्तु काफी मोटी और मजबूत थी।
समोसा मन ही मन भगवान से प्रार्थना करता --प्रभु !मैं मानता हूँ कि सिंघाड़ा आपने बनाया ,आपका आशीर्वाद उसके साथ है आपने इसकी सुरक्षा के लिए कवच और सींग भी दिए। मैं मानव निर्मित उसके मानस पटल की उपज हूँ किन्तु दुःख तो मैं भी सहता हूँ ,अपने अंदर तीखे ,चटपटे मसाले भरवाता हूँ ,फिर गर्म तेल में तला जाता हूँ। तब जाकर लोगों की प्लेट [तश्तरी ]तक पहुंचता हूँ। मुझे लोग चटकारे लेकर बड़े चाव से खाते हैं किन्तु मैंने कभी अभिमान नहीं किया। सींग तो मैं भी तीखे बना सकता था किन्तु मैंने लोगों की सुविधा का ध्यान रखा। और ये कल का आया सिंघाड़ा किस तरह अहंकार में घूम रहा है और मेरा राज्य नष्ट कर देना चाहता है ,उसे अपनी योग्यता पर कुछ अधिक ही अभिमान हो गया है और इसकी दोस्त शकरगन्दी दोनो ही मुझसे बलशाली हैं किन्तु मैंने किसी का क्या बिगाड़ा है ?इनसे मेरे राज्य को बचाइये।
समोसे की करुण पुकार सुनकर ,भगवान ने सिंघाड़े को समझाना चाहा -देखो , समोसा देखने में तुम्हारे जैसा ही है ,तुमसे बड़ा भी है किन्तु वो अपना जीवन लोगों की ख़ुशी में ही समर्पित कर देता है उनकी प्रसन्नता के लिए अपना तन जलाता है और नये -नये तरीकों से उपयोग में आता है।
सिंघाड़ा भी कहाँ चुप रहने वाला था ,बोला -मैं भी तो पानी में रहकर दिन -रात आपकी तपस्या करता हूँ ,मुझे खाने से लोगों के स्वास्थ्य को लाभ मिलता है। भगवान जी बोले -मैं मानता हूँ ,इसी कारण तुम्हें वो स्थान प्राप्त है जो उसे नहीं है ,तुम्हें प्रसाद योग्य बनाया गया है , किन्तु समोसे की अपनी अलग पहचान है। लोग उसे अपने स्वाद के लिए ,बड़ी मेहनत से बनाते हैं ,इसमें उसका क्या दोष ?इतने पर भी वो कभी अहंकार नहीं करता ,अपनी विनम्रता नहीं खोता।
सिंघाड़े ने अपने अहंकार में ये भी नहीं सोचा ,कि उससे कौन बात कर रहा है ?और वो भगवान जी से ही अकड़कर बोला -ठीक है ,ठीक है ,मेरे पास उससे ज्यादा ताकत और योग्यता है तो फिर मैं उसका लाभ क्यों न उठाऊँ ?मैं भी तो लोगों की सेहत के लिए ,अपने बदन को चीरकर नंगा हो जाता हूँ ,तभी लोग मुझे खा पाते हैं। मैं अपनी लताओं को संम्पूर्ण झील और तालाबों में फैलाकर अपना राज्य बढ़ाऊंगा। जहाँ मैं नहीं पहुंच पाउँगा ,उसमें मेरी दोस्त मेरी मदद करेगी। उसके इस तरह अहंकार की बातें करने पर ,भगवान जी ने एक -दो बार और समझाया ,जब वो नहीं समझा तो उन्हें क्रोध आ गया।
तब भगवान जी क्रोध में बोले -जाओ !मैं तुम्हें शाप देता हूँ ,तुम्हारा जीवन काल हर वर्ष तीन -चार माह का ही होगा और तुम्हारी दोस्त शकरगन्दी की भी यही हालत होगी। तुम अपना राज्य सिर्फ़ ठहरे हुए पानी में ही स्थापित कर सकोगे। बहते हुए पानी और समुन्द्र में तुम्हारा कोई अस्तित्व नहीं होगा। दो -तीन माह के पश्चात तुम बाज़ार में दिखोगे भी नहीं। क्योंकि तुम्हें हमारा आशीर्वाद प्राप्त है ,इसीलिए तुम्हारा सम्मान ''एकादशी ''को उसी प्रकार होगा ,तुम्हारे राज्य का जीवनकाल छोटा हो जायेगा।
भगवान जी का शाप सुनकर ,अब तो सिंघाड़े को अपनी गलती का एहसास हुआ और वो अपनी दोस्त के साथ उनसे क्षमा याचना करने गया किन्तु भगवान जी बोले -मैंने तुम्हें पहले ही समझाने का प्रयास किया था किन्तु तुम माने ही नहीं ,अब भुगतो। अब दोनों हर बरस सर्दियों के शुरुआत में आते हैं और कुछ दिनों तक रहकर चले जाते हैं। और अपनी विनम्रता के कारण समोसे का राज्य आज भी स्थापित है।
तो बच्चों देखा आपने ,अपनी विनम्रता के कारण समोसा स्वास्थ्यवर्धक न होते हुए भी ,उसका राज्य आज भी है और सिंघाड़ा मजबूत और सेहतमंद होने के बाद भी ,कुछ महीनों पश्चात लुप्त हो जाता है। जिस प्रकार हमारी जीभ [जिव्ह्या ]नर्म होने के कारण मृत्युपर्यन्त तक हमारे संग रहती है और दाँत कठोर होने के कारण जल्दी टूट जाते हैं।
इस कहानी को लिखने का मेरा उद्देश्य ,बच्चों में ''कल्पना शक्ति'' को बढ़ावा देना है ,बच्चों को भोजन की पहचान करना ,''जंक फूड ''क्या है ?ये समझना ,कहाँ से आया ?कहाँ से , किस भोजन की उत्तपत्ति होती है ?शब्दों को पहचानना और समझना और इस कहानी का सार क्या है ?ये माता -पिता अपने बच्चे से पूछें। कमेंट बॉक्स में लिखकर बतायें तो ,मुझे प्रसन्नता होगी। धन्यवाद !